सुन मेरे हमसफर 313

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शुभ किसी काम से अपने कमरे से बाहर निकला था जब उसे स्टोर रूम से कुछ खटपट की आवाज सुनाई पड़ी। उसने अंदर झांक कर देखा तो हैरान रह गया। अंदर स्टोर रूम में सारांश कुछ ढूंढने में लगा हुआ था जो उन्हें मिल नही रहा था। 


शुभ को सारांश की यह हरकत बहुत अजीब लगी क्योंकि इससे पहले सारांश ने कभी मेहनत नहीं की थी भले ही इसके बदले उसे कितना भी काम करवा लो। शुभ ने हैरानी जताते हुए पूछा "भाई आप यहां क्या कर रहे हो?"


 एकदम से शुभ की आवाज सुनकर सारांश जो अपना पूरा ध्यान लगाकर काम कर रहे थे, वो चौक गए। और चौंकने से भी ज्यादा वो डर गए। सारांश ने पलट कर दरवाजे की तरफ देखा तो शुभ को खड़ा देख राहत की सांस ली और अपने सीने पर हाथ रख कर कहा "ये क्या कर रहा है तू! डरा दिया यार।"


शुभ ने कर अंदर आते हुए पूछा "हां और ऐसे भूत की तरह आधी रात को कोई क्या करता है, उसका जवाब भी तो होना चाहिए। वैसे इतनी रात को आई मीन आधी रात को ऐसे भूत की तरह स्टोर रूम में चोरों की तरह क्या कर रहे थे जो मेरे आने से डर गए?"


 सारांश ने अपनी सिचुएशन संभालते हुए कहा "डर, और मैं? मैं क्यों अपने घर में डरने लगा? कुछ देख रहा था बस। यहां धूल बहुत हो गई है, सफाई करवानी पड़ेगी। काफी दिनों से यहां आया नहीं था तो ऐसे ही देखने चला आया था। ऐसी वैसी कोई बात नहीं है जो तू सोच रहा है।"


 शुभ ने थोड़ा सा झुक कर अपने भाई के चेहरे की तरफ देखा और मुस्कुरा कर पूछा "अवनी से लड़ाई हुई है क्या जो यहां छुपे बैठे हो और अवनी के सोने का इंतजार कर रहे हो?"


अवनी का नाम सुनकर सारांश उछल पड़े और उन्होंने शुभ को डांटते हुए कहा, "थोड़ा धीरे बोल। तूने कभी देखी है हमारे बीच लड़ाई होते हुए? और मैं क्यों छुपने लगा यहां पर, वह भी इतनी धूल भरी जगह में!"


 शुभ सीधा खड़ा हुआ और दोनो हाथ आपस में जोड़कर पूछा "यही तो मैं जानना चाह रहा हूं कि इस धूल भरी जगह में आप कर क्या रहे हो? बताओ, शायद में कुछ हेल्प कर दूं वरना ऐसा ना हो कि पूरी रात यहीं पर बैठे रह जाओ और सुबह अवनी अच्छे से आपका स्वागत करें। वैसे अवनी से रही है क्या जो आपको ढूंढने यहां नहीं आई?"


 सारांश ने मुंह बनाकर कहा "नहीं, जग रही है। स्टडी रूम में कुछ काम कर रही थी और वह यहां नहीं आई इसका मतलब यह है कि अभी भी काम में लगी होगी। लेकिन तुम यहां क्या कर रहे हो?"

शुभ ने कहा, “भाई! ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है।“

सारांश ने गहरी सांस ली और कहा "तू मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा. शुभ ने भी बड़ी मासूमियत से अपना सर हिला दिया तो सारांश ने कहा "अंशु और निशि के बचपन की फोटो ढूंढ रहा हूं।"


 शुभ को सारांश की पूरी बात समझ में नहीं आई। उसने कहा "अंशु की तो बचपन की बहुत सारी फोटो है मेरे पास, कोई सा भी ले लो। 1 मिनट! अंशु और निशि की बचपन की फोटो? लेकिन निशी के बचपन की फोटो यहां थोड़ी मिलेगी, वह तो मिश्रा जी से लेना पड़ेगा।"


 इस बार सारांश ने अपना सर इनकार में लाया और कन्फ्यूज्ड शुभ को सारी बातें बताई। सारी बातें सुनकर शुभ खुद भी हैरान रह गया और कहा, "ये किस्मत भी अजीब सी चीज है। जिसको मिलाना होता है मिला ही देता है चाहे हम कुछ भी कर ले। मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा। अगर ऐसा है तो फिर मुझे भी वो फोटो देखनी है।"


सारांश ने एल्बम की तरफ इशारा किया और कहा "तो ढूंढो। वैसे भी तुम्हें कल ऑफिस जाना नहीं है तो यही काम करते हैं।"

सारांश को ढूंढते हुए अवनी स्टोर रूम के बाहर पहुंची तो देखा शुभ और सारांश दोनों ही वह मौजूद थे और बातें कर रहे थे। अवनी ने शुभ को इग्नोर किया और सारांश से कहा "क्या आपको कल ऑफिस नहीं जाना है या अपने आप को सुपर हीरो समझते हैं जो पूरी रात जागने के बाद कल ऑफिस के लिए फ्रेश फील करेंगे?"


 शुभ और सारांश दोनों अपने की आवाज सुनकर सतर्क हो गए। सारांश ने कह, "अवनी, तुम चलो मैं बस थोड़ी देर में आता, तुम बस थोड़ी देर और।"


 अवनी ने सारांश का हाथ पकड़ा और उन्हें खींचकर बाहर ले जाते हुए कहा "ऐसा क्या जादू कर दिया है उस लड़की ने जो उसके जाने के बाद से ही आप यहां के चक्कर काट रहे हैं? अपना सारा काम छोड़कर आप यहां क्या ढूंढने में लगे हैं?"


सारांश कुछ समझा पाते लेकिन अवनी ने अपने हाथ के इशारे से उन्हें रोक दिया और कहा "देखिए सारांश! आपको जो करना है करिए लेकिन अंशु को अभी डिस्टर्ब मत करिए। उस कंडीशन सही नहीं है यह बात अच्छे से जानते हुए भी आप उसे और ज्यादा परेशान कर रहे हैं। मैं नहीं जानती आप दोनों के बीच क्या बात हुई है। उस लड़की ने आपको क्या कह कर बहलाया है। मैं बस इतना चाहती हूं कि हमारा परिवार अभी वैसे ही कई सारी मुसीबत से गुजर रहा है, एक और परेशानी नहीं। अंशु को कुछ दिन शांति से रहने दीजिए। उसका मन शांत हो जाएगा उसके बाद आपको उससे जो भी बात करनी होगी कर लेना। लेकिन फिलहाल यहां से चलिए।" अवनी ने सारांश कोई बात नहीं सुनी और उन्हें खींचते हुए बाहर ले गई। जाते हुए सारांश ने पलट कर देगा तो शुभ ने अपने हाथ से इशारा करके उन्हें जाने को कहा।


रात के 3:00 बज रहे थे। बारिश अब थोड़ी कम हो गई थी। अंशु फार्म हाउस जाने के लिए निकल पड़ा। फार्म हाउस पहुंचने में उसे करीब एक घंटा लग गया तब जाकर उसे एहसास हुआ कि वह कितनी दूर निकल आया था। फार्म हाउस पहुंचते हुए लगभग 4:00 बज ही गए थे। उसने फार्म हाउस के ठीक सामने गाड़ी पार्क की और अंदर चला गया।


फार्म हाउस का दरवाजा खुला हुआ था। ये देख कर उसे कोई हैरानी नहीं हुई। लेकिन शायद निशी वही हो ये सोच कर अव्याँश कुछ चीजों को इधर उधर करने लगा ताकि इससे आवाज हो और निशी अगर घर में है तो बाहर आ जाए जिससे उसे यकीन हो जाएगा कि निशी उसे छोड़कर नहीं गई। लेकिन एक ख्याल उसके मन में ये भी आया कि अगर निशी यहां होती तो इस तरह दरवाजा खुला नहीं छोड़ती। फिर भी अपनी तसल्ली के लिए उसने पूरे फार्म हाउस को अच्छे से देखा लेकिन वहां कोई नहीं था। हार कर अव्यांश वही हॉल में सोफे पर लेट गया और अपनी आंखें बंद कर ली।


 बहुत कुछ सुना दिया था उसने निशी को, काफी कुछ लेकिन मन की भड़ास अभी भी नहीं निकली थी और ना ही वह निशी से कोई बदतमीजी करना चाहता था। दिल और दिमाग के बीच फंसे अव्यांश को वहीं कब नींद आ गई उसे पता ही नही चला। 


एक घंटे बाद, सुबह के पांच बजे अचानक फोन के आवाज से अव्यांश की नींद खुली। उसने आंखें बंद किए ही अपना फोन टटोल कर निकाला और कान से लगा कर हेलो कहा। लेकिन फोन बजे जा रहा था। कुछ देर पहले ही आंख लगने के कारण अंशु की नींद खुलने में थोड़ी प्रॉब्लम हो रही थी उसने बहुत कोशिश की लेकिन फोन की घंटी बजना बंद ही नहीं हो रहा था। वह झुंझलाकर उठ बैठा और अपने फोन की तरफ देखा।


 उसका फोन तो बंद था तो फिर यह आवाज! अंशु को वो घंटी जानी पहचानी सी लगी। एकदम से उसे ख्याल आया, यह तो निशी के फोन का अलार्म है जिसे वो रोज सुबह अलार्म सेट करके सोती थी लेकिन कभी उठ नहीं पाती थी। अंशु ने घबराकर उस आवाज का पीछा किया तो पाया, निशि का फोन वही टेबल पर था और वह फोन ऑफ था। उसकी बैटरी खत्म हो गई थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था कि अगर निशी का फोन यहां है तो फिर निशि कहां है? अंशु को अब घबराहट होने लगी।



(जिनको नही पता तो बता दूं कि पहले के फोन में ये फीचर होता था कि फोन के ऑफ होने पर भी अलार्म बजता था और ये काम हम किसी को परेशान करने के लिए करते थे।)

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