सुन मेरे हमसफर 66

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निशि को अव्यांश की यह हरकत कुछ समझ नहीं आई। इतना तो उसे एहसास हो गया कि अव्यांश किसी बात से उससे नाराज है लेकिन कौन सी बात बस यह जानना था। जिस तरह वो नींबू पानी उसके सामने रख कर गया था, शायद उसके ड्रिंक करने की वजह से नाराज हो। लेकिन निशी इस वक्त यह सब सोचने की हालत में नहीं थी। उसने पानी में नींबू काटकर निचोड़ा और एक सांस में पी गई। बचे हुए नींबू के छिलके को अपने दांतों तले दबा दिया जिससे उसकी आंखें बंद हो गई। कुछ देर बाद जब राहत मिली तो जाकर अलमारी से कपड़े निकाले और बाथरूम में घुस गई।


   अव्यांश जब तक वापस आया तब तक समर्थ उसके लिए कॉफी बना चुका था। समर्थ ने उसके कॉफी का मग हाथ में पकड़ाया तो अंशु सीधे जाकर किचन की स्लैब पर बैठ गया और आराम से कॉफी का मजा लेने लगा। एक घूंट लेकर ही उसने आंखें बंद की और समर्थ की तारीफ के पुल बांधते हुए बोला "वाह भाई! आपके यहां की कॉफी किसी हेवन से कम नहीं है। काश यह स्वर्गीय आनंद मुझे प्रतिदिन प्राप्त होता।"


     समर्थ बाकी सब के लिए चाय बनाने में लगा हुआ था। उसने ओखली में अदरक इलायची कूटा और चाय में डालते हुए डोला "स्वर्गीय आनंद का तो पता नहीं, लेकिन इतना कॉफी पिएगा तो तेरे नाम के आगे जरूर लग जाएगा।"


     अंशु ने कंफ्यूज होकर पूछा "क्या?"


    समर्थ ने भी अपने अंगूठे और उंगली से इशारा कर कहा "इतना बड़ा एल!" समर्थ और उसके चाचू दोनों ठहाके मारकर हंस पड़े। अव्यांश का चेहरा लटक गया। समर्थ ने सारांश से पूछा "आपके भाई साहब नजर नहीं आ रहे है। आज उन्हें उठना भी है या सारा काम हमें ही करना होगा?"


      सारांश सब्जियां काटने में लगे हुए थे। उन्होंने कहा "तू चाय बना, मैं कॉफी तेरे पापा को दे कर आता हूं। आते ही वो सबसे पहले तेरी बैंड बजाएंगे।"


     समर्थ अपने चाचू की खिल्ली उड़ाते हुए बोला "वह! और मेरी बैंड बजाएंगे!! मैं उनकी बैंड बजाता हूं। हां, कभी-कभी उन्हें मौका मिल जाता है लेकिन मैं हमेशा उन पर भारी पढ़ता हूं।"


    सारांश ने कॉफी के दो मग उठाए और एक से चुस्की लेकर बोला "शर्म कर! अपने बाप से लड़ता है? खैर! तुझे भी क्या ही कहूं। दोनों बाप बेटे एक जैसे हो। आज की नहीं, बचपन की कहानी है ये। वैसे पहले ही बता दे रहा हूं, कल रात जो तू जल्दी घर आ गया था, भैया तुझे टोकेंगे जरूर।"


      सारांश कॉफी का मग होठों से लगाए वहां से निकल गए। समर्थ सोच में पड़ गया कि अगर उसके पापा ने उससे सवाल किया तो उस जवाब क्या देगा? फिर एकदम से ही उसने अपने मन में आएगा इस सवाल को दूर झटक दिया, यह सोचकर कि उसको निकलते हुए किसने नहीं देखा था, खासकर उसके पापा ने तो बिल्कुल भी नहीं। वैसे भी सभी अपने आप में ही उलझे हुए थे। किसी को इतनी फुर्सत कहां थी!


      निशी नहा धोकर नीचे आई और आते ही सबसे पहले वह रसोई में घुस गई। वहां देखा, तो समर्थ और अंशु दोनों ही लगे पड़े थे। निशा ने थोड़ा झिझकते हुए कहा "यह आप दोनों इस वक्त यहां क्या कर रहे हैं? चाय बनानी है तो मैं बना दे रही हूं। आप लोग बाहर जाइए।"


     अंशु ने जब निशि की आवाज सुनी तो उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया। समर्थ ने उसे दरवाजे पर ही रोकते हुए कहा "खबरदार जो अंदर आई तो! बाहर जाओ!! निकलो बाहर!!" समर्थ की आवाज में जो आदेश था, निशी को ना चाहते हुए भी अपने कदम पीछे करने पड़े।


    निशी पीछे सरकती हुई दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गई। समर्थ ने एक कप चाय निशी के हाथ में पकड़ा दिया और बोला "जा कर आराम से डाइनिंग टेबल पर बैठ जाओ। आज के दिन, खासकर सुबह का वक्त किचन में लेडीज अलाउड नहीं है। लेकिन तुम इतनी सुबह कैसे उठ गई? अंशु की तो हालत खराब थी रात भर जागने से। तुम्हें थोड़ी देर और सोना चाहिए था।"


     निशी ने अव्यांश की तरह चोरी छुपे देखा लेकिन अव्यांश चुपचाप अपने काम में लगा हुआ था। अव्यांश ने उसे इग्नोर किया और समर्थ से पूछा "नीरू आप सबके साथ ही आया था ना? कहां है वह?"


     समर्थ किचन में वापस आया और चाय का एक कप उठाकर अव्यांश के हाथ में पकड़ाते हुए बोला "नीरू गेस्ट रूम में है। जाकर उसे पिला देना और उठाकर यहां लेते आना।"


    अव्यांश ने चाय का कप लिया और निशी के बगल से होते हुए लगभग उसे धक्का मारते हुए निकल गया। निशी उसके इस बिहेवियर से हैरान रह गई। समर्थ ने पूछा, "तुम दोनों की लड़ाई हुई है क्या?"


   निशी ने इनकार कर दिया तो समर्थ ने कहा, "कुछ तो हुआ है तुम दोनों के बीच वरना हमारा अंशु ऐसे ही नाराज नहीं होता। या तो तुम छुपा रही हो या फिर तुम्हे खुद ही ध्यान नहीं है। सोचो इस बारे में और उसे मनाने की कोशिश करो। क्योंकि जब तक तुम मनाओगी नही, वो ऐसे ही तुम्हे साइलेंट ट्रीटमेंट देता रहेगा। उसे अपनी नाराजगी बोलकर या लड़कर बताने की आदत नही है। बस चुप होकर रहेगा। तुम्हे इग्नोर करेगा जैसे अभी किया है।" निशी सोचती हुई हॉल में चली आई।


      5 मिनट के अंदर ही अव्यांश निर्वाण को अपने कंधे पर उठाए कमरे से बाहर निकला और डाइनिंग टेबल पर पटक दिया। निर्वाण भी कम नहीं था। वो डाइनिंग टेबल पर ही आराम से सो गया। अंशु की त्योरियां चढ़ गई। वह कुछ कहता या करता, उससे पहले ही दरवाजे की घंटी बजी। अंशु निर्वाण को वैसे ही डाइनिंग टेबल पर छोड़ दरवाजे की तरफ जाने लगा तो निशी बोली "तुम रुको, मैं देखती हूं।"


     निशी ने बिना अंशु का जवाब सुने अपनी चाय डाइनिंग टेबल पर एक तरफ रखी और जल्दी से जाकर दरवाजा खोल दिया। सामने काव्या धानी और कार्तिक खड़े थे। उन्हें देखते ही निशी ने झुककर तीनों के पैर छू लिए। वह तीनों अंदर आए तो निर्वाण को इस तरह डाइनिंग टेबल पर सोते देख हैरान रह गए। काव्या ने पूछा "यह क्या है?"


      अव्यांश ने निर्वाण की तरफ देखा और बोला "नींद पूरी नहीं हुई है इसलिए सिंहासन पर सो रहे हैं बेचारे।"


    इतने में कुहू निकल कर बाहर आई। जब उसने निर्वाण को इस तरह सोते देखा तो बिना कुछ सोचे उसने पानी का जग उठाया और निर्वाण के चेहरे के ऊपर डाल दिया। लेकिन इतने से भी निर्वाण को कोई फर्क नहीं पड़ा तो निशी ने अपने चाय के कप में निर्वाण की उंगली डाल दी। चाय गरम थी जिस कारण निर्वाण की उंगली जल गई और वह चिल्लाते हुए उठ कर बैठ गया। "ऐसे कौन करता है भाभी? देवर तो भाभी के लाडले होते हैं, और यहां तो आप......"


     समर्थ किचन के दरवाजे पर था। उसने वहीं से कहा "भाभी के लाडले होते हैं लेकिन कान खींचने वाली भी भाभी ही होती है। इसलिए जरा संभल के रहना। ऐसे कुंभकरण की तरह सोएगा तो यह तो नॉर्मल सी बात है। शुक्र मनाओ कि उसने सिर्फ तेरी उंगली चाय में डाली। कुछ टाइम रुक जा, जैसी तेरी हरकतें है, उसे इतनी जानी पहचानी सी लगेगी कि अगली बार तेरी उंगली जलाने की वजह पूरा चाय तेरे चेहरे पर डाल देगी।"


    निर्वाण ने रोनी सी शक्ल बना लिया और बोला "आप न, जलते हो मुझसे। मैं आपसे ज्यादा स्मार्ट और हैंडसम हूं, इसीलिए। और मेरी एक गर्लफ्रेंड है, इसलिए भी।" समर्थ के साथ-साथ सब की हंसी छूट गई।


     सिद्धार्थ ने अपने कमरे से आते हुए कहा "सुबह-सुबह इतने कहकहे लगाए जा रहे हैं, देखो तो घर कितना गुलजार लग रहा है!"


    निर्वाण ने अपना सर खुजाते हुए कहा "गुलजार? लेकिन वह यहां क्यों आएंगे? वह तो बैठकर बॉलीवुड के गाने लिख रहा है ना?" निर्वाण की ऐसी बेवकूफी भरी बातें सुनकर किसी ने भी उसे भाव नहीं दिया और अपने अपने काम में वापस लौट गए।


     निर्वाण अकेला रह गया तो अव्यांश ने निर्वाण की चाय उसके हाथ में पकड़ाई और बोला "जल्दी से होश में आओ मोहन प्यारे और चल कर किचन में लग जा। आज की ड्यूटी हमारी है।" निर्वाण ने बेमन से चाय खत्म किया और किचन में चला गया था।


     कल रात देर से सोने की वजह से किसी की भी नींद पूरी नहीं हुई थी। फिर भी सभी ऊंघते हुए बैठे थे। सारे जेंट्स किचन में थे और सारी लेडीस ग्रुप एक तरफ बैठकर गप्पे गप्पे हांकने में व्यस्त थी। बीच-बीच में कोई ना कोई निशी को छेड़ने का मौका ढूंढ ही लेता था। निशी शर्म से पानी पानी हो जाती। हालांकि उन दोनों के बीच अब तक ऐसा कोई रिश्ता नहीं था लेकिन फिर भी, निशी चाह कर भी कोई सफाई नहीं दे पा रही थी। उसे खुद नहीं पता था कि कल रात वो घर कैसे आई। जाहिर सी बात है, अव्यांश ही लेकर आया होगा, लेकिन कैसे? ये पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। और वैसे भी, अव्यांश महाराज तो निशी से नाराज चल रहे थे। सुबह से एक शब्द भी निशी से नहीं कहा था उन्होंने। 


    खैर, निशी सब की बातों का हिस्सा बनी हुई थी। निर्वाण चाय की ट्रे लेकर आया और एक एक कर सबके हाथों में चाय देने के बाद आखरी कप हाथ में लेकर बोला "शिविका दी कहां है? अभी भी सो रही है क्या?"


     सबको अब जाकर खयाल आया कि शिवि उन सभी के बीच मौजूद नहीं है। श्यामा ने उठते हुए कहा "तुम उसकी चाय मुझे दे दो, मैं अभी जाकर उठाती हूं उसे। सुबह के 8:00 बज गए हैं।"


    लेकिन सिया ने जाती हुई श्यामा का हाथ पकड़ लिया और उसे अपने पास बैठाते हुए कहा "रहने दो उसे, सोने दो। कल इतनी दूर फ्लाइट से सफर करके आई थी और फिर सीधे पार्टी में चली आई। आराम करने का मौका नहीं मिला। उसे थोड़ी देर और सोने दो उसे। उसका मन फ्रेश हो जाएगा।"


     निर्वाण ने उस आखिरी कप को देखा और उसे लेकर वहां से जाने लगा तो श्यामा ने कहा "अरे! लेकिन निशि को तो चाय दे दो!"


    किचन के अंदर से ही अव्यांश ने ऊंची आवाज में कहा "वो पी चुकी है, पहले ही।"


    अव्यांश की आवाज से अवनी को थोड़ी गड़बड़ लगी। उसने निशी से पूछा "कुछ हुआ है क्या तुम दोनों के बीच? वह नाराज क्यों लग रहा है?"


     निशी जो खुद भी इस बारे में कुछ नहीं जानती थी वो कहती भी तो क्या! लेकिन उसे कुछ कहने से पहले ही दरवाजे की घंटी बजी। किचन से सारांश ने आवाज लगाई "नीरू! जाकर दरवाजा खोलना। देखना, कुणाल आया होगा।"


    कुणाल का नाम सुनकर ही कुहू का दिन गार्डन गार्डन हो गया लेकिन निर्वाण खुश हो गया। और इससे पहले कि कुहु उठती, निर्वाण ने कुहू को चिढ़ाते हुए जल्दी से जाकर दरवाजा खोल दिया। लेकिन दरवाजे पर खड़े कुणाल को देखकर निर्वाण के चेहरे के हाव-भाव एकदम से बदल गए। यही हाल कुणाल का भी था। दोनों ने एक दूसरे को देखने की भी उम्मीद नहीं की थी। कुणाल और निर्वाण दोनों ने एक साथ गुस्से में पूछा "तुम यहां क्या कर रहे हो?"





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