सुन मेरे हमसफर 52

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    कुहू कुणाल को ही ढूंढ रही थी। कुणाल पता नहीं इस भीड़ में कहा छुपा हुआ था। अब तक तो उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया था लेकिन जब उसने अपने घर के लोगों को एक दूसरे से मैचिंग आउटफिट्स पहने देखा तो वह सोच में पड़ गई। "कुणाल ने मेरे ड्रेस से मैचिंग क्या रखा होगा? पता नहीं उसने लिया अभी होगा या नहीं! मैंने खुद भी तो ऐसा कुछ नहीं रखा। मैं भी ना! पता नही मेरे दिमाग से कैसे निकल गई यह बात! लेकिन कोई बात नहीं, अभी भी कुछ गड़बड़ नहीं हुई है। कुणाल मिले तो सही, फिर बात करती हूं मैं उससे।" 


   कुहू चारों तरफ नजर दौड़ा ही रही थी के पीछे से कायरा ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "हम भी हैं यहां, थोड़ा टाइम हमारे साथ भी स्पेंड कर लो। मौका मिलता नहीं है कि आप जीजू को ढूंढने निकल जाते हो।"


     सुहानी भी भागते हुए आई और बोली "वो लल्लू अभी तक आया नहीं है। फोन भी नहीं उठा रहा। पता नहीं कहां है। कहीं लॉन्ग ड्राइव पर तो नहीं निकल गए दोनों?" कुहू और काया, दोनों ने एक साथ अपने कंधे उचका दिए।



      समर्थ की नजरे बार-बार दरवाजे पर जा रही थी। आज के इस फंक्शन में पूरा ऑफिस स्टाफ इनवाइटेड था तो ऐसे में तन्वी का भी आना बनता था। लेकिन वो अभी तक पहुंची नहीं थी। समर्थ बार-बार कभी अपनी घड़ी की तरफ देखता तो कभी दरवाजे की तरफ। उसे पिछली बार का ध्यान आया, जब कुकू की सगाई में वह ऐसे ही तन्वी का इंतजार कर रहा था और निक्षय ने उसकी इस हरकत को पकड़ लिया था। उस वक्त तो बड़ी सफाई से वो निकल आया था, ऐसा उसे लगता था। आज फिर से कहीं कोई उसकी चोरी ना पकड़ ले, यह सोचकर उसने अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई और शांत होकर एक जगह खड़ा हो गया।


     किसी से बात करने का उसका बिल्कुल भी मन नहीं था। उसके दिल में एक टीस उठी। सब कुछ जानते हुए भी सारांश उसकी हेल्प करने की बजाए उसे तन्वी से और दूर कर रहा था। कोशिश तो उसने भी की थी लेकिन क्या वह अपने दिल को मना पाया? और जब अब वह अपने दिल को नहीं मना पाया तो आगे कैसे मनाएगा? ना चाहते हुए भी उसकी उंगलियों ने तन्वी का नंबर डाल कर दिया।


    जैसे-जैसे फोन की रिंग जा रही थी, समर्थ के दिल में घबराहट बढ़ रही थी। अगर तन्वी ने फोन उठा लिया तो क्या पूछेगा और कैसे पूछेगा? सबसे बड़ी बात, क्या तन्वी उसका फोन उठाएगी?


     रिंग जाती रही लेकिन वाकई तन्वी ने फोन नहीं उठाया। उसने दोबारा से नंबर डायल करना चाहा लेकिन इतने में किसी ने सामने से आकर कहा "गुड मॉर्निंग प्रोफेसर!"


     समर्थ ने नजरें उठाकर देखा तो उसके सामने उसकी ही कुछ स्टूडेंट्स झुंड बनाकर खड़ी थी। समर्थ ने मुस्कुरा कर कहा "गुड मॉर्निंग?! लेकिन अभी तो इवनिंग है।"


     एक लड़की ने बड़े प्यार से कहा "जानते हैं सर कि अभी इवनिंग है। कम से कम आपने एक्स्ट्रा कुछ बात तो की। वरना आप बस सर हिला कर चले जाते।"


   समर्थ ना चाहते हुए भी मुस्कुरा दिया। उनमें से एक लड़की ने शिकायत भरे अंदाज में समर्थ से पूछा "सर! आपने कॉलेज क्यों छोड़ दी? हमारा तो बिल्कुल मन नहीं लगता आपके बिना।"


    समर्थ चौक गया। उसे पता तो था की उसकी यह स्टूडेंट्स उसके बारे में क्या सोचती है, लेकिन इस तरह खुलकर ऐसी बात कहेगी उसने उम्मीद नहीं थी। समर्थ ने बात को हल्के में घुमाते हुए कहा "ओ कम ऑन! मैं तो बस कुछ टाइम के लिए था वहां। मुझसे भी पहले कई सारे प्रोफेसर आए और गए। मैं भी उनमें से ही एक हूं। शायद मेरा कैरियर यही तक था। वैसे भी उस कॉलेज में और भी बहुत सारे काबिल प्रोफेसर हैं।"


     लड़कियां कहां हार मानने वाली थी! दूसरे ने कहा "यह तो हमें पता है सर। लेकिन आपके पढ़ाने का अंदाज ही कुछ और था। आपकी क्लास में हमें कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था। आपको ऐसे हमें छोड़कर नहीं जाना चाहिए था।"


      समर्थ को लगा कि आज वह इन लड़कियों के बीच बुरी तरह फंसने वाला है। उसने अपनी बात संभालते हुए कहा "मैंने कहा ना! यूनिवर्सिटी में एक से बढ़कर एक प्रोफेसर है, जिनके सामने मैं खुद को बहुत छोटा महसूस करता था। बहुत कुछ सीखना था मुझे उनसे, लेकिन मैं सीख नहीं पा रहा था। मौका ही नहीं मिल रहा था। और मैंने कॉलेज भी इसीलिए ज्वाइन की थी। लेकिन जब मुझे मौका ही नहीं मिल रहा तो फिर मेरे वहां रहने का कोई फायदा ही नहीं था।"


     एक दूसरी लड़की ने कहा "लेकिन सर! अब आपका क्लास सूना सूना लगता है।"


     समर्थ ने आपने चारों तरफ देखा लेकिन यहां उसे रेस्क्यू करने वाला कोई नहीं था। अव्यांश भी आप अपनी वाइफ के साथ बिजी हो गया था। वरना वह ही इन लड़कियों को अकेले हैंडल कर लेता। और यह तो उसका फेवरेट काम था।


      समर्थ हंसते हुए बोला "किसी के रहने ना रहने से जिंदगी रूकती नहीं है। वैसे ही मेरे वहां ना होने से तुम लोगों की पढ़ाई नहीं रुकेगी। मेरी जगह कोई और आएगा और मुझसे भी बेस्ट होगा।"


     वह लड़कियां आगे कुछ कहती, उससे पहले ही समर्थ ने ने फिर से कहा "तुम लोग एंजॉय करो, मैं कुछ गेस्ट्स को देख कर आता हूं।" समर्थ ने फोन में कुछ नंबर डायल करता हुआ वहां से निकलकर कुछ कदम आगे गया और फोन कान से लगा लिया। उन लड़कियों का चेहरा एकदम से उतर गया। उनमें से एक ने कहा "समर्थ सर तो हमसे ठीक से बात ही नहीं करते हैं। तन्वी लकी है इस मामले में। एटलिस्ट वह समर्थ सर के साथ काम करती है। दिन भर में कई बार उनसे मिलने का उनसे बातें करने का मौका मिलता होगा। काश हम भी इतने लकी होते।"


     दूसरी ने कहा "लेकिन तन्वी है कहां? कहीं नजर नहीं आ रही। उसे भी तो इनवाइट किया होगा ना सर ने?"


      तीसरी लड़की जो तन्वी के थोड़े करीब थी, उसने कहा "अरे नहीं! आज उसे देखने लड़की वाले आने वाले थे। शायद उसी ने बिजी हो गई होगी और नहीं आ पाई होगी। अगर आई होती तो हमें फोन जरूर करती या फिर हमें दिखती जरूर।"


      तन्वी के रिश्ते की बात सुनकर समर्थ वही फ्रिज होकर रह गया। एक तरफ उसकी शादी की बात पर सब अड़े हुए थे दूसरी तरफ तन्वी का रिश्ता। उसके दिलो दिमाग में जो तूफान उठा, उसे शांत करने की कोशिश में समर्थ चारों तरफ कुछ तलाशने लगा। कोई ऐसी चीज, कोई ऐसी जगह, या कोई ऐसा इंसान जो उसे संभाल सके। इस दर्द को बर्दाश्त करना एक बार फिर उसके लिए नामुमकिन हो गया था।


    बेचैनी में उसने अपने बाल में उंगलियां फिराना शुरू कर दिया। वो बाल जिन्हे उसने बड़ी मुश्किल से सवारे थे, वो पूरी तरह बिखर गए थे। अनजाने में समर्थ ने सामने से चले आ रहे वेटर की ट्रे से वाइन की दो गिलास उठा ली और उन्हें एक झटके में गले से नीचे उतार लिया। इससे भी उसके दिल को राहत नहीं मिली वो वह पार्टी हॉल से बाहर निकल गया।


    समर्थ को ऐसे बाहर जाते देख सिद्धार्थ की नजर उस पर पड़ी। उसने समर्थ को आवाज लगाई "सैम! सैम!!"


      सिद्धार्थ के इस तरह पुकारने पर सारांश की नजर भी समर्थ की ओर गई और जिस तेजी से वह बाहर की तरफ जा रहा था उससे सारांश को थोड़ा बहुत शक तो हो ही गया था। उसने सिद्धार्थ को रोका और उसे जाने देने को कहा। "जाने दो ना भैया! होगा उसका कुछ जरूरी काम। इतना स्पेस तो देना चाहिए बच्चा को।" इतना भरोसा तो था उसे कि समर्थ गलती से भी कुछ गलत नहीं करेगा।



     निशा अपनी धुन में गाड़ी ड्राइव करती जा रही थी। उसके सामने जीपीएस पर पार्टी हॉल की लोकेशन नजर आ रही थी और उसके बगल में बैठा अव्यांश आंखें फाड़े उसे ही देख रहा था। बीच बीच में उसका दिल उछल कर बाहर आने को तैयार हो जाता। जिस स्पीड से निशी गाड़ी ड्राइव कर रही थी, उससे ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि वो कोई नौसिखिया ड्राइवर थी। फिर भी जिस तरह से निशी सार्प टर्न लेती थी, उससे अव्यांश का बुरा हाल हो जाता था। बीच बीच में ट्रेफिक लाइट पर उन्हें रुकना तो पड़ा लेकिन ज्यादा देर नहीं। कुछ ही देर में निशी वापस अपने उसी अंदाज में आ जाती थी।


     आखिरकार अव्यांश से रहा नही गया तो उसने चुप्पी तोड़ी और पूछ लिया "तुम्हें गाड़ी ड्राइव करनी आती है तो फिर भी तुमने यह क्यों कहा कि तुम्हें नहीं आती? और तुम्हें स्पोर्ट्स कार चलानी आती है? कैसे?"


    गाड़ी चलाते हुए निशी के होंठो पर एक बड़ी सी मुस्कान थी जो अव्यांश का सवाल सुनकर और चौड़ी हो गई। वो बच्चों की तरह अपनी सीट पर उछलते हुए बोली, "मेरे एक दोस्त के पास थी। उसके स्पोर्ट्स कार पर कई बार हाथ साफ किया मैंने। और तुम्हें क्या लगता है, मैंने गाड़ी चलानी नहीं सीखी होगी? इंपॉसिबल! तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो? वो भी बंगलौर जैसे शहर में रहकर!"


     अंशु ने तोड़ा डरते हुए कहा "ठीक है, मैं समझ गया तुम्हारी बात। लेकिन गाड़ी को थोड़ा तो स्लो कर दो। देखो, मेरा दिल यहां गले तक आ गया है। तुम चाहती हो कि मेरा दिल निकल कर बाहर आ जाए और मैं मर जाऊं? नहीं ना! तो प्लीज गाड़ी स्लो कर दो, प्लीज!"


      लेकिन निशी कहां यह सब सुनने वाली थी। उसने एक और सार्प टर्न लिया और एकदम से ब्रेक पर पैर लगा दिया। अव्यांश ने घबराहट में अपनी आंखे बंद कर ली। निशी उसकी ये हालत देख पहले तो हंसाने लगी, फिर जबरदस्ती अपनी हंसी रोक कर कहा, "हमारा डेस्टिनेशन आ गया हाय। अब जल्दी से उतरो और गाड़ी का दरवाजा खोलो। वरना मैं यहीं बैठी रहूंगी।"




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