ये हम आ गए कहाँ!!! (36)

     रूद्र खुद में बहुत ज्यादा बेचैन था। जब उसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो अपनी दादी के पास जाकर उनकी गोद में सर रखकर लेट गया। दादी ने भी उसकी बेचैनी को बखूबी समझा और उसे समझाने की पूरी कोशिश की। रूद्र एक झटके में दादी की गोद से उठ बैठा और मासूम बनते हुए बोला, "कहां जाऊं दादी, और किसके पास? आप क्या बोल रही हो दादी, आपकी बातें मेरी समझ नहीं आ रहा।" दादी बोली, "अच्छा बेटा! प्यार भी है और इनकार भी। सोच ले, जब तक तू इकरार करें तब तक कहीं कोई और उसे उड़ा कर ना ले जाए।"

     "आप क्या बात कर रहे हो दादी और किसकी बात कर रहे हो? आपको कैसे पता मैं किसके बारे में सोच रहा हूं? और कोई प्यार व्यार नहीं है मुझे शरण्या से, वह सिर्फ मेरी बचपन की दोस्त है और कुछ नहीं!"

     "जरा मुझे एक बात तो बता, तुम दोनों दोस्त कब बने? जहां तक मुझे पता है, तुम्हें शरण्या के नाम से भी डर लगता है और वो तुम्हें अपना पंचिंग बैग बनाने का एक मौका नहीं छोड़ती! मैंने यह कब कहा कि तुझे शरण्या से प्यार है? मैंने तो उसका नाम भी नहीं लिया।" रुद्र ने अपने होंठ दबा लिए जैसे उसके मन का चोर पकड़ा गया हो। उसने वापस से दादी की गोद में सर रखा और लेट गया। "मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी। मैंने ना कुछ कहा आपने ना कुछ सुना बस!" दादी हंसते हुए बोली,"अच्छा ठीक है! इस बारे में कोई बात नहीं करूंगी और मैं शरण्या का नाम भी नहीं लूंगी। चल कुछ दूसरी बात करते हैं। तु मुझे यह बता तू ने विक्रम को इतनी बुरी तरह से क्यों मारा?"

     रूद्र समझ गया कि दादी से कुछ भी छुपाना पॉसिबल नहीं है। वह उसका चेहरा देखकर ही उसके मन की बात जान लेती है। रूद्र कुछ देर खामोश रहा फिर बोला, "उसने शरण्या के साथ बदतमीजी की थी, रेहान और लावण्या की सगाई मे डांस फ्लोर पर उसने उसे गलत तरीके से छूने की कोशिश की थी। मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ और आप ही बताओ दादी मैंने कुछ गलत किया क्या?" दादी बोली, "बिल्कुल नहीं मेरा बच्चा! लेकिन यह तो बताओ, वहां तो हम सब लोग थे! उसी वक्त बात खुल जाती तो विक्रम को सरेआम बेइज्जत करके हम उसे सबक सिखा सकते थे और उससे सबके सामने माफी मंगवाते। यह सब तो शरण्या के साथ हुआ था ना लेकिन उसने तो कुछ नहीं कहा! बस तेरा हाथ पकड़ कर तुझे ले गई, मुझे तो बस इतना ही दिखा और इतनी सी बात पर उसे इतनी बुरी तरह से मारने की क्या जरूरत थी? किसीका हाथ तोड़ दो और महीने भर के लिए हॉस्पिटल में बैठा दो, इस तरह कोई मारता है क्या? क्या हो गया था तुझे, तू तो इतना गुस्सा नहीं करता?"

     "गुस्सा कैसे ना करता दादी? यह जो लड़की है ना या शेरनी बनकर सिर्फ मेरे ऊपर ही चढ़ती हैं बाकी दुसरो के सामने भीगी बिल्ली होती है। सारा गुस्सा सारा फ्रस्ट्रेशन सिर्फ मेरे लिए बचाकर रखती है थोड़ा सा तो दूसरों पर भी निकालती तो मुझे इतना गुस्सा करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। और वो विक्रम! हिम्मत कैसे हुई उसकी शरण्या को छूने की? शुक्र मनाओ कि मैंने बस उसका हाथ थोड़ा है, काटा नहीं और उसे जिंदा छोड़ दिया। वरना तो मुझे इतना गुस्सा आया था, दिल कर रहा था कि मैं उसकी जान ले लू। हिम्मत कैसे हुई उसकी, मेरी शरण्या को छूने की, मेरी शरण्या पर गंदी नजर डालने की उसकी हिम्मत कैसे हुई? मुझे उसकी आंखें भी निकाल देनी चाहिए थी!"

      "तेरी शरण्या??? वो तेरी शरण्या कब से हो गई बता? जहां तक मुझे पता है तुम दोनों तो दोस्त भी नहीं हो और ना ही एक दूसरे को फूटी आंख भाते हो और प्यार तो दूर की बात है! अचानक से शाकाल से 'मेरी शरण्या' कैसे हो गई जरा बताना मुझे!" दादी की बात सुन रूद्र हक्का बक्का रह गया। उसे समझ नहीं आया कि वह दादी को क्या जवाब दें। उसे खुद भी एहसास नहीं हुआ कि शरण्या को लेकर उसके दिल में क्या फीलिंग है! वही दादी उसे देख कर मुस्कुरा रही थी और उनकी आंखों में एक शरारत थी जिसे देख रूद्र एक बार फिर उठ कर बैठ गया और बोला, "आप ऐसे क्यों देख रहे हो दादी? ऐसा वैसा कुछ नहीं है, जो आप सोच रहे हो!" रूद्र नजरे चुरा रहा था जिसे देख दादी बोली, "इस इश्क की गली में तुम अकेले नहीं हो बाबू! यह इश्क की जो गलियां होती है बड़ी ही संकरी होती है और एक बार जो घुस गया तो बस घुसता ही चला जाता है। यहां से यू-टर्न लेने का कोई रास्ता नहीं होता। उसने शरण्या को छुआ इस बात से तुझे इतना ज्यादा गुस्सा आया कि तूने उस आदमी को जान से मारने की कोशिश की, अब तक कितनों के लिए कर चुका है तु ऐसे? अब मान भी जा तुझे उससे प्यार हो गया है!"

    प्यार का नाम सुनते ही रुद्र के तो जैसे तोते उड़ गए हो। शरण्या से प्यार! यानी कि उस शाकाल से प्यार! रूद्र बेटा तुझे कोई और नहीं मिली दिल लगाने को? अब तो तु गया!" रूद्र ने मन ही मन बोला लेकिन उसके जुबान से एक शब्द नहीं फूटा। उसने जब कुछ नहीं कहा तो दादी बोली, "एक बात बता! शरण्या तेरे साथ इतना बुरा बर्ताव करती है तुझे उस पर कभी गुस्सा नहीं आया? मैंने तो नहीं देखा कभी तुझे उस पर गुस्सा करते हुए! वह अपना सारा गुस्सा तेरे ऊपर निकाल देती है फिर भी तो कुछ नहीं कहता। गुस्सा होना तो दूर तु उससे नाराज भी नहीं होता और दोबारा मार खाने के लिए चला जाता है उसके सामने। ये प्यार नहीं तो और क्या है रूद्र! ये एहसास जो तुझे आज हो रहा है वह बहुत पहले हो जाना चाहिए था।" रूद्र को कुछ समझ नहीं आया। वह बोला, "दादी मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा। अगर आपकी बातें सही भी है तो भी शरण्या मुझसे प्यार नहीं करती। जिस तरह मुझ पर बेवजह गुस्सा करती है मुझसे लड़ती झगड़ती है, इस सब से तो यही मतलब निकलता है ना दादी।"

   दादी को फिर उसकी बात सुन हंसी आ गई। वह बोली, "एक बात बता, तूने शरण्या को एक बार किसी और के साथ देखा तो तुझे इतना ज्यादा गुस्सा आ गया तो सोच शरण्या तुझे रोज ही नई नई लड़कियों के साथ देखती है उसे कितना गुस्सा आता होगा? कोई भी इंसान बेवजह हम पर गुस्सा नहीं करता। उस बेवजह गुस्से की वजह या तो नफरत होती है या फिर प्यार। इतना तो तुझे भी समझ है कि वह तुझसे नफरत नहीं करती। आगे तू खुद समझदार है, अगर बात अभी भी तेरी समझ में नहीं आई है तो एक और बात मै तुझे बताती हूं। जब मैंने शरण्या से मेरी बहू बनने को कहा था तब वो शरमा गई थी। उसका चेहरा देखकर ही मैं समझ गई थी जो तुझसे कितना प्यार करती है और सिर्फ तेरे कहने का इंतजार कर रही है। जा और जाकर मना ले अपनी शरण्या को। उससे झगड़ा हुआ है ना तेरा, इसलिए इतना बेचैन है तु, है ना?"

     "आपकी बातें मैं समझता हूं दादी! और मैं एक हफ्ते से कोशिश कर रहा हूं उससे बात करने की लेकिन मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही उसके सामने जाने की। पता नहीं वो कभी मेरी शक्ल देखेगी भी या नहीं? एक हफ्ते से उसने खुद को कमरे में बंद कर रखा है, ना किसी से मिलती है ना कहीं बाहर जाती है। मुझे तो उसका सामना करने में ही डर लगता है और अब तो और भी ज्यादा, जब मैंने अपना गुस्सा उस पर उतार दिया था वो भी बिना उसके किसी गलती के।" दादी बोली, "कल क्रिसमस है, आज आधी रात को सैंटा आएंगे और वह सब की विश पूरी करेंगे। तु समझ रहा है ना मैं क्या कह रही हूं? तु जा और जाकर उसे मना ले। अगर वह तुझसे गुस्सा है तो भी, एक बार कहने पर अगर ना भी मानी तो दुबारा माफी मांग और तब तक माफी मांग जब तक की वो तुझे माफ नहीं कर देती। वेसे मुझे नहीं लगता कि वह तुझसे ज्यादा दिन नाराज रह पाएगी। अब तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ। हम लड़कियाँ जिससे प्यार करती हैं ना बेटा, हमे उसके बस एक प्यार भरी नजर की चाहत होती है और हम सारा गुस्सा सारी नाराजगी भूल जाते हैं। तो एक बार उसे प्यार से गले लगा कर तो देख, वो अपना सारा गुस्सा भूल जाएगी। तू बस आज की रात का फायदा उठा और हो सके तो उसे लेकर कहीं बाहर चले जाना, किसी मंदिर में ताकि वह तुझ पर चप्पल ना बरसा सके।" दादी की इस बात पर रूद्र और दादी दोनों ही हंसने लगे। 


    शरण्या अपने कमरे में सोने की तैयारी में लगी थी। तभी लावण्या उसके कमरे में आई। उसने कुछ कहना चाहा लेकिन शरण्या के चेहरे की उदासी देख उससे कुछ कहते नहीं बना। पिछले 1 हफ्ते में शरण्या एक बार भी नहीं मुस्कुराई थी, ना ही अपने कमरे से बाहर निकली थी। लावण्या ने उससे बात करनी चाही। "शरण्या! कल क्रिसमस है, एक काम करते है ना, कल बाहर चलते हैं। पूरा दिल्ली घूमेंगे, शॉपिंग करेंगे, बहुत सारा एंजॉय करेंगे। तू चलेगी ना मेरे साथ? देख! वरना मैं कल बोर हो जाऊंगी।" शरण्या ने बिना लावण्या की ओर देखे कहा, "आप चले जाना दी, वैसे भी आपको कंपनी देने के लिए रेहान जीजू है तो मेरी क्या जरूरत!" शरण्या ने जीजू शब्द पर ज्यादा जोर दे कर कहा तो लावण्या बोली, "रेहान के साथ तो जाना है लेकिन कल रात में। यार उसके ऑफिस की कोई पार्टी है, उसी में वह चाहता है कि मैं भी उसके साथ जाऊं। एक काम करते हैं ना, दिन में हम दोनों चलते हैं रात को तो मैं रेहान के साथ चली जाऊंगी। वैसे भी कब से इस कमरे में बैठी है तु और कितने दिनों तक ऐसे अकेले बैठी रहेगी? कभी तो घर से निकलना होगा ना तुझे! चल ना! आखिर किसका इंतजार कर रही है तू?"

     शरण्या अपने बाल ठीक करते हुए बोली, "एक बकरे का इंतजार कर रही हूं। पहले उसको हलाल कर दु, उसके बाद पक्का इस घर से बाहर निकलूंगी। उससे पहले मैं नहीं जाने वाली कहीं!" शरण्या की बात सुन लावण्या हैरान रह गई। उसकी बात उसके सर के ऊपर से निकल गई। कुछ देर सोचने के बाद उसे कुछ समझ आया तो वह बोली, "मतलब तु यहां रूद्र का इंतजार कर रही है? तुझे लगता है वह तुझे यहां मनाने के लिए आएगा? 1 हफ्ते से वह खुद गायब है!"

      रूद्र का नाम सुनते ही शरण्या के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वह बोली, "वह आएगा दी! उसे मेरे हाथों मार खानी है, इसलिए वह जरूर आएगा। वो ज्यादा दिन तक मुझ से दूर नहीं रह सकता और जब तक मेरे हाथों मार ना खाएं, उसका खाना हजम नहीं होता, इसलिए वह आएगा और बहुत जल्द आएगा। एक बार अपना बदला ले लू उससे, एक बार उसे हलाल कर दु, उसके बाद मैं इस कोप भवन से बाहर जरूर निकलूँगी।" लावण्या ने जब उसके चेहरे की तरफ देखा तो वह हैरान रह गई। शरण्या एक अरसे बाद मुस्कुरा रही थी। "अरे तेरी! मैं तो भूल ही गई थी! तेरे चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए तो सिर्फ रूद्र का नाम ही काफी है। मुझे याद ही नहीं रहा वरना तो मैं कब का रेहान को बोलकर उसे यहा ले आई रहती। शीट यार! मैं पूछती हूं रेहान से कि तेरे चेहरे की मुस्कुराहट कहां है? मेरा मतलब रूद्र कहां है?" कहकर लावण्या वहां से चहकती हुई बाहर निकल गई। आज इतने दिनों बाद उसने शरण्या के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट देखी थी जिसे देख वह बहुत ज्यादा खुश थी। वहीं शरण्या को रूद्र का इंतज़ार था। 

    

    

    

     


क्रमश:

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बेहतरीन भाग था मैम!! 👌👌 दादी ने तो आज कमाल कर दिया, बिना रुद्र के कहे सब समझ गए और उसपर उसे उसके प्यार का अहसास भी करवा दिया!! दादी, तुसी ग्रेट हो! 😆✨ और लावण्या क्या मस्त चहक रही थी के शरण्या के चेहरे की मुस्कान यानी रुद्र...!! 🤭🤭बाकी बकरा तो हलाल होने खुद जाने ही वाला है... मजा आएगा! 😂😂 अगले भाग का इंतेज़ार रहेगा! 😊😊

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  2. Awesome lovely super beautiful jabardast behtareen lajabab part

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