सुन मेरे हमसफर 213

 

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    सारांश किसी जरूरी काम से ऑफिस आए थे। वैसे तो ऑफिस का काम सब कुछ सही चल रहा था फिर भी सारांश को वहां आना पड़ा। कुछ पेपर्स पर साइन करने के बाद वह ऑफिस से वापस जाने लगे तो उनके असिस्टेंट ने कहा "सर! आपने बेकार ही परेशानी उठाई। अव्यांश सर के हाथो मैं यह पेपर घर भिजवा देता।"


     सारांश अपना पेन बंद करते हुए बोले "हां लेकिन वह बेचारा वैसे ही शादी के काम में बिजी है, उसे और कितना परेशान करना!"


    लेकिन असिस्टेंट ने कहा "सर! अव्यांश कर तो अभी ऑफिस में ही है।" 


    यह सुनकर सारांश चौंक गए और पूछा "अंशु यहां पर है? वह कब आया यहां पर?"


     असिस्टेंट ने कुछ सोच कर कहा "शाम से ही, हां करीब चार 4:30 के लगभग। तब से वह अपने केबिन में बैठे हैं। ना किसी से मिले ना किसी को बुलाया। इनफैक्ट मैंने उन्हें कॉफी भी देनी चाही तो उन्होंने मना कर दिया।"


      यह सुनकर वाकई सारांश को अव्यांश की चिंता हुई। वह सीधे गए और अव्यांश के केबिन के दरवाजे पर नॉक किया।


     अव्यांश जो अपना सर कुर्सी से लगाए आंख बंद किए बैठा था उसने कहा "मैंने पहले ही बोला था, मुझे कोई डिस्टरबेंस नहीं चाहिए।"


   सारांश अंदर आते हुए बोले "मेरी भी नहीं?"


     अव्यांश ने आंखें खोल कर देखा तो सारांश उसके सामने खड़े थे। उन्हें वहां देखकर अव्यांश थोड़ा सकपका गया। वह अपने डैड से क्या कहता, क्या बहाना बनाता? इस वक्त तो उसका लैपटॉप भी बंद था। सारांश अंदर आते हुए बोले "यह तो बिल्कुल मत कहना कि तुम काम कर रहे थे। लेकिन कुछ तो कर रहे थे। तो फिर ऐसा क्या काम कर रहे थे कि तुम्हें कोई डिस्टर्ब ना करें?"


     अव्यांश ने कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन उसके चेहरे के हाव-भाव देखकर सारांश आगे आए और उसे कंधे पर हाथ रखकर बोले "निशी के साथ तेरी लड़ाई अभी भी खत्म नहीं हुई है ना?"


      बात तो सारांश की सही थी लेकिन अव्यांश के परेशानी की वजह इस वक्त निशि नहीं बल्कि कुणाल और कुहू का रिश्ता था। उसने कहा कुछ नहीं बस अपना सर झुका कर रह गया। सारांश उसके सामने बड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोले "मैंने तुझे समझाया था ना! पति-पत्नी के बीच कभी किसी दूसरे को मत आने देना और अगर कोई आने की कोशिश कर रहा है तो दोनों के बीच की जो भी गलतफहमी है उसे दूर कर दो। गलतफहमियां किसी भी रिश्ते को खोखला कर देती है। थोड़ा सा झुकने से अगर रिश्ता मजबूत होता है तो झुकाने में कोई परेशानी नहीं है। तुम दोनों ही अगर अपना ईगो लेकर बैठे रहोगे तो फिर तुम दोनों की शादी में आगे बहुत मुश्किल होगी।"


     अव्यांश ने टेबल पर रखे पेपर वेट को लिया और उसे टेबल पर गोल गोल नचाते हुए बोला "मैं जानता हूं, और मुझे निशी के सामने झुकने में कोई प्रॉब्लम नहीं है डैड। यह बात आपने ही समझाइ है। लेकिन अगर मेरे झुकने से भी कुछ फर्क ना पड़े तो फिर मैं अकेला क्या कर सकता हूं। यहां उसे भी एफर्ट लगाना होगा। उसे मुझसे नाराजगी है तो उसे भी बताना होगा। खैर मैं अभी उसे लेकर परेशान नहीं हूं। बात कुछ और है।"


     सारांश बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रहे थे और अव्यांश अभी भी इस उलझन में था कि इस बारे में वह अपने पापा को बताए या ना बताएं।



*****

   



     दूसरी तरफ शिवि उसे चैन कहा! मेहंदी सूखने के तुरंत बाद कहां तो वह घर में आराम करती लेकिन नहीं, उसे अस्पताल निकलना था। सबको बिना बताए वो निकल गई लेकिन इस हालत में उसे अस्पताल में देख किसी ने कुछ नहीं कहा और सभी मुंह दबाकर एक दूसरे से बातें करने लगे।


    शिवि के हाथ में मेहंदी कोई बहुत बड़ा ब्लंडर था। बात उड़ते उड़ते पार्थ के कानों में पहुंची तो वह भागते हुए अपने केबिन से बाहर निकाला और शिवि के सामने जाकर खड़ा हो गया। दोनों ने एक दूसरे को सर से पर तक घूरकर देखा और दोनों एक साथ हंस पड़े। दोनों को हंसते देखा सब ने एक नजर उन्हें देखा और फिर वापस अपने काम में लग गए।


   शिवि अपने केबिन में गई और पार्थ भी उसके पीछे-पीछे हो लिया। शिवि हंसते हुए बोली "तेरी एक फोटो लेनी चाहिए थी। तुझे पता है तू कैसा लग रहा था? आंखें खुली मुंह खुला, ऐसा लगा जैसे आंखें निकाल कर बाहर गिर जाएगी और जबरा नीचे लटक जाएगा। कोई भूत देख लिया क्या?"


     पार्थ जाकर आराम से वहां बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और हंसते हुए बोला "भूत ही देखा मैंने। मैंने क्या पूरे अस्पताल ने! वह क्या है ना, आज से पहले हमने कभी वह भूत देखा नहीं था।"


    शिवि समझ गई कि उसके कहने का मतलब क्या था।उसने पार्थ की तरफ देखा तो पार्थ बोल "मुझे मत देख ऐसे। तुझे पता है तू कितनी अजीब लग रही है? मेरा मतलब तुझे पता है तू आज बिल्कुल लड़की जैसी लग रही है। भले तू अपने नॉर्मल कपड़ों में है लेकिन तेरे हाथ में मेहंदी कितनी खूबसूरत लग रही है तुझे पता भी है? ऐसा लग रहा है जैसे तेरी शादी होने जा रही है।"


     अपने दोनों हाथ को देखा और फिर उसे छुपाने की कोशिश करने लगी। पार्थ ने उसकी कलाई धीरे से पकड़ ली और कहा "इसे छुपा मत। देख तो कितनी खूबसूरत लग रही है और तुझ पर तो और ज्यादा सूट करती है!"


    पार्थ का ऐसे हाथ पकड़ना शिवि को थोड़ा अजीब लगा। यह छुअन उसे एक अलग ही एहसास दे गया। शिवि ने घबराकर अपने हाथ पार्थ के हाथ से छुड़ाया और बोली "तुझे पता है मैं यह सब नहीं करती। यह सब तो कुहू दी ने करवाया है। पता नहीं उनको क्या सूझा।"


     पार्थ वापस से अपनी कुर्सी पर बैठ गया और बोला "चलो किसी ने तो पहल की वरना तेरा यह रूप देखने को ही नहीं मिलता। वैसे मेहंदी तक तो ठीक है लेकिन यह दुल्हन वाली मेहंदी का क्या चक्कर है?"


    शिवि अपने दोनों हाथ आगे दिखा कर बोली "मैंने कहा ना यह सब कुहू दी का काम है! यह देख उन्होंने अपना नाम भी लिखवा दिया है ताकि सबको पता चले।"


     पार्थ ने देखा वहां पर कुहू का पूरा नाम तो नहीं लेकिन कुहू का के जरुर लिखा था। उसने सीरियस होकर कहा "कैसे k फॉर कुहू ही नहीं, कुणाल भी होता है।"



    

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