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सुन मेरे हमसफर 318

  318 सुहानी कार्तिक सिंघानिया के साथ रेस्टोरेंट के एक प्राइवेट केबिन में बैठकर लंच कर रही थी। सब कुछ कार्तिक सिंघानिया ने सुहानी की पसंद का ही मंगवाया था। यह देखकर सुहानी को थोड़ा तो अच्छा लगा कि उसकी पसंद का ख्याल रखा जा रहा है।  खाते हुए कार्तिक सिंघानिया ने अचानक से पूछा, “कायरा कैसी है?"  सुहानी ने चौक कर हैरानी से कार्तिक की तरफ देखा तो कार्तिक सिंघानिया ने अपनी बात समझाते हुए कहा, “वह रिशु ने बताया कि वो काफी परेशान थी। बस इसलिए पूछा।" सुहानी को पता नहीं क्यों लेकिन काया से थोड़ी सी जलन हुई। उसने कहा, “तुम्हें शायद तन्वी के बारे में पूछना चाहिए था।"  कार्तिक सिंघानिया ने चम्मच को थोड़ा सा टेढ़ा किया और कुछ सोचते हुए कहा, “हां वह मैं बस उनके के बारे में पूछने ही वाला था। जो हुआ वह सही नहीं हुआ। हम सब भी बहुत परेशान है। मॉम डैड तो बोल भी रहे थे कि इस इंगेजमेंट को कुछ टाइम के लिए पोस्टपोन कर देते है।"  सुहानी ने इनकार करते हुए कहा, “मुझे नहीं लगता ये सही होता। तन्वी मेरी दोस्त है और मेरी होने वाली भाभी भी। जब भाई ने ही इस सबके लिए मना कर दिया तो फिर हममें से को

सुन मेरे हमसफर 317

  317  अव्यांश निशि के पास ही बैठा था और बार-बार उसका टेंपरेचर चेक कर रहा था। जो कुछ भी उसे समझ में आता वह सब कुछ करके देख लिया था। और ऐसे में इंतजार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। कल निशी का बर्थडे था और ऐसे में उसने निशी के लिए तलाक के पेपर तैयार करवा लिए थे, उसके बर्थडे पर सबसे खूबसूरत गिफ्ट समझकर। लेकिन क्या निशि अपने दिल की बात बता पाएगी और ये अलगाव रोक पाएगी?   रात भर ना सोने के कारण अव्यांश बैठे बैठे ही ऊंघने लगा था। उसकी पलके नींद से बोझिल हुई और वह वही निशी के बगल में सो गया।  दूसरी तरफ हॉस्पिटल में, डॉक्टर तन्वी को एग्जामिन कर रहे थे। तन्वी को होश आ चुका था और वह खाली नजरों से अपने चारों तरफ देख रही थी। इस वक्त वह कहां थी और उसके आसपास क्या हो रहा था, उसे कुछ पता नहीं चल रहा था। डॉक्टर ने तन्वी को समझाते हुए कहा, “अब आप बिल्कुल ठीक है। बस अपने दिमाग पर जोर मत देना। खुश रहो, यह सबसे बड़ी दवाई है आपके लिए। इसके अलावा भी जो दवाई है वह में लिख दे रहा हूं।"  तन्वी को डॉक्टर की कहानी कोई भी बात समझ में नहीं आई। वो तो बस उस डॉक्टर को देखे जा रही थी। डॉक्टर को भी तन्वी का

सुन मेरे हमसफर 316

  316 रेणु जी परेशान थी। निशी का फोन नहीं लग रहा था और जब से वह घर से निकली थी, उसने बस एक बार ही फोन करके अपने पहुंचने की खबर की थी। उसके बाद से दोनों मां बेटी की कोई बात ही नहीं हुई। रेनू जी ने अपनी परेशानी मिश्रा जी के साथ शेयर की और उन्हें पूरी बात बताई। मिश्रा जी को अपनी बेटी की चिंता नहीं थी। उन्होंने कहा, “रेणु जी, आपकी बेटी अगर अपने ससुराल पहुंच गई है तो फिर हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है। उसके ससुराल वाले हमसे बेहतर उसका ख्याल रखते हैं।" लेकिन रेणु जी मां थी। कैसे इतनी बात से संतुष्ट हो जाती। उन्होंने कहा, “हां मै जानती हूं। लेकिन उसने एक बार भी फोन नहीं किया। यहां थी तो उसकी अव्यांश से कोई बात नहीं हो पा रही थी। वहां गई भी तो उसने एक बार भी इस बारे में कुछ नहीं बताया। आप भी तो कह रहे थे ना कि कुछ प्रॉब्लम है, कुछ हुआ है वहां पर। फिर आप इस तरह निश्चित कैसे हो सकते हैं?" मिश्रा जी ने रेणु जी को समझाते हुए कहा, “आपकी बेटी जब से शादी करके गई है तब से हमें लगभग भूल ही गई है। वह तो अव्यांश है जो हमेशा हमें याद रखता है। हां पिछले कुछ टाइम से वह भी बिजी था इसलिए हमें फोन

सुन मेरे हमसफर 315

 315  डॉक्टर ने निशि को दिखा और अव्यांश से पूछा "ये तुम्हारी वाइफ है ना?"  वह डॉक्टर सारांश को बहुत अच्छे से जानते थे। और अव्यांश को भी इसलिए उनका सवाल सुनकर अव्यांश इनकार नहीं कर पाया और कहा, "हां लेकिन अंकल यह होश में नहीं आ रही। अगर प्रॉब्लम ज्यादा है तो हम इसे लेकर हॉस्पिटल चलते हैं।" डॉक्टर ने अव्यांश की तरफ देखा और उसके चेहरे पर घबराहट देख उसे ताना मारते हुए कहा, “बहुत फिक्र हो रही है अपनी बीवी की। इतनी फिक्र हो रही है तो सबसे पहले से कपड़े चेंज करो। गीले कपड़े में यह ठीक नहीं होगी, उल्टे और ज्यादा बीमार हो जाएगी। और इसको हुआ कुछ नहीं है, बॉडी टेंपरेचर डाउन हो गया है। ऐसा लग रहा है जैसे पूरी रात बारिश में खड़ी रही थी। लेकिन उस टाइम तुम कहां थे और कर क्या रहे थे तुम दोनों जो उसकी हालत ऐसी हो गई?"  अव्यांश ने सफाई देने की कोशिश की और कहा, "अंकल मैं यहां नहीं था। किसी काम से बाहर निकाला था। मुझे नहीं पता था कि यह इतनी लापरवाह निकलेगी।"  डॉक्टर ने उठते हुए कहा, “मुझे जो करना था मैंने कर दिया है। इसके आगे सबसे पहली बात जो बहुत ज्यादा जरूरी है, इस

सुन मेरे हमसफर 314

 314  निशि का फोन हाथ में लिए अंशु बेचैनी से इधर-उधर देखे जा रहा था। उसने पहले ही निशी को पूरे घर में ढूंढा था लेकिन वह यहां नहीं थी। "अगर वो यहां नहीं है तो फिर कहां है? और ऐसा कैसे हो सकता है, निशि ऐसे अपना फोन छोड़कर कहीं चली गई हो? कहीं उसके साथ कुछ गलत........! नहीं नहीं, अच्छा सोच। ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा उसे वो ठीक ही होगी और यहीं कहीं होगी। उसके साथ कुछ गलत नहीं हो सकता, बिल्कुल नहीं।" अपने आपमें बड़बड़ाता हुआ अंशु निशी को आवाज लगने लगा। "निशी......! निशी क्या तुम सुन रही हो मुझे? बाहर आओ।" लेकिन निशी की कहीं से कोई जवाब नहीं आई। अंशु का मन आशंकाओं से घिर गया और एक बार फिर उसने पूरे घर को अच्छे से देखा। कहीं किसी के आने या जाने का कोई निशान नहीं था। सारी चीजे जहां जैसी रखी थी वैसे ही पड़ी थी, यहां तक की निशि का बैग भी टेबल के साइड में रखा हुआ था।  शाम को जब अंशु निशि को छोड़कर निकाला था तो उसके कुछ देर बाद ही बारिश शुरू हो गई थी। उस टाइम निशी वही फार्म हाउस पर मौजूद थी। लेकिन आधी रात के वक्त जब उसने चेक किया था तो निशि फार्म हाउस पर नहीं थी। उसका लोकेशन फार्म

सुन मेरे हमसफर 313

  313  शुभ किसी काम से अपने कमरे से बाहर निकला था जब उसे स्टोर रूम से कुछ खटपट की आवाज सुनाई पड़ी। उसने अंदर झांक कर देखा तो हैरान रह गया। अंदर स्टोर रूम में सारांश कुछ ढूंढने में लगा हुआ था जो उन्हें मिल नही रहा था।  शुभ को सारांश की यह हरकत बहुत अजीब लगी क्योंकि इससे पहले सारांश ने कभी मेहनत नहीं की थी भले ही इसके बदले उसे कितना भी काम करवा लो। शुभ ने हैरानी जताते हुए पूछा "भाई आप यहां क्या कर रहे हो?"  एकदम से शुभ की आवाज सुनकर सारांश जो अपना पूरा ध्यान लगाकर काम कर रहे थे, वो चौक गए। और चौंकने से भी ज्यादा वो डर गए। सारांश ने पलट कर दरवाजे की तरफ देखा तो शुभ को खड़ा देख राहत की सांस ली और अपने सीने पर हाथ रख कर कहा "ये क्या कर रहा है तू! डरा दिया यार।" शुभ ने कर अंदर आते हुए पूछा "हां और ऐसे भूत की तरह आधी रात को कोई क्या करता है, उसका जवाब भी तो होना चाहिए। वैसे इतनी रात को आई मीन आधी रात को ऐसे भूत की तरह स्टोर रूम में चोरों की तरह क्या कर रहे थे जो मेरे आने से डर गए?"  सारांश ने अपनी सिचुएशन संभालते हुए कहा "डर, और मैं? मैं क्यों अपने घर में डर

सुन मेरे हमसफर 312

 312      अवनी खाना खाने के बाद कुछ देर तक स्टडी रूम में बैठी अपने एनजीओ के फाइल में उलझी रही। जब रात के 12:00 बजे और नींद आंखों में भरने लगी तब जाकर उन्हें सोने का ख्याल आया। अवनी स्टडी रूम से अपने सारे काम समेट कर बाहर निकली और अपने कमरे की तरफ बढ़ी। लेकिन चलते हुए एक पल को उनके कदम रुक गए। 'निशि अंशु के पास गई है। ऐसे में उन दोनों के बीच क्या बात हुई होगी? अंशु से आज पूरे दिन में एक बार भी बात नहीं हो पाई है। पता नहीं कहां है क्या कर रहा है। निशि को इस तरह अचानक अपने सामने देखकर पता नहीं अंशु ने कैसे रिएक्ट किया होगा। आई होप वह ठीक हो।' सोचते हुए अवनी ने अपना फोन लिया और अव्यांश को कॉल लगा दिया।  रिंग जाती रही लेकिन अव्यांश ने फोन नहीं उठाया लेकिन अवनी भी कहां हार मानने वाली थी। अगर अव्यांश जिद्दी था तो वह उसकी भी मां थी। अवनी ने तब तक फोन किया जब तक की अव्यांश ने परेशान होकर फोन रिसीव नहीं कर लिया। फोन के दूसरी तरफ से अव्यांश की परेशान सी आवाज आई "क्या हुआ मॉम! आप इतना कॉल क्यों कर रही है?" अवनी कुछ कहती उससे पहले उन्हें बैकग्राउंड से कुछ आवाज सुनाई दी। उन्ह

सुन मेरे हमसफर 311

  311      कुणाल शिवि के पीछे पीछे चल रहा था। उसने एकदम से अपनी स्पीड बढ़ाई और शिवि के साथ चलते हुए कहा "तुम्हें क्या लगता है, यह सब कुछ ठीक होने में कितना टाइम लगेगा?"  शिवि ने सर झुकाए ही चलते हुए कहा "अब इस सब के बारे में मैं क्या कह सकती हूं। यह सब तो अब भाई के हाथ में है कि वो कब तक इस मामले को खींचना चाहते हैं।" कुणाल ने कहा "लेकिन मैं तो तन्वी की तबीयत के बारे में पूछ रहा था। तुम किस बारे में बात कर रही हो?"  शिवि के कदम चलते हुए एकदम से रुक गए। कुणाल आकर शिवि के सामने खड़ा हो गया और उसे सवालिया नजरों से देखने लगा। शिवि ने नजरे उठाकर कुणाल की तरफ देखा और उसे अपनी तरफ देखा पाकर उसने नज़रें फेर ली। कुणाल ने थोड़ा झुककर पूछा "क्या हुआ, तुम किस बारे में बात कर रही हो?"  शिवि ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा "कुछ नहीं, मैं तो बस यह कह रही थी कि भाई......" कुणाल ने शिवि को एकदम से उसके दोनों कंधे से पकड़ा और कहा "शिवि! मुझे नहीं लगता कि हमारे बीच ऐसे हिचक होनी चाहिए। अब मैं भी तुम्हारे परिवार का हिस्सा हूं जज मुझे भी पूरी बात जानने का ह

सुन मेरे हमसफर 310

  310  अव्यांश बेसुध का फार्म हाउस से निकाल तो गया लेकिन उसे जाना कहां था ये वो खुद भी नहीं जानता था। बस वह कहीं जाना चाहता था। निशी की बाते और उसकी आंखें अव्यांश को बेचैन कर रही थी और वह इस मोह के जाल में फंसना नहीं चाहता था। पीछे खड़ी निशि बस उसे जाते देखती रही लेकिन रोक नहीं पाई। उसके पैर जैसे किसी ने बांध रखे हो। उसे यह तक समझ नहीं आ रहा था कि इसके आगे वह कैसे रिएक्ट करें, क्या करें किसके पास जाए।  दूसरी तरफ समर्थ अस्पताल में तन्वी के बेड के पास बैठा था। तन्वी अभी भी बेहोश थी और समर्थ उसका हाथ छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था। शिवि अपनी ड्यूटी पूरी करके जब एक बार तन्वी को देखने आई तो अपने भाई को इस तरह बैठा देख उसे बहुत तकलीफ हुई। शिवि ने जाकर समर्थ के कंधे पर हाथ रख तो समर्थ ने बिना उसकी तरफ देख कहा "मैं कहीं नहीं जा रहा। यही हूं ठीक हूं।"  शिवि ने उसके कंधे पर झुक कर बड़े प्यार से कहा "मैं आपको कहीं जाने के लिए कह भी नहीं रही। आप यहां है तो मुझे खुशी है कि इस कंडीशन में आप मेरी भाभी का साथ नहीं छोड़ रहे हो और यह बहुत बड़ी बात है। लेकिन भाई, जब भाभी को होश आएगा तो उन्हे

सुन मेरे हमसफर 309

  309  अव्यांश उठकर वहां से जाने लगा तो निशी ने दौड़कर जाकर मेन दरवाजा बंद किया और अव्यांश के सामने खड़ी होकर पूछा "कहां जा रहे हो तुम, शिल्पी से मिलने? डेट पर जा रहे हो? ओह नही, मूवी डेट पर। उसके बाद क्या करने का प्लान है?"  अव्यांश ने सपाट लहजे में में पूछा "तुम्हें इससे क्या मतलब है? मैंने तो कभी तुम्हें नहीं रोका। तुम जो चाहे करो, तुम आजाद हो। तुम्हें कोई रोकने वाला नहीं है तो मैं भी यह एक्सपेक्ट कर सकता हूं तुमसे।" निशि ने आगे बढ़कर एकदम से अव्यांश का कॉलर पकड़ लिया और कहा, "तुम ऐसा करके तो देखो, मैं तुम्हारी जान ले लूंगी।" अव्यांश निशी की आंखों में यही आग देखना चाहता था, हमेशा से लेकिन क्या वह जो कुछ कर रही थी वह सच था या दिखावा, अव्यांश यकीन नहीं कर पा रहा था। निशी ने एक बार फिर पूछा "अव्यांश मित्तल! मैं तुम्हारी बीवी तुम्हारे सामने खड़ी हूं और तुम मुझे छोड़कर किसी और के पास जाना चाहते हो? कितनी आसानी से मुझ पर ब्लेम लगा दिया तुमने कि मैं किसी और के साथ इंवॉल्व हूं। क्या तुमने एक बार भी मुझसे बात करने की कोशिश की? क्या एक बार भी तुमने मु