ये हम आ गए कहाँ!!! (68)

    सुबह सुबह 7:00 बजे के करीब सिंघानिया हाउस के लैंडलाइन की घंटी बजी। शिखा उस समय नहा धोकर मंदिर की तरफ जा रही थी। फोन की घंटी सुन उसे हैरानी हुई कि आखिर लैंडलाइन पर फोन कौन कर सकता है? जहां सभी के हाथ में मोबाइल है ऐसे में लैंडलाइन का नंबर किसी को याद भी नहीं होगा। सोचते हुए उन्होंने फोन उठा लिया। उनके हेलो बोलते ही दूसरी तरफ से रूद्र की आवाज आई, "हेलो मां........! मुझे पता था आप उठ गई होंगी इसलिए अभी कॉल किया। घर में किसी को फोन करके मैं परेशान नहीं करना चाहता था। वैसे आपको बता दूं, महादान की सारी तैयारियां हो चुकी है इसलिए सबको बोल दीजिएगा मंदिर आ जाएंगे। मैं भी 3 घंटे में वहां पहुंच जाऊंगा।"

    रूद्र की बात सुन उसकी मां हैरान रह गई और बोली, "इतनी भी जल्दी क्या थी रुद्र? तुम आराम से आते, 3 घंटे में पहुंचेंगे यानी तुम रात को ही वहां से चल दिए? पूरा दिन काम करने के बाद थकान हो गई होगी। पहलेे थोड़ा आराम कर लेते। यह सारी चीजें हम लोग बाद में भी कर सकते थे।" रूद्र ने कहा, "माँ...! इतना भी आराम करना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। जितनी जरूरत थी उतनी हो गई और वैसे भी आराम करते हुए ही आ रहा हूं। और रही बात आज की तो पंडित जी से मेरी बात हुई थी उन्होंने कहा था आज का दिन शुभ है और यह सारी चीजें जितनी जल्दी हो जाए उतनी ही अच्छी होती है। बेहतर होगा अगर यह सारी चीजें जल्द से जल्द हो जाए। और भी बहुत सारे काम निपटाने हैं। आप सबको बता दीजिए। आप लोग जल्द से जल्द मंदिर पहुंचिये और अगर कुछ कमी हो तो वह भी बता दीजिएगा।"

     रूद्र ने फोन रख दिया और शिखा सोचती रह गई कि आखिर आते ही एक रात में रूद्र ने कैसे कर लिया। उन्होंने सबको इस बारे में बताया और तैयार होने के लिए कह दिया। यह सब सुनकर रेहान खुद भी हैरान था। क्योंकि इस काम के लिए रूद्र ने उस से हेल्प मांगी थी। लेकिन बिना उसकी हेल्प के उसने नैनीताल में बैठे हुए ये सारे इंतजाम एकदम से रातोंरात करवा दिए। आखिर रूद्र काम क्या करता था? यह जानना उसके लिए अब जरूरी जैसा हो गया। वह उठा और तैयार होने के लिए चला गया। 10 बजते बजते सभी मंदिर पहुंच गए थे। वहां पहुंच गए कई सारे बड़े बड़े ट्रक उन्हें नजर आए जिसे देखकर पूरे घर वालों की आंखें हैरानी से फैल गई। भंडारे से लेकर दान तक की पूरी तैयारी हो चुकी थी और रूद्र खुद भी मंदिर के अंदर था। 

   रूद्र को देखते हुए धनराज ने पूछा, "रूद्र......! यह सब इतनी जल्दी...? अचानक से यह तुमने कैसे किया? इतनी जल्दी तो हमारे लिए भी पॉसिबल नहीं होता फिर अचानक से कैसे?" रूद्र इस वक्त पंडित जी से कुछ बात कर रहा था। वह अपने पिता की तरफ पलटा और बोला, "मेरे कुछ लोग हैं यहां पर जो मेरे साथ ऑफिस में काम करते हैं। उन सब की हेल्प से मैंने यह करवा दिया। ज्यादा कुछ मुश्किल नहीं था इसलिए इतनी जल्दी सारा काम हो गया। बस दादी के नाम से कुछ विशेष पूजा करवानी थी आप और माँ इसमें बैठ जाइएगा, बाकी हम लोग तो है ही। मैं और रेहान मिलकर सब संभाल लेंगे।"

    पूजा शुरू हुई और जैसा कि रूद्र ने कहा था, सारे इंतजाम हो चुके थे। किसी को भी कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ी। सबने आराम से पूजा में भाग लिया और उसके बाद भंडारे के साथ दान की शुरुआत हुई। सब ने अपने हाथों से हर आने जाने वाले को उनकी जरूरत के हिसाब से दान दिया। पूरा आयोजन खत्म होने के बाद आखिरकार रेहान को मौका मिल ही गया रूद्र से बात करने का। उसे अकेला पाकर रेहान ने पूछा, "रूद्र सच सच बता! तु काम क्या करता है? जो भी सारे इंतजाम तूने किए हैं उसे करने में हमें कम से कम 3 से 4 दिन का वक्त लग जाता। जिस बड़े पैमाने पर तूने सारा इंतजाम किया उसमें कोई छोटी मोटी रकम खर्च नहीं हुई है। तु सच सच बता, जानना है मुझे।"

    रूद्र पूजा में बिखरे फूलों को समेटते हुए बोला, "तुझे बताया तो था, जॉब करता हूं! और अपनी बॉस के बारे में तो तुझे मैंने अच्छे से बताया था। हां खडूस है लेकिन दिल की अच्छी है। मेरा और मेरी बेटी का खर्चा कंपनी उठाती है। अब हम दोनों के खर्चे हैं कितने? तो मेरी सैलरी वैसे ही रह जाती है। पड़े पड़े बेकार होने से बेहतर है कि मैं अपनों के लिए ही उसका इस्तेमाल करू। और मेरे पैसे मेरे अपनों के नहीं होंगे तो फिर मैं किसके ऊपर खर्च करूंगा? मौली की शादी की अभी इतनी जल्दी नहीं है मुझे। तब तक काफी सारे इंतजाम हो जाएंगे। तू इतना परेशान क्यों हो रहा है?"

     रुद्र ने अपनी बात रखी और वहां से जाने को हुआ। तभी रेहान ने एक बार फिर टोका, "तेरी बॉस कौन है? और तुझ पर इतनी मेहरबान क्यों है? मतलब क्या तुम दोनों के बीच कुछ........?" रूद्र उसकी ओर पलटा और बोला, "मेरी जो बॉस है वो शादीशुदा है। हां उसका पति थोड़ा कमीना है लेकिन वो अपने पति से बहुत प्यार करती है। उसके बिजनेस को सेटअप करने में मैंने उसकी काफी हेल्प की थी। यह कहना गलत नहीं होगा कि हम दोनों पार्टनर है लेकिन फिर भी मैं उसके अंडर काम करता हूं। उसका रिप्रेजेंटेटिव हु इसीलिए वो मेरा और मेरी बेटी का इतना ख्याल रखती है। इससे ज्यादा तू सोच मत। मैंने अपनी जिंदगी में सिर्फ एक लड़की से प्यार किया उसके अलावा मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं। और वैसे भी हमारी कंपनी इंडिया में अपना ब्रांच खोलना चाहती है इसीलिए यहां पर भी कुछ इंप्लाइज है तो पहले से काम करते हैं। उन्होंने ही कि सारा इंतजाम करवाया है। अब चले सब लोग नीचे हैं। हमारा इंतजार कर रहे होंगे।" कहकर रूद्र वहां से चला गया। रेहान ने भी ज्यादा पूछना सही नहीं समझा और वैसे भी रूद्र ने जो कहा था उस पर यकीन ना करने की कोई वजह भी नहीं थी। 

     धनराज और शिखा खुश थे कि उनका बेटा अब उनके साथ रहेगा। धनराज रूद्र को अपने साथ अपनी गाड़ी में लेकर जाना चाहते थे। रूद्र को देखते ही जैसे ही वह उनकी तरफ बढ़े उसी टाइम विहान ने रूद्र के सामने चाबी रखते हुए कहा, "यह तेरे घर की चाबी! सफाई करवा दिए मैंने, सब कुछ वैसा ही है जैसे पहले था। कुछ जरूरत के सामान भी रखवा दिए हैं। अभी कुछ और चाहिए हो तो बता देना।"

     रूद्र उसके हाथ से घर की चाबी लेते हुए बोला, "कोई बात नहीं। तूने इतना करवा दिया वह काफी है, बाकी का मैं देख लूंगा।" धनराज ने जब सुना तो उनका दिल टूट गया और वह मायूस हो गए। अपना सर झुकाए वह गाड़ी में जा बैठे। शिखा ने जब यह देखा तो उनसे रहा नहीं गया और रुद्र के पास आकर बोली, "तू घर नहीं आएगा, कहीं और रहेगा? अपना घर होते हुए भी तू हम सबसे अलग कैसे रह सकता है? हम से तेरी नाराजगी है तो बोल लेकिन इस तरह से दूर.........! इतने साल हम सब से दूर ही तो रहा है, कम से कम अब तो तू हमारे साथ रह सकता है?"

    रूद्र ने अपनी मां को समझाते हुए कहा, "माँ....! रहना तो मैं भी चाहता हूं आप सबके साथ लेकिन क्या करूं मजबूरी है। मैं नहीं चाहता कि मेरे आने से रेहान की लाइफ पर कोई असर पड़े। मेरी वजह से उसे कोई प्रॉब्लम हो यह मैं कभी नहीं चाहूंगा। आप मेरी बात समझ रहीं है न? मैं जो भी कर रहा हूं इसी में सबकी भलाई है और वैसे भी कौन सा आपसे दूर हूं? जब मेरा मन करेगा मैं आ जाऊंगा आपके पास। जब भी आपका दिल करेगा आप चले आना मेरे पास। आप मेरी मां है और वह घर मेरा है यह सच कभी नहीं बदलेगा।" कहते हुए रूद्र ने अपनी मां का माथा चूम लिया और उन्हें गाड़ी में बिठाकर वहां से रवाना कर दिया। धनराज और शिखा बुझे मन से घर चले आए। शिखा ने फिर भी धनराज को समझाने की कोशिश की कि रूद्र इसी शहर में है और वह दोनों जब चाहे उससे मिल सकते हैं।

     रूद्र सब के जाने के बाद कुछ देर वही मंदिर में खड़ा रहा। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी उस घर में कदम रखने को जो घर उसने शरण्या के लिए खरीदा था। मौली ने रुद्र का हाथ पकड़ा और गाड़ी तक खींच कर लाई। रूद्र गाड़ी में बैठा और मौली को लेकर वहां से निकल गया जैसे जैसे वह घर नजदीक आ रहा था वैसे वैसे रूद्र की धड़कनें तेज हो रही थी। घबराहट उसके मन में एक बार फिर बढ़ने लगी। मौली गाड़ी से बाहर देखने में बिजी थी। वह बस उस रास्ते को पहचानने की कोशिश कर रही थी जो कि उसकी हमेशा से आदत रही। कुछ देर बाद ही गाड़ी एक बिल्डिंग के सामने रुकी। रूद्र ने गाड़ी पार्क किया और एलिवेटर से पांचवें फ्लोर पर आया। उसके घर के दरवाजे पर लगे नेम प्लेट पर उसकी निगाहें ठहर सी गई। वहाँ आज भी उसकी और शरण्या के नाम की तख्ती लगी हुई थी। 

   रूद्र ने बड़े प्यार से शरण्या के नाम को छुआ और दरवाजा खोलकर अंदर आया। उसकी आंखों के सामने तमाम वह पल फिल्म की तरह चलने लगे जब वह शरण्या को लेकर पहली बार इस फ्लैट में आया था। वैसे तो उसने यह जगह रहने के लिए नहीं खरीदी थी, बस उसे शरण्या के साथ अकेले में कुछ वक्त बिताने को मिल जाए इसीलिए यह जगह उसने चुनी थी जोकि एकदम शांत एरिया में था, कोई शोर शराबा नहीं जैसा कि शरण्या को हमेशा से पसंद था। इस जगह से उसकी ना जाने कई सारी यादें जुड़े थी जिन्हें वह किसी से कह भी नहीं सकता था। उससे अलग होने से पहले रूद्र और शरण्या ने यही पूरी रात गुजारी थी। वह खूबसूरत रात रूद्र के जेहन में आज भी ताजा थी। 

    मौली उस घर को देखते ही खुश हो गयी। उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई और बाल्कनी साइड के दरवाजे को खोल दिया। वहां से एक तेज हवा का झोंका घर के अंदर आया और रूद्र को छूकर गुजरा। रूद्र ने अपनी आंखें मूंद ली जैसे वह इस वक्त शरण्या को महसूस करने की कोशिश कर रहा था। उसकी नजरें घर के चारों ओर जैसे कुछ ढूंढ रही हो। रूद्र को लगा मानो अभी इसी वक्त शरण्या कहीं से आएगी और उसे डरा देगी लेकिन वह जानता था ऐसा कुछ नहीं होगा। उसका हाथ अपनी गले में पहने उस लॉकेट पर गया जिसे शरण्या ने खुद अपने हाथों से उसे पहनाया था। उसने आज भी उस लॉकेट को उतारा नहीं था। उसने उसे अपनी मुट्ठी में कसकर दबोच लिया जैसे अपना दिल संभालना चाह रहा हो। 

     जाने कब मौली रूद्र के लिए कॉफी बना कर ले आई और उसके सामने रखते हुए बोली, "डैड.....! आप जल्दी से फ्रेश हो जाइए मैं तब तक बैग अनपैक कर देती हूं। वैसे यह जगह बहुत खूबसूरत है। सच कहूं तो इंडिया आकर पता चला कि आप मॉम से कितना प्यार करते हैं। सच में यहां की हर छोटी छोटी चीजें आपने मॉम के लिए किया था?" कहकर वो एक कमरे में गइ जहां रूद्र और शरण्या की तस्वीर लगी हुई थी। वह खुशी से चहकते हुई बोली, "यह मॉम है ना? कितनी खूबसूरत है!!! आप सही कहते थे, मेरी मॉम दुनिया में सबसे ज्यादा खूबसूरत है।"

     रूद्र ने सब सुना तो उसे कुछ समझ नहीं आया। जब वह कमरे में गया वहां उसकी और शरण्या की एक बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी। उस तस्वीर को देखकर रूद्र हैरान रह गया। आखिर यह तस्वीर किसने खींची थी और कब, उसे बिल्कुल भी याद नहीं आ रहा था। जहां तक उसे पता था यह तस्वीर बनारस के घाट की थी, जब वह दोनों शादी के बाद वहां गए थे। वहां एक फ्रेंच पति पत्नी मिले थे जो इंडिया घूमने के लिए आए थे। उन्होंने उन दोनों की कुछ तस्वीरें खींची तो थी लेकिन यह तस्वीर उन लोगों ने बिना बताए ली थी और रूद्र ने जब तस्वीरों को लेना चाहा तो उसने उससे उसके घर का पता मांगा ताकि वह इन तस्वीरों को फ्रेम करवा सकें। रूद्र ने घर या ऑफिस का पता देने की वजह इस घर का पता दे दिया था और शायद वह पार्सल विहान को मिला था। इस तस्वीर में शरण्या साड़ी पहने मांग में सिंदूर लगाए बनारस के घाट पर सीढ़ियों पर बैठी थी और वह उसके ठीक पीछे वाली सीढ़ी पर और दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा रहे थे। यह तस्वीर वाकई में बहुत खूबसूरत आई थी और उस वक्त वह दोनों ही इतने ज्यादा प्यारे लग रहे थे की तस्वीर खींचने वाला खुद को रोक नहीं पाया था उन दोनों की इस पल को कैमरे में कैद करने से। रूद्र ने प्यार से शरण्या के चेहरे को छुआ और एक बार फिर उन यादों में खो गया। 








टिप्पणियाँ

  1. Amazing nd Wonderful Fabulous Emotional Part 💗💗💗💗💗💗💖💖💖💖💖💖👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌

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  2. Amazing lajwab fantastic beautiful part 💞💗💗💗💗💗💗💗💗

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  3. बहुत ही बेहतरीन भाग था मैम!! 👌👌 रुद्र सच में बहुत ज्यादा पैसेवाला लगता है पर वो दिल से बहुत ज्यादा अमीर है...!! अपने शहर आकर भी अलग घर मे! वैसे तो वो घर बड़ा ही प्यारा है, उसकी शरण्या की यादें जो है!! 💙💙✨ अगले भाग का इंतेज़ार रहेगा!! 😊😊

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