सुन मेरे हमसफर 60

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    हैरानी और खुशी से शिविका की आंखें फैल गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि बस कुछ दिनों के लिए वो घर से बाहर क्या गई, उसके भाई ने शादी कर ली! शिविका ने अव्यांश की तरफ उंगली करके निशी से पूछा, "लव मैरिज?"


    निशी कुछ बोल नहीं पाई। अव्यांश ने धीरे से कहा "ना लव मैरिज ना अरेंज मैरिज, सडन मैरिज। जैसे मॉम डैड की हुई थी।"


     शिविका से कंट्रोल नहीं हुआ और वह खुशी के मारे चिल्ला पड़ी। "मतलब वाकई तूने शादी कर ली है? मतलब मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुने शादी कर ली है। तेरे जैसा इंसान किसी एक से शादी करके घर बसा सकता है, मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा।"


    निशी ने तिरछी नजर से अव्यांश को देखा तो अव्यांश थोड़ा सहम गया और जल्दी से ना में गर्दन हिला दिया। आखिर बीवी के सामने उसकी पोल पट्टी खुल रही थी। जो इमेज उसने मिश्रा जी के सामने बना कर रखा था और मिश्रा जी ने अव्यांश की जो इमेज निशी के सामने बनाई थी, उससे यह सब कुछ बिल्कुल भी मैच नहीं कर रहा था। निशी कहीं कुछ गलत ना समझ ले और शिविका यहीं उसकी सारी पोल पट्टी ना खोल दे, इसके लिए जरूरी था कि वह शिवि को चुप कराएं।


     अव्यांश ने जल्दी से कहा "शिविका दी! आप भी ना, मजाक करने में बिल्कुल भी पीछे नहीं हटते आप। हो गई मेरी शादी आप सबसे पहले, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि आप मेरे और मेरी बीवी के बीच खटपट करवाओगे!"


     शिवि ने उसे सर से पैर तक अच्छी तरह से घूर कर देखा और बोली "यह सही कही तूने। तेरे और तेरी बीवी के बीच खटपट हो, ये हमें अच्छा नहीं लगेगा, बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। इनफैक्ट तुझे तो तेरी बीवी के हाथों पिटता देख हमें ज्यादा मजा आएगा। क्यों, है ना?"


     समर्थ ने शिविका को सपोर्ट किया और बोला "बिल्कुल! ऐसे छोटे-मोटे झगड़े से हमारा मनोरंजन थोड़ी होगा, जब तक कि तू निशी के हाथों मार ना खाए।"


    सुहानी काया सब मिलकर शूटिंग करने लगे। निशी बेचारी उस माहौल में बुरी तरह फस गई थी। लेकिन अव्यांश नाराज हो गया और अपनी मां से बोला "मॉम! देखा आपने!! सब के सब कैसे मेरे खिलाफ खड़े हुए हैं। इसलिए कह रहा था, मुझे छोटी बहन चाहिए। भाई भी चलेगा लेकिन चाहिए मुझे।"


     अवनी ने अपने आसपास देखा, सब अपना मुंह दबा कर हंस रहे थे। उसने गुस्से में अपने पैरों से जूती निकाली और अव्यांश को दिखा कर बोली "चुप हो जा वरना अपनी बीवी के सामने ही तू मेरी चप्पल खायेगा।" इस बार सारे लोग खुलकर हंस पड़े।


    निशी वहां से हटना चाहती थी लेकिन सबके बीच फंस चुकी थी। कंचन जी ने उसे ऐसे देखा तो उन्होंने इशारा करके उसे अपने पास बुलाया। निशी भी थोड़ा हिचकिचाते हुए कंचन जी के पास गई और उनके पास बैठ गई। कंचन जी ने अपनी आंखों का काजल निकालकर निशी के कान के पीछे लगाया और उसकी बलाएं लेकर बोली "हमेशा खुश रहो और तुम दोनों ऐसे ही रहना, हमेशा। तुम दोनों के रिश्ते को किसी की नजर ना लगे। लड़ते झगड़ते रहना लेकिन कभी खामोश मत होना।"


     उन्होंने एक हाथ से अव्यांश को अपने पास आने का इशारा किया तो अव्यांश जाकर उनके सामने घुटने के बल बैठ गया। कंचन जी ने अव्यांश को समझाते हुए कहा "अपनी बीवी की कोई बात मत टालना। वो अपना सब कुछ छोड़ कर तेरे पास आई है तो उसकी खुशियों का ख्याल रखना तेरी जिम्मेदारी है। वैसे, हमने सोचा नहीं था कि तेरी होगी। और होगी भी तो ऐसे होगी, और वह भी इतनी प्यारी बच्ची के साथ! ये तो बिल्कुल भी नही सोचा था।"


     अव्यांश एकदम से बोला "नहीं नानी! बच्ची नहीं है ये, 24 साल की है। आप चाहो तो पूछ लो।"


     कंचन जी ने अपना सर पकड़ लिया और बोली, "तेरा कुछ नही हो सकता।" फिर अपनी कलाई से कंगन उतार कर निशी की कलाई में पहना दिया और बोली "रखा तो मैंने इसे अपनी दोनों बेटियों के लिए था, लेकिन मौका ही नहीं मिला तो सोचा उनके बच्चों के लिए ही सही। कुहू सुहानी और काया के लिए तो पहले ही उनकी पसंद का से चुकी हूं।"


    अव्यांश ने अपनी नानी की दूसरी कलाई की तरफ इशारा करके कहा "और नानी! यह दूसरा वाला किसके लिए?"


    कंचन जी ने समर्थ के तरफ इशारा किया और बोली "तेरा भाई जब अपने लिए दुल्हन ले जाएगा तो यह उसके लिए।"


    यह सुनकर समर्थ और श्यामा दोनों ही इमोशनल हो गए। अव्यांश एकदम से बोला "फिर तो आप अपनी कलाई सुनी करने के लिए तैयार रहो। क्योंकि बहुत जल्द हम हमारे भैया को घोड़ी चढ़वाने वाले हैं।" यह सुनकर समर्थ के चेहरे के भाव थोड़े से बदल गया लेकिन जल्द ही उसने खुद को नार्मल कर लिया और मुस्कुराने लगा।


    अचानक उसकी नजर अंदर आते दो ऐसे मेहमानों पर गई जिसे देखकर समर्थ के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई। उसने बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी कि वह लोग यहां आएंगे। सिया की नजर जब उन दोनों पर गई तो उन्होंने खुद मुस्कुराते हुए आगे बढ़ कर उन दोनों का स्वागत किया और हाथ जोड़कर कहा "मिस्टर एंड मिसेस चौहान! मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि आप लोग आएंगे।"


    मिसेज चौहान, सिया के गले लग कर बोली "ऐसे कैसे नहीं आते! एक वक्त था जब हम एक दूसरे के हर सुख दुख में शामिल होते थे लेकिन अब तो जैसे सपना हो गया है। फिर भी आज इतनी बड़ी बात थी तो हम कैसे ना आते!"


     मिस्टर चौहान बोले "लेकिन यह सब अचानक कैसे? मतलब, हमने तो सोचा था कि सिया मित्तल अपने पोते की शादी धूमधाम से करेंगी। इस तरह गुपचुप तरीके से शादी और इतनी ग्रैंड रिसेप्शन पार्टी, हमने बिल्कुल भी एक्सपेक्ट नहीं किया था।


     सिया मुस्कुरा कर बोली "हमने भी नहीं की थी। लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि हम लोग भी उनकी शादी में शामिल नहीं हो पाए। लेकिन कोई बात नहीं, जो होना लिखा होता है वह तो होकर रहता है। ऐसे में सोचा कि कम से कम सारे लोगों का आशीर्वाद तो मिल जाएगा और किसी को कोई शिकायत भी नहीं होगी।"

 

     मिस्टर चौहान बोले "हां! लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि एक प्रॉपर वेडिंग सेरिमनी जरूर हो और हम उस में शामिल हो।"


     सिया को उनकी बातें सुनकर अच्छा लगा। उन्होंने कहा "बिल्कुल भाई साहब! हम जरूर चाहेंगे कि आप लोग इस सब में शामिल हो।"


    मिसेज चौहान की नजरें समर्थ पर टिकी हुई थी जो उनकी तरफ पीठ किए खड़ा था। सिया ने इस बात को भाँप लिया और उन्होंने समर्थ को आवाज लगाई "सोमू.....! बेटा सोमू.....!!"


    समर्थ अपनी दादी की आवाज को अनसुना नहीं कर सकता था। उसने पलट कर देखा तो पाया, उसकी दादी उसे अपने पास आने के लिए बुला रही थी। समर्थ झिझक रहा था। श्यामा ने उसकी बांह पकड़ी और कहा "इस सच से तुम नहीं भाग सकते कि वह तुम्हारी नानी है। तुम्हारा उनसे खून का रिश्ता है और यह रिश्ते ऐसे ही नहीं टूटते। भले ही तुम इस रिश्ते को ना मानते हो लेकिन कम से कम उम्र में तुम से बड़ी है और बड़ों का मान रखना हमारे घर के संस्कार हैं। जाओ जाकर उनसे मिल लो। वो लोग तुमसे ही मिलने आए है। और हां! कुछ उल्टा सीधा बोलने की जरूरत नहीं है। वो तुम्हारे नाना नानी है।"


      समर्थ को ना चाहते हुए भी सिया के बुलाने पर जाना पड़ा और ना चाहते हुए भी उन्हें मिस्टर एंड मिसेस चौहान के पैर छूने पड़े। मिसेज चौहान ने समर्थ के सर पर हाथ मेरा और उसके चेहरे को अपने दोनों हथेली में भरकर उसे प्यार से निहारने लगी। समर्थ खुद को उनकी पकड़ से जुड़ा नहीं पाया। मिसेज चौहान की आंखों में जो ममता थी, वह हमेशा समर्थ को अपने साथ बांध लेती थी। लेकिन उनकी बेटी ने जो कुछ भी किया था उसके बाद से समर्थ ऐसे किसी मोह के बंधन में नहीं पड़ना चाहता था।


    मिसेज चौहान ने उसे अपने गले से लगा लिया और उनकी आंखें छलक आई। आज एक लंबे अरसे के बाद उन्होंने अपने नाती को देखा था जिसकी आंखों में अपनापन कहीं नजर नहीं आ रहा था। फिर भी वो खुद को रोक नहीं पाई। समर्थन ने उन्हें धीरे से खुद से अलग किया और बोला "आप लोग चल कर बैठे, मैं आप लोगों के लिए कुछ भेजता हूं।" सिया कुछ कहती उससे पहले ही समर्थ तेजी से वहां से निकल गया था।


    सिद्धार्थ को समर्थ का ये रवैया अच्छा नही लगा लेकिन ये जो कुछ भी था, वो सब कहीं न कहीं उसकी वजह से था। लावण्या के साथ उसका रिश्ता ऐसा कभी नहीं होता अगर उसने लावण्या को उसकी लाइफ स्पॉइल करने की छूट न दी होती तो। लेकिन जो भी होता है, अच्छे के लिए ही होता है। लावण्या उसकी लाइफ से दूर चली गई लेकिन समर्थ को देकर गई, जिसका एहसान वो कभी नहीं भूल सकता। उसके बाद श्यामा उसकी लाइफ में आई और फिर शिवि। सब कुछ तो था उसके पास, फिर वो क्यों किसी को ब्लेम करता। 


    समर्थ को भी इस सब से कोई मतलब नहीं लेकिन सिद्धार्थ की खुशियों से जलते हुए लावण्या जिस तरह सिद्धार्थ की जान लेने की कोशिश की थी, उसके कारण ही समर्थ अपनी ही सगी मां से नफरत करने लगा और उससे जुड़े हर रिश्ते से दूरी बना लिया। जहां तक हो सके उसने उन लोगों को अवॉइड करने की कोशिश की थी फिर भी इतना कुछ होने के बाद और दोनों परिवारों के रिश्ते टूटे नहीं थे आखिर इस सब में उनकी कोई गलती नहीं थी मिस्टर एंड मिसेज चौहान ने तो हमेशा से अपनी बेटी के खिलाफ जाकर सिद्धार्थ का साथ दिया था।


      माहौल को हल्का करने के लिए सिद्धार्थ आगे आया और उनके पैर छू लिए। मिस्टर चौहान ने सिद्धार्थ को गले लगा लिया। जो कुछ भी हो रहा था,निशी उसे समझने की कोशिश कर रही थी और कभी आने वाले मेहमानों को तो कभी श्यामा और समर्थ को देख रही थी। 





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