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सुन मेरे हमसफर 148

  148    कुणाल ने सीट बेल्ट नहीं लगाई थी जिसके कारण उसके सर पर अच्छी खासी चोट आई। उसने अपना सर पकड़ लिया और सामने आईने की तरफ देखते हुए बोला "बस यही लिखा है मेरी किस्मत में। इसी लायक हूं मैं। और तो कोई काम आता नहीं है मुझे।"      कुणाल का ध्यान सामने वाली गाड़ी की तरफ गया। यह तो अच्छा था कि वहां रास्ते पर कुछ खास गाड़ियां नहीं चल रही थी वरना अब तक तो वह अच्छा खासा जाम लग गया होता। सामने वाली गाड़ी को शायद कुछ खास डैमेज नहीं हुआ था लेकिन उसे गाड़ी में भी कोई ना कोई इंसान जरूर था और उसे भी चोट आई होगी, यह सोचकर कुणाल ने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला और बाहर निकाला।      तभी दूसरी तरफ की गाड़ी के ड्राइविंग सीट का दरवाजा खुला और शिवि गुस्से में चिल्लाते हुए बाहर निकली "अंधे हो क्या? दिखाई नहीं देता है? बापका सड़क समझ रखा है जो कहीं भी गाड़ी घुमा दोगे?"       शिविका ध्यान कुणाल पर गया तो उसका गुस्सा शांत होने की बजाय और भड़क गया। वो पर पटकते हुए कुणाल के पास आई और बोली "हमेशा से इसी तरह ड्राइविंग करने की आदत है आपकी? अपना दिमाग क्या घर छोड़ कर आते हो? क्या हरकत है यह? आ

सुन मेरे हमसफर 147

  147    अव्यांश निशि का हाथ पकड़ कर भागते हुए माल से बाहर निकला। निशि तो उससे भी ज्यादा तेज दौड़ रही थी। उसकी स्पीड देखकर अव्यांश को हंसी आ गई। पार्किंग लॉट पहुंचकर निशी ने चैन की सांस ली और कहा "थोड़ी देर और अगर तुम नहीं आते ना, तो मैं सच में इस मॉल में ही मर जाती।"      अव्यांश शरारत से बोल "तुम्हें लगता है मैं तुम्हें ऐसे ही मरने दूंगा? हां वह अलग बात है कि मेरा भी ऑफिस में मन नहीं लग रहा था इसलिए मैं चला आया था तुम्हारे पास।"      निशी ने तिरछी नजरों से अव्यांश की तरफ देखा और बोली "रियली? अगर सुहानी तुम्हें नहीं बताती तो तुम यहां आने भी वाले नहीं थे। तुम्हें पता भी है कि तुमने आज पूरे दिन में एक बार भी मुझे कॉल नहीं किया!"     अव्यांश एकदम से निशि की तरफ झुका और उसके करीब आकर बोला "तो क्या तुम मेरे कॉल का इंतजार कर रही थी?"     निशी से कुछ कहते नहीं बना। अपनी बातों में वह खुद ही फस गई थी। उसने हड़बड़ा कर पूछा "तुम्हारी गाड़ी कहां है?"      अव्यांश ने उसकी कमर में हाथ डाला और पीछे खड़ी गाड़ी की तरफ धकेलते हुए बोला "गाड़ी से क्य

सुन मेरे हमसफर 146

 146 सुहानी का मैसेज मिलते ही अव्यांश फौरन काम का बहाना बनाकर ऑफिस से बाहर निकल गया। सारांश बस पीछे बैठे मुस्कुराकर उसे जाते देखते रहे लेकिन कुछ कहा नहीं। वो अच्छे से जानते थे कि उनका बेटा साफ झूठ बोल रहा है और इस मामले में अंशु बिल्कुल अपने पापा पर गया था।      निशि को मजबूरन कुहू के साथ शॉपिंग में लगना पड़ रहा था। सुहानी और काया तो बहाना बनाकर निकल गई, लेकिन फस गई बेचारी निशी। सुहानी ने उसे हिम्मत तो बंधाई थी लेकिन अब उसका पेशेंस लेवल खत्म होने को था और कुहू की शॉपिंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। अंशु का भी कोई अता पता नहीं था।     कुहू ने एक गाउन उठाया और चेंज करने चली गई। चेंज करके जब वह बाहर आई तो उसे वहां निशि कहीं नजर नहीं आई। इधर-उधर देखने के बाद उसे निशी तो नहीं लेकिन कपड़ों के रैक के पीछे उसे अंशु का आधा सर जरूर नजर आया और वह समझ गई।       कुहू सीधे रैक के पास गई और बोली "तुझसे इतना भी सब्र नहीं होता? तेरे पास ही रहेगी वो, पूरी लाइफ।"     कुहू की आवाज सुनकर अंशु ने अपना एडी ऊपर उठाया और वहीं से कुहू की तरफ देखकर मुस्कुरा दिया। निशी तो वैसे ही उसे देखकर खुश भी थी

सुन मेरे हमसफर 145

  145      ऋषभ जितने प्यार से उन सैंडल को छू रहा था, काया बस उसे देखते रह गई। इस बार ऋषभ बिल्कुल भी उस पर ध्यान नहीं दे रहा था। काया को समझ नहीं आया कि वह यहां रुके या जाए। उसे लगा शायद ऋषभ उसका अटेंशन पाने के लिए जानबूझकर उसे इग्नोर कर रहा है, इसलिए वह वहां से जाने के लिए मुड़ी।      कुछ दूर जाकर उसने पीछे पलट कर देखा तो ऋषभ अभी भी उसी तरह खड़ा था और मैनेजर से कुछ और स्लिपर्स लेकर देख रहा था। काया से रहा नहीं गया। वह वापस आई और उसने पूछा "इस तरह चप्पल कौन खरीदता है? तुम तो ऐसे चेक कर रहे हो जैसे अपनी मॉम के लिए नहीं बल्कि किसी छोटे से बच्चों के लिए ले रहे हो।"       ऋषभ ने अब जाकर काया की तरफ नजर उठा कर देखा और मुस्कुरा कर बोला "मॉम के लिए है। तुम नहीं जानती, डैड के लिए वह किसी छोटी बच्ची से कम नहीं है। अगर थोड़ा सा भी उनके पैर में चुभ गया ना तो डैड मेरी खाल उतार देंगे।"     ' इतना प्यार!' काया को ऋषभ की बातें बहुत बेतुकी सी लगी। उसने पूछा "कुहू दी की शादी है इस हफ्ते। तुम्हारे मम्मी पापा आ रहे हैं ना?"      ऋषभ ने तिरछी नजरों से काया की तरफ देखा

सुन मेरे हमसफर 144

 144      कुणाल भी यह सब को लेकर काफी ज्यादा तनाव में था। उसे समझ नहीं रहा था कि इस मुसीबत से बाहर कैसे निकाला जाए। शादी तय होने के बाद से कुहू ने उसे एकदम से अवॉयड कर दिया था। पूरी चाल उल्टी पड़ गई थी। जहां अब तक कुणाल कुहू से भाग रहा था, अब वह कुहू के पीछे भाग रहा है। इस शादी को रोकने के लिए उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।       उसका दोस्त कार्तिक सिंघानिया भी इस सब को लेकर बहुत परेशान था। उसने कुणाल को अच्छी खासी डांट लगाई और बोला, "तू एक नंबर का बेवकूफ इंसान है। सच में, तेरे पास दिमाग नाम की कोई चीज नहीं है। तू ऐसा तो कभी नहीं था! किसकी संगत का असर है?"     कुणाल अपना सर पकड़ कर बोला "मेरी खुद समझ नहीं आ रहा कि सारी सिचुएशन यहां तक कैसे पहुंची? मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन मॉम डैड मेरी बात सुनने को तैयार नहीं है। और कुहू! वो मुझे कुछ बोलने का मौका नहीं दे रही। मेरी समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं? जिसे पता है, ना वह मेरे लिए कुछ कर रहा है और जिसको नहीं पता, उससे तो मैं उम्मीद ही क्या कर सकता हूं।"     कार्तिक सिंघानिया ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा "जब कोई तेरी बात

सुन मेरे हमसफर 143

  143 शादी तय होते ही कुहू अपनी शॉपिंग में लग गई। निशी, काया और सुहानी पूरी दुनिया से बेखबर होकर उसके साथ पूरी शिद्दत से अपनी शॉपिंग करने में जुट गई। घर वाले सारे शादी की तैयारी में व्यस्त हो गए। निर्वाण ने भी चित्रा के सामने आधी अधूरी बात बता कर कुछ और कुछ झूठ की नमक में लगाकर नेत्रा को वहां से वापस भेज दिया। अब चित्रा को भी शॉपिंग करनी थी। कुहू की शादी में वक्त ही कितना बचा था। इस शॉपिंग में उसे नेत्रा का साथ मिल जाता शॉपिंग थोड़ी और अच्छी हो जाती     नेत्रा बिल्कुल भी तैयार नहीं थी इसके लिए। वो जानती थी कि कुणाल कुहू से प्यार नहीं करता है और यह सब कुछ सिर्फ और सिर्फ उसकी फैमिली की वजह से हो रहा है। नेत्रा के पास कोई रास्ता नहीं था। उसे भी अपना सामान कमेंट कर वहां से जाना पड़ा लेकिन कितने दिनों के लिए! इसी हफ्ते उसे वापस भी तो आना था। तब वह कुणाल से बात करती लेकिन इस सब में एक बात तो उसे अच्छे से पता थी कि कुणाल इस शादी को रोकने के लिए कुछ ना कुछ तरकीब जरुर लगाएगा। उसे अब कुणाल पर ही भरोसा था।      दूसरी तरफ, शिवि परेशान थी। उसे कुणाल से कोई लेना देना नहीं था लेकिन कुहू से तो था! और

सुन मेरे हमसफर 142

142     कुणाल खुश था कि कम से कम नेत्रा उसकी तरफ से बात कर रही थी। जो कुछ भी नेत्रा ने कहा था उसके बाद तो घर वालों का कंवेंस होना कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन मिस्टर रायचंद कुणाल की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए बोले "मुझे लगता है कि एक हफ्ता शादी की तैयारी में काफी होगा। इस शादी को आगे टालने के लिए हमारे पास कोई वैलिड रीजन नहीं है। दोनों बच्चे एक दूसरे को जानते है समझते है तो उन्हें और टाइम देना मुझे सही नहीं लगता। वैसे भी शादी और सगाई के बीच ज्यादा अंतर ना हो वही अच्छा होता है। यह बात मैं नहीं कह रहा, बड़े बुजुर्ग कह गए हैं, है ना सिया जी?"      मिस्टर रायचंद ने सिया की तरफ उम्मीद से देखा। सिया खुद भी इस सबसे गुजर चुकी थी। सिद्धार्थ के साथ क्या हुआ यह वह कभी भूल नहीं सकती थी। मिस्टर रायचंद की कही हर एक बात बिल्कुल सही थी और यह बात तो सिया का भी मानना था कि सगाई और शादी के बीच ज्यादा गैप नहीं होना चाहिए। सभी उन्हीं की तरफ देख रहे थे और उनके जवाब का इंतजार कर रहे थे। घर में आखिरी फैसला सिया का ही होना था।      सिया ने धानी और कंचन जी की तरफ देखा। उन दोनों ने भी सहमति में अपना सर

सुन मेरे हमसफर 141

141    कुणाल ने तय कर लिया था कि आज वह कुहू को सारी सच्चाई बता कर रहेगा फिर चाहे नतीजा जो भी हो। वह अब इस बात को और नहीं टाल सकता था। लेकिन उसके कुछ कहने से पहले ही ऐन मौके पर काव्या ने कुहू को आवाज लगाई।      कुहू को भी जैसे इसी मौके की तलाश थी। वह हड़बड़ा कर उठी और बोली "मम्मी बुला रही है, मैं चलती हूं।"      कुणाल ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे रोकते हुए बोला "मैं जो कहना चाह रहा हूं वह बहुत जरूरी है।"     लेकिन कुहू कुछ सुनना ही नहीं चाहती थी। उसने कहा "कुणाल! तुम्हें जो भी बात करनी है वह हम बाद में भी कर सकते हैं। अभी सबके लिए नाश्ता तैयार करना है और मम्मी अकेले कितना करेगी! काया भी अभी सो रही है। मम्मी ने बताया कि कुछ लोग आने वाले हैं घर पर। अब उनके आने से पहले हमें सारी तैयारी करनी होगी ना? चलो बाय, मैं चलती हूं। तुम जाकर फ्रेश हो जाओ, मैं तुम्हारे लिए कपड़े मंगवा दे रही हूं।" कुहू बिना पीछे मुड़े बाहर निकल गई और भागते हुए सीढ़ियों से नीचे चली आई। उसने पीछे मुड़कर कुणाल के कमरे की तरफ देखा और फिर अपने दिल पर हाथ रखकर खुद से बोली "मैं तुमसे बहुत प

सुन मेरे हमसफर 140

140     अगले दिन अव्यांश सुबह सुबह निशी को लेकर मिश्रा जी के घर पहुंचा। वहां से फ्रेश होकर दोनों को दिल्ली के लिए रवाना होना था। मिश्रा जी ने अकेले मौका पाकर अव्यांश के हाथ में प्रॉपर्टी के पेपर्स पड़ाए और बोले "यह निशि का है, इसे तुम अपने साथ ले जाओ।"     लेकिन अव्यांश बोला "पापा! क्या यह घर निशि का नहीं है? क्या हो गया अगर यह पेपर्स यहां रहा तो? वैसे भी इन पेपर्स की वहां क्या जरूरत?"       मिश्रा जी उसे समझाते हुए बोले "बात जरूर कि नहीं है। देखो बेटा! यह घर तुम दोनों का है और हम भी तुम्हारे है। और तुम दोनों को ही अब यह सब कुछ संभालना है। अभी से सीखोगे तभी आगे जाकर काम आएगा।"     अव्यांश उस फाइल को लेने में हिचकिचा रहा था।। वह जानता था उस फाइल में क्या है। अगर सिर्फ मिस्टर रस्तोगी के प्रॉपर्टी के फाइल होते तो कोई बात नहीं थी। लेकिन उसमे कुछ और भी था।     उसे हिचकिचाते देख मिश्रा जी बोले "मैं अच्छे से जानता हूं तुम यह क्यों नहीं लेना चाहते। और मैं यह भी बहुत अच्छे से जानता हूं कि रस्तोगी जी के साथ जो कुछ हुआ उसके पीछे तुम्हारा हाथ है।"     अव्यां