सुन मेरे हमसफर 217

 217





     अव्यांश यूं तो अपना सामान लेने घर आया था और इसी बहाने वह एक नजर निशी को देख लेना चाहता था। लेकिन यहां आकर और निशी की बात सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने हर तरह की बात सोच रखी थी लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि उसके और निशि के बीच की बात बढ़कर नौबत तलाक किया जाएगी।


      अव्यांश का दिल धक से रह गया। वह अविश्वास से निशि की तरफ देखने लगा जैसे आंखो ही आंखों में उससे सवाल कर रहा हो। तो वहीं निशि भी अव्यांश को इस तरह अपने सामने खड़े देख चौंक गई। उसे नहीं लगा था कि अव्यांश रात के इस वक्त घर लौटेगा। और न सिर्फ घर लौटेगा, बल्कि उसकी बात भी सुन लेगा। लेकिन क्या यह सब सही था?


     निशि अव्यांश को अपने सामने पाकर थोड़ी नर्वस हो गई। उसकी बात भी पूरी नहीं हो पाई। उसे चुप देख देवेश ने उसे आवाज लगाई "निशि! हेलो निशि! तुम हो?"


     देवेश की आवाज सुनकर निशि को ध्यान आया कि कॉल अभी चालू है। उसने अव्यांश के सामने देवेश से बात करना सही नहीं समझा। पहले ही बहुत सी प्रॉब्लम हो चुकी थी और अभी फिर एक नई मुसीबत। न जाने आगे क्या होने वाला था, यह सोचकर उसने फोन कान से लगाया और बोली "देवेश! मैं तुमसे बाद में बात करती हूं।" दूसरी तरफ से बिना देवेश की कोई बात सुने निशी में फोन रख दिया।


    अव्यांश अभी भी दरवाजे पर खड़ा एकटक बिना पलके झपकाए उसे देख रहा था। निशी बहुत ज्यादा नर्वस हो रही थी। जो कुछ भी निशी ने कहा, वह बात अव्यांश तक पहुंच चुकी थी और यही बात निशी को अंदर ही अंदर परेशान कर रही थी। घबराहट में उसने अपने कदम अव्यांश की तरफ बढ़े और बोली "अव्यांश वो मैं.........!"


     निशी की आवाज सुनकर अव्यांश होश में आया और बड़ी मुश्किल से अपने दिल में उठे दर्द को संभाले हुए अंदर कमरे की तरफ बढ़ गया, कुछ ऐसे जैसे उसने निशि को देखा ही नहीं। निशी समझ गई की अव्यांश को बुरा लगा है। तलाक की बात पहले ही देवेश कर रहा था लेकिन निशि इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। चाहे उसकी नजर में अव्यांश ने उसके साथ कितना ही गलत किया हो लेकिन एक सच यह भी था कि वह अव्यांश से दूर नहीं जाना चाहती थी। वैसे ही दोनों के बीच काफी कुछ हो चुका था और अब वह इस सारे ब्लंडर में एक और ब्लंडर नहीं जोड़ना चाहती थी।


     अव्यांश अपनी अलमारी से अपनी जरूरत का सामान निकाल रहा था लेकिन उसका दिमाग निशि की तरफ ही घूम जाता, जिस कारण सामने होते हुए भी उसे अपनी चीज नजर नहीं आ रही थी। निशि उसकी परेशानी समझ गई और आगे आकर उसने उसके अलमारी से नाइट सूट निकाल कर अव्यांश की तरफ बढ़ा दिया। अव्यांश ने नाराजगी से निशी की तरफ देखा और अपनी अलमारी छोड़कर बेड साइड रखें ड्रॉअर की तरफ चला गया। ड्रॉअर में उसने दो-तीन पेन ड्राइव निकले और उन्हें अपने पॉकेट में डालकर वहां से बाहर निकलने लगा तो निशि ने उसे पीछे से रोका "अव्यांश! मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। देखो! तुमने जो सुना वह.........."


     अव्यांश निशी के बाद पूरी नहीं होने देना चाहता था। वह जानता था निशी उसे क्या कहने वाली है और यह बात सुनने को हो तैयार नहीं था। उसने निशी को बीच में ही रोका और बोला "मेरे बारे में मत सोचो। तुम्हें जो ठीक लगता है वह करो। तुम्हारा जो फैसला होगा, मैं तुम्हारे साथ हूं, यह बात मैंने तुम्हें पहले भी कही थी। तुम यहां से जाना चाहती हो तो ठीक है, तुम्हें रोकने का मुझे कोई हक नहीं। लेकिन बस एक ही बात तुमसे दोबारा कहता हूं। कुहू दी की शादी है। प्लीज! तब तक के लिए तुम्हें इस घर की बहू बनने का नाटक करना होगा। उसके बाद तुम आजाद हो।"


     निशि को यह बात चुभ गई। उसने आगे बढ़कर अव्यांश को रोकना चाहा लेकिन अव्यांश हवा के झोंके की तरह वहां से बाहर निकल गया। निशि उसके पीछे भागी। एक अजीब सा दर्द, एक अजीब सी बेचैनी ने उसके दिल को घेर लिया। अब वह क्या करेगी? दिल और दिमाग एक बार फिर आपस में उलझ पड़े। एक तरफ उसका पहला प्यार उसे अपनी तरफ बुला रहा था तो वहीं दूसरी तरफ उसका पति उसकी खुशी के लिए उसे छोड़ने को तैयार था। क्या करेगी निशि, और कैसे?


    अव्यांश तेजी से सीढ़ियों से नीचे उतरा और बाहर की तरफ लपका। उसे इतनी तेजी से जाते देख सिद्धार्थ ने पीछे से आवाज लगाई "अरे अंशु........ क्या हुआ अंशु? अंशु.........!" लेकिन अव्यांश को नहीं रुकना था सो वह नहीं रुका। सिद्धार्थ ने उसे अजीब नजरों से जाते हुए देखा और फिर चेहरा घूमकर अपने भाई की तरफ देखा।


     सारांश चुपचाप गोद में लैपटॉप लिए बड़े ध्यान से स्क्रीन को देख रहे थे। सारांश के चेहरे पर बड़ी शांति थी लेकिन अंदर कितना बड़ा तूफान उमड़ रहा था यह सिर्फ वह जानते थे। अपने भाई के चेहरे को देख सिद्धार्थ ने सीधे से सवाल किया "सब ठीक है ना?"


    सारांश ने नजर उठाकर सिद्धार्थ की तरफ देखा और बड़ी मासूमियत से अनजान बनते हुए पूछा "क्या हुआ भैया आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो?"


     सिद्धार्थ ने सवालिया नजरों से सारांश को देखा और बोले "ऐसे भोले मत बन जैसे तुझे कुछ पता ही नहीं कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं।"


     सारांश एक बार फिर अंजान होकर बोले "हां मैं इस प्रोजेक्ट को लेकर थोड़ा सा परेशान हूं। हमारा जो मेजर इन्वेस्टर था, वह यहां कुछ चेंज के लिए बोल रहा है, अपनी कुछ शर्ते रखना चाहता है और हम उसके लिए तैयार नहीं है। बस ज्यादा कुछ नहीं, वह सब मैं संभाल लूंगा।"


     सिद्धार्थ ने सारांश के गोद में रखा लैपटॉप एक झटके में बंद किया और सारांश की तरफ झुक कर बोले "मैं अंशु की बात कर रहा हूं। जिस तरह से वह गया है मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।"


     सारांश कुछ बोल नहीं पाई। वो नहीं चाहते थे कि यह बात उनके जरिए सबके सामने आए इसलिए बहाना बनाकर बोले "भाई! जिसकी प्रॉब्लम है वही समझा सकता है। हम और आप कुछ नहीं कर सकते।"



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274