सुन मेरे हमसफर 34

 देर शाम हो चुकी थी। ऑफिस के सारे एंप्लॉयी घर जा चुके थे लेकिन समर्थ अभी भी किसी सोच में गुम था। सारांश ने उसे घर चलने को कहा भी लेकिन काम का बहाना बनाकर वो वही रुक गया। पूरे ऑफिस में खामोशी फैली हुई थी। सन्नाटा इतना ज्यादा था कि घड़ी की टिक टिक से ज्यादा उसे अपने दिल की धड़कन सुनाई दे रही थी। समर्थ ने अपने दिल पर हाथ रखा और खुद को शांत किया। ये दिल भी ना, बड़ा ही अजीब चीज है। कब किस बात पर बेचैन हो जाए पता नही चलता।


     श्यामा ने फोन किया और समर्थ को घर आने को कहा तो समर्थ ने अपनी मां से काम का बहाना बनाया लेकिन श्यामा ने डांट लगाई और कहा, "सोमू! मुझे कुछ नहीं पता। तू आ रहा है बस आ रहा है। अगर तू अभी ऑफिस से नही निकला तो मैं आ जाऊंगी तुझे लेने। इसीलिए बेहतर है, घर आ जाओ।"


   समर्थ ने ओवरटाइम का बहाना बनाने की कोशिश की लेकिन श्यामा ने कहा "ओवरटाइम करने की जरूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो वो घर पर भी हो सकता है, मैं करूंगी हेल्प। अब ये तुम पर है कि तुम मेरी हेल्प कहां लेना चाहोगे, ऑफिस में या घर पर?"


    समर्थ के पास अब और कोई रास्ता नही था। उसे अकेले रहना था, खुद से लड़ना था लेकिन ये उसके नसीब में नहीं था। समर्थ उठा और चेयर से अपना कोट उठाए हाथ में लेकर बाहर निकला। वो थके कदमों में आगे बढ़ रह था लेकिन बाहर आकर उसने अपने ड्राइवर को फोन नही किया और न ही गाड़ी लेने खुद पार्किंग गया। वो बस ऐसे ही पैदल निकल पड़ा। श्यामा के इतना कहने के बावजूद समर्थ के कदम जैसे उठ ही नहीं रहे थे।


   शाम ढलकर अंधेरा घिर आया था। आसमान में तारे थोड़े बहुत ही नजर आ रहे थे। काले बादलों ने उन्हें अपने पीछे छुपा रखा था। ठंडी हवाएं चल रही थी जो सिहरन पैदा कर रही थी। लेकिन समर्थ पर जैसे इन हवाओं का मौसम का कोई असर ही नहीं था। वह बस चलता जा रहा था।


    ऑफिस गेट से बाहर निकला तो उसे नजर आया, ठंडी हवाओं के बीच अपना दुपट्टा संभालते हुए तन्वी का चेहरा। जिसे देख वह उस पल में अपनी सारी परेशानी भूल गया। उसके होंठो पर एक बड़ी प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई। तन्वी शायद उस वक्त ऑटो का इंतजार कर रही थी। उस एरिया में जहां सभी अपनी गाड़ियों से आते थे, वहां ऑटो कम ही मिल पाता था।


   ढीली बंधी चोटी से बाहर झूलते बाल बार-बार तन्वी के चेहरे पर आ रहे थे जिसके कारण तन्वी परेशान हुए जा रही थी। समर्थ के कदम अपने आप ही उस ओर बढ़ चले। तन्वी को एहसास ही नहीं हुआ कि कोई उसके पीछे है। तेज सरसराती हवा का झोंका जब समर्थ के परफ्यूम की खुशबू जब उस तक लेकर गया, तब जाकर तन्वी को उसके होने का एहसास हुआ, फिर भी उसने पलट कर नहीं देखा। उसके कानों में बस समर्थ की कही बातें ही गूंज रही थी जिसकी वजह से उसने खुद को बहुत कंट्रोल में कर रखा था। लेकिन इससे बेखबर समर्थ ने उसके चेहरे पर आए बालों को समेटने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, जिसे महसूस करते ही तन्वी ने जल्दी से दो कदम दूर हटकर अपने बालों को समेटा और उन्हें जुड़े में बांध दिया।


     समर्थ के हाथ खाली रह गए। तन्वी अगर जिद्दी थी तो अपना समर्थ भी कहां कम था। वो भी तन्वी के दो कदम करीब आया और अपने उसी हाथ से तन्वी का जुड़ा खोल दिया। तन्वी ने एक बार फिर जुड़ा बांध लिया और एक बार फिर समर्थ ने उसका जुड़ा खोल दिया। तन्वी परेशान होकर बोली "यह आप क्या कर रहे हैं सर? अपने ऑफिस की एक मामूली सी एम्प्लॉय के साथ इस तरह बर्ताव करना आपको शोभा नहीं देता। वो भी तब जब आप उसे जानते तक नहीं, उसका नाम भी नहीं।"


     समर्थ के हाथ वही रुक गए। कुछ वक्त पहले उसने जो कुछ भी कहा था वह सब याद करके उसे तकलीफ हो रही थी। उसने धीरे से कहा "सॉरी तनु। वो मैं हिम्मत नहीं........."


    तन्वी जैसे तैयार बैठी थी। समर्थ की बात पूरी होती उससे पहले तन्वी उस पर बरस पड़ी। "तनु?? तनु नही सर, तन्वी नाम है मेरा। आई एम सॉरी सर लेकिन इस नाम से मुझे मेरे अपने बुलाते हैं। वह लोग जो मुझसे प्यार करते हैं। आप तो मुझे पहचानते तक नहीं। वो क्या है ना, आपकी लाइफ में मेरी जैसी न जाने कितनी है। कहां से आपको मेरा नाम याद आ गया? मैं क्या कोई स्पेशल हूं? नही सर, बिल्कुल भी नही। तो प्लीज! मुझे मेरे नाम से बुलाकर कोई भी झूठी उम्मीद मत दीजिए, प्रोफेसर समर्थ मित्तल! आप अपने उसी अकडू अंदाज में अच्छे लगते हैं।"


     तन्वी रोड के दूसरी तरफ देखने लगी तो समर्थ बेबसी से बोला "मैंने कॉलेज छोड़ दिया है। अब मैं तुम्हारा प्रोफेसर नहीं हूं।"


    तन्वी हंस पड़ी और बोली "रियली? अगर ऐसा है तो आपमें अभी भी इतनी हिम्मत क्यों नहीं आई कि आप अपने दिल की बात अपने घरवालों के से कर सके! आप तब भी मेरे सर थे और अब भी मेरे सर ही हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि आप मेरे प्रोफेसर थे और अब मेरे बॉस है। हमारे रिश्ते को लेकर दुनिया कल भी उंगली उठाती और आज भी उंगली आएगी ही। लेकिन एक मिनट! हमारा रिश्ता? कौन सा रिश्ता? मैं एक मामूली सी लड़की हूं जिसे आपने अपने अंडर ट्रेन किया और अपनी कंपनी में जॉब दिया। बहुत एहसान है आपके मुझ पर।"


    समर्थ ने तन्वी को दोनों कंधे से पकड़ा और बोला "मैंने यह सब किया क्योंकि तुम इसके लायक थी। तुम्हें जो भी मिला है और तुम्हारे अपने बलबूते पर मिला है, मैंने बस थोड़ी सी हेल्प की थी तुम्हारी, और कुछ नहीं। कोई एहसान नहीं किया मैंने तुम पर।"


    हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई थी। तन्वी ने खुद को समर्थ की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करती हुए कहा "छोड़िए मुझे सर! वरना यहां किसी ने हम दोनों को एक साथ देख लिया तो लोग बहुत से सवाल करेंगे, जिनका जवाब ना आप देना चाहेंगे और ना ही मैं दे पाऊंगी। इस तरह खुलेआम किसी भी ऐसी वैसी लड़की के साथ इस तरह का बर्ताव आपके इमेज के लिए ठीक नहीं है।"


   लेकिन समर्थ ने उसे छोड़ने की बजाए अपने और करीब खींच लिया और मजबूती से अपनी बाहों में भर कर बोला "तुम कोई भी लड़की नहीं हो। तुम स्पेशल हो, मेरे लिए स्पेशल हो, बहुत ज्यादा स्पेशल हो। मैं तुम्हे कैसे समझाऊं?"


   तन्वी ने उसकी आंखों में आंखें डाल कर कहा "समझाइए ना समर्थ, समझाइए मुझे! जो भी है आपके दिल में मैं सुनना चाहती हूं। आप नहीं समझ रहे हैं मेरी हालत को। मां चाहती है कि मैं शादी करके अपना घर बसा लूं, लेकिन कैसे? मैं इनकार करूं तो कैसे? और अपने प्यार का इजहार करू भी तो कैसे? किस भरोसे पर? क्या एक बार भी आपने मुझसे कुछ कहा है? मैं पागल, आपके प्यार में दीवानी हो चली। मुझे नहीं पता, जिस रास्ते पर मैं चल पड़ी हूं, वो रास्ता मुझे कहां लेकर जाएगा? इस रास्ते की कोई मंजिल है भी या नहीं? बताइए ना समर्थ, बताइए मुझे! क्या मैं आपका इंतजार करू या अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाऊं? मैं आपकी तरह अमीर नही हूं। मैं एक मिडिल क्लास फैमिली से अपने परिवार की बेटी हूं जहां बेटी अठारह की हुई नही कि उसके लिए रिश्ते आने शुरू हो जाते है। कब तक रोकूंगी सब को? एक बार खुलकर कह तो दीजिए।"


    छोटी छोटी बूंदों ने अब बारिश का रूप ले लिया था तन्वी की नजरे अब धुंधली पड़ने लगी थी और कुछ ही देर में उसके सामने से समर्थ का चेहरा गायब हो गया। उसकी आंखों पर पड़ा चश्मा अब बारिश में धुल गया था। समर्थ की बाहों में जकड़ी तन्वी ने समर्थ का चेहरा देखने की कोशिश की लेकिन उसे कुछ नजर नहीं आया। वो बस महसूस कर रही थी, समर्थ की सांसों को, अपने चेहरे पर, बेहद करीब से।



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