सुन मेरे हमसफर 35

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   समर्थ की सांसो को अपने चेहरे पर महसूस करते ही तन्वी की आंखें बंद हो गई। उसे तो वैसे भी समर्थ का चेहरा नजर नहीं आ रहा था। समर्थ कुछ देर तो तन्वी के चेहरे को देखता रहा फिर झुक कर अपने होठों से उसके माथे को चूम लिया। तन्वी अंदर तक सिहर उठी। समर्थ से इतनी नज़दीकियां उसने कभी महसूस नहीं की थी।


     समर्थ बिना कुछ कहे उसे अपने प्यार के एहसास में भिगो देना चाहता था लेकिन तन्वी उसके मुंह से सुनना चाहती थी। खामोशियां हर जगह सुकून नहीं देती, कभी-कभी कहना बहुत जरूरी हो जाता है। लेकिन समर्थ ना जाने क्यों खुद को तन्वी के करीब आने से रोके हुए था। कुछ था उसके मन में जो उसे इन दूरियों को मिटाने की इजाजत नहीं दे रहा था, लेकिन क्या? यह तो तन्वी भी जानना चाहती थी और समर्थ खुद भी इसे खुलकर नहीं कह पा रहा था।


      बारिश जब तेज होने लगी तो समर्थ ने अपने हाथ में पकड़ा अपना कोट तन्वी के कंधे पर डाल दिया और कहा "चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूं।"


     तन्वी ने अपनी आंखें खोली और कुछ देर तक तो उसे देखती रही। शायद वह समर्थ से कुछ और ही उम्मीद कर रही थी, शायद कुछ ज्यादा ही। उसने फीकी हंसी के साथ कहा "नहीं सर! आपकी इतनी बड़ी गाड़ी में अगर मैं घर गई तो पूरे मोहल्ले वाले मेरा जीना हराम कर दें,गे और मेरी मां पापा का भी। इसलिए बेहतर है, आप मुझसे दूर रहिए।" तन्वी ने खुद को समर्थ की पकड़ से आजाद किया और वहां से तेज कदमों से आगे बढ़ गई।


 कुछ दूर जाने पर ही एक ऑटो मिला और तन्वी उस में बैठ कर चली गई। समर्थ खामोशी से उसे जाते देखता रहा। दिल बार-बार आवाज देता रहा कि उसे रोक लो, लेकिन...........!


    समर्थ खामोशी से वहां खड़ा रहा। गाड़ी के हॉर्न की आवाज से समर्थ की तंद्रा टूटी। उसका ड्राइवर एक छाता लेकर जल्दी से गाड़ी से निकल कर आया और समर्थ के ऊपर लगाते हुए बोला "सर! मैडम ने आपको लेने के लिए भेजा है। घर चलिए।"


     समर्थ ने आंखें बंद कर गहरी सांस ली और जाकर सीधे गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी में बैठते ही उसने अपनी आंखें बंद की और पीछे सर टिका दिया। ड्राइवर वापस गाड़ी में बैठा और गाड़ी स्टार्ट कर घर की तरफ निकल पड़ा।



*****



   काव्या ने खाना डाइनिंग टेबल पर लगाया और सब को आवाज दी। काया भी अपनी मां के साथ उसका हाथ बटाने में लगी थी और डाइनिंग टेबल पर प्लेट लगाने में लगी थी।


     काव्या की आवाज सुनकर कार्तिक और धानी दोनों डाइनिंग टेबल के पास चले तो आए लेकिन कुहू को वहां ना देख कार्तिक ने पूछा "काव्या! कुहू कहां है? आज पूरा दिन मैंने उसे नहीं देखा। कहीं गई है क्या?"


   काव्या ने कुहू के कमरे की तरफ देखा और बोली "कहां जाएगी! कल रात से, जब से आई है, तब से अपने कमरे में बंद है। सुबह नाश्ता भी मैंने उसके कमरे में ही दिया था। दिन का खाना भी नहीं खाया। ऑफिस भी नही गई। अभी यह हाल है तो शादी के बाद पता नहीं कैसे अपना परिवार संभालेगी?"


     धानी ने अपनी कुर्सी पर बैठे हुए कहा "सब हो जाएगा। जब जिम्मेदारी अपने सर पर पड़ती है तो इंसान खुद ब खुद जिम्मेदार बन जाता है। अभी सगाई हुई है, शादी में वक्त है। तब तक थोड़ा अपने मन की कर लेने दो। एक बार शादी हो गई तो परिवार में ही उलझ कर रह जाएगी, फिर तो अपने लिए उस वक्त भी नहीं मिलेगा।"


     काव्या अपनी सास की बात से सहमत तो थी लेकिन कुहू को लेकर उसे थोड़ी अजीब फीलिंग आ रही थी। उसने कहा "आपका कहना ठीक है मां! लेकिन थोड़ी बहुत जिम्मेदारी का एहसास उसे होना चाहिए। एकदम से वह किसी और ही दुनिया में बस जाएगी तो शादी के बाद उस दुनिया से निकलना मुश्किल हो जाएगा। मैं समझ रही हूं इस वक्त वो क्या महसूस कर रही होगी। हर लड़की अपनी शादी को लेकर सपने बुनती है लेकिन जरूरी तो नहीं कि हर सपने सच हो जाए। शायद ही कुछ ऐसी लड़कियां होती है। मुझे नहीं पता हमारी बच्ची के कौन से सपने पूरे होंगे कौन से नहीं लेकिन मां! जरूरत से ज्यादा सपने देखना भी अच्छी बात नहीं होती।"


    कार्तिक बेचारा चुपचाप बैठा रहा। ना वह अपनी मां की तरफ से कुछ कह सकता था, ना ही अपनी बीवी की तरफ से। तो उसने बीच का रास्ता निकाला और काया से कहा "काया! बेटा जाओ अपनी बहन को बुला कर ले आओ।"


     काया अपनी हंसी कंट्रोल किए खड़ी थी। उसने धीरे से "जी पापा" कहा और तुरंत कुहू कमरे की तरफ भाग गई।


   इधर कुहू परेशान से अपने कमरे में बैठी इधर-उधर चक्कर लगा रही थी। उसके हाथ में उसका फोन था और ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी के कॉल का इंतजार कर रही हो। असल में वो कल रात से ही कुणाल से बात करने की कोशिश कर रही थी लेकिन कुणाल था कि ना जाने किस दुनिया में गुम था, जो ना तो उसके किसी कॉल का जवाब दे रहा था और ना ही उसके मैसेज का रिप्लाई कर रहा था।


    रात से सुबह हो गई, सुबह से शाम और अब रात। 24 घंटे पहले उसने कुणाल के साथ जो खूबसूरत लम्हे बिताए थे, उन दोनों की सगाई और कुणाल ने जिस तरह सबके सामने उसका हाथ थामा था, वो सब कुछ उसे सपने की तरह लग रहा था। एक बार फिर कुणाल वैसे ही बिहेव कर रहा था जैसे वह सगाई से पहले कर रहा था। कुहू बस इसी सब को सुलझाने में लगी हुई थी। उसने एक बार फिर अपना फोन अनलॉक किया और कुणाल का नंबर डायल कर दिया। इस बार भी रिंग जा रही थी लेकिन दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।


     दरवाजे पर दस्तक हुई। कुहू अकेले रहना चाहती थी लेकिन काया ने आवाज लगाई "दीदू! दरवाजा खोलो, सब डाइनिंग टेबल पर आपका इंतजार कर रहे हैं। जल्दी आ जाओ वरना आज घर में महाभारत हो जाएगा।"


   कुहू ने परेशान होकर दरवाजा खोला और बोली "ऐसे भी क्या आफत आ गई है जो इस तरह दरवाजा तोड़ने पर लगी है?"


    काया जल्दी से कमरे में आई और धीरे से बोली "चलो ना दिदू! सब खाने पर इंतजार कर रहे हैं। अभी आपको लेकर दादी और मां के बीच कहासुनी हो जानी है। आप तो जानते ही हो, पापा बेचारे ने बीच में फंस जाना हैं। क्या आप चाहोगे कि आपकी वजह से पापा किसी मुसीबत में पड़ जाए? चलो ना जल्दी! देखो मुझे बहुत जोर की भूख लगी है।"


     काया ने कुहू फोन लिया और बिस्तर पर रखकर कुहू को अपने साथ लेकर जाने लगी लेकिन कुहू की नजर उसके फोन पर ही थी। जाने कब कुणाल कॉल बैक कर दे! बस यही सोचकर उसने जल्दी से काया के हाथ से अपना हाथ छुड़ाया और जाकर अपना फोन ले आई।


    कुहू के चेहरे पर परेशानी की लकीरें साफ नजर आ रही थी। सो काया ने अपना फोन लिया और सुहानी को एक मैसेज भेज दिया "कल कुहू दी को लेकर शॉपिंग पर चलते हैं। उनका मूड कुछ ठीक नहीं है। शायद कुणाल को लेकर कुछ प्रॉब्लम है।"


      ज्यादा वक्त नहीं लगा और दूसरी तरफ से सुहानी ने भी ओके का मैसेज भेज दिया।



*****



    बेंगलुरु,


     निशी की मां अपने दामाद के लिए बड़े जतन से खाना तैयार कर रही थी। रात के 10:00 बजने को आए थे और उनके डिशेज की गिनती खत्म ही नहीं हो रही थी। निशी परेशान होकर बोली "ये क्या कर रहे हो आप? इतना खाना कौन बनाता है? आपको लगता है वो इतना कुछ खा पाएगा?"


    निशा की मां ने उसके सर पर मारते हुए कहा "यह क्या उसे तू तड़ाक करके बात कर रही है? पति है वो तेरा, थोड़ी इज्जत तो दे ही सकती है!"


     निशा इस बात से चिढ़ गई और बोली "हमारी शादी जिन हालात में हुई थी, उसके बाद भी! ना मैं उसे जानती हूं, ना वह मुझे जानता है। ऐसे में मैं उसे कैसे इज्जत दे दूं? मुझे कैसे पता वह इंसान इस सब के लायक है भी या नहीं? आप यह सब बनाना बंद कीजिए।"


    निशी की मां ने एक बार सारे खाने की तरफ देखा और पूरी तसल्ली होने के बाद कहा "उसने सबसे लड़कर तेरा साथ दिया, तुझ पर भरोसा किया, तेरा हाथ थामा, जो कोई नहीं करता। हमारे समाज को तू जानती है। गलती चाहे किसी की भी हो, सजा हमेशा लड़की को मिलती है। उसने तुझे इस सजा से बचाया है। और कुछ नहीं तो कम से कम इसी बहाने, तू अव्यांश का अपमान बिल्कुल भी नही करेगी। अगर उस लड़के में कोई खोट होती तो तेरे पापा कभी उसे तेरा हाथ नहीं सौंपते। वो एक इज्जतदार परिवार से है। और तू उस घर की बहू। कम से कम तू उस घर में हमारी इज्जत का मान रखेगी, हमारे संस्कारों की लाज रखेगी। अच्छा एक बार बता, इतने वक्त में क्या उसने तुझसे कभी कोई बदतमीजी की?"


   अपनी मां के इस सवाल से निशी सोच में पड़ गई। वाकई अव्यांश ने अभी तक ऐसी कोई हरकत नहीं की थी और उसके घर वाले भी उसके साथ ऐसे पेश आए जैसे वो हमेशा से उस घर का हिस्सा रही हो।


     निशी को सोचते देख उसकी मां ने कहा "तेरे पापा से मैंने उस घर के कई किस्से सुने हैं। तेरे साथ ससुर की शादी भी ऐसे ही अचानक हुई थी, जैसे तुम दोनों की हुई। मुझे पूरी उम्मीद है, वह लोग दिल खोल कर तुझे अपना आएंगे और तुझे बहुत ज्यादा प्यार देंगे। तू किस्मत के धनी है जो उस घर में गई। अब ये सब छोड़, और अपने पति को फोन लगा। इतना वक्त हो चला लेकिन दामाद जी अभी तक नही आए।"


    निशी ने घड़ी की तरफ देखा, वाकई रात काफी हो चली थी और अव्यांश का अभी तक एक भी कॉल नही आया था।




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