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सुन मेरे हमसफर 257

257       निशी के सर पर इतना बड़ा बम फोड़कर शुभ घर से बाहर तो निकल गया लेकिन उसका दोस्त एक जीत की मुस्कान थी। उसने धीरे से खुद से कहा, "जहां तक ​​मुझे समझ में आया है मैंने किया है। सॉरी एश! बिना पूछे बिना तीर-कमान के प्रवेश की जानकारी के बिना मैंने बीवी कोफ के खिलाफ भरोसा दिया है। देखते हैं इसका नतीजा क्या होता है।"      रेनू जी अपने हाथ में दो चाय का कप लेकर निशि के कमरे में आई तो उन्हें काफी परेशानी हुई। उन्होंने चाय की मेज रखी और पूछा "निशी! क्या हुआ बेटा? किस बात से इतनी परेशानी हो?"     निशी सच में आई और अपने हाथ में पकड़ी गई पेन ड्राइव में उसने जल्दी से कंबल के अंदर छुपी जगह ले ली। रेनू जी को ये बात थोड़ी और अजीब लगी। उन्होंने पूछा, "ये नकली हाथ में क्या है? यह पेन ड्राइव है ना?"     निशी अपनी चिंता को छिपाते हुए बोली "हाँ मां वो, ये अव्यांश का है। कुछ बस ऐसे ही हाथ लग गया था। मैंने इसे रख द इंस्पेक्शन। आपने बताया, आप यहां कैसे?"       रेनू जी ने निशी को शांत से देखा और कहा "लेकिन मैं तो यही हूं, लेकिन साथ में हूं। वरना मैं भी सबके साथ

सुन मेरे हमसफर 256

256      निशि का आज का पूरा दिन अपने कमरे में ही गुजर गया। पैर में पट्टी बांधने का जितना फायदा ना हुआ उससे ज्यादा नुकसान हो गया। कहां तो आज उसको सबके बीच रहकर सबका हाथ बटाना था। शादी के रस्मों में शामिल होना था, डांस करना था और एंजॉय करना था। लेकिन सब धरा का धरा रह गया।     निशी के पैर में कोई चोट नहीं थी, और यह बात अव्यांश जानता था लेकिन इसके लिए उसने कोई सवाल नही किया। क्योंकि उसे ये अपना हक लगा ही नहीं। वह तो नाश्ता करने के तुरंत बाद प्रेरणा को लेकर वहां से निकल गया। डाइनिंग हॉल से कमरे तक शिवि ही उसे छोड़ने आई थी। अव्यांश ने तो एक बार भी उसके बारे में नहीं सोचा। ना एक भी कॉल किया।      बाकी सब लोग वेन्यू के लिए निकल चुके थे। घर में निशी के साथ उसकी मम्मी थी और शुभ अभी भी अपने कमरे में था। कुछ जरूरी काम निपटाने थे जिसमें वह लगा हुआ था। उसके बाद तैयार होकर वह निकलने को हुआ तो अचानक ही उसका ध्यान अपने कमरे की बालकनी से बाहर गया।      घर के बाहर वाले रोड के दूसरे साइड पर एक काले रंग की गाड़ी काफी देर से खड़ी थी। कुछ देर पहले भी शुभ ने वो गाड़ी देखी थी लेकिन किसी राह चलते का होगा, सोचकर

सुन मेरे हमसफर 255

255       अव्यांश के चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी बहुत बड़े मुसीबत में फंसा हो। हर तरफ से परेशान होने के बाद उसने अपने हाथ में पड़ा अपना कॉफी का मग सामने टेबल पर रखा और शुभ से कहा "चाचू! बहुत अच्छे से समझ रहा हूं आप लोग क्या करने की कोशिश कर रहे हो। लेकिन आप जो चाहते हो ना, वह होगा नहीं।"      अपने बालों में तेल लगाती हुई शिवि आंखें मूंद कर वापस जानकी की गोद में सो गई थी। अव्यांश की आवाज सुनकर उसने कहा "हम क्या चाहते हैं? कुछ भी तो नहीं! लेकिन हां! आज तेरा और निशि का तलाक जरूर करवा देंगे।"      तलाक का नाम सुनकर निशि के होश उड़ गए। उसने नजर उठाकर अव्यांश की तरफ देखा। अव्यांश के होठों पर एक बड़ी ही प्यारी सी स्माइल थी। उस मुस्कुराहट के पीछे क्या था यह निशि समझ नहीं पाई। अव्यांश ने भी पूरे कॉन्फिडेंस से जवाब दिया "आज तो नहीं होगा, कल हो सकता है।"     सारांश ने गुस्से में अव्यांश को घूर कर देखा और कहा "अंशु! कैसी बात कर रहे हो तुम?" सारांश जानते थे अव्यांश और निशि के बीच मामला अभी सुलझा नहीं है लेकिन कितना उलझा है ये बात भी नहीं जानते थ

सुन मेरे हमसफर 254

254     काया का दम घुटने लगा। उसने जोर लगाकर सुहानी को अपने से अलग किया और तकिया अपने मुंह पर से हटाकर कहा "क्या पागलपन है क्यों मेरा मर्डर करना चाहती है आज शादी है आज तो छोड़ दे कल करना।"      सुहानी ने हंसते हुए कहा "आज ही कर लेने दे। शादी के भाग दौड़ में किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तू मर गई। कल अगर मरेगी तो तेरा आइटम मुझे जान से मार डालेगा।"     काया जल्दी से उठ कर बैठ गई और कहा "इतनी सुबह यहां क्या कर रही है?"      सुहानी ने जाकर उसके बिस्तर पर फैलते हुए कहा "यह तो मुझे पूछना चाहिए था कि तू इतनी सुबह क्या कर रही है? यह भी कोई टाइम है फोन पर लगने का! वहां मैं कुहू दी के काम में अकेले मर रही हूं और तू है कि यहां अपने बिस्तर पर अटखेलिया कर रही है। पहले शादी तो हो जाने दे उसके बाद करती रहना ये सब।"      काया सुहानी के इस बेबाकी पर हैरान रह गई ।उसने वही वाला तकिया उठाया और सुहानी को मारते हुए कहा "बेशर्म! रुक जा, एक बार तेरी शादी तय होने दे फिर मैं बताऊंगी तुझे। बहुत उछल रही है तू।"      इस सब के बीच में काया ये भूल ही गई थी कि उसका फोन

सुन मेरे हमसफर 253

  253      अव्यांश अभिनव ने अपनी ऊपरी चतुराई को महसूस करते हुए महसूस किया कि इस समय सभी के दिमाग में क्या चल रहा है, यह भी वह जानता था। उसने धीरे से और बड़ी मासूमियत से कहा, "मैं नहीं गया था। मुझे पता नहीं चला। मेरा विश्वास करिए।"      शिवी बंदे ही बोली "कितना भोला है रे तू!"    प्रेरणा की हंसी छूट गई तो अव्यांश ने उसे तोड़ते हुए देखा और पलट कर शिवी से बोला "क्या तुम और काम नहीं कर रहे हो आज जो मेरा कोई रहस्य सबके सामने निकल रहा हो?"      शिवी ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, "आज रुकावट मेरे पास कोई काम नहीं है। क्योंकि आज कुहू दी की शादी है इसलिए हम सारी लड़कियों को जगह देने के लिए कहा है। दादी का भी जन्मदिन है और छोटी दादी का भी। इसलिए छुट्टी है अपना डांस खत्म कर लिया और यहां से हटा दिया, अगर तुमने मारा नहीं है तो।    श्यामा ने शिवी को दहाड़ते हुए कहा, "बस कर तू भी। उसके पीछे क्या पड़ा है! वह रात भर अस्पताल में रहती है, अभी घर लौटी है, चेन से कुछ खा ले दे। उसके अलावा कोई काम नहीं करेगा तो यहां से सीधे शादी के वेन्यू में उसे दिखाया जाता है।''  

सुन मेरे हमसफर 252

 252      इतनी बड़ी बात अव्यांश ने बड़ी आसानी से घर वालों से छुपा लिया था। इस बारे में ना कभी शिवि ने कोई जिक्र किया था ना ही प्रेरणा ने। यहां तक कि सुहानी भी इस बात को छुपा गई थी जो अव्यांश को घर वालों से डांट पड़वाने का एक मौका नहीं छोड़ती थी। सबकी नजर अव्यांश की तरफ ही उठी।      सारांश ने नाराजगी से पूछा "क्या है यह सब? हमें इस बारे में किसी ने क्यों नहीं बताया? अंशु! कब की बात है यह?"      जो कुछ भी हुआ होगा और जो कुछ भी हो सकता था, वह सोचकर ही सारांश के रोंगटे खड़े हो गए थे। अपने बेटे की शैतानीयों में उन्होंने भले ही कितना भी साथ दिया हो लेकिन एक पिता होने के नाते वह किस हद तक डर गए थे यह समझ जा सकता था। लेकिन अव्यांश भी कुछ कम नहीं था। इस सवाल का जवाब देने से बचने के लिए उसने पहले ही अपने मुंह में ढोकले का एक बड़ा सा बाइट रख लिया था।      अब जाहिर सी बात है, ढोकला अंदर जाने में थोड़ा टाइम तो लगेगा ही। इतनी देर में उसे कुछ सोचने का भी मौका मिल जाता। लेकिन यहीं पर हमारे अंशु बाबा ने गलती कर दी। अव्यांश ने सबको तो समझा दिया था लेकिन शायद वह यह भूल गए थे की प्रेरणा जब एक्सा

सुन मेरे हमसफर 251

  251     किचन के दरवाजे पर और कोई नहीं बल्कि प्रेरणा खड़ी थी। निशी मन ही मन अपना सर पकड़ कर बोली 'यह यहां क्या कर रही है? और यह क्या इतनी चिपकु है जो यहां भी चली आई? घर छोड़ो यह तो किचन में ऐसे घुस गई है जैसे उसी का हो। घर वाले कोई कुछ क्यों नहीं कहते?'       अव्यांश ने अजीब सी शक्ल बनाकर कहा "अब ये मत कहना कि तू नाश्ता बना रही है।"      प्रेरणा उसकी लाइन सही करते हुए बोली "तूने ठीक से सुना नहीं, बना नहीं रही हूं बना चुकी हूं।"      अव्यांश ने अपना सर पकड़ लिया और नौटंकी करते हुए कहा "अभी यह मत कहना कि तूने बम गोले बनाए हैं।"      प्रेरणा भी सरप्राइज होने का नाटक करते हुए बोली "तुझे कैसे पता है? एक-दो तेरे सर पर फोड़ भी दूंगी बचके रहना।"      पूरा माहौल हंसी की ठहाकों से गूंज उठा। लेकिन निशि को अव्यांश और प्रेरणा के बीच की यह जुगलबंदी पसंद नहीं आई। प्रेरणा किचन के अंदर गई और वहां से नाश्ता एक-एक कर टेबल पर लगाने लगी जिसमे अवनी ने भी उसका साथ दिया। तब अव्यांश ने जानकी से पूछा "दादी! हमारी रज्जो ब्रो नजर नहीं आ रही। वो नहीं आई है क्या

सुन मेरे हमसफर 250

250       शादी का घर था। ऐसे में सुबह से ही घर में चहल पहल थी। अव्यांश निशि को लेकर घर पहुंचा। अस्पताल की तरह ही यहां भी निशी ने बड़ी मासूमियत से अपनी दोनों बांहे अव्यांश की तरफ फैला दी। अव्यांश को नहीं करना चाहता था उसे वही करना पड़ रहा था। इस बार वह खुद को कहने से रोक नहीं पाया "सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम्हारे पैर में चोट लगी है जो कि डॉक्टर के किसी भी रिपोर्ट में कहीं नहीं लिखा है, फिर भी मैं तुम्हें यहां से लेकर चल रहा हूं। इसका कुछ गलत मतलब मत निकालना। व्हील चेयर के लिए तुमने ही मना किया था।"     निशी को बुरा लगा। उसकी कहीं बात अव्यांश को किस हद तक चुभ गई थी, यह उसे एहसास हो रहा था। अव्यांश ने निशी को गोद में उठाया और दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया क्योंकि सामने रेणु जी खड़ी थी। दरवाजे पर ही रेनू जी भागते हुए आई और अपनी बेटी को गले लगा लिया। "तू ठीक है? तुझे ज्यादा चोट तो नहीं आई?"   अव्यांश उन्हें तसल्ली देते हुए बोला, "नही मां! ठीक है ये, बिल्कुल ठीक। बस थोड़ा सा आराम करना है और टाइम पर दवाई। एक से दो दिन की बात है।"     रेणु जी ने निशी को डांटते हुए कहा

सुन मेरे हमसफर 249

249       निशि हॉस्पिटल में है, यह बात कब तक छुपती! अव्यांश ने पहले ही इस बारे में सारांश को बता दिया था और सारांश ने पूरे घर वालों को। मिश्रा जी और रेनू जी तो घबरा गए थे।। लेकिन फिर सारांश ने ही उन्हें समझाया "वह दोनों ठीक है अंशु है उसके पास चिंता करने की कोई बात नहीं है। हल्की सी सर में चोट आई है, और कुछ नहीं। अंशु ने रिपोर्ट की एक कॉपी भी भेजी है मुझे। निशी आज रात वहीं पर आराम करेगी। कल सुबह तक दोनों आ जाएंगे।" तब जाकर सब ने रात की सांस ली।      लेकिन सिया को चैन कहां। जब दो बच्चे अस्पताल में हो ऐसे में दादी को कहां चैन मिलने वाला था। सबके सोने जाने के बावजूद वो रात भर जागी रही। अपने पति की तस्वीर हाथ में लेकर वापस अपने आप से ही बातें करने लगी। "वक्त कितनी जल्दी गुजर गया ना शरद! तुम्हें गए बरसों हो गए, मुझे पता ही नहीं चला। क्या करूं, तुम्हारे बच्चे और तुम्हारे बच्चों के बच्चे, इन सब में मुझे तुम्हारे बारे में सोचने का मौका ही नहीं दिया। काश इस वक्त तुम यहां होते। ये परिवार पूरा हो जाता। चाहे कितनी ही खुशियां क्यों ना हो, वापस जब इस कमरे में आती हूं तो सब कुछ अधूरा स

सुन मेरे हमसफर 248

248     ऋषभ अपनी मॉम से बचकर भागता हुआ जाकर सीधे सुहानी से टकराया। सुहानी को जोर की चोट लगी। वह जाकर बेचारी पीछे दीवार से टकराई और उसके मुंह से हल्की चीख निकल गई। "अब कौन है यार? देख कर नहीं चल सकते?"      सुहानी की चीख सुनकर ऋषभ उससे माफी मांगते हुए बोला "सॉरी यार, सॉरी!"      सुहानी ने सामने देखा तो कंफ्यूज हो गई। उसने ऋषभ को उंगली दिखाकर पूछा "तुम...........?"      ऋषभ मुस्कुरा कर बोला "मैं कार्तिक नहीं हूं, इतना जाना तुम्हारे लिए काफी है।" सुहानी खामोश हो गई। ऋषभ आगे बोला "आज पता नहीं क्या हो रहा है। सुबह से मैं हर किसी से टकरा रहा हूं। अभी कुछ देर पहले भी। उस मजनू से टकराया, आई मीन अपने भाई से और अभी तुमसे। वैसे तुम्हें लगी तो नहीं?"      सुहानी अपनी कोहनी में लगे चोट को छुपाते हुए बोली "नहीं मैं ठीक हूं।"      ऋषभ मुस्कुरा कर बोला "चलो अच्छा है तुम ठीक हो। वैसे तुम्हारी बहन कहां है?"       सुहानी ने दूसरी तरफ इशारा किया लेकिन कहा कुछ नहीं। ऋषभ वहां से जाने को हुआ लेकिन फिर उल्टे पैर वापस आया और सुहानी के कंधे प