सुन मेरे हमसफर 248

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    ऋषभ अपनी मॉम से बचकर भागता हुआ जाकर सीधे सुहानी से टकराया। सुहानी को जोर की चोट लगी। वह जाकर बेचारी पीछे दीवार से टकराई और उसके मुंह से हल्की चीख निकल गई। "अब कौन है यार? देख कर नहीं चल सकते?"


     सुहानी की चीख सुनकर ऋषभ उससे माफी मांगते हुए बोला "सॉरी यार, सॉरी!"


     सुहानी ने सामने देखा तो कंफ्यूज हो गई। उसने ऋषभ को उंगली दिखाकर पूछा "तुम...........?"


     ऋषभ मुस्कुरा कर बोला "मैं कार्तिक नहीं हूं, इतना जाना तुम्हारे लिए काफी है।" सुहानी खामोश हो गई। ऋषभ आगे बोला "आज पता नहीं क्या हो रहा है। सुबह से मैं हर किसी से टकरा रहा हूं। अभी कुछ देर पहले भी। उस मजनू से टकराया, आई मीन अपने भाई से और अभी तुमसे। वैसे तुम्हें लगी तो नहीं?"


     सुहानी अपनी कोहनी में लगे चोट को छुपाते हुए बोली "नहीं मैं ठीक हूं।"


     ऋषभ मुस्कुरा कर बोला "चलो अच्छा है तुम ठीक हो। वैसे तुम्हारी बहन कहां है?"


      सुहानी ने दूसरी तरफ इशारा किया लेकिन कहा कुछ नहीं। ऋषभ वहां से जाने को हुआ लेकिन फिर उल्टे पैर वापस आया और सुहानी के कंधे पर कोहनी रख कर बोला "वैसे तुम चाहो तो मैं तुम्हारी हेल्प कर सकता हूं।"


     सुहानी ने सवालिया नजरों से ऋषभ को दिखा तो ऋषभ सीधा खड़ा होकर बोला "मेरा मतलब जिसकी तरफ तुम देख रही हो ना, वह कुछ ज्यादा इमोशनल है। ऐसे ही भाव नहीं देगा। एक बार उसका ब्रेकअप हुआ था तब से वह ऐसे ही है। तुम खुद सोचो, इस बात को 10 साल हो गए और वह अभी भी इस बात पर अटका हुआ।"


     ब्रेकअप की बात सुनकर सुहानी थोड़ी मायूस हुई। उसने पूछा "कार्तिक की गर्लफ्रेंड थी?"


    ऋषभ बड़े कैजुअल अंदाज में बोला "हां! सबकी होती है। तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड नहीं रहा क्या?"


     सुहानी ने बस इनकार में अपना सर हिला दिया तो ऋषभ अफसोस करता हुआ बोला "होना चाहिए था यार! और वैसे भी, वह किट्टू की लाइफ में आने वाली पहली लड़की थी। उसके जाने के बाद उसने कभी किसी को अपने पास आने ही नहीं दिया। लेकिन एक बात है, तुम दोनों काफी अच्छे दोस्त बन गए हो। तुम्हारे बारे में उसने कई बार मुझसे बात की है। क्या बात की है यह नहीं बताऊंगा लेकिन हां! फाइनली मुझे थोड़ी सी उम्मीद जगी है। शायद तुम दोनों एक साथ हो सकते हो।"


    सुहानी के होठों पर हल्की सी मुस्कान आई लेकिन फिर वापस वह मायूस हो गई। ऋषभ उसे समझाते हुए बोला "ऐसे सीधे-सीधे अगर तुम उससे अपने प्यार का इजहार करोगी तो वह कभी तुम्हारे हाथ नहीं आएगा। दोस्त हो तुम उसकी इस बात का फायदा उठाओ।"


     "मतलब?" सुहानी की समझ में कुछ नहीं आया। ऋषभ की यह बात उसके सर के ऊपर से निकल गई।


     सुहानी को कंफ्यूज देख ऋषभ ने अपने सर पर हाथ मारा और कहा "उधर वह बेवकूफ, इधर तुम बेवकूफ, राम मिलाई जोड़ी। सीरियसली! इतनी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आती! तुम दोस्त हो उसकी तो उसके करीब जाने की कोशिश करो। प्यार ना सही लेकिन कुछ दोस्त ऐसे होते हैं हमारी लाइफ में जिनके बिना हम बहुत खाली खाली महसूस करते हैं। तुम्हें भी वही दोस्त बनना होगा। वह शाहरुख खान ने कहा है ना, होले होले हो जाएगा प्यार! तो वही करो। बेस्ट ऑफ लक!" ऋषभ अपनी बात रख कर वहां से फौरन निकल गया।


     सुहानी कुछ देर तो सोचती रही लेकिन ऋषभ की कही बातें धीरे-धीरे उसकी समझ में आने लगी थी और जब सारी बातें समझ आ गई तो उसके होठों पर एक अलग ही मुस्कान खिल गई।



*****




      निशि का मन रोने को कर रहा था। यहां ऐसे हॉस्पिटल के बेड पर पड़े रहना उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था और ना ही वह कभी हॉस्पिटल का मुंह देखना चाहती थी। लेकिन इस वक्त वह अकेली थी। "क्या करूं? नर्स को बुलाऊ? वह मुझे कंपनी देगी? लेकिन उसको तो पहले से बहुत सारे काम होंगे, वह मेरे पास क्यों बैठेगी! फ्री का टाइम थोड़ी है उसके पास। एक जिसके भरोसे थी वह तो चला गया मुझे छोड़कर। बहुत बुरा है वह।"


    निशि को रोना आ गया। उसने अपनी आंखें जोर से दबा ली जिससे एक बूंद आंसू उसकी आंखों से बाहर आ गिरा। निशी ने अपनी आंखें खोली और दरवाजे की तरफ देखते हुए कहा "मैंने सोचा था तुमसे बात करने का एक मौका मिलेगा लेकिन तुम तो वह मौका देना ही नहीं चाहते। मुझे तुमसे बात करनी है। बहुत कुछ पूछना है बहुत कुछ बताना है। प्लीज आ जाओ। अव्यांश प्लीज! मुझसे बात करो।"


     निशि ने अपने आंसू पोंछे और वापस से सोने की कोशिश करने लगी तभी उसके दरवाजे पर दस्तक हुई। निशी ने चौक कर दरवाजे की तरफ देखा और सोचा 'यह कौन है जो नॉक कर रहा है?' 


     दरवाजा खुला और अव्यांश कमरे के अंदर आया। उसे देख निशि को खुशी भी हुई और हैरत भी लेकिन गुस्से में उसने अपना मुंह फेर लिया और कहा "जब तुम्हें जाना ही है तो फिर बार-बार वापस क्यों आ जाते हो?"


    अव्यांश अपने फोन पर था। उसने फोन रखा और बिना निशि की तरफ देख बोला, "देवेश का नंबर नही है मेरे पास। होता तो मैं फोन करके उसे यहीं बुला देता। अगर तुम्हारा मेरा होना पसंद नहीं है तो तुम खुद भी उसे कॉल कर सकती हो।"


     निशी को अव्यांश के मुख से देवेश का नाम सुनना अच्छा नही लगा। वो बोली, "नही। मुझे उसकी जरूरत नहीं।"


    अव्यांश ने उसकी बातो को अनसुना कर दिया और कहा "जो रायता तुमने फैलाया है उसे समेटना भी जरूरी है। बस उसी में लगा हूं।"


   निशी को समझ नहीं आया। उसने हैरानी से अव्यांश की तरफ देखा और गुस्से में बोली "मैंने कौन सा रायता फैला दिया तुम्हारी लाइफ में जो तुम मुझसे इस तरह बात कर रहे हो? यहां मेरा एक्सीडेंट हुआ है और तुम उल्टा मुझे ही सुना रहे हो।"


     इस बार अव्यांश निशि की तरफ पलटा और उसकी आंखों में आंखें डाल कर बोला "तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ नहीं है मिस निशिका मिश्रा! तुमने एक्सीडेंट किया है! और जिसकी गाड़ी का किया है वह भी इस वक्त अस्पताल में ही है। उसका भी इलाज चल रहा है, इसी हॉस्पिटल में।"


     निशि को अब जाकर मामला समझ में आया और उसने शर्म से अपनी नज़रें नीचे कर ली। अव्यांश इतने पर नहीं रुका। उसने आगे कहा "तुम नहीं चाहती कि घर वालों को तुम्हारे एक्सीडेंट का पता चले। रात भर यहां रहकर सुबह डिस्चार्ज लेकर तुम घर जाना चाहती हो। तुम्हें क्या लगता है, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा? इंस्पेक्टर बाहर खड़ा है, कहो तो बुला दूं उसको? बात करनी है उससे?"


     पुलिस का नाम सुनकर निशि थोड़ा सा घबराई और खुद को कंबल में छुपाते हुए बोली "नहीं! उनसे तुम ही बात कर लो।"


      अव्यांश अभी इतने पर नहीं रुका और निशि को और ताना मारते हुए बोला "तुम्हें क्या लगता है, जो मीडिया मित्तल परिवार के एक फंक्शन को कवर करने के लिए घंटो बाहर इंतजार कर सकता है, क्या उनके लिए यह कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं होगी कि मित्तल परिवार की एक बहू ने, आई मीन फिलहाल तो तुम इकलौती ही हो, तो मित्तल परिवार की एकलौती बहू ने शराब पीकर किसी की गाड़ी ठोक दी?"


     निशि अचानक से उठकर बैठ गई और थोड़ी ऊंची आवाज में बोली "लेकिन मैंने तो बिल्कुल भी ड्रिंक नहीं की!"


     अव्यांश अपने हाथ की घड़ी खोली और उसे सामने टेबल पर रखते हुए बोला "तुम्हें क्या लगता है, लोग किस बात पर यकीन करेंगे? मीडिया तुम्हारा अल्कोहल टेस्ट लेकर तो अपनी खबर छापेगा नही। उन्हें मसाला चाहिए बस।"


    दरवाजे पर एक बार फिर दस्तक हुई। अव्यांश ने जोर से आवाज लगाई "कम इन।"


   एक नर्स आई और अपने साथ ब्लैंकेट और तकिया दोनों लेकर सोफे पर रख दिया और दूसरी नर्स निशि की रिपोर्ट लेकर अव्यांश को हाथ में दे दिया। उन दोनों के जाने के बाद अव्यांश ने बड़े ध्यान से निशि की रिपोर्ट को देखा और कहा "कल सुबह डिसचार्ज मिल जाएगा। कुछ खास चोट नहीं आई है। सो जाओ।"


    बीते दिनों में निशि को यह पहला मौका मिला था अव्यांश के साथ तो वह ऐसे कैसे सो जाती। उसने कहा "अव्यांश! मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है।"


     अव्यांश की दिल की धड़कन ने रुक सी गई। वह इसी से तो बचना चाहता था और यही वजह थी कि वह निशी के सामने नहीं आना चाहता था। उसने ब्लैंकेट लिया और सोफे पर पसरते हुए कहा "मुझे नींद आ रही है। रात बहुत हो गई है, तुम सो जाओ तुम्हें आराम के साथ जरूरत है।"


     एक बार फिर निशि का मन रुवासा हो गया। अव्यांश उसकी तरफ पीठ किए सोया था। वह भी वापस बिस्तर पर लेट गई।


    अव्यांश को सोफे पर सोने की आदत नहीं थी, चाहे सोफा कितना भी कंफर्टेबल क्यों ना हो। यह बात अव्यांश भी जानता था और निशी को भी पता थी। जब अव्यांश को थोड़ी बेचैनी सी हुई तो निशि ने ही आवाज लगाकर कहा "यहां बेड पर बहुत जगह है। तुम यहां आकर सो सकते हो।"


     अव्यांश ने बिना निशि की तरफ देख कहा "नो थैंक यू। मैं यही ठीक हूं।"




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