सुन मेरे हमसफर 61

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    सिया ने मुस्कुराकर मिस्टर एंड मिसेज चौहान से कहा "आप लोग आइए, मैं आपको अपनी बहू से मिलवाती हूं।"


   सिया मिस्टर एंड मिसेस चौहान को निशी और अव्यांश के पास ले गई। अव्यांश से वो कभी नहीं मिली थी लेकिन अव्यांश को इतना तो पता था कि उनका समर्थ से क्या रिश्ता है। अव्यांश ने किसी तरह का कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखाया और झुक कर उन दोनों के पैर छुए। निशी ने भी ऐसे ही किया।


     मिसेस चौहान अव्यांश को देख कर बोली "बिल्कुल अवनी की परछाई है। बेटे मां पर जाते हैं और बेटियां बाप पर। बड़ी प्यारी जोड़ी है तुम दोनों की। हमेशा खुश रहो और भगवान तुम दोनों की जोड़ी हमेशा बनाए रखे।" उसके बाद उन्होंने अव्यांश और निशी को कोई गिफ्ट दिया।


     मिस्टर चौहान ने अपनी पत्नी को कुछ इशारा किया। मिसेस चौहान ने श्यामा की तरफ देखा और मुस्कुरा कर अपने पास आने को कहा। श्यामा चुपचाप उनके करीब गई और उन दोनों के पैर छू लिए। मिसेज चौहान ने श्यामा के सर पर हाथ फेर कर कहा "काश तुम मेरी बेटी होती! लेकिन कोई बात नहीं। हर रिश्ता खून से जुड़ा नहीं होता है। कुछ रिश्ते दिल से बनते हैं। तुम्हें सिद्धार्थ के साथ देख कर तकलीफ होती है, लेकिन उससे भी ज्यादा, कहीं ज्यादा खुशी होती है कि मेरे बच्चे की जिंदगी में तुम खुशियां लेकर आई।"


    शिविका जल्दी से आगे आई और उसने भी उनके पैर छू लिए। मिस्टर एंड मिसेज चौहान ने शिवि के सर पर प्यार से हाथ फेरा और उसके हाथ में एक छोटा सा बॉक्स रखकर बोली "मना मत करना बेटा! बहुत प्यार से तुम्हारे लिए लेकर आई हूं।"


     श्यामा उनसे ऐसा कुछ भी लेना नहीं चाहती थी और ना ही शिवि का कोई हक बनता था। फिर भी उन्होंने इतना प्यार और अपनेपन से दिया कि श्यामा मना नहीं कर पाई और शिवि को वो लेना पड़ा। सिया ने भी उनकी खुशी के लिए इशारे से उसे ऐसा ना करने को कहा। शिवि ने देखा, उसमे दो छोटे छोटे प्यारे से कान के बूंदे थे।


     "हमें यहां से चलना चाहिए। इन लोगों के बीच हमारा कोई काम नहीं है।" कहते हुए सिया उन्हें अपने साथ ले गई जहां उनकी पूरी मंडली जमा थी। उन सब के जाने के बाद निशी अभी वहां जो कुछ भी हुआ, उसके बारे में सोचने में लगी थी।


     'सब कुछ तो नॉर्मल था, तो फिर समर्थ भैया ने ऐसा बिहेव क्यों किया? एक पल को तो सबके चेहरे के भाव बदले थे फिर सभी नॉर्मल हो गए थे। लेकिन समर्थ भैया ऐसा नहीं कर पाए। उनके चेहरे पर खुशी जरा भी नजर नहीं आ रही थी।


    ' अव्यांश ने जब निशी को इस तरह सोचते देखा तो उसने पूछा क्या "हुआ क्या? सोच रही हो?"


    निशी ने इनकार में सर हिलाया तो अव्यांश ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, "तुम यही सोच रही हो ना कि यह लोग जो आए है, वह कौन है और समर भाई ने इस तरह से रिएक्ट क्यों किया?"


    निशी ने हैरानी से अव्यांश को देखा तो अव्यांश ने बड़े आराम से कहा "मैं समझ सकता हूं, तुम्हारे मन में क्या चल रहा है। तुम्हें इस बारे में कुछ पता नहीं तो जाहिर सी बात है तुम्हारी में यह सवाल उठना लाजमी है। मैंने तुम्हें बताया था ना कि ये बड़ी मां और बड़े पापा का पहला रिलेशनशिप नहीं है!"


     निशी एकदम से बोल पड़ी "इसका मतलब बड़ी मां उन लोगों की बेटी नहीं है और समर्थ भैया को उनकी बेटी ने...........! लेकिन समर्थ भैया का रिएक्शन मुझे कुछ समझ नहीं आया। आखिर अपने नाना नानी से कुछ तो लगाव होना चाहिए! फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?"


     अव्यांश धीरे से बोला "इस बारे में यहां बात करना सही नहीं है। बहुत कुछ ऐसा हुआ है जिसके कारण दोनों परिवार का रिश्ता टूटते टूटते बचा है और यह सब कुछ उनकी अपनी बेटी की वजह से। बहुत कुछ ऐसा किया है उन्होंने, जिसकी वजह से ना सिर्फ समर्थ भाई अपनी सगी मां से नफरत करते हैं बल्कि यह लोग भी अपनी बेटी से हर रिश्ता तोड़ चुके हैं। इस वक्त उनकी बेटी कहां है, किसी को कुछ नहीं पता। बस इतना जान लो कि वह औरत बड़े पापा को खुश नहीं देख सकती थी। बाकी की जितनी भी कहानी है वह तुम्हें सब धीरे-धीरे पता चली जाएगी। तुम चिंता मत करो, अब तुम मित्तल परिवार की बहू हो तो उस घर से जुड़े हर राज हर कहानी और हर बीते कल के बारे में तुम्हें जरूर बताया जाएगा।" निशी ने बस अपनी गर्दन हिला दी। 


     कुहू कुणाल को ढूंढने में लगी हुई थी। जहां उसने कुणाल को कार्तिक सिंघानिया के साथ छोड़ा था वहां उसे उन दोनों में से कोई नजर नहीं आया। कुहू को लगा शायद वह दोनों बातें करते हुए आगे निकल गए हो इसलिए उसने वहां आसपास उन्हें ढूंढा लेकिन दोनों में से कोई कुहू को नजर नहीं आया। हारकर उसने कुणाल का नंबर डायल कर दिया।


     रिंग जा रही थी लेकिन कोई कॉल रिसीव नहीं कर रहा था। "यहां इतनी लाउड म्यूजिक तो बज नहीं रही तो फिर कुणाल है कहां जो उसे अपने फोन की घंटी सुनाई नहीं दे रही? या फिर उसका फोन साइलेंट है? कार्तिक भी तो वही था। एक काम करती हूं, मैं उसी का नंबर डायल कर देती हूं। शायद वह कुछ बताएं।" सोचते हुए कुहू ने अपना फोन बुक खोलो और उसमें से कार्तिक सिंघानिया का नंबर ढूंढने लगी।


     पूरा फोन बुक में कांटेक्ट लिस्ट देखने के बाद भी उसे कहीं भी कार्तिक सिंघानिया का नाम नजर नहीं आया तो कुहू ने अपने सर पर हाथ मार कर खुद पर ही झल्लाते हुए कहा "तू भी ना पागल! तेरे पास उसका नंबर था कहां जो ढूंढ रही है! ना तूने कभी उसका नंबर मांगा और ना ही उसने कभी दिया। तेरा फोकस तो सिर्फ और सिर्फ कुणाल पर ही था। फिर भी मैं ऐसे ही हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठ सकती। कहां हो तुम कुणाल?"


     कुहू एक बार फिर कुणाल को ढूंढने के लिए निकली। 'अगर कुणाल यहां से चला गया है तो मेन गेट पर किसी को तो पता होगा!' यह सोचते हुए कुहू दरवाजे की तरफ बढ़ ही रही थी। वहां उसे किसी के चीखने चिल्लाने की आवाज सुनाई थी। देखा तो सुहानी किसी को बहुत बुरी तरह से मार रही थी, कभी हाथ से तो कभी अपने सैंडल से। और वो इंसान चुपचाप सुहानी के हाथ से मार खाए जा रहा था और फिर भी वह सुहानी को प्रोवोक करने का मौका नहीं छोड़ रहा था।


   कुहू जल्दी से भागते हुए गई और सुहानी को रोकते हुए कहा "क्या कर रही है तू सोनू? इस तरह क्यों मार रही है इसे? कौन है यह?"


    सुहानी कुहू को साइड करते हुए बोली "आज आप मत रोको दी! आज मैं इसका मर्डर करके रहूंगी, फिर चाहे मुझे फांसी क्यों ना हो जाए।"


    उस लड़के ने कुहू को पीछे से पकड़ लिया और बोला "देखा आपने दी! ये किस तरह मेरे साथ बिहेव कर रही है! बड़ी है इसका मतलब यह तो नहीं कि मुझ पर इस तरह धौंस दिखाएगी। मुझे पता होता कि मेरा स्वागत ऐसे होगा तो मैं यहां आता ही नहीं।"


     कुहू ने जब उसकी आवाज सुनी तो खुशी से पलट कर देखा "निर्वाण तुम!!! तुम कब आए?"


    सुहानी ने एक बार फिर निर्वान को अपनी सैंडल दिखा कर कहा "तुझे तो कैसे भी आना ही था। अगर अपनी सलामती चाहता है तो........"


     निर्वाण ने सुहानी की तरफ नाराजगी से देखा और कुहू से उसकी शिकायत करते हुए बोला "देखा दी! एक आप हो जो मेरे आने से इतनी खुश हो और एक यह है जो मुझे देखते ही मुझ पर टूट पड़ी। जब यह मेरे साथ ऐसा कर रही है तो बेचारे अव्यांश के साथ क्या करती होगी!"


     कुहू ने सुहानी को समझाने की कोशिश की "क्या कर रही है तू सोनू? ये बेचारा अभी-अभी आया है। बच्चा है ये और तू आते ही.........! छोड़ ना! ये इतनी दूर से आया है, थोड़ा आराम से बैठने दे, कुछ खा पी लेने दे, उसके बाद अपने हाथ साफ कर लेना। कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा।"


     यह सुनकर जहां सोनू के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई वही निर्वाण के चेहरे का रंग उड़ गया। उसे लगा कि यह दोनों बहने मिलकर उसकी खटिया खड़ी कर देगी इसलिए वो तुरंत वहां से भागा और खुद को बचाने के लिए जगह ढूंढने लगा।


     निर्वान को अव्यांश निशी के साथ किसी से बात करता हुआ नजर आया। वो जल्दी से भाग कर गया और अव्यांश के पास जाकर बोला "भाई भाई! मुझे बचा लो।"


    अव्यांश ने जब निर्वान को देखा तो पहले तो एक पांच उसके पेट पर मारा फिर खुश होकर उसे गले लगाता हुआ बोला "नीरू!!! तू कब आया? और कौन तेरे पीछे पड़ा है?"


     निर्वान घबराकर बोला "सोनू आज मेरा मर्डर करके रहेगी।"


     अव्यांश ने देखा सुहानी और कुंज उसी की तरफ बढ़ी चली आ रही थी। निर्वान जल्दी से अव्यांश के पीछे छुप गया और बोला "देखो! वह दोनों आ रही है। मुझे खिला पिलाकर हलाल करने का इरादा है इनका।"


     कुहू और सुहानी एक साथ बोली "तो गलत क्या है इसमें? जूते खाने वाला काम करेगा जूते ही खायेगा।"


     सुहानी दो कदम आगे आई और उस पर बरसते हुए बोली "कब से कॉल लगा रही थी तुझे, लेकिन तू कहां है किसी को नहीं पता। बुआ ने कहा था तू और नेत्रा दोनों आएंगे, कब कैसे यह उन्हें भी नहीं पता। तू तो टपक गया लेकिन तेरी बहन कहां है?"


    नेत्रा का जिक्र सुनते ही कुहू के मन में थोड़ी खटास आ गई। लेकिन आखिर थी तो उसकी बहन ही। सगी ना सही, भले ही उन दोनों में दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था, लेकिन चित्रा से तो था! अव्यांश एकदम सिर्फ कुहू के साइड जाकर खड़ा हो गया और सुहानी से बोला "फिर तू मेरे जूते लेगी या अपनी सैंडल उतारेगी?"


      सबको एक तरफ देख निर्माण निशी के पीछे जाकर छुप गया और बोला "भाभी प्लीज हेल्प!"


     कोई कुछ कहता उससे पहले ही निशी अपने दोनों हाथ फैलाकर निर्वाण को प्रोटेक्ट करते हुए बोली "खबरदार जो किसी ने भी मेरे देवर को हाथ लगाया तो!"


   सुहानी और कुहू वही चुपचाप खड़ी रहे लेकिन अव्यांश को मौका मिल गया उसे छेड़ने का। वह निशी के करीब गया और उसकी आंखों में आंखें डाल कर बोला "अगर किया तो क्या कर लेंगी आप?"


     निशी ने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला, उससे पहले ही अव्यांश ने निशी के पीछे खड़े निर्वान के कमर में अपनी उंगली से पोक किया। निर्वाण उछलकर साइड हो गया लेकिन निशी वही जड़ हो गई। अव्यांश ने दूसरी तरफ से भी ऐसे ही किया और निशी इस बार भी कुछ ना कर पाई। वो बस हैरानी से अव्यांश को देखे जा रही थी और अव्यांश शरारत से मुस्कुरा रहा था।


     निर्वान को परेशान करने के बहाने अव्यांश निशी की कमर को बार-बार हाथ लगाए जा रहा था। सुहानी ने कुहू को मारी और वह दोनों बहने चुपचाप वहां से निकल गई।




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