सुन मेरे हमसफर 142

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   कुणाल खुश था कि कम से कम नेत्रा उसकी तरफ से बात कर रही थी। जो कुछ भी नेत्रा ने कहा था उसके बाद तो घर वालों का कंवेंस होना कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन मिस्टर रायचंद कुणाल की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए बोले "मुझे लगता है कि एक हफ्ता शादी की तैयारी में काफी होगा। इस शादी को आगे टालने के लिए हमारे पास कोई वैलिड रीजन नहीं है। दोनों बच्चे एक दूसरे को जानते है समझते है तो उन्हें और टाइम देना मुझे सही नहीं लगता। वैसे भी शादी और सगाई के बीच ज्यादा अंतर ना हो वही अच्छा होता है। यह बात मैं नहीं कह रहा, बड़े बुजुर्ग कह गए हैं, है ना सिया जी?"


     मिस्टर रायचंद ने सिया की तरफ उम्मीद से देखा। सिया खुद भी इस सबसे गुजर चुकी थी। सिद्धार्थ के साथ क्या हुआ यह वह कभी भूल नहीं सकती थी। मिस्टर रायचंद की कही हर एक बात बिल्कुल सही थी और यह बात तो सिया का भी मानना था कि सगाई और शादी के बीच ज्यादा गैप नहीं होना चाहिए। सभी उन्हीं की तरफ देख रहे थे और उनके जवाब का इंतजार कर रहे थे। घर में आखिरी फैसला सिया का ही होना था।


     सिया ने धानी और कंचन जी की तरफ देखा। उन दोनों ने भी सहमति में अपना सर हिला दिया तो सिया बोली "मिस्टर रायचंद की कही सारी बातें बिल्कुल सही है। जब दोनों बच्चों की सगाई हो चुकी है तो हमें नहीं लगता तो शादी में और भी देर करनी चाहिए। अगर काम आपस में बांट ले तो सब कुछ आसानी से हो सकता है। वैसे भी शादी करने के लिए दो लोगों का होना और आशीर्वाद के लिए दो परिवारों का होना बहुत जरूरी है। जहां कोई कमी रह जाएगी वह एक ग्रैंड रिसेप्शन पार्टी देकर पूरी कर दी जाएगी। किसी को कोई प्रॉब्लम भी नहीं होगी।"


     नेत्रा जोर से बोल पड़ी "लेकिन नानी! ऐसा कैसे हो सकता है? इतने अचानक में शादी होती है क्या?"


     नेत्रा को एहसास हुआ कि उसने कुछ ज्यादा ही जल्दी दिखाई है, जिससे किसी का भी शक उस पर जा सकता था। कुहू ने एक जीत भरी मुस्कान के साथ नेत्रा की तरफ देखा। सिया मुस्कुरा कर बोली "सारांश और अवनी की शादी जितनी अचानक से हुई थी, उतने अचानक से तो नहीं हो रही ना बेटा? यहां सब कुछ प्लान करके ही हो रहा है। उन दोनों की शादी में बस रिश्ता तय हुआ और दोनों को मंडप पर बैठा दिया गया। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है। सब कुछ प्लान करके ही होगा और सब कुछ अच्छे से होगा। मुझे लगता है एक हफ्ते वाला ही शादी का मुहूर्त निकलवा लेना चाहिए। हम भी तो देखें हमारी कुहू दुल्हन के जोड़े में कैसी लगती है।"


     कुणाल की मां खुश होकर बोली "दोनों के ड्रेस तो मैंने पहले ही डिजाइनर को दे दिए थे तैयार करने के लिए। सॉरी समधन जी! मानती हूं आपने भी इसकी तैयारी की होगी लेकिन कुहू की शादी का जोड़ा मैं अपने तरीके से बनवा रही हूं।"


    धानी ने काव्य की तरफ देखा और हंसते हुए बोली "इसमें आपको माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है। माना हमारी काव्या ने भी उसके लिए शादी का जोड़ा तैयार रखा है लेकिन शादी के अलग अलग रस्मों में हमारी कुह्ह दोनों ही कपड़े पहन सकती है।"


     कंचन ने काव्या को इशारा किया तो काव्या मिठाई लेने किचन में चली गई। मौका देखते ही निर्वाण ने भी नेत्रा का हाथ पकड़ा और उसे लेकर बाहर चला आया। बाहर निकलते ही नेत्रा चिल्लाई "छोड़ मेरा हाथ! क्या कर रहा है तू और मुझे यहां क्यों लेकर आया? सारे लोग अंदर है।"


     निर्वाण उसे उंगली दिखा कर बोला "जानता हूं सब लोग अंदर है, और वो कमिना कुणाल भी। इसलिए तुझे बाहर ले कर आया हूं। सब कुछ अपनी आंखों से देखा ना तूने, तो इतना समझ जा, अब तेरी दाल नहीं गलने वाली। और कुणाल के सामने तो बिल्कुल नहीं। इसलिए बेहतर होगा तू जहां से आई है वह वापस चली जा।"


     नेत्रा ने उसे गुस्से में घूर कर देखा और पैर पटकती हुए वहां से निकल गई। निर्वाण जानता था नेत्रा बहुत जिद्दी है, इतनी आसानी से नहीं मानेगी। उसने सीधे सीधे अपनी मां को फोन लगाया। सबसे पहले वो नेत्रा को इस सब से बाहर करना चाहता था। लेकिन वो अपनी मां से कहेगा क्या?





*****




    सबका मुंह मीठा करवा कर काव्या ने पंडित जी को भरपूर दक्षिणा दिया और बोली "पंडित जी! नाश्ता करके जाइएगा। मैंने आज शुद्ध शाकाहार बनाया है, बिना लहसन प्याज के।"


     पंडित जी हाथ जोड़कर बोले "नहीं बिटिया, आज नहीं। अभी मुझे पूजा की बाकी विधियां पूरी करवानी है और हवन करने हैं। उसके बाद ही अन्न जल को ग्रहण करूंगा। अभी मुझे आज्ञा दीजिए।" पंडित जी सबसे विदा लेकर वहां से चले गए तो काव्या ने सबसे कहा "पंडित जी तो चले गए, अब हम लोग भी नाश्ता कर ले?"


      मिस्टर रायचंद बोले "नाश्ता तो हम कर ही लेंगे लेकिन सबसे पहले हमें आपके हाथ की कॉफी चाहिए। मैंने सुना है हमारी समधन जी बहुत अच्छी कॉफी बनाती है।"


       काव्या की नजर मिसेज पर पड़ी उसे लगा कहीं उनको बुरा ना लगा हो। मिसेज रायचंद ने मिस्टर रायचंद के पेट में कोहनी मारी और कहा "मैं तो घर की मुर्गी दाल बराबर हो गई हूं ना? अब समधन जी आई है तो उनसे ही खातिरदारी करवाए, मैं अपने समधी जी की खादरदरी करती हूं।"


    मिसेज रायचंद उठकर कार्तिक के पास जाने को हुई लेकिन मिस्टर रायचंद ने एकदम से उनका हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया और बोले "अरि भाग्यवान, क्या आप भी! समधन के हाथ की काफी तो कभी कभी मिलेगी। इतने सालों से तो आपके हाथ की आदत लगी है, आपके कॉफी के बिना कहां जाएंगे हम?"


     दोनों पति-पत्नी के बीच ऐसी नोक झोक देखकर सभी मुस्कुरा उठे लेकिन कुणाल के होठों पर जरा सी भी मुस्कान नहीं थी। अंदर ही अंदर उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। उसके डैड ने जानबूझकर यह सब किया था। सब कुछ जानते हुए भी उसकी लाइफ का इतना बड़ा डिसीजन आखिर उन्होंने ले ही लिया।   


    कुहू ने कुणाल की बांह पकड़ी और धीरे से उसे हिलाते हुए बोली "कुणाल! कहां खोए हो?"


     कुणाल होश में आया और सवालिया नजरों से कुहू की तरफ देखने लगा तो कुहू बोली "कहां खोए हो? सब लोग डाइनिंग टेबल पर है। चलो तुम भी चलकर सब के साथ नाश्ता कर लो।"


     कुणाल ने डाइनिंग टेबल पर सबको बैठे हुए देखा। वह कुहू के साथ आगे तो बड़ा लेकिन डाइनिंग टेबल के पास जाने की उसकी बिल्कुल भी इच्छा नहीं हुई। वो इस वक्त कहीं अकेले में जोर से चिल्लाना चाहता था। अपने मन की सारी भड़ास निकाल देना चाहता था। उसने कुहू की एक बार भी परवाह नहीं की और एक झटके से अपना हाथ छुड़ाकर दरवाजे से बाहर निकल गया। सभी उसकी इस हरकत पर हैरान रह गए।


      कुहू सब कुछ जानते हुए भी सच को अपनाना नहीं चाह रही थी। उसने सबकी तरफ देखा। सबकी आंखों में सवाल थे। कुहू मुस्कुरा कर बोली "उसके दोस्त का मैसेज आया था इसीलिए गया है। आप लोग तो जानते ही हो, आजकल वो म्लेच्छ इंसान कुछ ज्यादा ही चिपका हुआ है कुणाल से। पता नहीं कौन सा कांड किया है अब उसने जो कुणाल इतनी हड़बड़ी में गया है। आप लोग चिंता मत कीजिए, वह थोड़ी देर में आ जाएगा।"


      कुकू की बातों से सबको समझ आ गया कि कुहू कुणाल की इस हरकत को कवर करने की कोशिश कर रही है लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। सुहानी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा कि कुहू कार्तिक सिंघानिया के लिए ऐसा बोल रही थी। लेकिन दोनों दोस्त थे और दोस्तो में ऐसा चलता है।


   शिविका ने कुहू को गहरी नजरों से देखा फिर ना में अपनी गर्दन हिला कर खाने के लिए बैठ गई। उसके चेहरे पर नाराजगी के भाव साफ नजर आ रहे थे।


     नाश्ता कर लेने के बाद शिवि ने सबसे मुस्कुरा कर कहा "जब शादी इतनी जल्दी में हो रही है तो हमें भी जल्दी से जल्दी शॉपिंग के लिए जाना होगा और उसके लिए लिस्ट भी बनानी होगी, है ना? एक काम करते हैं। मैं और कुहू दी जाकर कुछ जरूरी सामान की लिस्ट बना लेते हैं। सोनू, काया! अपना नाश्ता खत्म करके जाओ और दोनों मिलकर अपनी जरूरत की चीजों को एक पेपर पर लिख लेना, ठीक है?" शिवि एक सांस में इस सारी बातें बोल गई। 


     सुहानी और काया चौक गई। दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर शिविका से बोली "लेकिन दी, इतनी जल्दी! हम भी सब साथ में मिलकर लिस्ट बनाते हैं ना, थोड़ा सा हमारा भी वेट कर लो।" लेकिन शिवि ने उनकी कोई बात नहीं सुनी और जितनी तेजी में उसने अपनी बात रखी थी उससे दुगनी तेजी में उसने कुहू का हाथ पकड़ा और उसे लेकर कमरे में चली गई।


     सारे लोग हैरानी से उन दोनों को देखते रह गए। श्यामा को यह बात बहुत ज्यादा खटकी, फिर भी उसने हंसते हुए कहा "लो जी! शॉपिंग के लिए इतनी बेचैनी कि ढंग से नाश्ता भी नहीं किया। लगता है यह लड़कियां सिर्फ अपनी शॉपिंग में ही टाइम बर्बाद कर देगी। इस बार हमारी शॉपिंग हमें खुद करनी होगी। इनको अपने से फुर्सत ही मिलने वाली। अब हमारा क्या होगा?" 


    काव्या हँसते हुए बोली"आप परेशान मत हो दी, मैंने सबके लिए कुछ ना कुछ इंतजाम करके रखा है। अगर आप लोगों को पसंद ना आए तो आप लोग दूसरा चेंज कर सकते हैं।"


     श्यामा काव्या का गाल छूकर बोली "उसकी कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। तुम्हारी पसंद मुझे हमेशा पसंद आती है। चलो एक टेंशन तो खत्म हुई। बाकी का भी साथ में मिलकर देख लेंगे।"


    अवनी बोली "लेकिन मुझे आपके कलेक्शन में से सबसे स्पेशल वाला चाहिए। मेरी ड्रेस सबसे अच्छी होनी चाहिए।"


     काव्या हंसते हुए बोली "ठीक है, तेरे लिए सबसे अलग। यह बता साड़ी लेगी या लहंगा?"


   अवनी नाराज होकर बोली "क्या दी आप भी! दुल्हन की मासी हु तो क्या लहंगा पहनूंगी, वह भी इस साइज में? वैसे ही सारांश मुझे चिढ़ाते रहते हैं।" सभी हंस पड़े।


    सब खुश थे और सभी शादी की तैयारियां के बारे में सोच रहे थे। लेकिन शिविका कुहू का हाथ पकड़े उसे खींचते हुए कमरे में लेकर आई और जोर से उसने कमरे के अंदर कुहू को धकेल दिया। कुहू जाकर सीधे बिस्तर से टकराई। गनीमत रहेगी उसे चोट नहीं लगी। उसने पलट कर शिविका से पूछा "यह क्या हरकत है तेरी? क्या हुआ है तुझे?"


   शिविका ने कमरे का दरवाजा लॉक किया और गुस्से में अपने दोनों हाथ बांधकर बोली "यह तो आप बताओ ना, करना क्या चाहते हो आप? सब कुछ जानते हुए भी कुएं में कूदना, यह कहां की समझदारी है?"


     कुहू के चेहरे पर से सारी नाराजगी गायब हो गई। कल रात उसने जो कुछ भी सुना था, उसे बर्दाश्त करना कुहू के लिए मुश्किल हो रहा था। उसे किसी से बात करनी थी लेकिन कोई नहीं था जिससे वह कुछ कह सके। बस एक शिविका थी। सब कुछ भूल कर उसने शिवि का को कॉल लगाया और रोते हुए सारी बातें बता दी। अब शिविका उसी बारे में उससे पूछ रही थी।

टिप्पणियाँ

  1. आप अपने हर पार्ट में मेन जोड़ी निशांश के लिए 2 लाइन तो लिख ही सकती हैं मेम इतनी मस्त जोड़ी है निशी/अव्यान्श की

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