सुन मेरे हमसफर 250

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      शादी का घर था। ऐसे में सुबह से ही घर में चहल पहल थी। अव्यांश निशि को लेकर घर पहुंचा। अस्पताल की तरह ही यहां भी निशी ने बड़ी मासूमियत से अपनी दोनों बांहे अव्यांश की तरफ फैला दी। अव्यांश को नहीं करना चाहता था उसे वही करना पड़ रहा था। इस बार वह खुद को कहने से रोक नहीं पाया "सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम्हारे पैर में चोट लगी है जो कि डॉक्टर के किसी भी रिपोर्ट में कहीं नहीं लिखा है, फिर भी मैं तुम्हें यहां से लेकर चल रहा हूं। इसका कुछ गलत मतलब मत निकालना। व्हील चेयर के लिए तुमने ही मना किया था।"


    निशी को बुरा लगा। उसकी कहीं बात अव्यांश को किस हद तक चुभ गई थी, यह उसे एहसास हो रहा था। अव्यांश ने निशी को गोद में उठाया और दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया क्योंकि सामने रेणु जी खड़ी थी। दरवाजे पर ही रेनू जी भागते हुए आई और अपनी बेटी को गले लगा लिया। "तू ठीक है? तुझे ज्यादा चोट तो नहीं आई?"


  अव्यांश उन्हें तसल्ली देते हुए बोला, "नही मां! ठीक है ये, बिल्कुल ठीक। बस थोड़ा सा आराम करना है और टाइम पर दवाई। एक से दो दिन की बात है।"


    रेणु जी ने निशी को डांटते हुए कहा "कितनी बार मना किया है, गाड़ी इतनी तेज मत चलाया कर। इसलिए तेरे पापा ने तुझे कभी स्कूटी भी खरीद कर नही दी। देखा है उन्होंने तुझे। सिर्फ एक तेरी वजह से हमने कभी कोई गाड़ी नहीं ली और देख, यहां आकर तू पूरी बिगड़ गई है।" 


    अव्यांश मुस्कुरा दिया लेकिन निशि ने हैरानी से अव्यांश की तरफ देखा और मन में बोली 'मैने इससे कहा था किसी को कुछ मत बताना लेकिन इसके पेट में कोई बात नहीं पचती।' 


    निशी को डांट पड़ती देख सिया ने कहा, "वो बेचारी हॉस्पिटल से अभी आई है और आप उसे डांटने लगी। थोड़ा आराम तो कर लेने दो। उससे भी पहले थोड़ा नजर तो उतार ले बच्चों की। और इस उम्र में बच्चे बिगड़ेंगे नही तो फिर जब खुद के बच्चे हो जायेंगे तो बिगड़ेंगे?"


   श्यामा अपने हाथ में एक थाली लेकर आई और निशी की नजर उतरने लगी। उसके बाद रेनू जी उसे संभालते हुए अंदर लेकर आई और कहा "वह तो अच्छा हुआ जो अव्यांश तुम्हारे साथ था। हमें तो इसी बात की तसल्ली थी। चल अब तू भी थोड़ा सा आराम कर ले, उसके बाद फ्रेश होकर तैयार हो जाना, शादी की बाकी रस्मो में जाना है।"


     अव्यांश रेनू जी को पीछे से रोकते हुए बोला "मां! निशि किसी रस्म में शामिल नहीं होगी, वह यही रहेगी।"


    रेनू जी ने सवालिया नजरों से अव्यांश को दिखा तो अव्यांश ने अपनी बात समझाते हुए कहा "मेरा मतलब ऐसी कंडीशन में वह कहां कुछ कर पाएगी! देखो ना, पैर में भी चोट लगी है। आज दिन भर आराम करेगी, दवाई वगैरा लेगी तो शाम तक ठीक हो जाएगी। मैं इसे सीधे शादी में ही लेकर आ जाऊंगा।"


     अवनी ने फिक्र जताते हुए कहा "लेकिन अंशु! यहां रहकर वह अकेले बोर नहीं हो जाएगी? और फिर इसकी देखभाल के लिए भी तो किसी को होना चाहिए। इससे बेहतर है कि निशि हमारे साथ चले। हम में से कोई ना कोई इसके साथ रहेगा और वैसे भी, ननद की शादी में भाभी की भी कुछ रस्में होती है। वह भी तो इसे देखना होगा।"


     अव्यांश छूटते ही बोला "वह ऐसा कोई रस्म नहीं करेगी।" अव्यांश की आवाज थोड़ी ऊंची थी जिससे सभी चौक गए। सब की नजरे अपने पर देख अव्यांश अपनी बात समझाते हुए बोला "मेरे कहने का मतलब, यह कोई अकेली बहु तो है नहीं. भाभी की जो भी रस्में होती है वह तन्वी कर लेगी।"


     सारांश ने अव्यांश को डांटते हुए कहा "अंशु! तन्वी का नाम अदब से ले। तेरी होने वाली भाभी है वह।"


     अव्यांश ने भी मुस्कुरा कर कहा "मेरी होने वाली भाभी है। फिलहाल वह मेरी सेक्रेटरी है।"


    समर्थ उसकी टांग खींचते हुए बोला "तू अभी घर में है। एक काम कर, तू ऑफिस जा।"


     अव्यांश मासूम सी शक्ल बनाकर बोला "भाई आप भी ना! कभी तो मेरी साइड लिया करो।"


     पीछे से आवाज आई "कौन परेशान कर रहा है मेरे बच्चे को?"


     अव्यांश चौंकते हुए पलट कर देखा तो सामने अपने शुभ चाचू को देखकर उसकी आंखें हैरानी से फैल गई। वह चिल्लाया "चाचू आप.......!?"


    अव्यांश किसी तूफान की तरह भागते हुए वह जाकर शुभ के गले लग गया। इतना ज्यादा प्यार शुभ से संभाला नहीं गया और वह चिल्लाया, "हाय मार डाला यार! इतना प्यार कौन जताता है!"


    अव्यांश हंसते हुए बोला , "इतने सालों के बाद मिले हो आप। तो उतना प्यार भी तो बर्दास्त करना ही पड़ेगा।"


    सारांश ने हंसते हुए शुभ को ताना दिया, "तेरा चाचू बुड्ढा हो चुका है अब। तो जरा संभाल के। कहीं पसलियां न चटक जाए।"


    अव्यांश शुभ की साइड लेकर बोला, "अरे मेरे चाचू अभी भी यंग है। आप अपनी देखो। "


    शुभ ने अव्यांश को अपनी नाराजगी दिखाकर कहा, "तू तो बात ही मत कर मेरे से। बड़ा आया चाचू को हवा में उड़ाने वाला। बिना बताए शादी कर ली। उस वक्त तो मेरी याद नहीं आई। अब प्यार आ रहा है जब सामने हूं। हट परे! मुझे मेरी बहू से मिलने दे।"


   शुभ और अपने बेटे के बीच का रिश्ता देखकर अवनी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। इसलिए वह तुरंत ही वहां से हट गई थी। इधर निशि भी शुभ को देखकर पहचानने की कोशिश कर रही थी और निशि की मां उसे उठकर पैर छूने का इशारा कर रही थी।


     निशि शुभ के पैर छूने के लिए उठने को हुई तो सारांश ने इस बात को नोटिस किया और कहा "इतना भी कुछ खास इंट्रोडक्शन नहीं है इसका, इसलिए मेहनत करने की जरूरत नहीं है। भाई है मेरा और तुम्हारे चाचू लगेंगे, बुड्ढे वाले।"


     इस बात पर सिद्धार्थ ने शुभ की साइड ली और सारांश से कहा "प्रॉब्लम क्या है तेरी? मैं तुझसे बड़ा हूं तो तु मुझे बुड्ढा कहता है। यह तुझसे छोटा है फिर भी तू उसे बुड्ढा कह रहा है। तू अपनी क्यों नहीं देखता?"


     लक्ष्य बस मुस्कुरा दिया और निशि के सर पर हाथ फेर कर कहा "तुम दोनों की शादी की तस्वीर देखी मैंने। दोनों एक साथ बहुत अच्छे लगते हो। काश मैं होता वहां पर। मुझे नहीं पता था कि यह भी बिल्कुल अपने बाप की तरह होगा। अचानक से शादी! ऐसी कौन करता है यार, तुम दोनों के अलावा!"


     किचन के अंदर से जानकी मासी निकलकर आई और टेबल पर सब की चाय लगाकर बोली "बातें बाद में कर लेना चलो पहले नाश्ता कर लो। अभी है हम लोग यहां पर तो बाकी बातें बाद में भी होती रहेगी। नाश्ता करके हम सबको निकलना भी तो है। तुम में से अगर किसी का उपवास हो तो फिर पहले ही बता दो मैं उसकी प्लेट नहीं लगाऊंगी।"


  अव्यांश जल्दी से गया और जानकी मासी के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेते हुए बोला "क्या दादी आप भी! आते ही किचन में घुस गई। आपकी आदत नहीं जाएगी। यह काम आप हम पर छोड़ दीजिए। हम किस दिन काम आएंगे!"


     शुभ भी अव्यांश को चढ़ाते हुए कहा "हां हां मां! आपका पोता जवान हो गया है। ऑफिस क्या, पूरा किचन संभाल सकता है। अब आपको फिक्र करने की क्या जरूरत है। आए हो तो थोड़ा सा आराम कर लो। आज पोते के हाथ का बना खा लो। क्यों अंशु, बनाएगा ना?"


      अव्यांश के पीछे से एक और आवाज आई "बिल्कुल नहीं। नाश्ता तैयार है।"


    उस आवाज के मालकिन की तरफ जब निशि की नजर गई तो उसकी आंखें हैरानी से बड़ी हो गई।


     अब कौन आ गया?


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