सुन मेरे हमसफर 65

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 अव्यांश निशी को लेकर अपने कमरे में पहुंचा और उसे आराम से बिस्तर पर सुला दिया। निशी सोते हुए बहुत मासूम लग रही थी। अव्यांश उसके चेहरे की तरफ झुका और उसे देखते हुए बोला "बहुत मासूम दिखती हो तुम, लेकिन उतनी हो नहीं। आज पूरे घर वालों के सामने मेरी पिटाई हो जानी थी। मैं तो बस तुम्हें चिढ़ाने के लिए ये सब कर रहा था। मुझे क्या पता तुम इतनी बड़ी पियक्कड़ निकलोगी। सही कहा तुमने, मैंने बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी। मिश्रा जी को, आई मीन पापा को अगर पता चला तो पता नहीं क्या सोचेंगे! लेकिन चलो जो भी हुआ, अच्छा ही हुआ। तुम्हारे मन में जो कुछ भी था, आज निकल कर बाहर तो आया। वरना ना जाने कब तक तुम इस बात को अपने अंदर दबाकर रखती। डैड कहते हैं, हमें अपने दिल की बात अपने दिल में नहीं छुपानी चाहिए। कोई ना कोई ऐसा जरूर होना चाहिए जिससे हम खुलकर कुछ भी कह सके। मुझे अच्छा लगा कि तुम ने मुझसे इतनी सारी बातें की। बस कुछ अच्छा नहीं लगा तो वो............"


      अव्यांश अपनी बात पूरी नहीं कर पाया। उस पल को याद कर अव्यांश के चेहरे पर नाराजगी साफ नजर आ रही थी। अगर इस वक्त निशी उसे ऐसे देख लेती तो जरूर बुरा, नहीं! बहुत बुरा फील करती। अव्यांश ने निशी के ऊपर कंबल डाला और जाकर उसके बगल में लेट गया। पहले तो निशी की तरफ पीठ करके सोया, लेकिन उसकी नाराजगी इतनी ज्यादा थी कि वह निशी की तरफ पलटा और कसकर उसे अपनी बाहों में खींच लिया।


    "आज के बाद तुम्हें मेरी इतनी आदत हो जाएगी कि तुम सिर्फ मेरा नाम लोगी, किसी और का नहीं। अभी तुम बेहोश हो। अगर होश में होती तो बताता मैं तुम्हे। लेकिन मैं तुम्हें ऐसे ही नहीं छोड़ने वाला। तुम चिंता मत करो, इस बात की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी।" अव्यांश निशी की खुशबू अपनी सांसों में भरते हुए कब से हो गया उसे पता ही नहीं चला।


      सुबह के 7:00 बजे थे जब सारांश ने अव्यांश के कमरे का दरवाजे पर नॉक किया। निशी अभी भी नींद में थी और अव्यांश तो कुछ टाइम पहले ही सोया था इसलिए वह इस वक्त गहरी नींद में था, जिस कारण उसे दरवाजे पर हुई दस्तक सुनाई नहीं दी। निशी ने दरवाजे पर जब दोबारा दस्तक सुनी तो दरवाजा खोलने के लिए उठने को हुई लेकिन अव्यांश की पकड़ खुद पर महसूस कर वह चौंक गई।


     निशी ने पलट कर पीछे अव्यांश के चेहरे की तरफ देखा। सोते हुए उसके चेहरे से जो मासूमियत टपक रही थी, निशी तो बस उसे देखती ही रह गई। सारांश ने फिर आवाज लगाई "अंशु....! अंशु!! उठ जा बहुत काम है। आज तुझे छुट्टी नहीं मिल सकती।"


     सारांश की आवाज सुनकर निशी हड़बड़ा गई और अव्यांश को उठाते हुए बोली "अव्यांश! उठा जाओ!! पापा बुला रहे हैं। अव्यांश.......!"


     लेकिन अव्यांश कहां सुनने वाला था। उसने निशी को और कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया और बोला "थोड़ी देर और सोने दो ना यार! आज मेरा उठने का बिल्कुल मन नहीं है।"


     इतने में एक बार फिर निशि को सारांश की आवाज सुनाई थी तो उसने जवाब दिया "पापा! बस थोड़ी देर।"


    निशी का जवाब सुनकर सारांश वहां से वापस लौट गया। लेकिन अंशु उसे छोड़ने को तैयार नहीं था। इस बार निशी को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उसने अव्यांश के कॉलर बोन पर अपने दांत गड़ा दिए। नींद में अव्यांश दर्द से चिल्ला उठा "आ......... ह! क्या कर रही हो? सुबह-सुबह नॉनवेज खाने का मन कर रहा है क्या? देखो, यहां घर में नॉनवेज अलाउड नहीं है।"


      निशी बिस्तर पर उठ कर बैठ गई और बोली "मुझे भी कोई शौक नहीं है। आई प्योर वेजीटेरियन। अब उठो और बाहर निकलो। पापा कब से आवाज दे रहे थे तुम्हें।"


    अव्यांश सोच में पड़ गया "पापा? इतनी सुबह! लेकिन वह मुझे? ओह शीट!!! आज दिन कौन सा है?"


    निशी सोचकर बोली "शनिवार है।"


   अव्यांश जल्दी से बिस्तर से उठा और बोला "कम से कम आज के दिन तो डैड मुझे छोड़ देते। घर में बाकी सब तो है ही। मेरा होना जरूरी तो नहीं है, लेकिन इनको कौन समझाए! 1 मिनट!! डैड को कैसे पता चला कि मैं घर पर हूं? ओ नो! मेरे फोन का जीपीएस!! मतलब प्राइवेसी नाम की कोई चीज नहीं है मेरी लाइफ में।" अव्यांश पैर पटकते हुए बाथरूम में घुस गया।


     निशी वही बेड पर बैठी अव्यांश के बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रही थी। नींद बहुत आ रही थी उसे। वह सोने के लिए वापस बिस्तर पर लेट गई लेकिन टाइम देख कर उस से सोया नहीं गया। "क्या कर रही है तू? यह तेरा ससुराल है, मायका नहीं जहां तु देर तक सोती रहेगी। और ये सिरदर्द!" मन मार कर अपना सिर पकड़े निशी बिस्तर से उठी और बालकनी में चली गई।


     सुबह की ताजी ठंडी हवाएं उसके चेहरे को छू रही थी जिससे उसके सिरदर्द को थोड़ी राहत मिल रही थी। निशी ने अपनी दोनों बाहें फैलाई और फिर खुद को ही अपनी बाहों में भर लिया। उसके चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि नजर आ रही थी।


    अव्यांश बाथरूम से बाहर निकला। टॉवल से अपना चेहरा पोछते हुए उसकी नजर बालकनी में खड़ी निशी पर गई। वह भी कुछ देर उसके साथ खड़ा रहना चाहता था लेकिन कल रात की बात याद आते ही उसका मन नाराजगी से भर गया। उसे अपनी नाराजगी निशी पर जाहिर करनी थी इसलिए उसने टॉवल बिस्तर पर फेंका और निशी को कुछ भी कहे बिना बाहर निकल गया। बाहर निकलते हुए भी उसने दरवाजा इतनी जोर से बंद किया कि निसी का ध्यान उस तरफ चला गया। वह भी सोच में पड़ गई कि आखिर हुआ क्या है। लेकिन इतना उसके पास टाइम नहीं था, सो वो भी जल्दी से बाथरूम में घुस गई। जाने से पहले उसने अव्यांश का फेंका हुआ टॉवेल बिस्तर पर से उठाकर बालकनी में डाल दिया।



      अव्यांश नीचे जब किचन में पहुंचा तो देखा, सारांश फोन पर किसी से बात कर रहा था। "ढाई सौ ग्राम धनिया पत्ता, ढाई सौ ग्राम मेथी पत्ता, 200 ग्राम हरी मिर्च और हां! डेढ़ सौ ग्राम अदरक लेते आना।"


      अव्यांश उसके पीछे आकर खड़ा हो गया और बोला, "डैड! किससे बात कर रहे हो आप? और इतनी सुबह किसको मंडी भेजी है आपने?"


     सारांश ने मुस्कुराते हुए कहा "अरे कुछ नहीं। थोड़ी धनिया वगैरह की जरूरत थी तो मैंने कुणाल को फोन कर दिया। आते हुए लेते आएगा।"


     अव्यांश की आंखें हैरानी से फैल गई। वो सारांश के सामने आया और बोला "आपने कुणाल से धनिया मिर्ची मंगवाई है? उसको पता भी है, ढाई सौ और डेढ़ सौ के बीच का अंतर?"


    समर्थ उबासी लेते हुए किचन में दाखिल हुआ और बोला "नहीं है तो समझ में आ जाएगा। अब वह भी हमारी फैमिली का हिस्सा है। हमारी कुहू जाएगी उसके घर तो यह सारे कामों से रोज करने होंगे जो वह आज करने वाला है। इसलिए उस साले की अच्छे से क्लास लेना।"


      अव्यांश मुस्कुरा कर बोला "साला नहीं भाई, जीजा।"


    समर्थ अजीब सी शक्ल बनाकर बोला "हां हां वही, जो भी है। पहले तू अपने शर्ट के बटन लगा। तेरी गर्दन पर जो लव बाइट है वो नजर आ रहा है।" समर्थ आगे आया और किचन स्लैब से थरमस उठाकर गरम पानी क्लास में लिया और वही स्लैब पर बैठकर पी गया।


    "ऐ.......... ऐसा कुछ नहीं है।" अव्यांश ने अपने शर्ट का कॉलर पकड़कर उस निशान को छुपाने की कोशिश की जिसे निशी ने अभी सुबह ही दिए थे। शर्ट का बटन लगाकर अव्यांश ने उसके कंधे पर अपना सर रखा और बोला "अगर आपकी नींद खुल गई हो तो प्लीज! एक कप अच्छी सी कॉफी बना दो। ठीक से सोया नहीं हूं।"


    समर्थ ने उसके सिर को अपने कंधे से झटक कर दूर किया और बोला, "हां! वो तो मैं पहले ही समझ गया था।"


     सारांश ने दूध का पतीला समर्थ गया हाथ में पकड़ाया और कहा, "थोड़ी बढ़िया सी और स्ट्रांग कॉफी बनाना, जिससे इसकी नींद खुल जाए। साहबजादे सुबह 4:00 बजे घर आई है। इसे बहुत ज्यादा जरूरत है।"


     अव्यांश ने चौंककर पूछा "आपको कैसे पता?"


     सारांश ने फ्रिज खोला और उसमें सब्जियां ढूंढते हुए कहा "बेटा! तेरा बाप हूं मैं। तेरी खुशबू से पहचान जाता हूं। इतना ज्यादा परफ्यूम मारता है और जो परफ्यूम का कॉकटेल बनाता है, इसकी महक से किसी का भी सर घूम जाए। मेरे कमरे के बाहर तू और निशी खुसर फुसर कर रहे थे ना? सब पता है मुझे। मेरे से नही छुप सकते।"


     अव्यांश थोड़ा सा झेंप गया। कम से कम उसे इस बात की तसल्ली थी की उस के डैड ने निशी को उस हालत में नहीं देखा था। उस वक्त जो हुआ.........., अव्यांश को वो पल याद आ गया। निशी उसकी गोद में थी और काफी ज्यादा मचल रही थी। ऐसे में उसे उसका मुंह बंद करने के लिए अव्यांश को उसे किस करना पड़ा था जिसका उसे बेहद पछतावा था। 'अगर निशी को पता चल गया कि मैंने उसके साथ क्या किया है तो पता नही कैसे रिएक्ट करेगी!'


     फिलहाल तो उसे निशी को फ्रेश होने के लिए थोड़ी हेल्प करनी थी। उसने धीरे से एक नींबू अपनी पॉकेट में डाला और एक ग्लास में गर्म पानी लेकर बाहर निकल गया।


      बार-बार चेहरा पानी से साफ करने के बाद भी निशि को अपना सर बहुत भारी महसूस हो रहा था। वो जानती थी कल रात क्या हुआ है और अभी उसे किस चीज की ज्यादा जरूरत थी, लेकिन यहां वो किसको आवाज लगाएं और किससे मांगे। ऐसी हालत में वो नीचे जा भी नहीं सकती थी। निशी बाथरूम से बाहर निकली और ड्रोअर में से दवाइयां ढूंढने लगी।


     अव्यांश जब कमरे में आया तो निशी ने एक नजर अव्यांश को देखा और बोली "सर दर्द की गोली है क्या? बहुत ज्यादा सर दर्द कर रहा है।"


      अव्यांश ने कुछ कहा नहीं, बस उसके सामने टेबल पर गर्म पानी का गिलास और नींबू पटक कर वहां से चला गया।




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