सुन मेरे हमसफर 32

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   एक बड़ी सी गाड़ी सोसाइटी के अंदर आकर रुकी। पूरे मोहल्ले में उस गाड़ी को देख कानाफूसी शुरू हो गई। सभी अपने अपने फ्लैट से बाहर निकल कर झांकने लगे। इससे पहले इतनी बड़ी गाड़ी वहां कभी नजर नहीं आई थी।


    निशी उतरने को हुई तो अव्यांश ने उसे रोक दिया और बोला "तुम्हारे पूरे सोसाइटी वाले हमें देख रहे हैं। थोड़ी देर रुक जाओ।"


     अव्यांश ने दरवाजा खोला और बाहर निकल गया। दूसरों के सामने शो ऑफ करने में अव्यांश कभी पीछे नहीं हटता था। जब तक उसे एक मिडल क्लास लाइफ जीना था तब तक उसने खुद को काफी कंट्रोल में रखा था। अब जबकि उस पर इस तरह का कोई पाबंदी नहीं थी तो उसने बड़े स्टाइल से दूसरी तरफ आकर निशी की तरफ का दरवाजा खोला और निशी के सामने अपना हाथ आगे कर दिया।


    निशी पहले तो उसे देखकर थोड़ा सा झिझक गई लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने अव्यांश के हाथ में अपना हाथ दे दिया।


    निशी के मां पापा सुबह से ही उन दोनों का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने गाड़ी रुकने की आवाज सुनी हो दोनों जल्दी से बाहर आए और अपनी बेटी दामाद का तिलक और आरती से स्वागत किया। निशी और अव्यांश ने झुककर दोनों के पैर छुए तो मिश्रा जी ने अव्यांश को गले से लगा लिया। मिश्रा जी ने अपने पत्नी को दोनों को अंदर आने को कहा लेकिन निशी की मां बस अपने सोसायटी के लोगों को देख कर मुस्कुरा दी। जो लोग कल उन्हें ताना देने आए थे, वो ही लोग आज बड़ी हसरत भरी नजरों से उन्हें देख रहे थे। निशी के कपड़ों से लेकर उसके गहने तक। सूरज की किरणों से चमकता निशी का चेहरा और उसके गहने, कईयों की आंखें चौंधिया गए।


    निशी की मां ने मुस्कुराकर सब को इग्नोर किया और अपनी बेटी दामाद को लेकर वहां से अंदर चली गई। मिश्रा जी ने भी अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया। आपस में सारे लोग कानाफूसी से करने लगे। लेकिन इतना तो तय था कि कल तक हंसने वाले लोग आज जलभुन कर राख हुए जा रहे थे। 


    अंदर आते ही अव्यांश ने खुद को पूरी तरह कंफर्टेबल कर लिया। ऐसा लगा ही नहीं कि वो पहली बार घर आया हो। निशी की मां, रेणु जी ने जो भी इंतजाम कर रखे थे और अव्यांश के बारे में जो कुछ भी सोच रहा था, अव्यांश वैसा बिल्कुल भी नही था। बाहर से मंगाए स्नैक्स खाने की बजाए उसने घर की बनी मठरी और पकोड़े उठाई और चाय का कप लेकर बैठ गया। कुछ देर में जब अव्यांश मिश्रा जी के साथ बात करने में व्यस्त हो गया तो निशी की मां, निशी को लेकर कमरे में चली गई। उन्हें अपनी बेटी से काफी कुछ बात करनी थी।



*****


  शाम के समय सिद्धार्थ और सारांश समर्थ के साथ अव्यांश के केबिन में बैठे कोशिश कर रहे थे। केबिन तो लगभग पूरी तरह तैयार हो चुका था बस इसे अव्यांश के हिसाब से डेकोरेट करना था। समर्थ बातों बातों में पूछा "यह सब तो हो गया पापा, लेकिन यह तो डिसाइड करना होगा कि हमारे अंशु महाराज को असीस्ट कौन करेगा? उसे भी तो एक असिस्टेंट की जरूरत होगी।"


     सिद्धार्थ और सारांश दोनों ही कुछ सोचने लगे। सिद्धार्थ ने एकदम से कहा "अरे वो है ना! वो लड़की, क्या नाम है उसका?"


     सारांश ने पूछा "कौन सी लड़की?"


    सिद्धार्थ उस लड़की का नाम याद करने की कोशिश कर रहा था। "अरे वही लड़की जो अभी कुछ महीने पहले यहां पर ज्वाइन की थी। अरे वह अपने फाइनेंस डिपार्टमेंट में है।"


    सारांश को याद नहीं आ रहा था लेकिन समर्थ शायद थोड़ा बहुत समझ गया था फिर भी उसने ना समझने का नाटक किया। वो नाम उसके दिल में तो था लेकिन जुबान पर आने से झिझक रहा था।


     सिद्धार्थ झुंझलाकर बोला "अरे वो ही लड़की जो अपनी सोनू की दोस्त है और जिसे समर्थ ने रिकमेंड किया था। सोमू की तो स्टूडेंट भी है वो तो! बता ना सोमू! तुझे तो उसका नाम याद ही होगा।"


    सारांश बोल पड़ा, "कहीं आप तन्वी की तो बात नही कर रहे?"


    सिद्धार्थ को अब जाकर उसका नाम याद आया उसने कहा, "हां वही! मैं उसी लड़की की बात कर रहा था। तुझे याद आ गया लेकिन जिसकी स्टूडेंट है, उसे ही याद नहीं। बादाम खाया करो अधेड़ उम्र के इंसान।"


    समर्थ को इस ताने से कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने अंजान होकर बोला, "पापा! मेरी कई सारी स्टूडेंट्स है। किस किस के नाम याद रखता फिरूंगा? ऐसी कई लड़कियों को मैंने रिकमेंड किया है, जो काबिल भी थी और जरूरतमंद भी। कितनों को याद रखूंगा? आप किसकी बात कर रहे है, मुझे कैसे पता होगा?"


    समर्थ ने खुद को सही साबित करने के लिए बोल तो दिया लेकिन इस बात से अनजान कि उसकी ये सारी बाते दरवाजे पर खड़ी तन्वी सुन रही थी। गेहुआं रंग, काजल से सनी चमकती गहरी आंखें जिसमे कोई भी खो जाए, लंबी पलकें, कमर तक लंबे बाल जो ढीली चोटी में बंधे थे, कद पांच फुट, पलता शरीर जिस कारण वो अपनी उम्र से थोड़ी छोटी लग रही थी। आंखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा और चश्मे के पीछे आंखों में छुपा एक दर्द जिसे शायद ही कोई समझ पाए। उसे ऐसे ठिठका देख सारांश ने कहा, "अरे तन्वी! तुम वहां दरवाजे पर क्या कर रही हो?"


    तन्वी का नाम सुनकर समर्थ जैसे जड़ हो गया। 'कहीं इसने कुछ न लिया हो। भगवान जी प्लीज!' लेकिन तन्वी अपने होंठो पर हमेशा की तरह मुस्कुराहट लिए अंदर दाखिल हुई और एक फाइल सारांश की तरफ बढ़ाकर बोली, "सर! आपने ये फाइल कंप्लीट करने को कहा था। मैं ले आई।" और उसने फाइल सारांश की तरफ बढ़ा दिया।


     सारांश ने कहा, "समर्थ! तुम ये फाइल देख लो और इसमें जो भी चेंजेज करने हो, तुम तन्वी को बता सकते हो।"


   ना समर्थ ने फाइल लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया और न ही तन्वी ने उसे देने के लिए। समर्थ ने बस फाइल को टेबल पर रखने का इशारा किया लेकिन एक बार भी उसकी तरफ देखा नहीं। सारांश और सिद्धार्थ दोनों बाते करने में लगे जिस कारण किसी का ध्यान उन दोनों पर नही गया। समर्थ ने बड़ी हिम्मत कर अपनी नजर ऊपर की और तन्वी की तरफ देखने की कोशिश की लेकिन तन्वी ने फाइल टेबल पर रखा और बिना एक पल भी गवांए वहां से निकल गई। समर्थ बस उसे जाते हुए देखता रहा।


    सारांश ने भी जाती हुए तन्वी की तरफ देखा और कहा, "वैसे सोमू! तन्वी बेस्ट चॉइस है ना?"


     समर्थ ने बेख्याली में कहा, "हां चाचू! वो बेस्ट है, सबसे बेस्ट।"

   



(हम्म्मम! तो क्या है कहानी समर्थ की? और क्यों है ये खामोशी?



Author's note:- सॉरी आजके छोटे से पार्ट के लिए। Fever है यार, क्या करू!!)




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