सुन मेरे हमसफर 253

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    अव्यांश अभिनव ने अपनी ऊपरी चतुराई को महसूस करते हुए महसूस किया कि इस समय सभी के दिमाग में क्या चल रहा है, यह भी वह जानता था। उसने धीरे से और बड़ी मासूमियत से कहा, "मैं नहीं गया था। मुझे पता नहीं चला। मेरा विश्वास करिए।"


     शिवी बंदे ही बोली "कितना भोला है रे तू!"


   प्रेरणा की हंसी छूट गई तो अव्यांश ने उसे तोड़ते हुए देखा और पलट कर शिवी से बोला "क्या तुम और काम नहीं कर रहे हो आज जो मेरा कोई रहस्य सबके सामने निकल रहा हो?"


     शिवी ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, "आज रुकावट मेरे पास कोई काम नहीं है। क्योंकि आज कुहू दी की शादी है इसलिए हम सारी लड़कियों को जगह देने के लिए कहा है। दादी का भी जन्मदिन है और छोटी दादी का भी। इसलिए छुट्टी है अपना डांस खत्म कर लिया और यहां से हटा दिया, अगर तुमने मारा नहीं है तो।


   श्यामा ने शिवी को दहाड़ते हुए कहा, "बस कर तू भी। उसके पीछे क्या पड़ा है! वह रात भर अस्पताल में रहती है, अभी घर लौटी है, चेन से कुछ खा ले दे। उसके अलावा कोई काम नहीं करेगा तो यहां से सीधे शादी के वेन्यू में उसे दिखाया जाता है।''


     अव्यांश ने बड़ी मासूमियत से अपनी बड़ी मां की तरफ देखा और कहा "थैंक यू बड़ी मां! एक आप ही तो हैं जो मुझे समझती हैं। वरना आप दोनों मिलकर दो ऐसी खुराफात बहनें दी हैं मुझे कि मेरा रोने का दिल करता है। इसलिए "हाँ, मुझे एक बहन चाहिए जो बहुत दोस्त हो। अब तुम दो या दो माँ को छोड़ दो। लेकिन मुझे चाहिए।"


    श्यामा ने अपने सर पर हाथ मारा और शिवी से कहा, "शिवि! तुम्हारे करीबी दोस्त भी राज़दार हैं, वह सारे आज ही खोल कर रख दे। ये अपनी भावनाओं से बाज नहीं आ सकते।"


     अव्यांश डरकर ने जल्दी से बोला "नहीं नहीं! सॉरी गलती हो गई माफ कर दो।" अव्यांश के कथन में जो भाव था, उसे सुनकर सभी को प्रसन्नता हुई।


     सिया ने तेल की कटोरी जानकी की तरफ से कहा तो जानकी शिवी के बालों में मालिश करने लगी। श्यामा ने कहा, "आज मौका मिला है कि इस लड़की को कभी-कभी बालों में तेल लगाने के लिए नजर ही नहीं आती है। मुझे तो यह गाना अभी भी हैरान कर रहा है कि यह अब तक घर पर क्या कर रही है। आज आप किसी हॉस्पिटल में हैं।" काम नहीं है क्या?"


     शिवी ने अपनी मां की तरफ से नजरें मिलाते हुए कहा, ''सबको पता है कि आज मेरी बहन की शादी है इसलिए मेरे बिना मेरी छुट्टी मिल गई।''


     समर्थ ने मुस्कुराहट कर कहा, "हां! अगर अस्पताल नहीं है तो मॉम दी ग्रेट पूरे स्टाफ की क्लास लगाती है, खासकर संग्रहालय के।"


    शिवी हंसते हुए बोलीं, "यह तो है। बिल्कुल वह बात पार्थ की जैसी है। वह भी मां को देखकर पता नहीं क्यों इतनी डरपोक है।"


    सिद्धार्थ ने चुटकी बजाते हुए कहा, "वह बच्चा तो बच्चा है। मां को पहली बार देखकर मुझे डर लग रहा था।"


     श्यामा ने डायलॉग से पूछा "क्यों? मैं इतनी डरावनी चीज़ हूं?"


     सिद्धार्थ ने बड़े प्यार से कहा, "अरे श्रीमती जी! आपकी इन गर्लफ्रेंड से कोई बच्चा भी नहीं डरता। लेकिन जो कमरा आपने दिखाया था, वह तो हम चाहते हैं कि आप भी भूल न सकें। मतलब इतना बकवास! सीरियसली!! मुझे तो इतना भाई।" माँ के सामने भी कभी नहीं हुई थी पहली नज़र में तुम्हारी नज़र। उस वक़्त ऐसा लगा था कि यार लड़की हो तो ऐसी हो।"


    इसी पर सारांश ने भी आगे कहा, "हाँ! तब तो अगली सप्ताह ही आपको प्रस्ताव कर दिया था।"


    शुभ से नहीं देखा गया, उसने कहा, "पहली बार ऐसा क्या हुआ था? मैंने तो कभी अन्वेषण की कोशिश ही नहीं की।"


     सिद्धार्थ को वह दिन याद आ गया। श्यामा दास बैठ गयीं। जो भी हुआ, आज भी उन्हें अजीब लग रहा था। सिद्धार्थ ने उस दिन को याद करते हुए सारी बातें बताईं। शुभ ने उन सब सिनेरियो को इमेजिन करते हुए कहा, "मतलब शेर को सवा शेर मिला था!"


     "शेर नहीं चाचू शेरनी!" अव्यांश के मुँह से अचानक ही निकल गया। श्यामा ने अव्यांश को घूर कर देखा तो अव्यांश ने अपने हाथ से अपना मुंह बंद कर लिया। उसे फिर से अपनी इज्जत नहीं उतरवानी थी।




*****




     सुहानी कुहू के साथ थी और काया वहाँ से खो गई थी। सुहानी कुहू के कपड़े मिलते-जुलते परेशान हो गए थे। सारा सामान कुहू के लुक पर प्रदर्शित हुआ था। उन्हें देखते हुए सुहानी बोली "आप ये सब पहनोगे?"


     अपने शत्रु में नेल रसायन शास्त्र हुए कुहू ने कहा, "हां! और इसके ऊपर से भी चुनूंगा तो। क्यों, स्मारक कुछ कम लग रहा है?"


     सुहानी ने अपना सर पकड़ कर कहा, "शादी के लिए इतना तामझाम जरूरी है क्या? मतलब, इतना तो आपका वजन नहीं होगा।"


     कुहू को हँसी आ गई। उन्होंने कहा, "शादी एक बार होती है मेरी जान! इतना तामझाम तब होगा तो इंसानियत शादी के बारे में सोच भी नहीं सकते।"


    "ये बात तो सही है आपकी।" सुहानी ने भी कुहू की एक बात जोड़ी और हंसने बात लगाई। 


    सुहानी ने कुहू के साथ इकट्ठा होकर पूछा, "यह पागल लड़की कहां है? मैं कब से अकेली रह रही हूं और यह गायब है।"


     कुहू खुद भी फोन में लगी थी। उसने दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहा, "बाहर रहोगी या अपने कमरे में फ़ोन करो।"


      सुहानी को अजीब लगा। उन्होंने पूछा, ''इतनी सुबह फोन पर कौन सी बात कर रही है, वह भी इतनी देर से?''


     कुहू ने सुहानी को याद दिलाते हुए कहा, "तू भी ना, भुलक्कड़ है! कल ही तो उसका रिश्ता तय हुआ है। जाहिर सी बात है दोनों कबूतरी लगे होंगे गुटर गूँज करने में।"


     सुहानी सच में भूल गयी थी। उसने कुहू को चिढ़ाते हुए कहा, "और यह बात तुमसे बेहतर समझ सकती है। जब तुम्हारी शादी तय हो गई थी तब से अब तक तुमने और जीजू ने कितने घंटे बाद फोन किया था?"


    कुहू के फोन पर चली उंगलियां रुक गईं। उसने सुहानी के बजाय जवाब देते हुए कहा, "जा और ग्राहक उसे देख ले। यहां से सब कुछ इकट्ठा हो गया है तो मैं मसाला लगाकर जाऊंगी।"


     एक सवाल जो सुहानी के मन में था, उन्होंने पूछा "यही तो समझ में नहीं आ रहा है, आप स्टॉल क्यों जाना चाहते हैं? जबकि हम स्टाइलिश वेन्यू पर ही कॉल कर सकते हैं। आपने बिल्कुल सही से मन कर दिया। इतनी हैवी डिजाइन और डिजाइन डिजाइन आप रियल से वेन्यू तक चल पाओगी?"


    कुहू ने लेकर सुहानी के सर पर धीरे से फोन किया और कहा, "गाड़ी से आना है, पैदल नहीं जो चल नहीं पाऊंगी। अब जाओ और उसे देखो, आज का पूरा दिन उसने लड़की को फोन कर दिया था। कल देर रात तक वो सूरज से बात ही कर रही थी और अभी भी वह उसी के साथ लगी है। पता नहीं सोई भी है या नहीं।" सुहानी अपना सर सहिलाते बाहर की तरफ देखती रही।


     कुहू ने धीरे से कहा "इसकी बात तो सुखद है। हमारा रिश्ता नाम नहीं रह गया है। रिश्ता तय होने से पहले हम कुछ और थे।"


     सुहानी ने बाहर तो देखा, काया अपने कमरे में लेटी ऋषभ से बात कर रही थी। सुहानी ने आव देखा ना ताव, तकिया उठाया और काया के मुंह पर हाथ से जोर से दबाया। 





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