संदेश

ये हम आ गए कहाँ!!! (69)

     "यह तेरे बाल इतने बड़े क्यों हो रखे हैं? कब से तुने अपने बाल नहीं कटवाया। वैसे तुझपर अच्छे तो लगते हैं लेकिन आदत नहीं है मुझे तुझे ऐसे देखने की।" रूद्र के गोद में बैठी शरण्या उसके बालों में हाथ फिराते हुए बोली। रूद्र मुस्कुराते हुए बोला, "तू मुझे पहचान जाती है लेकिन तेरी बहन कंफ्यूज हो जाती है। अब जब वह इस घर में आ रही है तो कुछ तो डिफरेंस होना चाहिए ना हम दोनों भाई में। वरना कहीं ऐसा ना हो कि तेरे सामने तेरी बहन मुझसे फ्लर्ट करके चली जाए।" कहते हुए रूद्र मुस्कुरा दिया।       शरण्या एक मुक्का उसके पेट में जमाते हुए बोली, "और तू ऐसा करने देगा? मेरे रहते अगर तूने किसी और के साथ फ्लर्ट करने की कोशिश की या अगर किसी ने भी तेरे साथ फ्लर्ट करने की कोशिश की तो मैं तुझे जान से मार दूंगी, जान लेन तू।" शरण्या ने रूद्र के कंधे पर सिर टिका दिया और बोली, "वैसे तुझे यह डेस्टिनेशन वेडिंग का आईडिया आया कहां से? कहीं कुछ और चक्कर तो नहीं है जो तू मुझे नहीं बता रहा?"      "ऐसा कुछ नहीं है। मैं और विहान बस उन दोनों के लिए कुछ खास करना चाहते थे और वैसे भी द

ये हम आ गए कहाँ!!! (68)

    सुबह सुबह 7:00 बजे के करीब सिंघानिया हाउस के लैंडलाइन की घंटी बजी। शिखा उस समय नहा धोकर मंदिर की तरफ जा रही थी। फोन की घंटी सुन उसे हैरानी हुई कि आखिर लैंडलाइन पर फोन कौन कर सकता है? जहां सभी के हाथ में मोबाइल है ऐसे में लैंडलाइन का नंबर किसी को याद भी नहीं होगा। सोचते हुए उन्होंने फोन उठा लिया। उनके हेलो बोलते ही दूसरी तरफ से रूद्र की आवाज आई, "हेलो मां........! मुझे पता था आप उठ गई होंगी इसलिए अभी कॉल किया। घर में किसी को फोन करके मैं परेशान नहीं करना चाहता था। वैसे आपको बता दूं, महादान की सारी तैयारियां हो चुकी है इसलिए सबको बोल दीजिएगा मंदिर आ जाएंगे। मैं भी 3 घंटे में वहां पहुंच जाऊंगा।"     रूद्र की बात सुन उसकी मां हैरान रह गई और बोली, "इतनी भी जल्दी क्या थी रुद्र? तुम आराम से आते, 3 घंटे में पहुंचेंगे यानी तुम रात को ही वहां से चल दिए? पूरा दिन काम करने के बाद थकान हो गई होगी। पहलेे थोड़ा आराम कर लेते। यह सारी चीजें हम लोग बाद में भी कर सकते थे।" रूद्र ने कहा, "माँ...! इतना भी आराम करना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। जितनी जरूरत थी उतनी हो गई और वैसे

ये हम आ गए कहाँ!!! (67)

    नेहा की बातें अपने आप में अजीब थी। रूद्र ने कुछ देर उसे हैरानी से देखा और कहा, "मैं अपनी आंखों पर भरोसा नहीं करता और ना ही किसी की सुनी सुनाई बातों पर यकीन करता हु। मैं वही करता हूं जो मेरा दिल कहता है और दिल कभी गलत नहीं होता। और एक बात बिल्कुल सही कहा तुमने, खुशबू को चाहे लाख परदो में कैद कर दिया जाए फिर भी उसका छुपना नामुमकिन होता है। फूल चाहे कहीं भी हो भंवरों को उनका पता मिल ही जाता है।"      रूद्र ने बाहर आकर मां के पैर छुए और जैसे ही अपने पापा के पैर छूने को हुआ धनराज ने उसके दोनों बाँह पकड़ कर खड़ा किया और उसे गले से लगा लिया। रूद्र के लिए ये पल बेहद खास था जब उसके पिता ने बरसों बाद उसे गले से लगाया। वह तो भूल ही चुका था पिछली बार कब उसके पिता ने प्यार से सर पर हाथ फेरा था। हमेशा डांट खाने वाला रूद्र को आज खुद उसके पिता ने आगे बढ़कर से गले लगाया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने खुद को बड़ी मुश्किल से संभाला और सबको गाड़ी में बैठाया।        गाड़ी में बैठने से ठीक पहले नेहा ने रूद्र से कहा, "हमारे हॉस्पिटल में गुलाबों का पूरा खजाना है। तुम्हें तो गुलाब अच्छे लगत

ये हम आ गए कहाँ!!! (66)

    आश्रम में आए सभी लोग अपना अपना सामान समेटने में लगे हुए थे। धनराज् भी अपना सामान ठीक कर रहे थे और शिखा उनकी मदद कर रही थी। एक बार जाने से रहने वो रूद्र से मिलना चाहते थे। उनकी आंखों में अपने बेटे से बात ना कर पाने की उदासी थी जिसे शिखा जी ने बखूबी समझा।      उन्होंने धीरज बंधाते हुए कहा, "हमारा बेटा घर वापस आया है और अब वह कहीं नहीं जाने वाला! ना हीं हम उसे कहीं जाने देंगे। जितना आप उसके लिए तड़प रहे हैं उससे कहीं ज्यादा वह आपके लिए बेचैन है, आपकी डांट सुनने को तरस गया है वह। आप देखना, बहुत जल्द यह दूरियाँ खत्म हो जायेगी। आपसे ज्यादा बेचैन है वह, इसलिए खुद को सारे काम में उलझा रखा है। इस सब में उसकी भी क्या गलती है, उसने तो बस अपने परिवार खुशियां देने की कोशिश की थी। उसे क्या पता था, इतना कुछ हो जाएगा! उसे देखकर तकलीफ होती है। हमारा वह हंसता खेलता बच्चा जिसके चेहरे पर मुस्कान की एक लकीर तक नहीं है। जाने उसकी किस्मत में क्या लिखा है? शरण्या के बारे में उसे सारी सच्चाई तो बता दी मैंने लेकिन वो मानने को तैयार नहीं है।उसने साफ साफ कह दिया है कि वह शरण्या को ढूंढ कर रहेगा। मैंने

ये हम आ गए कहाँ!!! (65)

     रात के अंधेरे में रुद्र अपने बीते दिनों को याद कर रहा था जिसकी वजह से उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी। लेकिन रेहान की बातें उसे अंदर ही अंदर कचोट रही थी। इतने सालों के बाद वापस लौट कर आया था वह, इसके बावजूद रेहान से उसे ऐसे बर्ताव की उम्मीद नहीं थी। वह समझ सकता था उसकी हालत। रेहान सच में लावण्या से बहुत प्यार करता था और जो कुछ भी उसके और इशिता के बीच हुआ उस सिर्फ एक गलती थी। अपने प्यार को खोने का दर्द रूद्र से बेहतर और कोई नहीं समझ सकता था। ऐसे में रेहान का इस तरह बर्ताव करना कुछ अजीब नहीं था।        रूद्र अपने ख्यालों में गुम था, तभी शिखा जी आई और उसके कंधे पर शॉल डालते हुए कहा, "रात बहुत हो गई है बेटा! इस तरह ठंड में बिना गर्म कपड़ों की खड़े हो, बीमार पड़ जाओगे। वो छोटी सी बच्ची तुम्हारा इतना ख्याल रखती है, क्या तुम थोड़ा सा उसका ख्याल नहीं रख सकते? और किसी के लिए ना सही लेकिन उस बच्ची के लिए तो तुम्हें अपना ख्याल रखना ही होगा, आखिर उसका है ही कौन तुम्हारे अलावा! तुमने अकेले उसे संभाला है, उसके लिए तो तुम ही उसकी पूरी दुनिया हो!"          रूद्र बोला, "मेरे लिए व

ये हम आ गए कहाँ!!! (64)

    अंतिम संस्कार के लिए पंडित जी के कहे अनुसार जब रूद्र अपने कपड़े उतारने को हुआ तो शिखा जी ने उसे रोकते हुए पंडितजी से कहा, "पंडित जी! नवंबर का महिना है, ऐसे मे उसे ठंड ला जायेगी! क्या ये जरूरी है?"     पंडित जी बोले, "ये तो करना पड़ेगा बेटा यही नियम है इन कपड़ों में वह मुखाग्नि कैसे दे सकता है अब जब सारे क्रियाकर्म उसे ही करने हैं तो उसे पूरे विधि से करना होगा और तालाब में स्नान भी करना होगा। अगर ठंड का मौसम है तो एक चादर जरूर डाल सकते हैं।" पंडित जी की बात सुन शिखा जी थोड़ी परेशान हो गई। उन्हें रूद्र की चिंता हो रही थी। एक तो सर्दियों का मौसम उसमें भी नैनीताल की ठंडी हवाएं, ऐसे में रूद्र को ठंड लग सकती थी। रूद्र ने जब अपनी मां को परेशान होता हुआ देखा तो बोला, "मां! आप परेशान मत होइए मुझे कुछ नहीं होगा। मुझे आदत है इस सबकी, और वैसे भी अब कुछ महसूस नहीं होता। देर हो रही है, वैसे ही काफी देर हो चुकी है शाम हो गई तो फिर कुछ नहीं कर पाएंगे।"     शिखा परेशान थी अपने बेटे को लेकर लेकिन तभी मौली अपने हाथ में एक शॉल लेकर आई और जैसे ही रूद्र ने अपने कपड़े उतारे

ये हम आ गए कहाँ!!! (63)

     रूद्र का सच जानने के बाद धनराज से रहा नहीं गया। अपने मन में अपराधीबोध की भावना लिए उन्होंने यहां पर हाथ उठा दिया रेहान भी चुपचाप सर झुका अपने पिता के सामने खड़ा रहा। धनराज को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहें? जिसे कुछ नहीं कहना चाहिए था उसे ना जाने क्या कुछ ना कहा उन्होंने और जिसकी गलती थी उसके बारे में जानते हुए भी इस वक़्त उन्हें कोई शब्द नहीं मिल रहा था। जिस बेटे पर उन्हें नाज़ था उसकी एक गलती की वजह से उनका पूरा परिवार बिखर गया था। रेहान की गलती और रूद्र, शरण्या की जिंदगी बिखर गई थी।       रेहान की आंखों में आंसू थे। उसने अपने पिता के पैर पकड़ के लिए और कहा, "मुझे माफ कर दीजिए पापा! लेकिन मैंने कुछ भी जानबूझकर नहीं किया। अगर मुझे पता होता रूद्र ऐसा कुछ करने वाला है तो मैं उसे कभी ऐसा कुछ नहीं करने देता। मैं बहुत ज्यादा डर गया था क्योंकि मैं लावण्या से बहुत प्यार करता हूं। उसे खो नही सकता, ना आज, ना कभी! प्लीज पापा.........! ये बात लावण्या तक ना पहुंचे। सिर्फ और सिर्फ उसी के लिए रूद्र ने इतना बड़ा गुनाह अपने सर ले लिया। मैं मानता हूं मैं रूद्र का भी गुनहगार हूं और शरण्या

ये हम आ गए कहाँ!!! (62)

   रूद्र दादी के पास बैठा उन्हें खाना खिला रहा था। दादी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब थी ऐसे में उन्हें सिर्फ पतली हल्की खिचड़ी ही दी जा रही थी, वह भी वो बड़ी मुश्किल से खा पाती थी। आज तो उनका रुद्र उनके साथ था जिस कारण वह खुशी से मन ना होते हुए भी खा रही थी। खाना खिलाने के बाद रूद्र की मां उसे लेने आई ताकि वो रात का खाना सबके साथ बैठकर खाएं। बरसों बाद उनका पूरा परिवार एक साथ एक जगह पर मौजूद था ऐसे में पूरे परिवार के साथ खाना उनका जैसे सपना सा हो गया था। रूद्र की मां उसे खींच कर सबके बीच ले आई। उस वक़्त वहां सभी मौजूद थे।      रूद्र को देखते ही मिस्टर रॉय ने नज़र फेर ली। धनराज उठकर जाने को हुए तो रेहान ने उनका हाथ पकड़कर रोक लिया। अपना गुस्सा अपने मन में ही दबाए वो वहां बैठ गए। शिखा जी ने रूद्र को अपने पास वाली कुर्सी पर बैठने को कहा लेकिन रूद्र जानता था कि उसके यहां बैठने का क्या मतलब हो सकता है। सिर्फ एक उसकी उसकी वजह से पूरा माहौल तनावग्रस्त हो रहा था जो वह बिल्कुल भी नहीं चाहता था। "मां मेरा खाने का बिल्कुल भी मन नहीं है। शाम को कॉफी पी थी, शायद इसलिए! आप रहने दीजिए, मेरा जब मन हो

ये हम आ गए कहाँ!!! (61)

   विहान छत पर खड़ा अपने ख्यालों में गुम था। शाम होने को थी और धूप धीरे धीरे पश्चिम की तरफ आसमान से ओझल होने को था। अपने दोनों हाथ में कॉफी का मग लिए रूद्र विहान के पास पहुंचा और उसे पीछे से आवाज लगाई। "अब तु इतना बड़ा आदमी हो गया है कि तुझ से मिलने के लिए अब मुझे अपॉइंटमेंट की जरूरत पड़ेगी?" रूद्र की आवाज सुनकर भी विहान पीछे नही पलटा और सामने देखते हुए बोला, "तुझसे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं थी मुझमें। क्या मुंह लेकर आता तेरे पास। बड़ा तो तू हो गया है, इतना बड़ा हो गया कि मुझसे भी सारी बातें छुपाई, मुझे भी कभी कुछ नहीं बताया तूने। मैंने तुझसे अपने और मानसी को लेकर कभी कुछ नहीं छुपाया, हर एक बात तुझे पता थी और बदले में तूने क्या किया? इतना भी भरोसा नहीं था तुझे मुझ पर कि तू मुझे अपनी दिल की बात कह सकता?"     रूद्र ने कॉफी के दोनों मग को रेलिंग पर रखते हुए कहा, "आते ही शिकायत शुरू कर दी तूने! इतने सालों के बाद मिला हूं, एक बार गले नहीं लगेगा यार?" रूद्र के बस कहने भर की देर थी और विहान एक झटके से उसके गले लग कर रो पड़ा। "बहुत याद किया मैंने तुझे रुद्

ये हम आ गए कहाँ!!! (60)

     रेहान रूद्र को लेकर दूसरी तरफ चला गया जहाँ वो उससे आराम से बात कर सकें और कोई भी उन दोनों को डिस्टर्ब ना कर पाए। मौली की हरकत से वो पहले ही शॉक मे था उसपर से रूद्र की खामोशी। जाते जाते भी रूद्र के कानों में लावण्या की कही बातें गूंज रही थी। आज एक अरसे के बाद किसी ने उसके सामने शरण्या का नाम लिया था। उसका नाम ही रूद्र को बेचैन करने के लिए काफी था लेकिन शरण्या है कहां? यह बात रूद्र चाह कर भी किसी से पूछ नहीं सकता था। आखिर किस हक से और किस से वह यह सवाल करता?      रेहान को रूद्र से बातें करनी थी। बरसों बाद उसका भाई वापस आया था जिसे ढूंढने के लिए उसने क्या कुछ नहीं किया। लगभग हर दूसरे दिन वह उसे ईमेल किया करता था। उसे तो यह तक नहीं पता था कि उसके मैसेज उसके भाई तक पहुंचते है भी या नहीं। वह उसे पढ़ता भी है या नहीं। ना ही बैंक अकाउंट से और ना ही सोशल मीडिया अकाउंट से उसकी कोई जानकारी मिली। रूद्र ने तो खुद को हर तरह से सबसे अलग कर लिया था और जिस वक्त यह सारे हादसे हुए उस वक़्त वह शहर में था भी नहीं और ना ही उसे इस बात की कोई जानकारी थी। जब तक वह वापस आया तब तक रूद्र वहां से जा चुका था हम