सुन मेरे हमसफर 254

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    काया का दम घुटने लगा। उसने जोर लगाकर सुहानी को अपने से अलग किया और तकिया अपने मुंह पर से हटाकर कहा "क्या पागलपन है क्यों मेरा मर्डर करना चाहती है आज शादी है आज तो छोड़ दे कल करना।"


     सुहानी ने हंसते हुए कहा "आज ही कर लेने दे। शादी के भाग दौड़ में किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तू मर गई। कल अगर मरेगी तो तेरा आइटम मुझे जान से मार डालेगा।"


    काया जल्दी से उठ कर बैठ गई और कहा "इतनी सुबह यहां क्या कर रही है?"


     सुहानी ने जाकर उसके बिस्तर पर फैलते हुए कहा "यह तो मुझे पूछना चाहिए था कि तू इतनी सुबह क्या कर रही है? यह भी कोई टाइम है फोन पर लगने का! वहां मैं कुहू दी के काम में अकेले मर रही हूं और तू है कि यहां अपने बिस्तर पर अटखेलिया कर रही है। पहले शादी तो हो जाने दे उसके बाद करती रहना ये सब।"


     काया सुहानी के इस बेबाकी पर हैरान रह गई ।उसने वही वाला तकिया उठाया और सुहानी को मारते हुए कहा "बेशर्म! रुक जा, एक बार तेरी शादी तय होने दे फिर मैं बताऊंगी तुझे। बहुत उछल रही है तू।"


     इस सब के बीच में काया ये भूल ही गई थी कि उसका फोन अभी भी ऑन था। ऋषभ ने जब दोनों बहनों की लड़ाई सुनी तो उसने काया को आवाज़ लगाई "काया......! काया.......!! हेलो!!!"


     ऋषभ की आवाज सुनकर काया ने सुहानी को मारना बंद किया और तकिया साइड में रखकर जल्दी से फोन उठा लिया। "हेलो! सॉरी। यह मेरी बहन है ना, पागल है पूरी की पूरी।"


      ऋषभ ने बिना किसी लाग लपेट के कहा "उसे फोन दो।"


     काया को लगा कहीं उसने कुछ गलत तो नहीं सुन लिया। वैसे भी सुहानी ऋषभ को जानती नहीं थी और ना ही ऋषभ सुहानी को। उसने कहा "अरे नहीं। हमारा तो यह रोज का है। उसे कुछ काम था इसलिए मुझे बुलाने आई थी। मैं फोन रखती हूं।"


     ऋषभ ने एक बार फिर कहा "मैंने कहा सुहानी को फोन दो कायरा।"


     काया को समझ नहीं आया। उसे लगा, ऋषभ गुस्से में सुहानी को कुछ कहना दे। उसने पूछा "तुम्हें सोनू से बात करनी है? क्या बात करनी है? मुझे बता दो, मैं कह दूंगी।"


     इस बार ऋषभ ने अपना सर दीवार पर मारा और कहा "हे भगवान! किस बेवकूफ लड़की से प्यार हो गया मुझे। मैं कह रहा हूं मुझे सुहानी से बात करनी है तो उसे फोन दो!"


      काया ने सवालिया नजरों से सुहानी की तरफ देखा और फोन उसकी तरफ बढ़ा कर कहा "तुझसे बात करना चाहता है।"


     सुहानी को भी यह बात थोड़ी अजीब लगी लेकिन कल जो उन दोनों के बीच बात हुई थी, आई मीन ऋषभ ने जिस तरह उसके साथ बात की थी, उससे लगा, हो ना हो ऋषभ की बात कार्तिक सिंघानिया को लेकर ही है। सुहानी ने जल्दी से फोन लिया और कान से लगा कर कहा "हेलो मैं सुहानी बोल रही हूं।"


    ऋषभ ने बड़े ही शांत अंदाज में कहा "हां मैं जानता हूं और मैं तुम्हारी ही हेल्प करने के लिए तुमसे कह रहा हूं।"


      सुहानी को समझ नहीं आया। उसने पूछा "मतलब? इतनी सुबह?"


    दूसरी तरफ से ऋषभ ने कुछ समझाया जिसे सुनकर सुहानी के होठों के कोने धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठने लगे। काया बस सुहानी को देखे जा रही थी और समझने की कोशिश कर रही थी कि ऐसा कौन सा सीक्रेट है इन दोनों का, और यह हुआ कब? कल तक तो यह ऋषभ को जानती भी नहीं थी।


      सुहानी ने "ठीक है" कहा और फोन काया की तरफ उछाल कर बिजली की तेजी से कमरे से बाहर निकल गई। काया अपने दोनों हाथ में अपना फोन थामें सुहानी को हैरानी से जाते हुए देखते रह गई।





    अव्यांश चुपचाप सबके साथ नाश्ता करने में लगा हुआ था। खाते हुए उसकी नजर जब अपनी मां पर गई तो वह थोड़ा सा घबरा गया। अवनी जिस तरह अव्यांश को देख रही थी, उनकी आंखों में एक सवाल साफ साफ नजर आ रहा था 'क्या तू उस पार्टी में गया था?' 


    अव्यांश ने भी आंखों ही आंखों में यह समझाया कि वह नहीं गया था। कम से कम इतना तो अपने बेटे पर भरोसा रखें।


     और उसके बगल में बैठी निशी की नजरे बार-बार अव्यांश की तरफ उठ जा रही थी, कुछ ऐसे की अव्यांश को पता ना चले और उसे देखकर निशी बार-बार अव्यांश का नेचर डिसाइड करने में लगी हुई थी। जो कुछ उसे सुनने को मिला और जो कुछ भी उसने अब तक देखा था, दोनों में से सच क्या है? एक बात तो तय थी कि अब्रॉड में रहते टाइम अव्यांश की कोई गर्लफ्रेंड ना बनी हो, ऐसा तो हो नहीं सकता। यहां भी कुछ कम नहीं थी। लेकिन किसी को इंप्रेस करने वाली बात! यह निशि को थोड़ी खटक रही थी। लेकिन वह पूछे कैसे? इसलिए सबके सामने उसने कुछ भी कहना सही नहीं समझा। क्या पता अव्यांश उल्टा जवाब दे दे और उसके मां पापा को यह बात बुरी लग जाए। वैसे भी आजकल निशी के मम्मी पापा उसकी कम और अव्यांश की ज्यादा सुनते थे, और यही सोच कर निशि का मुंह कड़वा हो गया।


     निशि के चेहरे के भाव देखकर अगर कोई एंजॉय कर रहा था तो वह था शुभ। शुभ ने नाश्ता खाते हुए कहा "वैसे निशी! इस जंतु ने अपने बारे में क्या-क्या बताया है तुम्हें?"


     निशी ने एक बीते मुंह में डाला था जिससे वह चबाना भूल गई। अव्यांश भी अपने चाचू के सवाल के पीछे छुपे खुराफात को समझने की कोशिश करने लगा। निशी ने सोचा, अव्यांश ने तो ऐसे कभी कुछ बताया ही नहीं था। उन दोनों के बीच बातें तो होती थी लेकिन कभी पास्ट को लेकर ना तो उसने कुछ बताया ना कुछ पूछा।


     निशी को खामोश देख शुभ ने ही बात आगे छेड़ी "क्या उसने तुम्हें बताया था कि यह वह रंगो वाली फिल्म देखने गया था? वह कौन सा था, कोई ग्रे शेड वाली फिल्म!"


    अव्यांश ने तुरंत जवाब दिया, "लेकिन मुझे ब्लू पसंद है।" कहते हुए उसने अपनी कॉफी उठा लिया।


    इस बात पर रेनू जी ने सवाल किया "यह कौन सी फिल्म है?"


    मिश्रा जी ने भी अपनी अनभिज्ञता जाहिर की और कहा "होगी कोई अंग्रेजी फिल्म। वैसे भी आजकल बच्चे अंग्रेजी फिल्में ज्यादा देखते हैं।"


    निशी जबरदस्ती ने गले में अटका निवाला अंदर निगला और धीरे से कहा "50 शेड्स ऑफ़ ग्रे!"


    शुभ ने ऐसे रिएक्ट किया जैसे निशी ने बिल्कुल सही नाम लिया हो। अव्यांश ने नाराजगी से शुभ की तरफ देखा और कहा, "चाचू! अब आप शुरू मत हो जाओ।"


      इस बात पर समर्थ ने पूछा "तू सच में फिल्म देखने गया था? अकेले?"


      अव्यांश ने नजरे चुरा कर कहा "मैं नहीं गया था कोई फिल्म देखने।"


    शुभ ने उसकी बात को इग्नोर कर कहा "हां गया था ना! वह दो रसियन के साथ।" अव्यांश के मुंह में जो कॉफी थी वो फव्वारे की तरह बाहर निकाला। गनीमत थी कि किसी पर गिरी नही। 


    सबके सब हैरानी से अव्यांश देख रहे थे। सारांश ने कुछ कहा नहीं। उन्हें समझ में नहीं आया कि वह क्या कहे। बस इशारे से अपनी तीन उंगलियां बाहर निकाल ली जिसे देख अव्यांश ने वही डाइनिंग टेबल पर अपना सर पटक कर कहा "दो रसियन लड़के थे, लड़कियां नहीं थी!"


     शुभ ने अव्यांश की यह बात पकड़ी और कहा "देखा कितना झूठ बोल रहा था ये! नहीं गया था फिल्म देखने?"


     निशी फोर्क लेकर प्लेट पर मार रही थी। उसका दिल किया वो फोर्क अभी अव्यांश के गर्दन में मार दे।



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