सुन मेरे हमसफर 33

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   समर्थ अभी भी उसी ओर देख रहा था जहां से अभी अभी तन्वी गई थी। उसकी बाते सुनकर सारांश ने चौक कर पूछा "कुछ कहा तुमने?"


     समर्थ होश में आया और अपनी बात संभालते हुए बोला "मैंने? नहीं तो। मैं तो बस यह कह रहा था कि ये अंशु के लिए तो बेस्ट असिस्टेंट होगी लेकिन आपको क्या लगता है, हमारे अंशु को एक फीमेल एम्प्लॉय असिस्ट कर पाएगी? आप तो जानते ही हो उसकी आदतें।"


    सिद्धार्थ ने उसकी तरफ से निश्चिंत होकर कहा "तुम उसकी चिंता मत करो। हमारा अंशु पहले भले ही कैसा भी रहा हो, लेकिन अब काफी समझदार हो गया है। वैसे भी अब उसकी शादी हो चुकी है और शादी के बाद वह ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा, इस बात की मुझे पूरी उम्मीद है। मेरा बच्चा मेरी उम्मीदों पर हमेशा खरा उतरेगा, क्यों छोटे?"


     सारांश ने कहा "यह बात तो आपने सही कही। अंशु भले ही कितना भी लापरवाह रहा हो, लड़कियों के बीच उसकी इतनी भी पापुलैरिटी रही हो लेकिन इन 6 महीने में उसने खुद को साबित करके दिखाया है। जिस प्रोजेक्ट के लिए वो गया था, उसे काफी बेहतर तरीके से पूरा किया है। इस बीच उसने किसी लड़की के साथ डेटिंग भी नहीं की। काफी क्लीन इमेज बना कर रखा उसने। आई होप कि वह अब तक सुधर चुका हो। बाप हूं उसका, लेकिन श्योर नहीं हूं उसके बारे में फिर भी भरोसा है मुझे उस पर। उसने खुद से आगे बढ़कर निशी की जिम्मेदारी ली है। वो निशी के साथ कभी कुछ गलत नहीं होने देगा।"


     सिद्धार्थ ने भी सारांश की बातों से सहमति जताई और कहा, हां! अगर उसने कोशिश भी की तो हम ऐसा होने नहीं देंगे। और यह बात वो बहुत अच्छे से जानता है। हमारे बच्चे चाहे कितने भी बिगड़े हो लेकिन संस्कार नहीं भूल सकते। बस इस एक को छोड़कर।" सिद्धार्थ ने अपने ही बेटे को एक बार फिर ताना मारा।


    समर्थ ने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला लेकिन सारांश ने बीच में पड़कर कहा, "अब यहां युद्ध का मैदान बनाने की जरूरत नहीं है। हम यहां किसी और बात के बारे में डिस्कस करने बैठे थे और किसी और ही टॉपिक पर चले गए। आप दोनों बाप बेटे कभी अच्छे बड़ो की तरह बिहेव नही कर सकते? जब देखो छोटे की तरह लड़ते रहते हो।"


    समर्थ वैसे ही तन्वी को लेकर थोड़ा अपसेट था और ऊपर से सिद्धार्थ की हरकत। वो ये टॉलरेट करने के मूड में बिल्कुल भी नही था। वो उठा और बिना फाइल लिए वहां से चला गया। सिद्धार्थ को उसके इस तरह जाने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। हमेशा पलटकर ताना देने वाला समर्थ ऐसे ही चला गया।


    "इसको क्या हुआ?" सिद्धार्थ ने सोचते हुए कहा तो सारांश ने चिढ़कर कहा, "आप भी ना भाई! बच्चे के पीछे पड़े रहते हो। कुछ तो उम्र का लिहाज करो।" उम्र की बात आते ही सिद्धार्थ भी अपनी मां सिया पर ही गया था। उसने सारांश की क्लास लगानी शुरू कर दी।




बंगलुरू ऑफिस,


मिश्रा जी से जरूरी कुछ इनफॉर्मेशन लेकर अव्यांश जैसे ही ऑफिस पहुंचा, सारे लोग उसे देखकर हैरान रह गए। अभी दो दिन पहले ही तो सबको उसकी असलियत का पता चला था लेकिन इस बात पर यकीन करना थोड़ा नही, बल्कि बहुत ज्यादा मुश्किल था क्योंकि उसके बाद से अंश और अव्यांश, दोनो ही ऑफिस से गायब थे। ऐसे अव्यांश के आने की उम्मीद किसी को नहीं थी। सभी उसको देखकर खड़े हो गए।


    अव्यांश अपने नॉर्मल अटायर से बिल्कुल अलग बिजनेस सूट में था। बस उसने शर्ट की बजाय टी शर्ट पहन रखी थी और ये उसपर काफी जच रहा था। यहां तक कि उसकी टीम लीडर शिल्पी भी उसको वापस आया देख हैरान रह गई। वो अपना डेस्क छोड़ कर उठी और अव्यांश के पास जाकर बोली, "तुम यहां? आई मीन, आप यहां? मुझे लगा नही था आप वापस आयेंगे। हमने तो सुना था कि आप वापस दिल्ली चले गए।"


  अव्यांश बड़े अदाओं से चलकर आया। उसने शिल्पी को उसके चेयर पर वापस बैठाया और खुद उसकी टेबल पर लैपटॉप के बगल में हल्के से टेक लगाकर बैठते हुए सबसे कहा, "अरे! आप सब लोग खड़े क्यों हो? बैठने में तकलीफ हो रही है क्या? अरे यार बैठ जाओ सब लोग। मैं कोई एलियन नही हूं जिसको देखने के लिए आप सब खड़े हो गए।" लेकिन सब ने जैसे अव्यांश की बातें सुनी ही नहीं। सब वैसे ही खड़े रहे तो अव्यांश ने भी खड़े होकर कहा "अगर आप लोग अभी इसी वक्त नहीं बैठे तो मैं सब से टिकट चार्ज करने वाला हूं।" सभी होश में आए और हड़बड़ाकर बैठ गए। 


    अव्यांश ने गहरी सांस ली और सबसे कहा, "मैं कोई दूसरी दुनिया से नही आया हूं। आप सबके बीच रहकर आप लोगो जैसा बनने आया था और आप सब ने मेरी बहुत हेल्प की है, मुझे वो हासिल करने में। मैं आज भी आप सबका वही पुराना अव्यांश हूं जिसके साथ आप लोग काम करते थे, अपना लंच शेयर करते थे, चाय टाइम में मस्ती किया करते थे। मुझे अलग से ट्रीट करने की जरूरत नहीं है इसलिए कोई भी मुझे अजीब तरह से नहीं देखेगा। वैसे अगर देखना ही है तो कल हूं मैं यहां पर, मुझे आराम से देख लेना।"


    फिर वह शिल्पी की तरफ थोड़ा सा झुका और बोला "सबसे पहली बात, हां मैं दिल्ली चला गया था मां पापा और निशी के साथ। वहां जाना भी जरूरी था। फिलहाल मैं 1 दिन के लिए यहां आया हूं।"


    निशी का नाम सुनकर शिल्पी के चेहरे पर दर्द की एक लकीर आकर गुजरी। लेकिन अव्यांश को कहां इस बात का ध्यान था। उसने आगे कहा "और दूसरी बात, आप नहीं तुम। जैसे कि तुम हमेशा से बात करती थी। मुझे नहीं लगता, मेरी पहचान हमारी दोस्ती के बीच किसी भी तरह का कोई प्रॉब्लम क्रिएट करेगी। और तुम्हें मुझे इस तरह रिस्पेक्ट देने की कोई जरूरत नहीं है। कौन से दोस्त एक दूसरे को रिस्पेक्ट करते हैं? तभी देखा है तुमने?"


     शिल्पी अव्यांश के इस पुराने बिहेवियर से बहुत ज्यादा खुश थी। उसने सर झुका कर कहा, "यह तो तुम्हारा बड़प्पन है जो तुम हमें अपनी तरह समझते हो। मुझे खुशी है कि हम अभी भी दोस्त हैं।"


    अव्यांश उसे लगभग आदेश देने के लहजे में बोला "अगर तुम इतनी ही खुश हो तो मुझे एक कप कॉफी पिला दो।" शिल्पी खुश होकर उठी और "मैं अभी लेकर आती हूं" बोलकर चली गई। इतने में मैनेजर भागता हुआ आया और अपने हाथ में पकड़ा फूलों का बुके अव्यांश के हाथ देते हुए कहा, "सॉरी सर! हमें पता ही नही था कि आप आने वाले है। चलिए, मैं आपको आपके केबिन में लेकर चलता हूं।"


    अव्यांश उसी जगह बैठ गया जहां वो हमेशा बैठा करता था और बोला, "मैं तो यहां छ महीने से हूं। जब इतने वक्त में आपको पता नही चला तो अब कैसे पता चलेगा? ये मेरी जगह है और मैं यहां से कहीं नहीं जाने वाला। जो फाइल्स मिश्रा जी कही थी, मुझे वो सब चाहिए, यहीं पर।"


    "लेकिन सर ....!" मैनेजर ने कुछ कहना चाहा लेकिन अव्यांश ने एकदम से रोक दिया और कहा, "अगर आपको अपनी जॉब प्यारी है तो जैसा मैंने कहा है वैसा ही कीजिए।"


  मैनेजर क्यों अपनी ही जॉब पर आई मीन पैरों पर कुल्हाड़ी मारता! वो भागता हुआ गया और सारे फाइल्स और लैपटॉप लेकर अव्यांश के सामने रख दिया। अव्यांश भी बिना इधर उधर देखे अपने काम में लग गया। काम निपटाने के बाद उसे वापस निशी के पास भी तो जाना था।




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