सुन मेरे हमसफर 31

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    सुहानी ने निशी को अच्छी तरह से तैयार कर दिया और बाकी के गहने ले जाकर उसके अलमारी में रख दिए। निशी ने खुद को आईने में देखा। सुहानी ने उसे जो भी ज्वैलरी पहनाई थी, वह सारे दिखने में नॉर्मल थे। भले ही उनकी कीमत काफी ज्यादा थी लेकिन उन्हें पहनने के बाद हैवी फील नहीं होता था।


     निशी के मन में एक सवाल घूम रहा था और जवाब के लिए उसे सुहानी से बेहतर और कोई नहीं लगी तो उसने कहा "सुहानी! एक बात पूछूं?"


     सुहानी निशी के पास आई और बोली "पहले काला टीका तो लगा दूं!" उसने काजल पेंसिल उठाई और निशी के कान के पीछे छोटा सा टीका लगा दिया "अब नजर नहीं लगेगी किसी की। हां! अब पूछो क्या पूछना है?"


    अव्यांश उसी वक्त कमरे में दाखिल हुआ, जिसे देख निशी थोड़ी संकोच में पड़ गई। अव्यांश के सामने वह बड़े पापा और बड़ी मां के बारे में पूछे या नहीं? सुहानी ने उसे जब चुप देखा तो बोली "निशी! तुम्हें कुछ भी पूछने से पहले सोचने की जरूरत नहीं है। तुम इस घर में नई हो तो जाहिर सी बात है, कई सारे सवाल तुम्हारे मन में होंगे। अगर तुम उन्हें पूछोगी नहीं तो तुम्हें पता कैसे चलेगा कि घर में कौन कैसा है, कौन क्या करता है, कब क्या होता है?"


     निशी ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और पूछा "वह सुबह डाइनिंग टेबल पर जो हुआ। वह तलाक की बात...........!"


     निशी अपना सवाल पूरा कर पाती, उससे पहले ही काया ना जाने कहां से उड़ती हुई आई और पहले तो निशी के गले लग गई और उसकी खूबसूरती की तारीफ कर एक फ्लाइंग किस उसकी तरफ उछाल दिया। फिर सुहानी का हाथ पकड़ कर बोली "चल सोनू! चित्रा मासी वापस जा रही हैं। उनके लिए कुछ गिफ्ट लेना है। तू चल मेरे साथ।"  काया सुहानी को खींच कर अपने साथ ले गई। कमरे में बस निशी और अव्यांश रह गए।


     निशी अव्यांश से बात करने में अभी भी कंफर्टेबल नहीं थी इसलिए जाकर एक तरफ बैठ गई। अव्यांश ने पूछा "तुम्हारा सामान कहां है?"


      निशी हिचकते हुए बोली "खाली हाथ आई थी, लेकर क्या जाऊं?"


     अव्यांश को उसकी बाते समझ आ रही थी लेकिन उसने ऐसे दिखाया जैसे उसे कुछ समझ नहीं आया। अव्यांश ने एक छोटा सा बैग निकाला। उसमें एक तरफ अपने कपड़े रखें और दूसरी तरफ निशी के लिए दो जोड़ी कपड़े भी पैक कर दिया। "तुम्हारा मेकअप का सामान और जरूरत की कुछ चीजें ,जो भी है वह दे दो, मैं रख दे रहा हूं। अभी इसमें काफी जगह है।"


     निशी को समझ नहीं आया वह क्या करें। जब उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया तो अव्यांश ने खुद से आईने के पास रखे कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट अपने हिसाब से उठाया और उनको बैग में डाल दिया। निशी बोली "इस सब की कोई जरूरत नहीं थी।"


     लेकिन अव्यांश इस बार सख्त लहजे में बोला "जरूरत थी निशी! शादी से पहले तुम जिस तरह रहती थी तुम आज भी उसी तरह रह सकती हो। हर तरह की आजादी है तुम्हें लेकिन घर की, इस परिवार की इंसल्ट करने की आज़ादी नहीं मिलेगी तुम्हें। क्योंकि यह आजादी मुझे भी नहीं मिली थी, समझ गई तुम? तुम अपने मायके से कुछ लेकर नहीं आई थी क्योंकि मॉम डैड ने कोई डिमांड नहीं की थी और ना ही हम में से किसी को कुछ चाहिए था, सिवाय तुम्हारे। अब तुम इस घर की मान मर्यादा हो। अगर यहां से खाली हाथ गई तो तुम्हारे मां पापा इस घर को लेकर क्या सोचेंगे? मुझे उनकी भी परवाह नहीं है, लेकिन जब तुम यहां से जाओगी तो तुम्हारे मायके में तुम्हारे अड़ोस पड़ोस के लोग एक बार जरूर तुम्हें देखने आएंगे और वो सारे लोग जिन्होंने शादी में तमाशा देखा था, उन लोगों को फिर कुछ कहने का मौका मिल जाएगा। वो लोग भले तुम्हें ना सही, लेकिन तुम्हारे मां पापा को जरूर ताना देंगे और सबको यही लगेगा कि मित्तल परिवार अपनी बहू का किस तरह ख्याल रखता है। जो कुछ भी तुम्हारा बहुत छूट गया है उन्हें याद भी करने की जरूरत नहीं है। अपने मां पापा और उनसे जुड़ी यादों के अलावा तुम्हें वहां के किसी भी चीज से रिश्ता नहीं रखना। ना कोई यादें, ना कोई इंसान। तुम जब चाहो अपने मायके जा सकती हो, तुम्हें मैं खुद लेकर चलूंगा लेकिन अपने मायके में तुम यहां से यहां की बहू बनकर जाओगे, बस इतना ध्यान रखना।"


     अंश ने आज पहली बार निशी से इतने सख्त लहजे में बात की थी। उसने बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि वह उससे इस तरह बर्ताव करेगा, लेकिन निशी का व्यवहार उसे एकदम परायो जैसा लग रहा था। भले ही उन दोनों के बीच का रिश्ता सामान्य नहीं था लेकिन कम से कम घरवालों के प्यार का मान तो उसे रखना ही था, चाहे वह प्यार से हो या डांट कर। जो कुछ उसका है वह सब उसे दिल से अपनाना होगा, चाहे परिवार हो या फिर उसकी अलमारी में रखे कपड़े। निशी को बिना शर्त इन सारी चीजों पर अपना हक जताना होगा। ये बात निशी जितनी जल्दी समझ जाती उतना उन दोनों के रिश्ते के लिए अच्छा था।


     निशी चुपचाप सर झुकाए बैठी रही और अव्यांश बाथरूम में घुस गया। अव्यांश ने खुद को शांत किया और बोला, "ये क्या हो गया था तुझे? क्यों बिना वजह निशी पर गुस्सा हो गया। बंगलोर में कहीं वो देवेश से तो........ नही नही!! ऐसा कुछ नही होगा। बस तुझे उस इंसान को निशी के पास आने देने से रोकना होगा, और निशी को भी। इतना कुछ हो ए के बाद क्या निशी मिलेगी उससे? बस कर अंश! वो तेरी बीवी है, उसपर भरोसा रख।"


     अव्यांश ठंडे पानी से चेहरा धो कर वापस निकला। तैयार होते हुए आईने में उसकी नजर निशी पर गई जो हाथ में फोन लिए चुपचाप उसे देख रही थी। निशी को इस तरह देख अव्यांश को थोड़ा बुरा लगा। लेकिन वह करता भी क्या! फिर भी उसने हिम्मत की और बोला, "सॉरी निशी! मैं बस थोड़ा सा अपसेट था और तुम पर अपना सारा फ्रस्टेशन निकाल दिया। सॉरी......!" अव्यांश ने बिना झिझक के अपने कान पकड़ लिए तो निशी हल्के से मुस्कुरा दी।


    अचानक ही अव्यांश को निशि की वह बात याद आई जो सवाल उसने सुहानी से पूछने की कोशिश की थी। उसने कहा "बड़ी बहुत बड़ी मां के बारे में जानना था ना?"


     निशी चौक कर अव्यांश की तरफ देखने लगी तो अव्यांश बोला "नीचे डाइनिंग टेबल के ऊपर जो कुछ भी हुआ वह सब एक मजाक था और कुछ नहीं। हमारे घर में ऐसा कुछ नहीं होता जैसा तुमने देखा। बात यहां तलाक की थी नहीं, बल्कि बड़े पापा और बड़ी मां के डेट को लेकर थी। बड़े पापा काफी टाइम से अपने काम में इतने बिजी थे कि बड़ी मां पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे। इसलिए हम सब ने मिलकर यह नाटक रचा था। वैसे यह बात उन्हें भी पता थी। तुम्हें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। रिश्तो की अहमियत हम बहुत अच्छे से समझते हैं, खासकर बड़े पापा और बड़ी मां। बड़ी मां की दूसरी शादी है और बड़े पापा का भी यह दूसरा रिलेशनशिप है। तलाक और शादी, इन दोनों का मतलब वह दोनों बहुत बेहतर समझते हैं। उन दोनों को ही अपने पहले पार्टनर से जो खुशियां नहीं मिली, वो उन दोनों ने एक दूसरे में पाया है। एक दूसरे की कमी को पूरा करना और एक दूसरे की खुशी में खुश होना, यही तो सच्चा प्यार है, है ना?"


     निशी ने अभी भी कुछ नहीं कहा। ड्राइवर ने दरवाजे पर दस्तक दी और बोला "बड़ी मालकिन ने आपका सामान बाहर गाड़ी में रखने को कहा है।"


    अव्यांश ने एक बैग की तरफ इशारा किया तो ड्राइवर उसे लेकर चला गया। उसने निशी को चलने के लिए कहा और खुद भी बाहर निकलने लगा। फिर एकदम से रुक कर उसने कहा "फिर से सॉरी। मैं तुम्हें डांटना नहीं चाहता था, लेकिन तुम इस तरह अजनबी की तरह बर्ताव करोगी तो तुम किसी से डांट खाओगी, इसलिए बेहतर है इस घर पर और यहां के लोगों पर अपना हक जताना शुरू कर दो। मैं........! आई मीन, सब तुम्हे बहुत प्यार करते है। उनके प्यार के खातिर!"


    निशी ने बस अपना सिर हिला दिया। अव्यांश निशी को लेकर बाहर आया तो देखा, दरवाजे पर एक ब्रांड न्यू स्पोर्ट्स कार खड़ी थी जिसकी चाभी सिया के पास थी। उसे देखते ही अव्यांश की आंखें चमक उठी।


    "वाउ दादी! ये मेरे लिए है?" अव्यांश ने कहा और चाबी लेने के लिए अपनी दादी की तरफ लपका लेकिन सिया ने एकदम से चाबी छुपा ली और निशी के हाथ में देकर बोली, "ये गाड़ी मेरी बच्ची के लिए है। तेरी वाली कार तो पीछे पड़ी हुई है कब से। तूने तो उसे हाथ भी नहीं लगाना है।"


     अव्यांश बच्चों की तरह मचलते हुए बोला, "दादी! वो सब 6 महीने पुरानी है और आऊट डेटेड भी हो चुकी है। मैं वो गाड़ी चलाऊंगा क्या?"


     सिया सख्त होकर बोली, "अगर ऐसा है तो उसको कबाड़ में बेच दे। लेकिन ये गाड़ी तुझे नही मिलेगी। तेरे कलेक्शन से परेशान होकर  हमने ये फैसला लिया है। हां अगर तुझे चाहिए तो अपनी बीवी के आगे नाक रगड़।" फिर निशी का हाथ पकड़कर कहा, "खबरदार जो इस लल्लू को अपनी गाड़ी की चाबी दी तो! ये तुम्हारा है और इसे जहां मर्जी चला सकती हो। तुम्हे गाड़ी चलाना तो आता है ना?"


    निशी ने ना में सिर हिला दिया। अचानक ही चित्रा आ धमकी और गाड़ी की चाबी निशी के हाथ से लेकर बोली "कोई बात नहीं। अंशु तुम्हें सिखा देगा। फिलहाल हमें एयरपोर्ट के लिए निकलना है, तो चलो मेरे साथ।"


     निक्षय काया कुहू और सुहानी एकदम से वहां प्रकट हुए तो अव्यांश ने पूछा, "आप लोग कहां जा रहे हो?"


     सुहानी बोली, "एयरपोर्ट! आप चारों को सी ऑफ करने के बाद गाड़ी घर लेकर आने वाला भी तो कोई चाहिए ना!"


     अव्यांश ने बुरा सा मुंह बना लिया और गाड़ी में बैठ गया जिसे चित्रा ड्राइव करने वाली थी। अव्यांश ने जल्दी से निशी की सीट बेल्ट बांधी। निक्षय ने कहा, "चित्रा! थोड़ा संभाल कर। निशी डर जायेगी वरना।"


    लेकिन चित्रा कहां सुनने वाली थी। उसने गाड़ी स्टार्ट की और लगभग उड़ाते हुए एयरपोर्ट के लिए निकल पड़ी।




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