संदेश

ये हम आ गए कहाँ!!! (43)

    अमित के उस क्लाइंट के बारे में जान कर रूद्र के होश उड़ गए। कहीं ना कहीं उसे विहान की कहीं सारी बातें अब जाकर समझ में आ रही थी। उस आदमी का ऐसे मानसी को छूना और अमित का यूं खामोश बैठे रहना यह सब उसी ओर इशारा कर रहे थे लेकिन मानसी यह सब कुछ बर्दाश्त क्यों कर रही थी यह रुद्र को समझ नहीं आ रहा था। जहां तक उसने विहान से मानसी के बारे में जाना था वो ऐसी लड़की नहीं थी जो किसी के दबाव में आकर कुछ करे या अपना स्टैंड ना ले सकें। शरण्या और बच्चों के जाने के बाद रूद्र कुछ और देर तक वहां बैठा रहा। वह जानना चाहता था आखिर जो कुछ भी हो रहा था और जो भी वो समझ रहा था क्या वह सब सही था या फिर एक गलतफहमी!       अमित की इमेज एक सीधे शरीफ इंसान की थी जिसके बारे में कोई ऐसा कुछ सोच भी नहीं सकता था लेकिन इस वक्त जो कुछ भी उसे नजर आ रहा था वह सब उसकी समझ से परे था। हो सकता है अमित नशे में हो और उसे इस बात का एहसास ही ना हो कि उसकी बीवी के साथ क्या हो रहा है। इस बारे में विहान को बताएं या ना बताएं यही सोच कर रूद्र परेशान था और तय नहीं कर पा रहा था। उसका शक यकीन में तब बदल गया जब अमित वहां से उठकर अपने क्लाइं

ये हम आ गए कहाँ!!! (42)

     लावण्या को रूद्र से कुछ बात करनी थी लेकिन शरण्या के होते हुए वह उससे कुछ कह नहीं पा रही थी इसलिए वह शरण्या को वहां से भेजने का उपाय ढूंढने लगी लेकिन जब कुछ समझ में नहीं आया तो उसने कहां, "शरण्या! मेरा फोन शायद नीचे स्टोर पर रह गया है तु जाकर ला देगी?" शरण्या ने उसे इस तरह देखा मानो वो कोई एलियन हो और बोली, "दी!!! आपने अभी अभी रेहान से बात की थी ना तो आपका फोन स्टोर पर कैसे हो सकता है?" लावण्या को याद आया कि उसने तो उसके सामने ही रेहान से बात की थी ऐसे में फोन का स्टोर पर छुटना नामुमकिन था। उसने मन ही मन उसने अपना सिर पीट लिया। तभी उस फूड कोर्ट की मैनेजर वहां आई और बोली, 'एक्सक्यूज मी! यह सारे बच्चे किसके हैं? मेरा मतलब यह बच्चे किसके साथ आए हैं?"      रूद्र ने छूटते ही कहा, "मैडम! ये सारे बच्चे मेरे हैं, मेरा मतलब मेरे साथ है!" मैनेजर ने जब रूद्र को देखा तो थोड़ी झेंप गई और मुस्कुराकर बोली, "अगर यह आपके बच्चे हैं तो इनमे से किसी की भी शक्ल आप जैसी नहीं है!" रूद्र भी कहां पर कहां पीछे हटने वाला था। उसने भी मुस्कुराकर बड़े ही रोमांटिक

ये हम आ गए कहाँ!!! (41)

     विहान काफी दिनों से कोशिश कर रहा था ताकि उसे मानसी के बारे में कुछ पता चल सके लेकिन इस बारे मे सीधे सीधे मानसी से सवाल करने का कोई मतलब ही नहीं था। इस बारे में अगर कोई कुछ बता सकता था तो वो थी नेहा। पिछले कुछ दिनों की कोशिश के बाद विहान ने ऐसा समय चुना जब नेहा हॉस्पिटल के लिए निकल रही होती थी। उस रात मानसी की जो हालत थी, उसको देखते हुए विहान का दिल कहीं ना कहीं घबरा रहा था। उसे इस बात का पूरा यकीन था कि मानसी के साथ कुछ ठीक नहीं हो रहा। चाहे अमित उसे कितना ही प्यार क्यों ना करता हो, चाहे उसके ससुराल वाले उससे कितना भी मान देते हो, इस सब के बावजूद मानसी का ऐसा बर्ताव विहान की समझ से परे था और उस रात जो उसकी हालत थी उसे देखते हुए वह खामोश नहीं बैठ सकता था।       नेहा अपने घर से जैसे ही निकली वैसे ही उसे विहान की गाड़ी आती हुई नजर आई। विहान भी तो यही चाहता था। नेहा ने जैसे ही उसे देखकर हाथ हिलाया विहान ने उसके ठीक सामने गाड़ी रोक दी और उसे अंदर आने का इशारा किया। नेहा भी चहकती हुई उसकी गाड़ी में जा बैठी और बोली, "तुम आज अचानक से इस रास्ते! वह भी इस वक्त!! मुझे तो लगा था इस वक्त

ये हम आ गए कहाँ!!! (40)

    रूद्र की बाहों में घिरी शरण्या खुद को संभालने की नाकाम कोशिश में लगी थी। जब उससे रहा नहीं गया तो उसने धीरे से अपना सिर घुमा कर रूद्र की ओर देखा और उसकी ओर पलट गई। रूद्र गहरी नींद में सो चुका था, उसकी तेज सांसे शरण्या को अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी। उसने प्यार से उसके चेहरे को थाम लिया और बोली, "तू सिर्फ मेरा सपना है रूद्र! और अब शायद हमेशा के लिए तु एक सपना ही बनकर रह जाएगा मेरा। इस दुनिया में तुझे हर लड़की नजर आती है, सिवाय मेरे। लेकिन इसमें तेरी भी तो कोई गलती नहीं, मै हु ही ऐसी। काश की कि ये रात सिर्फ सपना ना होता, काश कि तुम मेरी जिंदगी के सबसे बड़े सच होते, काश कि तुम्हे वो सब कह पाती है जो मैं हमेशा से कहना चाहती हूं। काश कि मेरे बिना कह तुम सब समझ जाते, काश ऐसा होता!" शरण्या ने धीरे से अपना सर झुकाया और रूद्र के सीने को चूम लिया। शरण्या के होठों की छूअन पाकर रूद्र ने उसे अपनी बाहों में और करीब समेट लिया।         सुबह-सुबह दादी पूजा करने में व्यस्त थी। तभी रूद्र आकर उन्हें पीछे से हग करते हुए बोला,"गुड मॉर्निंग दादी!" रूद्र की आवाज सुनकर ही दादी समझ गई

ये हम आ गए कहाँ!!! (39)

       रूद्र को शौक चढ़ा था शरण्या का सैंटा बनने के लिए लेकिन शरण्या की विश पूरी करने के चक्कर में खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेगा इसका अंदाजा उसे बिल्कुल भी नहीं था। उसने शरण्या के सामने उसकी तारीफ की, साथ ही उसे थोड़ा सा चिढ़ाने के लिए, थोड़ा सा जलाने के लिए उसने उस लड़की का नाम लिया जिससे बस सबसे ज्यादा खुन्नस खाती थी। रूद्र शायद भूल गया था कि वह यूं ही शरण्या को शाकाल नहीं बुलाता, उसकी हरकतें भी ऐसी ही थी। शरण्या कोई बेचारी लड़की नहीं थी जिसे कोई भी परेशान कर सके खासकर के रूद्र! वो जो कुछ भी सोच कर आया था उसके बदले में इस वक्त उसकी हालत खराब थी।       रूद्र को शांत देख शरण्या ने अपने दोनों बाजू फोल्ड किए और बोली, "क्या हुआ? तुझे तो मेरा सेंटा बनना था ना, मेरी पूरी विश लिस्ट मांगी थी तूने! एक विश तो मेरी पूरी नहीं कर पा रहा, बाकी का क्या खाक करेगा! अभी तो लिस्ट शुरू भी नहीं हुई और तो अभी से आनाकानी कर रहा है। एक काम कर, तु घर जा! मुझे नहीं पूरी करनी अपनी कोई भी विश, उसके लिए मैं खुद ही काफी हूं। जो करना होगा मैं कर लूंगी लेकिन आइंदा से कभी किसी के सामने चौड़े होकर मत बो

ये हम आ गए कहाँ!!! (38)

   शरण्या कभी रुद्र की हथेली देखती तो कभी अपने हाथ में पकड़े उस स्केल को, तो कभी रूद्र के मासूम चेहरे को। रूद्र की बातें शरण्या को इमोशनल कर रही थी। उसके चेहरे से मासूमियत टपक रही थी। इस वक्त शरण्या का दिल कर रहा था कि वह उसे कसकर गले लगा ले और जी भर कर प्यार कर ले लेकिन अपनी हद में बँधी शरण्या चाह कर भी अपने प्यार के रास्ते में एक कदम भी आगे ना बढ़ा पाई। शरण्या को सोचता देख रूद्र ने कहा, "सोच क्या रही है शरू! निकाल मैं अपनी सारी भड़ास। जो मैंने तेरे साथ किया उससे भी बुरा हाल मेरा होना चाहिए। जिन हाथों से मैंने तुझे चोट पहुंचाई, उन हाथों को इतनी सजा दे कि आइंदा से कभी ऐसी गलती ना करें। तेरी आंखों में आंसू देखने से पहले मैं मर जाना पसंद करूंगा।"     रुद्र की बातें शरण्या को इमोशनल कर रही थी। इतने दिनों से जो गुस्सा उसने अपने मन में दबा के रखा था वह सब कहीं गायब हो गया। रूद्र इस वक्त किसी मासूम बच्चे की तरह अपने पनिशमेंट का इंतजार कर रहा था और शरण्या अपने हाथ में स्केल लिए किसी टीचर की तरह खड़ी थी। रूद्र की आंखों में सिर्फ और सिर्फ खुद से नाराजगी थी और शरण्या सजा पाने का उसे जर

ये हम आ गए कहाँ!!! (37)

      लावण्या भागती हुई अपने कमरे में आई और अपना फोन लेकर सबसे पहले रेहान का नंबर डायल किया ताकि रूद्र के बारे में पूछ सके। रेहान उस वक्त अपने कमरे में बैठा हूआ किसी प्रोजेक्ट की फाइल पर कुछ काम कर रहा था। लावण्या का कॉल देखते ही उसने जल्दी से फोन उठाया और बोला, "आखिर तुम्हें मेरी याद आ ही गई! वरना जिस तरह से तुम मुझसे दूर भाग रही हो ऐसा लग रहा है काश हमारी सगाई ही ना हुई होती! कम से कम बहाने से ही सही, तुम मुझसे मिलने आ जाती थी, या फिर मुझे देखने ही चली आती थी, कभी-कभी कॉल भी कर लेती थी लेकिन जब से हमारा रिश्ता तय हुआ है और खास तौर पर जब से हमारी सगाई हुई है सबसे तो तुम्हें मै याद ही नहीं रहा।"      "कम ऑन रेहान!!! ऐसा कुछ नहीं है। पहले हम छुप छुप कर एक दूसरे को देखा करते थे। अब तो सबको पता चल गया है और सबके सामने हमारा रिश्ता भी तय हो चुका है। पहले जब मैं तुमसे बात करने के लिए तुम्हें कॉल करती थी तो किसी को फर्क नही पड़ता था लेकिन अब जब सब को पता है हमारे रिश्ते के बारे मे तो मै किसी को भी कॉल करू, सब को लगता है कि मै तुम्हें ही कॉल कर रही हूं और वैसे भी, आजकल तुम खुद

ये हम आ गए कहाँ!!! (36)

     रूद्र खुद में बहुत ज्यादा बेचैन था। जब उसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो अपनी दादी के पास जाकर उनकी गोद में सर रखकर लेट गया। दादी ने भी उसकी बेचैनी को बखूबी समझा और उसे समझाने की पूरी कोशिश की। रूद्र एक झटके में दादी की गोद से उठ बैठा और मासूम बनते हुए बोला, "कहां जाऊं दादी, और किसके पास? आप क्या बोल रही हो दादी, आपकी बातें मेरी समझ नहीं आ रहा।" दादी बोली, "अच्छा बेटा! प्यार भी है और इनकार भी। सोच ले, जब तक तू इकरार करें तब तक कहीं कोई और उसे उड़ा कर ना ले जाए।"      "आप क्या बात कर रहे हो दादी और किसकी बात कर रहे हो? आपको कैसे पता मैं किसके बारे में सोच रहा हूं? और कोई प्यार व्यार नहीं है मुझे शरण्या से, वह सिर्फ मेरी बचपन की दोस्त है और कुछ नहीं!"      "जरा मुझे एक बात तो बता, तुम दोनों दोस्त कब बने? जहां तक मुझे पता है, तुम्हें शरण्या के नाम से भी डर लगता है और वो तुम्हें अपना पंचिंग बैग बनाने का एक मौका नहीं छोड़ती! मैंने यह कब कहा कि तुझे शरण्या से प्यार है? मैंने तो उसका नाम भी नहीं लिया।" रुद्र ने अपने होंठ दबा लिए जैसे उसके मन का चोर पकड़ा ग

ये हम आ गए कहाँ!!! (35)

      विहान पिछले एक हफ्ते से रूद्र से मिला नहीं था। रूद्र ने जब आखिरी बार उसे कॉल किया था तब उसने सिर्फ और सिर्फ विक्रम के बारे में पूछा था ना कि कुछ और। उसके कुछ देर के बाद ही विक्रम का यू जख्मी होना उस पर इतना जानलेवा हमला, विहान समझ गया था कि यह सब सिर्फ रुद्र ही कर सकता है और कोई नहीं। लेकिन इस सबके पीछे की वजह वह समझ नहीं पा रहा था। उसे रूद्र से बात करनी थी लेकिन रूद्र कहा था कि किसी को नहीं पता था। ना तो दिन में वो घर पर मिलता ना ही रात को क्लब में। आखिर वो जाता कहा था ये बात किसी को नहीं पता थी। काफी कोशिशों के बाद जैसे ही विहान को पता चला कि रूद्र क्लब आया है, वह भागते हुए वहां पहुंचा और उसका कॉलर पकड़ उसे एक पंच मारा। विहान उसके रिएक्ट करने का वेट कर रहा था लेकिन रूद्र ने किसी तरह का कोई जवाब नहीं दिया और ना ही उस पर वापस से हाथ उठाया। विहान ने उसका कॉलर पकड़ा और खींचकर ऊपर वाले फ्लोर पर लेकर गया जहां कोई नहीं था।       "हो क्या गया है तुझे रूद्र? तू है कहां? पिछले 1 हफ्ते से पागलों की तरह मैं तुझे ढूंढ रहा हूं और आजकल तू कर क्या रहा है? तुझे एहसास भी है, अब तु पिछले कुछ

ये हम आ गए कहाँ!!! (34)

     घर के बड़े मेहमानों को विदा करने में लगे हुए थे। तभी मौका पाकर रेहान ने लावण्या कहां पकड़ा और खींच कर अपने साथ दूसरी तरफ ले गया। लावण्या उसका हाथ थामें उसके साथ चल पड़ी। उसे भी रेहान के साथ थोड़ा वक्त चाहिए था लेकिन रेहान उसके करीब आना चाहता था जो लावण्या को थोड़ा असहज लग रहा था और वो उससे दूर जाने की कोशिश करने लगी। रेहान बोला, "कम ऑन लाव! हमारी सगाई हो चुकी है, अब तो मैं तुम्हारे करीब आ सकता हूं! प्लीज यार!"      लावण्या बोली, "तुम रेहान ही हो ना? रूद्र की तरह बर्ताव क्यों कर रहे हो? रेहान! माना हमारी सगाई हो चुकी है लेकिन हमारी शादी में ज्यादा वक़्त नहीं है और इस तरह से करीब आना मुझे अच्छा नहीं लगता। प्लीज यार! बात समझने की कोशिश करो। हमारी शादी में सिर्फ एक महीना ही तो बचा है। जहा हमने कितने साल इंतजार किया है एक महीना और सही, क्या बिगड़ जाएगा! और यह सारी हरकतें ना रूद्र को सूट करती है तुम्हें नहीं।"      रेहान बोला, "कम ऑन लव! सगाई हो गई है तो शादी भी हो ही जाएगी। और क्या फर्क पड़ जाएगा, शादी से पहले या शादी के बाद? शादी तो होनी है ना, कौन सा मैं कहीं