सुन मेरे हमसफर 67

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    निर्वाण ने कुहू से शिकायत की थी कि उसने अभी तक कुणाल से नहीं मिलवाया, और ना ही उसकी तस्वीर दिखाई थी। लेकिन कुणाल के आने की बात सुनकर ही निर्वाण खुद को रोक नहीं पाया और जल्दी से जाकर दरवाजा खोल दिया।


    सामने खड़े इंसान को देखकर निर्वाण के चेहरे पर आई सारी खुशी के पल में भांप की तरह उड़ गई। वही कुणाल भी निर्वाण को अपने सामने देख हैरान था। उससे भी ज्यादा हैरानी उसे इस बात की थी कि निर्माण इस वक्त मित्तल हाउस में था और दरवाजा उसके खोलने का मतलब यह था के निर्वाण का इस घर से काफी गहरा रिश्ता है और कुहू से भी।


     कुणाल और निर्वाण दोनों ने ही एक साथ एक दूसरे से सवाल किया "तुम? तुम यहां क्या कर रहे हो?" लेकिन निर्वाण थोड़ा ज्यादा गुस्से में था। उसने कुणाल की कॉलर पकड़ ली और बोला "क्या करने आए हो तुम यहां पर? खबरदार जो तुमने इस घर के अंदर कदम रखने का सोचा भी तो, मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"


     कुणाल ने निर्वाण की पकड़ से अपना कलर छुड़ाया और गुस्से में बोला "मुझे भी कोई शौक नहीं है तुमसे उलझने का। वैसे भी तुम से बुरा कोई हो भी नहीं सकता है। ये बताओ तुम यहां क्या कर रहे हो? ये शरीफ लोगों का घर है, तुम्हारा यहां क्या काम?"


    निर्वाण ने उसका मजाक बनाते हुए कुछ कहना चाहा लेकिन पीछे से कुहू आवाज देती हुई आई "निर्वाण! नीरू!! कौन है दरवाजे पर?"


      निर्वाण को दरवाजे पर खड़ा देख कुहू से रहा नहीं गया था, इसलिए वो खुद उठकर चली आई थी। निर्वाण ने कुणाल को धक्का दिया और कुहू की तरफ पलटकर बोला "कोई नहीं दी, वो बस......"


      निर्वाण आगे कुछ कहता उससे पहले ही कुहू ने कुणाल का हाथ पकड़ लिया और बोली, "तुम कुणाल से मिलना चाहते थे ना! लो मिल लो इनसे। यह कुणाल है, कुणाल रायचंद! मेरे कॉलेज फ्रेंड और अब तुम्हारे होने वाले जीजू भी। और कुणाल! यह निर्वाण है, चित्रा मॉम का लाडला लेकिन मेरे से थोड़ा कम।


     कुणाल और निर्वाण दोनों ही एक दूसरे का इंट्रोडक्शन सुनकर चौक पड़े। दोनों ही इस बात को यकीन नहीं कर पा रहे थे और ना ही इस बात को एक्सेप्ट कर पा रहे थे। निर्वाण कभी भी कुणाल को अपने जीजा के रूप में एक्सेप्ट नहीं करने वाला था और यह बात उसके चेहरे पर लिखी थी। लेकिन कुहू ने इस पर ध्यान नहीं दिया और वह कुणाल का हाथ पकड़कर उसे अंदर ले आई। कुणाल ने अंदर आते हुए पलट कर पीछे देखा। निर्वाण गुस्से में उसे ही घूरे जा रहा था।


     सारांश किचन से बाहर निकल कर आए और कुणाल को देखकर पूछा "जो कहा था वह ले आए?"


     कुणाल ने अपने हाथ में पकड़ा पैकेट सारांश की तरफ बढ़ा दिया और बोला "हां अंकल। थोड़ी बहुत मुश्किल हुई लेकिन मैं ले आया, जैसा आपने कहा था और जितना कहा था। सारांश ने पैकेट खोल कर देखा और बोले, "कमाल है! यही बात अंशु कह रहा था कि क्या तुम्हें डेढ़ सौ और ढाई सौ के बीच का फर्क पता भी है? लेकिन देख कर खुशी हुई।"


     कुणाल जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोला "इसमें इतना हैरान होने वाली कोई बात नहीं है अंकल। मैंने बस दुकान वाले को बोला और उसने पैक कर दिया। वाकई मुझे डेढ़ सौ और ढाई सौ के बारे में कुछ नहीं पता।"


     उसकी बात सुनकर हॉल में बैठी सारी लेडीस ग्रुप खिलखिला कर हंस पड़ी। कुणाल के लिए थोड़ा एंबर्रासिंग मोमेंट था। उसने एक बार फिर से निर्वाण की तरफ देखा। निर्वाण की आंखों में उसके लिए नफरत साफ नजर आ रही थी। सिया कुणाल का पक्ष लेते हुए बोली, "सारांश! खबरदार जो मेरे होने वाले बेटे को कुछ कहा तो। एक तो ये तुम्हारे लिए मंडी जाकर ये सब लेकर आया और तुम लोग हो कि उसका मजाक बनाने में लगे हुए हो। देखो अपने बच्चो को, नींद अभी भी आंखों में नजर आ रही है।"


    कुणाल ने प्यार से दादी की तरफ देखा और बोला "दादी! एक आप ही हो जो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते हो।"


     उसकी बात सुनकर सिया ने वहीं बैठे दूर से ही कुणाल की बलाएं ले ली। निर्वाण को लग रहा था जैसे कुणाल यह सब कुछ सिर्फ और सिर्फ उसे दिखाने के लिए कर रहा है। वह अंदर ही अंदर गुस्से में उबल रहा था। समर्थ अपनी दादी को ऐसे कुणाल की तरफदारी करते देख नाराज होकर बोला "दादी! आप ऐसे नहीं कह सकती। कुणाल बहुत पहले निकल गया था पार्टी से। जाहिर सी बात है, वह सो रहा होगा। हम सब देर से आए थे। रही बात नींद पूरी होने की तो सोने के लिए हमे कम वक्त मिला। सबसे कम तो अंशु का। वह बेचारा तो सोया ही नहीं है।"



      सुहानी ने निशी को कोहनी मारी और कहा "हमने थोड़ी मना किया था सोने से!"


      अंशु इस ओकवर्ड सिचुएशन में नहीं करना चाहता था इसलिए वहां से निकल गया लेकिन बेचारी निशी उठकर जा भी नहीं पाई। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था। सिद्धार्थ को तो जैसे मौका मिल गया। उसने समर्थ से पूछा "अंशु और कुणाल का छोड़, अपनी बता। तू पार्टी से इतने जल्दी क्यों चला आया था? हम सब ने तुझे जाते हुए नहीं देखा लेकिन इतना पता है कि तू काफी देर से वहां नहीं था और हमारे निकलने से बहुत पहले ही तू वहां से जा चुका था।


    समर्थ को समझ नहीं आया कि वह क्या जवाब दें और कैसे कहें कि मिस्टर एंड मिसेस चौहान को देखकर वह वहां रुका नहीं और पार्टी छोड़कर चला गया। समर्थ की झुकी हुई नजरें देख श्यामा ने अपने बेटे का बचाव करते हुए कहा "छोड़िए भी, क्यों बच्चे को परेशान कर रहे हैं! हम में से कोई तो था जिसने अपनी नींद पूरी की, भले ही कम सही। और देखो, सुबह-सुबह सबके लिए चाय बनाया मेरे बच्चे ने, और आप हैं कि जब देखो उसके पीछे पड़े रहते हैं।"


    सिद्धार्थ ने भी नाराज होकर कहा "सारी आपकी गलती है। आपने उसे इतना सर पर चढ़ा रखा है, किसी को तो उतारना पड़ेगा ना! आपने बिगड़ा है इसे।"


    समर्थ जाकर अपनी मां को पीछे से गले लगा लिया और उसके गाल पर हल्का सा किस करके बोला "अपनी दुनिया की बेस्ट मां हो। काश डैड में भी थोड़े से गुण होते!"


     निशी ने उन दोनों मां-बेटे को देखा और मन ही मन बोली 'खून के रिश्ते के बारे में तो देखा था लेकिन सौतेले रिश्ते में भी इतना प्यार हो सकता है, यकीन नहीं होता। क्या यह सब सच है या फिर कोई छलावा?'


    श्यामा ने प्यार से समर्थ के बाल खराब किए तो समर्थ ने एक बार कस कर अपनी मां को हग किया और वहां से उठकर किचन में चला गया। सारांश ने कुणाल से पूछा "सैटर डे मॉर्निंग किचन की ड्यूटी हमारी होती है। तुम भी हाथ लगाना चाहोगे? 


     अवनी सारांश को बीच में रोककर बोली "क्या कर रहे हैं आप? दामाद है वो इस घर का, इस तरह उसे किचन में काम करवाना.........."


      निर्वाण एकदम से आगे आया और कुणाल के कंधे पर हाथ रख कर बोला, "बिल्कुल आंटी! अब हमारी कुहू दी शादी करके जाएगी तो उनको रोज किचन में काम करना होगा। तो क्या ऐसे में यह एक दिन हमारे किचन में काम नहीं कर सकता? अरे इनसे तो पूरे हफ्ते का हिसाब बराबर करना चाहिए, है ना कुणाल?"


      श्यामा बोली "नीरू! कुणाल तेरे होने वाले जीजा जी है।"


    निर्वाण ने बड़े कैजुअल अंदाज में कहा "कम ऑन मामी! शादी होने वाली है, हुई तो नहीं है! और जब तक हो नहीं जाती तब तक मैं किसी को भी जीजू नहीं बुलाऊंगा।" फिर वह कुणाल को छोड़ सबके बीच आया और हंसते हुए बोला "आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? कम ऑन लेडीज! सुबह का वक्त है और आप लोग यहां बैठे हुए हो! अगर गॉसिप ही करना है तो गार्डन में चलिए। जब तक ब्रेकफास्ट तैयार होता है तब तक नेचर का मजा उठाइए।"


   सबको यह बात सही लगी। सभी एक-एक कर वहां से उठकर बाहर की तरफ जाने लगे। लेकिन कुहू बार बार पलट कर कुणाल की तरफ देख रही थी। निर्वाण ने हंसते हुए कहा "दी! आप जाओ, कुणाल को मैं संभाल लूंगा। आई मीन हम संभाल लेंगे।"


    कुहू मुस्कुराकर वहां से बाहर चली गई। सब के जाने के बाद हॉल में रह गए बस कुणाल और निर्वाण। निर्वाण ने कुणाल का कॉलर पकड़ा और खींचकर उसे नीचे ही बने एक गेस्ट रूम में ले गया। कुणाल कुछ रिएक्ट नहीं कर पाया। लेकिन कमरे में पहुंचकर उसने खुद को निर्वाण की पकड़ से छुड़ाया और निर्वाण को एक पंच मारने के लिए हाथ उठाया।



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