सुन मेरे हमसफर 145

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     ऋषभ जितने प्यार से उन सैंडल को छू रहा था, काया बस उसे देखते रह गई। इस बार ऋषभ बिल्कुल भी उस पर ध्यान नहीं दे रहा था। काया को समझ नहीं आया कि वह यहां रुके या जाए। उसे लगा शायद ऋषभ उसका अटेंशन पाने के लिए जानबूझकर उसे इग्नोर कर रहा है, इसलिए वह वहां से जाने के लिए मुड़ी।


     कुछ दूर जाकर उसने पीछे पलट कर देखा तो ऋषभ अभी भी उसी तरह खड़ा था और मैनेजर से कुछ और स्लिपर्स लेकर देख रहा था। काया से रहा नहीं गया। वह वापस आई और उसने पूछा "इस तरह चप्पल कौन खरीदता है? तुम तो ऐसे चेक कर रहे हो जैसे अपनी मॉम के लिए नहीं बल्कि किसी छोटे से बच्चों के लिए ले रहे हो।"


      ऋषभ ने अब जाकर काया की तरफ नजर उठा कर देखा और मुस्कुरा कर बोला "मॉम के लिए है। तुम नहीं जानती, डैड के लिए वह किसी छोटी बच्ची से कम नहीं है। अगर थोड़ा सा भी उनके पैर में चुभ गया ना तो डैड मेरी खाल उतार देंगे।"


    ' इतना प्यार!' काया को ऋषभ की बातें बहुत बेतुकी सी लगी। उसने पूछा "कुहू दी की शादी है इस हफ्ते। तुम्हारे मम्मी पापा आ रहे हैं ना?"


     ऋषभ ने तिरछी नजरों से काया की तरफ देखा और बोला, "तुम्हें बड़ी जल्दी है मेरे मम्मी पापा से मिलने की! तुम कहो तो अभी मिलवा दूं? चलो मेरे साथ। तुम्हारी दीदी के शादी में हमारे भी फेरे हो जाएंगे।"


     काया सकपका गई। उसे ऋषभ से ऐसी उम्मीद नहीं थी। उसने अपने आसपास देखा और फिर ऋषभ को मारते हुए बोली "दिमाग खराब है क्या तुम्हारा? शादी, और तुम से! न जाने कितनों को झांसा दिया होगा तुमने।"


   काया वहां से जाने लगी तो ऋषभ ने उसका हाथ पकड़ लिया, फिर मैनेजर को वहां से जाने का इशारा किया। मैनेजर भी दोनों को अकेले छोड़कर वहां से निकल गया। काया बोली "मेरा हाथ छोड़ो।"


     ऋषभ ने उसे खींचकर अपने करीब किया और बोला "मजाक नहीं कर रहा। मॉम डैड के पास जा रहा हूं। कुछ दिन यहां नहीं रहूंगा। तुम चलोगी मेरे साथ, उनसे मिलने?"


    काया ऋषभ की आंखों में देखती रह गई। ऋषभ की आवाज में जो जादू था, काया उससे बाहर नहीं निकल पा रही थी। ऋषभ ने उसका हाथ छोड़ दिया और उसके चेहरे को थाम कर बोला "अपनी दीदी की शादी की तैयारी करो। अगर सब कुछ ठीक रहा तो मॉम को लेकर बहुत जल्द इंडिया वापस आ जाऊंगा। फिर तुम्हारे घर वालों से शादी की बात करते हैं। तुम आराम से रहो और मुझे ज्यादा मिस मत करना, ठीक है?"


     काया कुछ बोल नहीं पाई और ऋषभ वहां से चला गया। काया चुपचाप किसी मूरत की तरह वहां खड़ी रह गई। सुहानी अपने जूस का मजा लेते हुए काया को ढूंढने लगी। उसे फोन भी किया लेकिन काया ने फोन नहीं उठाया। हारकर उसने जूतों की दुकान में कदम रखा तो देखा काया एक कोने में खड़ी थी वो भी बिना कोई हरकत किए।


     सुहानी को बहुत अजीब लगा। वह खुद से बोली "यह मैनिक्विन तो बिल्कुल काया की तरह लग रही है। यह असली है या नकली है?" सुहानी ने यह चेक करने के लिए उसकी नाक दबा दी।




*****





   शिवि परेशान सी अपनी केबिन में बैठी थी। उसे रह रह कर बस कुहू का ख्याल आ रहा था। कितना समझाया उसे लेकिन कोई फायदा नहीं। अब अगर इंसान खुद ही कुएं में कूदने को तैयार हो तो कोई लाख कोशिश कर ले उसे रोक नहीं सकता। 'क्या मुझे इस बारे में चाचा चाची को बता देना चाहिए? वह लोग भी कभी नहीं चाहेंगे कि कुहू दी की शादी ऐसे इंसान हो।'


   "कहां खोई हो मैडम, जो किसी का होश ही नहीं?"


    शिवि ने चौक कर अपना सर उठाया तो देखा उसके सामने कुर्सी पर पार्थ बैठा था। पार्थ के अचानक इस तरह टोकने से शिविका अपने ख्यालों से तो बाहर आई ही, साथ ही डर भी गई। उसने अपने सीने पर हाथ रखा और फिर सामने पड़े फाइल से पार्थ को पीटना शुरू कर दिया।


     पार्थ उस से बचते हुए बोला "क्या कर रही हो तुम? ऐसा मैंने क्या कर दिया?"


     शिवि उसे मारते हुए बोली "इस तरह कोई डराता है क्या? अभी मेरा हार्ट फेल हो जाता तो?"


    पार्थ हंसते हुए बोला "दिल की डॉक्टर दिल की वजह से मारी गई, लोग यही कहते।"


     शिविका ने फाइल टेबल पर फेंकी और जाकर वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गई। पार्थ थोड़ा सा आगे झुक कर बोला "क्या हो गया कहां खोई थी? मैं कब से यहां आकर बैठा हूं, तुम्हें आवाज दे रहा हूं लेकिन तुम्हें कुछ सुनाई नहीं दे रहा।"


     शिविका बात थोड़ा छुपाते हुए बोली "नहीं कुछ नहीं, बस एक पेशेंट के बारे में सोच रही थी।"


    पार्थ मजाक करते हुए बोला "एक पेशेंट के लिए इतना सोच रही हो? बाकी के पेशेंट का क्या होगा मैडम? वह सब तो बेमौत मारे जाएंगे। हमारा क्या होगा?" पार्थ ने अपने दिल पर हाथ रख लिया।


     शिविका मुस्कुरा कर बोली "और मार खानी है या तेरा पेट भर गया?"


     पार्थ सीधे होकर बैठ गया और बोला "नही, आज के लिए इतना काफी था।" दोनों ही हंस पड़े।


    पार्थ ने एक बार फिर पूछा "कुछ बात हुई है क्या? सब ठीक है ना? मैंने तुम्हें इतना डिस्टर्ब कभी नहीं देखा। किसी पेशेंट को लेकर तो बिल्कुल भी नही। कोई बात है तो बताओ।"


    शिवि को समझ नहीं आया कि वह क्या करें। क्या पार्थ इस प्रॉब्लम को समझेगा? जरूर समझेगा। शिविका बोली "मैं नहीं चाहती कुहू दी की शादी कुणाल से हो। कुणाल उनके लिए सही चॉइस नहीं है। तुम्हें क्या लगता है?"


    पार्थ थोड़ा पीछे की तरफ हुआ और सोचते हुए बोला "सच कहूं तो मुझे भी इस बारे में तुमसे कुछ बात करनी थी।"


   शिवि के कान खड़े हो गए। उसने पार्थ की तरफ सवालिया नजरों से देखा तो पार्थ बोला "पता नहीं क्यों लेकिन वह लड़का कुणाल, किसी भी एंगल से मुझे तुम्हारा जीजा नहीं लगा।"


     शिवि समझ नहीं पाई। उसने पूछा "मेरा जीजा?? इसमें लगे या ना लगने वाले क्या बात है? हमारी उम्र में कुछ खास फर्क नहीं है और जीजा साली में तो ऐसा होता ही है, कौन सी उसकी और मेरी शक्ल मिलवा रहे हो तुम?मैं उसके और कुहू दी की बात कर रही हूं।"


     पार्थ सीरियस होकर बोला "मैं भी वही बात कर रहा हूं। बात वह नहीं है शिवि जो तुम्हें साझ आई है। उसकी आंखों देखी है तुमने? पहली बार जब वह यहां हॉस्पिटल आया था, उसे वक्त ही मुझे बहुत अजीब सा लगा था। क्या तुम्हें कभी फील नहीं हुआ?"


     शिवि को याद आया, जब वह और कुणाल, दोनों हॉस्पिटल के बाहर कैफेटेरिया में बैठे थे तब उसने पहली बार कुणाल की आंखों में गौर से देखा था। उस वक्त जो उसे नजर आया था, उसके बारे में वह सोचना भी नहीं चाहती। पार्थ बोला "जब मैं तुमसे बात कर रहा था, तब उसकी आंखों में मैंने जलन साफ महसूस की थी , जैसे मैं उसकी............! लेकिन वह तो कुहू दी का मंगेतर है ना? तो फिर हमारे रिश्ते से उसे क्या प्रॉब्लम होगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके दिल में तुम्हारे लिए कुछ फीलिंग है और.............? शादी तो वो कुहू दी से कर रहा है लेकिन प्यार वह तुमसे करता हो!"


    शिविका बुरी तरह चौक गई और अपनी ही सीट पर से उछल पड़ी। वह चिल्लाई "क्या बकवास कर रहे हो तुम? तुम्हारा दिमाग तो सही है?"


    पार्थ ने कुछ देर उसे गहरी नजरों से देखा फिर ठहाके मार कर हंस पड़ा और बोला "अपनी हालत देखो। ऐसा लग रहा है जैसे सच में वह तुम्हें प्यार करता है। प्लीज यार! कुहू दी तुमसे बहुत ज्यादा खूबसूरत लगती है। उनके सामने तुम्हारी दाल नहीं गलने वाली।"


     शिविका के दिल ने धड़कना बंद कर दिया था। लेकिन पार्थ के इस मजाक पर उसका खून खौल गया। उसने फाइल उठाई और एक बार फिर पार्थ को पीटना शुरू कर दिया। "पार्थ के बच्चे! मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं। जान से मार डालूंगी तुम्हें। इस तरह का मजाक करने के लिए तुम्हें मैं ही मिली हूं?"


   पार्थ भी उससे बचने के लिए इधर-उधर भागते हुए बोला "अरे यार, तुम नहीं तो और कौन? एक तुम ही तो हो। वैसे मैं अभी भी बोल रहा हूं, शादी के लिए हां कर से वरना जिंदगी भर कुंवारी रहेगी तू।"


     शिविका उसके पीछे भागते हुए बोली "चाहे मैं कुंवारी रह जाऊं लेकिन तेरी शादी नहीं होने दूंगी। अपने लिए कोई दूसरी ढूंढ ले।"


     पार्थ वहां से दरवाजे की तरफ भागा तो शिविका बोली "अब कहां भाग रहा है, यहां आ!"


     पार्थ बाहर जाते हुए बोला "जा रहा हूं अपने लिए कोई दूसरी ढूंढने।"


     शिविका दरवाजे की तरफ बढ़ी और बोली "मार खाएगा तू अच्छे से। बताती हूं मैं तेरी गर्लफ्रेंड को। वो ही तेरी अकल ठिकाने लगाएगी।"


     पार्थ हंसते हुए बाहर निकल आया। लेकिन उसके दिमाग में अभी भी वही सारी बात खटक रही थी। शिविका से उसने कह तो दिया कि वह सिर्फ मजाक कर रहा था। लेकिन उसने खुद देखी थी। कुणाल की आंखें झूठ तो नहीं बोल रही थी।

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