सुन मेरे हमसफर 316

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रेणु जी परेशान थी। निशी का फोन नहीं लग रहा था और जब से वह घर से निकली थी, उसने बस एक बार ही फोन करके अपने पहुंचने की खबर की थी। उसके बाद से दोनों मां बेटी की कोई बात ही नहीं हुई। रेनू जी ने अपनी परेशानी मिश्रा जी के साथ शेयर की और उन्हें पूरी बात बताई। मिश्रा जी को अपनी बेटी की चिंता नहीं थी। उन्होंने कहा, “रेणु जी, आपकी बेटी अगर अपने ससुराल पहुंच गई है तो फिर हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है। उसके ससुराल वाले हमसे बेहतर उसका ख्याल रखते हैं।"


लेकिन रेणु जी मां थी। कैसे इतनी बात से संतुष्ट हो जाती। उन्होंने कहा, “हां मै जानती हूं। लेकिन उसने एक बार भी फोन नहीं किया। यहां थी तो उसकी अव्यांश से कोई बात नहीं हो पा रही थी। वहां गई भी तो उसने एक बार भी इस बारे में कुछ नहीं बताया। आप भी तो कह रहे थे ना कि कुछ प्रॉब्लम है, कुछ हुआ है वहां पर। फिर आप इस तरह निश्चित कैसे हो सकते हैं?"


मिश्रा जी ने रेणु जी को समझाते हुए कहा, “आपकी बेटी जब से शादी करके गई है तब से हमें लगभग भूल ही गई है। वह तो अव्यांश है जो हमेशा हमें याद रखता है। हां पिछले कुछ टाइम से वह भी बिजी था इसलिए हमें फोन नहीं कर पाया। और अगर ऐसी कोई बात होती तो निशि फोन करके हमें जरूर बताती। आप चिंता मत कीजिए।"


 लेकिन रेणु जी का चेहरा देखकर मिश्रा जी समझ गए कि उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ है उन्होंने कहा, “ठीक है मैं अभी सर को फोन करके पूछता हूं।" 


मिश्रा जी ने रेणु जी के सामने ही सारांश का नंबर डायल किया और फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ से जैसे ही सारांश ने कॉल रिसीव किया, मिश्रा जी ने कहा, “हेलो, सारांश सर!"


रेणु जी ने मिश्र जी के हाथ से फोन लेकर स्पीकर पर डाल दिया। दूसरी तरफ से सारांश की आवाज आई "क्या बात है मिश्रा जी, आज सुबह-सुबह आपका फोन आया। सब ठीक तो है?"


 सारांश की आवाज सुनकर मिश्रा जी को थोड़ी तसल्ली हुई। उन्होंने अपनी पत्नी की तरफ देखा और कहा, “अरे कुछ नहीं सर। वह क्या है ना, निशि से बात नहीं हो पाई है बस इसलिए उसकी मां थोड़ी परेशान थी। क्या वो घर पे है?"


सारांश थोड़ा सोच में पड़ गए कि वह निशि के बारे में बताएं या ना बताएं। एक पिता से वह झूठ नहीं बोलना चाहते थे और सच भी नहीं बता सकते थे। उन्होंने मुस्कुरा कर कहा, “निशी अव्यांश के साथ है और वह दोनों ही इस शहर में नहीं है इसलिए शायद आपका फोन नहीं लगा होगा या उससे बात नहीं हो पाई होगी।"


 निशि अव्यांश के साथ थी। यह सुनकर रेणु जी को तसल्ली हुई। मिश्रा जी ने कहा, "अच्छा हुआ सर जो आपने बता दिया, वरना ये खुद तो परेशान रहती ही मुझे भी परेशान करती।"


 सारांश ने नाराज होकर कहा, “मिश्रा जी कितनी बार कहा है, आप मुझे सर मत बुलाया करिए। समधी है आप हमारे।"


 मिश्रा जी ने थोड़ा शर्मिंदा होकर कहा, “यह तो आपका बड़प्पन है सर वरना हम दोनों का कोई मेल नहीं है। शुरू से ही आपको सर बुलाते आया हूं। इस तरह इतनी जल्दी ही आदत नहीं छूटेगा। रहने दीजिए सर, आपको सर कहता हूं तो मुझे अच्छा लगता है।"


सारांश ने भी हार मानते हुए कहा "ठीक है आपको जिस चीज में अच्छा लगे आप वही कीजिए। और निशी की चिंता मत कीजिए वह ठीक है।" अपनी बेटी के बारे में जान कर मिश्र जी ने फोन रख दिया।

तो वहीं, सारांश ने जब से निशि के बारे में सुना था, तब से उन्हें निशी की चिंता हो रही थी। लेकिन उनके डॉक्टर दोस्त ने उन्हें बता दिया था कि निशी ठीक है बस थोड़ी केयर की जरूरत है। ऐसे में हो सकता था कि निशी की केयर करते करते अव्यांश में इतना पेशेंस आ जाए कि वो निशि को कुछ कहने का मौका दे और उसकी बात सुने। फिर भी जब उनसे रहा नहीं गया तो उन्होंने अव्यांश को फोन लगाने का सोचा। लेकिन इस टाइम शुभ उनके पास आया और कहा, "भाई! जो आप ढूंढ रहे थे क्या यह वही है?"


 शुभ ने एक तस्वीर सारांश के सामने कर दी जिसे देखकर सारांश की आंखें खुशी से चमक उठी। उन्होंने उस तस्वीर को हाथ में लेकर कहा, "कहां मिला तुम्हे ये? मतलब तुम रात भर इसी को ढूंढने लगे थे?"

सपना हंसते हुए कहा भाई जब आप इतनी शिद्दत से इसको ढूंढ रहे थे तो मुझे लगा जरूर कुछ खास होगा। और वैसे भी अंशु और निशी के बचपन की तस्वीर देखकर समझ आया कि आप इसको क्यों ढूंढ रहे थे। दोनों एक साथ कितने प्यारे लग रहे हैं ना?"


 सारांश ने उसे तस्वीर को बड़े ध्यान से देखा और कहा "हम चाहे तब भी अपनी किस्मत से नहीं भाग सकते। बस यह बात अंशु को समझनी होगी। निशी उसकी किस्मत है और बस वही उसकी किस्मत है।"


दूसरी तरफ ,

अव्यांश ने निशी का सर और हाथ छूकर देखा लेकिन आग के इतने करीब होने के बाद भी निशी का बॉडी टेंपरेचर नॉर्मल नहीं हो रहा था। वो परेशान हो गया। अव्यांश जाकर दो ब्लैंकेट और ले आया और उसने निशी के ऊपर डाल दिया। इतने पर भी उसे तसल्ली नहीं हुई तो उसने निशि का हाथ पैर रगड़ना शुरू कर दिया।


 उसके इस कंडीशन के लिए अव्यांश खुद को भी ब्लेम कर रहा था। सारी नाराजगी एक तरफ और अव्यांश का प्यार एक तरफ। वह कुछ और सोच पता उससे पहले उसके फोन पर एक नोटिफिकेशन आया। अव्यांश ने दूर से ही अपने फोन पर नजर डाली तो पाया उसके पापा की तरफ से कोई फोटो थी। अव्यांश फिलहाल इस मूड में बिल्कुल भी नहीं था कि उस मैसेज को खोल कर देखें। इस वक्त उसका पूरा फोकस निशी की तरफ था। बस वह जल्दी से होश में आ जाए।


 सारांश ने जब देखा कि अव्यांश ने उसके मैसेज का कोई रिप्लाई नहीं किया है और ना ही उसके भेजे गए तस्वीर को देखा है तो फाइनली उन्होंने अव्यांश को फोन किया। अव्यांश ने बेमन से फोन उठाया और कहा "बोलिए डैड।"


सारांश ने नाराज होकर कहा "डैड के बच्चे! निशी की तबीयत ठीक नहीं है और तू एक बार भी मुझे फोन नहीं कर सकता था?"


अव्यांश ने माफी मांगते हुए कहा "सॉरी डैड, लेकिन मेरा मूड कुछ सही नहीं था इसलिए मेरा किसी से बात करने का मन ही नहीं हुआ। निशी ठीक है और उसके कंडीशन के बारे में तो आपको पता ही होगा।"


 सारांश ने भी सर हिलाकर कहा "हां वो तो बताया मुझे। तू उसका ध्यान रखना और तुझे पता है कल क्या है?"


 अव्यांश है निशि की तरफ देखा और कल की तारीख को याद करते हुए कहा "कल निशी का बर्थडे है और शायद आज कुछ बड़ा हो जाए। कल तो हमारी ठीक से बात नहीं हो पाई थी, शायद आज निशी के होश में आने के बाद......."


सारांश ने अव्यांश को बीच में ही रोकते हुए कहा "अंशु! कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया जाता और ना ही एक तरफा लिया जाता है। एक बार उससे पूछना कि वह क्या चाहती है। वह खुद अपने मुंह से कहेगी तभी। वरना सिर्फ यह सोच लेना कि उसके दिल में क्या हो सकता है, तू बहुत बड़ी गलती कर बैठेगा। क्योंकि एक लड़की के दिल में क्या है ये भगवान भी नहीं जानते। उसे कहने का मौका देना। तू समझ रहा है? हेलो! अंशु?"


 दूसरी तरफ से अंशु ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने सुनी या नहीं यह भी नहीं पता।

 

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