सुन मेरे हमसफर 140

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    अगले दिन अव्यांश सुबह सुबह निशी को लेकर मिश्रा जी के घर पहुंचा। वहां से फ्रेश होकर दोनों को दिल्ली के लिए रवाना होना था। मिश्रा जी ने अकेले मौका पाकर अव्यांश के हाथ में प्रॉपर्टी के पेपर्स पड़ाए और बोले "यह निशि का है, इसे तुम अपने साथ ले जाओ।"


    लेकिन अव्यांश बोला "पापा! क्या यह घर निशि का नहीं है? क्या हो गया अगर यह पेपर्स यहां रहा तो? वैसे भी इन पेपर्स की वहां क्या जरूरत?"


      मिश्रा जी उसे समझाते हुए बोले "बात जरूर कि नहीं है। देखो बेटा! यह घर तुम दोनों का है और हम भी तुम्हारे है। और तुम दोनों को ही अब यह सब कुछ संभालना है। अभी से सीखोगे तभी आगे जाकर काम आएगा।"


    अव्यांश उस फाइल को लेने में हिचकिचा रहा था।। वह जानता था उस फाइल में क्या है। अगर सिर्फ मिस्टर रस्तोगी के प्रॉपर्टी के फाइल होते तो कोई बात नहीं थी। लेकिन उसमे कुछ और भी था।


    उसे हिचकिचाते देख मिश्रा जी बोले "मैं अच्छे से जानता हूं तुम यह क्यों नहीं लेना चाहते। और मैं यह भी बहुत अच्छे से जानता हूं कि रस्तोगी जी के साथ जो कुछ हुआ उसके पीछे तुम्हारा हाथ है।"


    अव्यांश ने घबराकर मिश्रा जी की तरफ देखा तो मिश्रा जी बोले "मैं जानता हूं, तुम नहीं चाहते कि यह सब कुछ निशि को पता चले। इसलिए यूं अचानक आने का फैसला तुम्हारा मैं समझ सकता हूं। लेकिन बेटा! यह सब कुछ मेरा नहीं है। तुमने जो भी किया अपनी पत्नी के लिए किया।"


    अव्यांश उनका हाथ पकड़ कर बोला "मैंने जो भी किया अपने मम्मी पापा के लिए किया। बेटा हूं मैं आपका, क्या इतना हक नहीं है मेरा?"


     मिश्रा जी ने उसके सर पर हाथ फेरा और बोले "यही तो मैं कह रहा हूं। सब कुछ तो तुम्हारा ही है, हम कहां कुछ कह रहे हैं। लेकिन इसे तुम रख लो। मैं नहीं चाहता कि यह यहां किसी के भी हाथ लगे। बस तोहफा समझ कर ही रख लो बेटा जी।"


    अव्यांश मुस्कुरा कर बोला "आपका तोहफा अभी बाथरुम में है। वह फ्रेश होकर निकले तो हम सब दिल्ली के लिए निकले।" मिश्रा जी हंस पड़े।



*****





    कुणाल पूरी रात कुहू के घर पर ही रुका। उसके कमर में अच्छी खासी चोट आई थी, इस वजह से उसका आराम करना जरूरी भी था और मजबूरी थी। नेत्रा कुणाल के पीछे वहीं रुकना चाहती थी लेकिन निर्वाण ने सख्ती से मना कर दिया और उसे धमकाते हुए अपने साथ ले गया। शिविका ने जाने से पहले एक बार भी कुणाल से मिलना जरूरी नहीं समझा। और ऐसी कोई वजह भी नहीं थी।


    एक बार सोचा भी तो कुहू की नाराजगी को याद करते हुए शिविका ने कुणाल से मिलने का अपना आइडिया ड्रॉप कर दिया। वह नहीं चाहती थी कि कुहू और कुणाल के बीच किसी भी तरह की कोई गलतफहमी हो। इसलिए वह भी अपनी पूरी फैमिली के साथ वापस चली गई। कुणाल बेचारा, अपने कमरे में पड़ा पड़ा इसी इंतजार में था कि शायद शिवि एक बार तो उसे मिलने आएगी। लेकिन उसका इंतजार करते-करते कुणाल को कब नींद आई उसे पता ही नहीं चला।


     सुबह काव्या ने चाय का कप कुहू के हाथ में पकड़ाया और बोली "जाकर कुणाल को दे आ।"


     कुहू, जिसके लाइफ का सबसे कड़वा सच कल उसे जानने को मिला था, वह कुणाल के सामने नहीं जाना चाहती थी। इतना कुछ जानने के बाद उसने कुणाल से एक बार भी मिलने की कोशिश नहीं की थी। ना ही वह कुणाल के कमरे में गई। अपने बदले उसने काया को भेजा था।


     अभी चाय का कप हाथ में लेकर वह फिर से काया को ही आवाज लगने लगी "काया........... कायू............ कहां है तू?"


    काव्या ने पूछा "उसे क्यों आवाज लग रही है? सुबह सुबह कौन सा काम आ गया?"


     कुहू ने चाय के कप की तरफ इशारा किया और बोली "वह मम्मी! काया कुणाल को दे आएगी यह चाय। मुझे थोड़ा किचन में कुछ काम था, मैं वह निपटा लेती हूं। वरना नाश्ता बनाने में देर हो जाएगी।"


    काव्या ने कुहू को अजीब तरह से देखा, फिर उसका सर छूकर बोली "बुखार तो नहीं है फिर क्या पागलपन के दौरे पड़े हैं तुझे?"


    कुहू ने काव्या का हाथ अपने सर से हटाया और नाराज होकर बोली "आपको मैं पागल लग रही हूं? किस एंगल से?"


    काव्या बोली "नहीं। इससे पहले किचन के काम में तुमने कभी इतना इंटरेस्ट नहीं दिखाया जितना अभी दिखा रही है। अब या तो यह पागलपन की निशानी है या फिर ससुराल जाने की कुछ ज्यादा ही जल्दी है। क्योंकि बुखार तुझे है नही और तू सुधर जाए यह तो इंपॉसिबल है।"


   कुहू नाराज होकर बोली "मम्मी! मेरा मजाक उड़ाने में आपको मजा आता है ना?"


    काव्या हंसते हुए बोली "बिल्कुल नहीं। मुझे तो खुशी होगी अगर तू किचन में मेरा हाथ बटाती है तो। लेकिन फिलहाल तो यह चाय का कप तू खुद से कुणाल को दे कर आ। काया अभी सो रही है। इतनी जल्दी नहीं उठने वाली। तू इतनी सुबह उठ गई, मुझे इसी बात की हैरानी हो रही है। अब जल्दी से जा वरना चाय ठंडी हो जाएगी।" काव्या ने कुहू के कंधे पर हाथ रखकर उसे धीरे से सीढ़ियों की तरफ धक्का दिया और किचन में चली गई।


     कुहू के पास और कोई चारा नहीं था। चाय का कप हाथ में लिए वह सीढ़ियों की तरफ बढ़ी। एक-एक कदम उसके लिए मुश्किल हो रहा था। वह तो जितना हो सके उतना कुणाल को अवॉइड करना चाह रही थी। उसे बोलने का कोई मौका नहीं देना चाहती थी जिससे उसका दिल टूटे। सब कुछ जानते हुए भी वह सुनना नहीं चाहती थी। बड़ी मुश्किल से उसने कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी और दरवाजा खोल कर अंदर कदम रखा।


     अंदर कुणाल चैन की नींद सो रहा था। कुहू ने चाय का कप टेबल पर रखा और बिस्तर के एक किनारे जाकर बैठ गई। कुणाल के चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं थी। लेकिन कुहू वो तो बस अब रो देना चाहती थी। उसकी नींद उड़ा कर कुणाल यहां चैन से सो रहा था। कुहू का दिल किया कि अभी वह कुणाल का कॉलर पकड़कर उसे उठाएं और उससे सवाल करें कि आखिर क्यों उसने ऐसा किया? आखिर क्या गलती थी उसकी? क्या अपने दिल की बात वह पहले नहीं बता सकता था? ऐसे सगाई होने के बाद इस सब का क्या मतलब है?


   कुहू ने बड़ी मुश्किल से अपनी सिसकियो को रोका लेकिन कुणाल की नींद खुल गई। उसने चौक कर अपनी आंखें खोली और कुहू को अपने सामने बैठा देख वो हैरान रह गया। कुहू ने खुद को कंट्रोल किया और मुस्कुरा कर बोली "तुम्हारी चाय रखी है, पी लो वरना ठंडी हो जाएगी।"


     लेकिन कुणाल ने उल्टा उसी से सवाल किया "तुम यहां मेरे कमरे में क्या कर रही हो?"


     कुहू ने उसे देखा और हंसते हुए बोली "मैं तुम्हारे कमरे में नहीं हूं बल्कि तुम मेरे घर पर हो, भूल गए?"


    कुणाल को अब जाकर याद आया। उसने अपना सर पकड़ लिया और बोला "मतलब मैं पूरी रात यही रह गया था? सॉरी! बाकी सब लोग चले गए?"


    कुहू जानती थी कुणाल किसकी बात कर रहा है। फिर भी उसने मुस्कुरा कर कहा "सब लोग तो कल रात को ही चले गए। चाचू और बड़े पापा आए थे तुमसे मिलने लेकिन तब तक तुम सो चुके थे इसलिए तुमसे मिले बिना ही चले गए।"


     कुणाल पूछना चाहता था की शिवि उससे मिलने आई थी या नहीं? लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाया। कुहू ने चाय का कुणाल के हाथ में पकड़ाया और पूछा "तुम्हारा कमर का दर्द कैसा है अब?"


     कुणाल भी अब तक उठ कर बैठ चुका था। उसने अपनी बॉडी को थोड़ा इधर से उधर हिलाया और बोला "शायद ठीक है अब। बिल्कुल भी दर्द नहीं है।"


     उसने चाय का एक घूंट लेकर कहा "कुहू! मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, क्या तुम अभी फ्री हो?"


     कुहू का दिल धक से रह गया। यही तो वह नहीं चाहती थी। उसे कुणाल से कोई बात नहीं करनी थी। वह कुणाल को कुछ कहने का मौका नहीं देना चाहती थी। उसने पूछा "कुछ जरूरी है कुणाल?"


   कुणाल चाय की तरफ देखते हुए बोला "हां कुछ जरूरी है, बहुत जरूरी। मैं काफी टाइम से तुमसे कुछ कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन मौका नहीं मिला। अगर तुम फ्री हो तो हम इस बारे में बात कर सकते हैं।"


    कुहू घबरा गई। वो अपने और कुणाल के रिश्ते को तोड़ना नहीं चाहती थी और ना ही किसी और को बीच में आने देना चाहती थी। लेकिन वह कुणाल को कुछ भी कहने से रोके तो कैसे?

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