सुन मेरे हमसफर 244

244 






     अव्यांश के बदले हुए एक्सप्रेशन सिया ने भी देखें और सारांश ने भी। सारांश ने उन दोनों के बीच कुछ पूछना सही नहीं समझा लेकिन सब से अनजान सिया ने पूछा "क्या हुआ बेटा सब ठीक तो है?"


     अव्यांश अपना फोन अपने कुर्ते के जेब में रखता हुआ बोल "हां दादी सब ठीक है। बस वह मुझे ढूंढ रही थी। आप जानते हो कितनी अजीब तरह से बिहेव करती है, छोटे बच्चों की तरह। अब उसे घर जाना है। तबीयत थोड़ी ठीक सी नहीं लग रही। शायद नींद आ रही है तो मैं उसे घर छोड़ कर आता हूं।"


   श्यामा उसे रोकते हुए बोली "अंशु! निशी ने खाना नहीं खाया है उसे खाना खिला देना पहले।"


      "जी बड़ी मां!" कहकर अव्यांश वहां से निकल गया। लेकिन उसकी कही एक बात सिया ने पकड़ ली। उन्होंने बड़ी उम्मीद बड़ी नजरों से रूद्र और शरण्या की तरफ देखा और कहा "सच कहूं तो तुम्हारे कार्तिक को मैंने अपनी सुहानी के लिए चाहा था। लेकिन अंशु ने ही बताया कि वह और काया एक दूसरे के करीब है। उसे भी नहीं पता था और हममें से कोई यह बात नहीं जानता था।"


     ऋषभ ने छुटते ही पूछा "मतलब मेरा और काया का रिश्ता तय समझू ना?"


     लावण्या ने ऋषभ के कान पकड़ लिए और कहा "हां तेरा रिश्ता तय हो गया है। तेरी काया के साथ ही तय हुआ है जिसके लिए तूने बहुत मेहनत की है। इस मेहनत का फल भी तुझे मिलना चाहिए ना। तू चल घर। अच्छे से तुझे इसका इनाम मिलेगा।"


    ऋषभ अपना कान छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोला "सॉरी मासी! सॉरी!!"


    सभी हंसने लगे तो सिया ने एक बार फिर कार्तिक और सुहानी के रिश्ते की बात उठानी चाही। लेकिन उससे पहले ही कार्तिक सिंघानिया एकदम से बोल पड़ा "दादी जी! मैं और सुहानी बहुत अच्छे दोस्त है और हम सिर्फ दोस्त है इससे ज्यादा और कुछ नहीं।" कहते हुए कार्तिक सिंघानिया ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। जिसका साफ मतलब था कि उसे ये रिश्ता मंजूर नहीं था। कार्तिक जानता था कि वह बदतमीजी कर रहा है लेकिन यह उसके लिए जरूरी था।


     रूद्र ने उसे डांटना चाहा "किट्टू! ये क्या हरकत है?"


   लेकिन कार्तिक सिंघानिया सीधे और साफ शब्दों में बोला "डैड प्लीज! मैं जानता हूं कि मैं बदतमीजी कर एह हूं लेकिन मैं ये भी समझ रहा हूं कि दादी जी क्या कहने की कोशिश कर रही है और मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं। ना शादी में और ना ही गर्लफ्रेंड बनाने में मेरा कोई इंटरेस्ट है। प्लीज मुझे इस सब से दूर रखिए आप लोग। मैं अकेले खुश हूं।"


    कार्तिक के चेहरे पर उदासी और मायूसी साफ नजर आ रही थी। उसकी आंखों में जो तकलीफ थी वह रूद्र ने भी देखा और शरण्या ने भी। बाकी कोई समझ नहीं पाया और कार्तिक सिंघानिया वहां से चुपचाप निकल गया सुहानी दुखी मन से उसे जाते हुए देखती रही। कार्तिक को रोकने की उसमें जरा सी भी हिम्मत नहीं थी।


    शरण्या ने खुद पर ब्लेम करते हुए कहा "सारी मेरी गलती है। सब मेरी गलती है। मुझे उस लड़की को अपने घर में आने ही नहीं देना चाहिए था। वह आई और मेरे बच्चे की ये हालत कर गई।"


     रूद्र ने शरण्या की तरफ देखा लेकिन कहा कुछ नहीं। शरण्या आगे बोली "वो लड़की और उसकी मां, दोनों ने मिलकर बारी-बारी से मेरी जिंदगी में मेरी खुशियों में आग लगाई है। दोनों कभी खुश नहीं रह पाएंगे।"


    शरण्या की बातें सुनकर रुद्र से रहा नहीं गया। उसने शरण्या का हाथ पकड़ा और हल्का सा दबाते हुए कहा "ये वक्त इन सब बातों का नहीं है। और इसमें उस बेचारी की भी कोई गलती नहीं है।"


    शरण्या ने नाराजगी से रुद्र की तरफ देखा और पूछा "तुझे मेरी गलती है, है ना? मेरी गलती है ना? कहा था तुमसे मैंने, मैं उसे अपने घर में नहीं देखना चाहती। मैं उसकी परछाई से भी अपने बच्चों को दूर रखना चाहती थी। देखो क्या हो गया। इतने साल गुजर गए हैं लेकिन अभी भी मेरा किट्टू सबसे ऊभर नहीं पाया है। तुम्हें क्या लगता है, मैं नहीं समझती हूं? तूफान बनकर आई और सब कुछ बिखेर कर चली गई।"


     माहौल को गंभीर होते देखा रुद्र बोला "आई थिंक हम लोगों को फंक्शन में वापस जाना चाहिए। सब हमें ही ढूंढ रहे होंगे। इस बारे में हम फिर कभी बात करते हैं। फिलहाल तो ऋषि और काया के रिश्ते की बात आगे बढ़ाते हैं, उनकी सगाई का डेट फिक्स करते है। उसके बाद की किट्टू और सुहानी के लिए भी हम सोचेंगे। हो सकता है तब तक वह मान जाए।"



*****




    अव्यांश कमरे से तो निकला था बड़े आराम से लेकिन कुछ दूर जाते ही उसकी चाल तेज हो गई और वह भागते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ा। एकदम से पीछे से प्रेरणा ने उसे आवाज लगाई "अंशु....! अंशु रुको!!" लेकिन अव्यांश इतनी तेजी में था कि उसकी आवाज उसे सुनाई नहीं दी।


      अव्यांश अपने ही चाल में भागते हुए पार्किंग लॉट में पहुंचा और जाकर गाड़ी में बैठ गया। जैसे उसने गाड़ी स्टार्ट की, प्रेरणा भी भागते हुए आई और साइड का दरवाजा खोलकर अंदर आ बैठ गई। उसे अपने साथ देख आते देख अव्यांश ने हैरान होकर पूछा "तुम यहां क्या कर रही हो? तुम्हें तो अंदर फंक्शन में होना चाहिए। पार्थ से मिली तुम?"


     प्रेरणा नाराज होकर बोली "मुझे पार्थ से कोई बात नहीं करनी। ना वो मुझे लेने आया ना उसने मुझे फोन किया। अभी मिला है तो फिर मुझसे लड़ने लगा है।"


     अव्यांश को जल्दी से वहां से निकलना था। जब से निशि का कॉल आया था तब से वह बेचैन था। अपनी बेचैनी को अपने अंदर छुपाते हुए उसने कहा "परी! शिवि दी अकेली है वहां पर। अगर तुम्हारा पार्थ के साथ झगड़ा हुआ है तो तुम उनके साथ जाकर बैठो, वह 1 मिनट में पार्थ को सीधा कर देगी। अभी जाओ तुम। मुझे बहुत जरूरी काम से जाना है।"


     लेकिन प्रेरणा कहां उतरने वाली थी! उसने जिद करते हुए कहा "नहीं मतलब नहीं! मुझे नहीं रहना यहां। मैं यहां सिर्फ तुम्हारी वजह से आई थी। अब तुम ही यहां नहीं रहोगे तो मैं भी नहीं रहूंगी। अब अगर तुम्हें भी मुझे अपने साथ नहीं रखना है तो फिर एक काम करो, यहां से जाते हुए मुझे मेरे घर छोड़ देना या फिर किसी भी होटल में, मैं वहां रुक जाऊंगी आज रात के लिए। चलो अभी।"


     अव्यांश के पास कोई और चारा नहीं था। उसे जल्द से जल्द निशि के पास पहुंचना था। उसने बिना वक्त गवाएं एक्सीलेटर पर पर रखा और गाड़ी भागते हुए वहां से निकाल कर ले गया।




Click below 👇



सुन मेरे हमसफर 243



सुन मेरे हमसफर 245

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274