ये हम आ गए कहाँ!!! (63)

     रूद्र का सच जानने के बाद धनराज से रहा नहीं गया। अपने मन में अपराधीबोध की भावना लिए उन्होंने यहां पर हाथ उठा दिया रेहान भी चुपचाप सर झुका अपने पिता के सामने खड़ा रहा। धनराज को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहें? जिसे कुछ नहीं कहना चाहिए था उसे ना जाने क्या कुछ ना कहा उन्होंने और जिसकी गलती थी उसके बारे में जानते हुए भी इस वक़्त उन्हें कोई शब्द नहीं मिल रहा था। जिस बेटे पर उन्हें नाज़ था उसकी एक गलती की वजह से उनका पूरा परिवार बिखर गया था। रेहान की गलती और रूद्र, शरण्या की जिंदगी बिखर गई थी। 

     रेहान की आंखों में आंसू थे। उसने अपने पिता के पैर पकड़ के लिए और कहा, "मुझे माफ कर दीजिए पापा! लेकिन मैंने कुछ भी जानबूझकर नहीं किया। अगर मुझे पता होता रूद्र ऐसा कुछ करने वाला है तो मैं उसे कभी ऐसा कुछ नहीं करने देता। मैं बहुत ज्यादा डर गया था क्योंकि मैं लावण्या से बहुत प्यार करता हूं। उसे खो नही सकता, ना आज, ना कभी! प्लीज पापा.........! ये बात लावण्या तक ना पहुंचे। सिर्फ और सिर्फ उसी के लिए रूद्र ने इतना बड़ा गुनाह अपने सर ले लिया। मैं मानता हूं मैं रूद्र का भी गुनहगार हूं और शरण्या का भी। लावण्या मुझे कभी माफ नहीं करेगी लेकिन बरसों पहले जो गलती मुझसे अनजाने में हुई.......... हो गई गलती मुझसे! क्या एक गलती की मुझे माफी नहीं मिल सकती?"

      धनराज लाचार होकर बोले, "हर गुनाह की माफी नहीं होती रेहान....! हर गुनाह भूलने वाला नहीं होता। बरसों पहले ललित ने भी यही गलती की थी जिसका नतीजा अनन्या भाभी बरसो तक सहती आई, शरण्या के रूप मे। ना कभी ललित को माफ कर पाई और ना कभी शरण्या को माँ का प्यार दे पाई। तुमने जो किया उसकी सजा किसी और ने भुगति, जिसकी कोई गलती ही नहीं थी। उन दोनो को भी अपनी जिंदगी जीने का हक था लेकिन तुम्हारे गुनाह अपने साथ लेकर चला गया वो। तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करता है और यह बात उसने साबित कर दी। मैंने उसे न जाने क्या कुछ कहा, हमेशा से ही मैंने तुम्हें उससे ऊपर रखा क्योंकि मुझे लगता था तुम मेरे वह बेटे हो जो मेरा सर हमेशा ऊंचा रखते हो। रूद्र मजाक में कहता था "पापा आपका ये बेटा किसी दिन बहुत बड़ा कांड करेगा" क्या वो सिर्फ एक मजाक था या फिर उसे सच में कुछ पता था, मुझे नहीं पता। लेकिन उसकी कही बातें सच साबित हुई। इतने सालों से तुम्हारी मां तुमसे बात नहीं कर रही नहीं, यहाँ तक कि मुझसे भी ढंग से बात नही करती हैं, इस सब का जिम्मेदार मै रूद्र को मानता था और उससे नाराज रहता था। जब वो आया सबसे पहले उस ने मेरे पैर छुए। मेरी तरफ उम्मीद से देखा और मैंने............! मेरी समझ नहीं आ रहा क्या मुंह लेकर जाऊ मैं उसके सामने?" कहते हुए धनराज वहीं जमीन पर बैठ गए। लाचारगी उनके चेहरे से साफ नजर आ रही थी। 

     रेहान ने उन्हें संभालना चाहा तो उन्होंने उसका हाथ दूर झटक दिया और उसे वहां से जाने को कह दिया। रेहान वहां से चला तो गया लेकिन उसके मन में वो डर फिर बैठ गया। कहीं किसी ने लावण्या को इस बारे में बता दिया तो? नही मै लावण्या को नही खो सकता! जब तक रूद्र यहां नहीं था, मुझे किसी बात की कोई परवाह नहीं थी। लेकिन उसके आने से एक बाद...!" रेहान के मन में डर घर करने लगा था। 

    धनराज अपने कमरे में जाने से पहले अपनी मां के कमरे में गए जहां रूद्र अपनी गोद में दादी का सिर रखे बैठा था और उन्हें प्यार से सहला रहा था । धनराज दरवाजे की ओट से ही रूद्र को देख रहे थे। उसके चेहरे पर जो खामोशी और दर्द झलक रही थी उसे वह ज्यादा वक्त तक देख नहीं पाए और वहां से चले गए। रूद्र की आँखों मे जो शरारत हर वक़्त नज़र आती थी वो कहीं नही थी। उसके साथ बिताया हर वक्त अब उनकी आंखों के सामने झलक रहा था। रूद्र की हर हरकत पर उसे डांट लगाने वाले धनराज आज एक बार अपने बेटे को गले लगाना चाहते थे। उसका दर्द बांटना चाहते थे लेकिन उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि अपने बेटे से नज़रे मिला सकें। "बिल्कुल सही कहा तुमने शिखा! जिन लोगों ने भी उसे देखकर नजरें तेरी हैं वह सब उसके सामने नजर झुका कर खड़े रहेंगे

    अगली सुबह शिखा जी रूद्र को देखने जब दादी के कमरे में गई, उस वक्त भी रूद्र की आंखें खुली हुई थी और दादी उसके गोद में सर रख सो रही थी। उन्होंने धीरे से रूद्र को आवाज लगाई तो रुद्र ने कहा, "सब को बुला लीजिए माँ....! दादी की अंतिम यात्रा की तैयारी करनी है।" रूद्र की बातें सुन शिखा रो पड़ी लेकिन रूद्र उसी तरह शांत बैठा रहा, हाँ..! उसकी आंखों में हल्की नमी जरूर थी। शिखा जाकर सब को बुला लाई। सभी लोग इस वक्त दादी के कमरे में इकट्ठा हो गए थे और रूद्र अपनी दादी का चेहरा देख रहा था। दादी ने मरने से पहले रूद्र से कहा था कि वह शरण्या को कहीं से भी ढूंढ कर ले आए और इसी जगह उनके नाम से दीया जलाये जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले।

     शरण्या कहीं खो गई है लेकिन कहां? उसके बारे मे यहां कोई उसे कुछ बता भी नहीं रहा था। ना ही मानसी, और ना ही विहान ने उसे कुछ बताया, बस पहेलियां बुझा कर चले गए लेकिन इस सबसे पहले जरूरी था दादी का अंतिम संस्कार जो कि रुद्र को ही करना था। दादी के अंतिम इच्छा के अनुसार यह हक उन्होंने अपने बेटे धनराज को नहीं दिया था। धनराज को अब इस बात से कोई एतराज नहीं था। उन्हें हमेशा लगता है कि उनकी मां रुद्र की कुछ ज्यादा ही तरफदारी करती है। उसे बेवजह अपने सर पर चढ़ा रखा है लेकिन अब उन्हें इस बात से बिल्कुल भी बुरा नहीं लग रहा था। 

     रूद्र ने रेहान की तरफ देखा तो रेहान बाहर की तरफ चला गया और बाकी के इंतजाम करवाने मे लग गया। रूद्र बिना कुछ बोले दादी को आराम से अपनी गोद से उतारकर बिस्तर पर सुलाया और उपर से इस तरह चादर डाल दी जैसे वह सो रही हो। वह बाहर निकला और पंडित जी से मिला। सारे लोग अपने अपने हिसाब से काम में लगे हुए थे। पंडित जी पूरे वक़्त रूद्र के साथ ही थे और वह उसे एक एक कर सारी विधियां बता रहे थे जिसमें काफी वक्त लगना था। दोपहर होने को आई थी लेकिन मौली का कहीं कुछ पता नहीं था। रूद्र ने चारों ओर नजर दौड़ाई लेकिन उसे मौली कहीं नजर नहीं आई तो उसने विहान के बेटे मानव को भेजा उसे ढूँढने के लिए। 

     मानव जाते जाते राहुल को भी अपने साथ ले गया। सबकी नजरों से ओझल होने के बाद राहुल के होठों पर एक शैतानी मुस्कान थी। उसने कहा, "मैंने कहा था ना, वो नकचड़ी लड़की अभी तक बेहोश पड़ी होगी अपने कमरे में। देखा.....! अभी तक नहीं आई है वो यहां। होप कि उसे उसका सबक मिल गया हो। आइंदा अगर उसने मेरे डैड के साथ कोई बदतमीजी की तो उसके साथ इससे भी ज्यादा बुरा होगा। चल देख कर आते हैं कहां है वह?" कहते हुए वह मानव के साथ मौली के कमरे की तरफ आया। मौली का कमरा खुला था जिसे देख राहुल और मानव दोनों ही हैरान थे। उन दोनों ने अंदर जाकर देखा लेकिन वहां कोई नहीं था उसने चारों ओर नजर दौड़ाई, कमरे के बाहर भी देखा लेकिन वहां मौली नहीं थी। उन दोनों ने अलग अलग जाकर पूरे आश्रम में ढूंढने का फैसला किया। इस वक्त उन दोनों की हालत खराब थी। अगर किसी को पता चल जाता कि उन दोनों ने मिलकर माली के साथ प्रैंक किया है तो उनके घर वाले उन दोनों की खटिया खड़ी कर देते। ऐसे में मौली का मिलना सबसे ज्यादा जरूरी था। 

    चारों ओर ढूंढने के बावजूद जब मौली कहीं नहीं मिली तब हार कर वह दोनों पानी पीने किचन की तरफ गए तो वहां का नजारा देखकर उन दोनों का गला और ज्यादा सूख गया। किचन में एक साइड टेबल पर मौली बैठी थी और उसके सामने रखा था दूध का कटोरा जिसमे उसने एक सांप का सिर डुबो रखा था। उसके हाथ में सांप देखकर उन दोनों की हालत खराब हो गई। मौली ने जब उन दोनों को इस तरह घबराए हुए देखा तो मुस्कुराते हुए बोली, "अरे चंगू मंगू! तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो? अच्छा इधर आओ और इस से मिलो यह मेरा दोस्त सैंडी का हमशक्ल है। तुम्हें पता है मैं यहां अपने सैंडी को बहुत मिस कर रही थी और देखो यह खुद मेरे पास चला आया मेरे कमरे मे मुझसे मिलने। क्या हुआ अगर मेरा सैंडी मेरे पास नहीं है तो! यह तो है ना, चलो आओ तुम लोग उसको हेलो बोलो जल्दी से!"

    राहुल और मानव वही मूर्ति के जैसे वहां खड़े रह गए। उन दोनों में से किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि आगे बढ़ सके। राहुल ने मौली के कमरे में सांप छोड़ा था वह सांप असली नहीं था लेकिन किसी को भी डराने के लिए काफी था। राहुल ने मानव के कान मे कहा, "अरे यार! हमने तो नकली सांप भेजी थी फिर ये असली कहाँ से आया? और ये इतने आराम से इसके साथ खेल रही है! कहीं ये पिछले जनम मे मोगली तो नही थी?" मानव ने कहा, " मुझे क्या पता? तेरा प्लान था तु जान! मैंने तो पहले ही मना किया था।"

     मानव ने हिम्मत करके कहां, "मौली.....! यह सांप बहुत ही खतरनाक होते हैं। तुम्हें इनके साथ नहीं खेलना चाहिये। अगर इसने तुम्हें काट लिया तो क्या करोगी?" मौली मुस्कुराते हुए बोली, "तुम घबराओ मत, यह मेरा दोस्त हैं। ये मुझे नहीं काट सकता बिलकुल भी नही। और अगर इसने मुझे काटा तो मैं इसे काट लूँगी और इसका सूप बनाकर पी जाऊंगी। आज तक जिस भी सांप ने मुझे काटा है उसे मैंने कभी जिंदा नही छोड़ा। वो सभी मेरे प्लेट मे आते है।" राहुल और मानव को लगा अभी वही उल्टी कर देंगे। वह दोनों ही अपने मुंह पर हाथ रख वहां से भागे तो मौली पीछे से चिल्लाई,"अरे चंगु मंगू....! कहाँ जा रहे हो? इधर आकर मेरे दोस्त को हैलो तो बोल देते!" लेकिन उन दोनो तो जैसे सिर। पर पैर रखकर भागे। जाते जाते मानव ने कहा, "तुम्हारे डैड तुम्हें बुला रहे हैं उनके पास जाओ। बड़ी दादी मां की अंतिम तैयारी हो रही है और वह लोग कुछ कर रहे हैं। शायद तुम्हारी जरूरत हैं उन्हें।"

     उन दोनों के जाने के बाद मौली ने उस सांप को कटोरे से बाहर निकाला। यह वही साप था जो राहुल उसके लिए लेकर आया था जिसे वह खुद भी नहीं पहचान पाया था। मौली ने उसके तीर से उसी पर वार किया और उन दोनों को ही बुरी तरह से डरा कर भगा दिया। उन दोनों के जाते हैं मौली मुस्कुराई और कहा, "बच्चे हो तुम दोनों तो बच्चों की तरह रहा करो! ऐसी हरकतें तुम लोगों को सूट नहीं करती है! आइंदा अगर मेरे साथ ऐसी कोई भी हरकत की तो यह तो सिर्फ ट्रेलर था बच्चु। जिस स्कूल में तुम लोगों ने एडमिशन लिया है ना, मैं उस स्कूल की प्रिंसिपल हूं। आते आते पंगे ले लिए तुम दोनों ने।" कहकर उसने उस रबड़ के सांप को बाहर की तरफ फेंक दिया और रूद्र के पास चली आई। 

     रूद्र में जब मौली को आते देखा तो पूछा, "कहां थे आप, सुबह से नजर नहीं आए?" मौली ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "कुछ नहीं डैड! वह एक्चुअली में अपने सैंडी को बहुत मिस कर रही थी तो बस वही थोड़ा...... और फिर जब कपड़े भी तो ठीक करने थे। अभी तक बैग मे ही पड़े हुए थे वह तो मैं उसमें लग गयी।" मौली ने रूद्र से झूठ बोला जिसे रूद्र ने बिना देरी किए पकड़ लिया लेकिन कुछ कहा नहीं। मौली ने भी कल रात जो अपने दादा दादी की बातें सुनी थी उसे अपने तक रखा और इस बारे में कुछ नहीं कहा। लेकिन वह सारी बातें उसके मन में असर कर चुकी थी। उसे जानना था आखिर रूद्र और शरण्या के रिश्ते का सच क्या था और क्यों रूद्र ने शरण्या को छोड़ा था? क्या सिर्फ उसकी वजह से? और शरण्या है कहाँ? इन सारे सवालों के जवाब उसे चाहिए थे इसके लिए उसे सही वक्त का इंतजार करना था। 

     

    

   

    

    

   

  

टिप्पणियाँ

  1. Nice part. Sachame ramray satha bahota galta hua. Rurda rihanko ko sacha chhupana jaraka ramaniy sachabhi bahuta gal ky

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  2. Very Emotional Part ����������������

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  3. 😘😘😘😘😘😘😘😘🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰

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  4. बहुत ही बेहतरीन भाग था मैम!! 👌👌 रेहान ने जो किया वो गलती नही गुनाह हुआ और उसकी सजा रुद्र-शरण्या को भुगतनी पड़ी! सच में, इमोशनल पार्ट था..!! धनराज जी की भावनाएं और दादी का चली जाना!! 🙁🙁 वैसे मौली ने मूड फ्रेश कर दिया! क्यूट बच्ची! चंगू-मंगू! 😂😂 अगले भाग का इंतेज़ार रहेगा!! 😊😊

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  5. Rudra ne shranya ke sath bhi galat kiya kisi or ki galti ki saja sabse jyada usko hi mili or lavanya ke sath bhi bhot galat hua

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  6. Rudra ne toh ek acche bhai ki farz ko nibhaya apni pyar sacrifice kar lekin ab rehan ko sabko truth btana chahiye

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