सुन मेरे हमसफर 39

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   निशी फ्रेश होकर किचन में कई तो देखा, रेनू जी नाश्ता तैयार करने में लगी हुई थी। अपनी मां को एक बार फिर इतना परेशान होते देख निशी ने उनका हाथ पकड़ा और एक तरफ बैठाते हुए बोली "यह क्या कर रहे हो आप? इतना काम करोगे तो जाओगे और तबीयत खराब हो जाएगी। फिर कौन देखेगा आपको? मैं तो चली जाऊंगी यहां से, फिर सारी रिस्पांसिबिलिटी पापा घर आ जाएगी। अब पापा इस उम्र में ऑफिस देखेंगे या आपको? थोड़ा तो अपना ध्यान रखा करो आप!"


     रेनू जी ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा "अरे कौन सा ज्यादा काम कर लिया मैंने! वैसे भी, दामाद जी पहली बार घर आए है तो उनके लिए थोड़ा तो यह सब बनता ही है! और कहां कुछ खास बना रही हूं मैं? हल्का फुल्का नाश्ता ही तो है।"


     निशी ने अपने दोनों हाथ आपस में फोल्ड किए और सख्त लहजे में बोली "दामाद है, कोई भगवान नहीं जिसके लिए छप्पन भोग चौरासी व्यंजन परोसने होंगे। इंसान है वह, उसका भी पेट है कोई कुआं नहीं। कल भी आपने थोड़ा-थोड़ा करके बहुत कुछ बना दिया था और उसने कितना खाया? थोड़ा सा। अभी कल का खाना इतना सारा फ्रिज में बचा हुआ है, और आप अभी फिर नाश्ता बनाने में लग गई! कुछ एक्स्ट्रा बनाने की जरूरत नहीं है। बस पोहा बना दीजिए। और कल रात का खाना भी चल जाएगा साथ में।"


    रेनू जी ने निशी को डांट लगाई "यह तू क्या कह रही है? दामाद जी को बासी खाना खिलाएगी तू? और पोहा भी कोई खाने की चीज है क्या? वह भी सुबह सुबह!"


    निशि को और कुछ नहीं सूझा तो उसने कहा "मां! आपके प्यारे दामाद को पोहा बहुत अच्छा लगता है। वैसे भी, जिसके लिए आपने इतनी सारी मेहनत की है वो अभी तक घोड़े बेच कर सो रहा है।"


    रेनू जी ने एक बार फिर अपनी बेटी को डांट लगाई "निशी! कितनी बार समझाऊं, इस तरह नहीं बात करते हैं।"


    निशा झुंझला कर मुस्कुराते हुए बोली "आपके प्यारे दामाद जी अभी हाथी घोड़े सब बेच कर सो रहे हैं। जब वो उठ जाएंगे तो महाराज जी सुबह सुबह पहले कॉफी लेंगे उसके बाद आपके हाथों से बने गरमा गरम पोहे। और जो कुछ भी आपने अभी बनाया है, आपके दामाद जी दोपहर के खाने में खा लेंगे। ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है। वो लोग भी हमारी तरह नॉर्मल खाना खाते हैं। ऐसे पचास तरह के पकवान नही। इतनी इज्जत काफी है या और दूं?" रेनू जी ने हार मान कर अपनी बेटी के सामने हाथ जोड़ दिए।



 अव्यांश कमरे के दरवाजे पर खड़ा दोनो मां बेटी की सारी बातें सुन रहा था। निशी की बातों से उसे हंसी तो आ रही थी लेकिन फिलहाल उसे अपनी हंसी को कंट्रोल कर के रखा था। रेनू जी ने कॉफी बनाने के लिए बर्तन चूल्हे पर रखा तो अव्यांश एकदम से किचन में आ धमका और कहा "यह सब मैं कर लूंगा, आप चलकर आराम कीजिए।"


    रेनू जी परेशान हो गई और बोली "क्या कर रहे हो बेटा? आप इस तरह किचन में? आप बैठो, मैं बनाती हूं।"


    लेकिन अव्यांश ने उनकी एक न सुनी और किचन से बाहर ले जाकर बैठा दिया। फिर वापस किचन में आकर उसने दो कप कॉफी बनाई और एक कप ले जाकर उसने अपनी प्यारी सासू मां के हाथ में पकड़ा दिया, फिर कहा "कितना काम करते हो आप! थक नहीं जाते? कोई तो हो जो आपका ख्याल रखें। बाकी लोगों को तो बातें बनाने और दूसरो की चुगली करने से ही फुर्सत नहीं मिलती।"


     अव्यांश ने यह ताना सीधे-सीधे निशी को मारा था जो कि बिल्कुल निशाने पर बैठा था। अव्यांश के सुबह वाली हरकत से वो वैसे ही चिढ़ी हुई थी और उसके इस सो कॉल्ड फ्रेंडली बिहेवियर से और ज्यादा चिढ़ गई और पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई।


   अव्यांश अपनी हंसी छुपाते हुए बोला "मां! आपको मेरे लिए ज्यादा कुछ मेहनत करने की जरूरत नहीं है। मैंने 6 महीने पापा के काम किया है। वो अच्छे से जानते हैं मैं कौन हूं कैसा हूं। इसलिए यह घर मेरे लिए नया नहीं है। तो आप भी मुझे पराया मत कीजिए। अभी जो आपने इतना कुछ बनाया है, वो सब रहने दीजिए। इसके बाद आपको कुछ भी बनाने की जरूरत नहीं है क्योंकि आज आपको किचन से छुट्टी।*


      रेनू जी घबरा कर बोली, "ऐसे कैसे किचन से छुट्टी हो जाएगी? हम हाउस वाइफ की लाइफ में कभी संडे नहीं आता। छुट्टी तो दूर की बात है, कभी हाफ डे भी नहीं मिलता। आप आराम से बैठो, मैं आपके लिए नाश्ता ले आती हूं।"


    अव्यांश ने उनका हाथ पकड़ लिया और घुटने के बल बैठकर कहा "मां! मैंने कहा ना, आज आप की छुट्टी। आज आप आराम कीजिए। मैंने आपके लिए एक बढ़िया सी ब्यूटीशियन को बुलाया है। आज का दिन खुद को दीजिए। अपनी खूबसूरती को और निखारिए, बिल्कुल किसी महारानी की तरह। आज के किचन की सारी जिम्मेदारी मेरी। आप अपने कमरे में जाइए, इधर का मैं देख लूंगा।


     अव्यांश के सामने रेनू जी की एक न चली और अव्यांश ने उन्हें जबरदस्ती उनके कमरे में भेज दिया। निशि को ये बात नागवार गुजरी। इससे पहले उसने कभी इस तरह से जिद्द नहीं की थी और ना ही उसकी मां ने कभी उसकी जिद्द मानी थी। हमेशा ही उसने अपनी मां के जिद्द के आगे सरेंडर किया था। लेकिन आज, इस तरह अपने दिखावे के दामाद के सामने वो चुप हो गई थी, उनकी इसी बात से निशी को बहुत बुरा लगा।


     अव्यांश रेनू जी को कमरे में छोड़कर वापस हॉल में आया तो निशी उसके सामने आकर धमकाने वाले अंदाज में पूछा, "तुम क्या करने का सोच रहे हो? देखो! मुझे नहीं पता तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है लेकिन मेरे मां पापा को फसाने की कोशिश भी की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!"


    अव्यांश अपने हाथ में कॉफी का मग पकड़े मुस्कुरा दिया और बड़ी बेफिक्री से चलते हुए बोला "कोई बात नहीं! मैं तुम्हारे मां पापा को अपने प्यार के जाल में फंसा रहा हूं तो तुम भी मेरे मां पापा को फंसा लो। तुम्हारी फैमिली में सिर्फ तुम्हारे मम्मी पापा है लेकिन मेरी फैमिली में तो इतने सारे लोग हैं। उनमें से तुम जिसको अपने प्यार के जाल में फंसाना चाहो, फंसा सकती हो, मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा।"


    निशी उसके पीछे पीछे पैर पटकते हुए चल कर आई और धमकाने वाले अंदाज में पूछा "तुम करना क्या चाहते हो, साफ-साफ बताओ।"


     अव्यांश ने काफी का एक घूंट लिया और कुछ सोचते हुए कहा "वाकई मेरे दिमाग में एक प्लान तो है।" उसने अपना फोन निकाला और किसी का नंबर डायल किया। दूसरी तरफ से कॉल रिसीव होते ही उसने कहा "तुमकुर रोड पर जो हमारा फार्महाउस है, वहां पर एक रोमांटिक डेट सेटअप करना है, आज रात के लिए, हो जाएगा?"


    दूसरी तरफ से कन्फर्मेशन आ गया तो अव्यांश ने थैंक्यू कह कर रख दिया। निशी उसकी ढिठाई पर अवाक रह गई। उसने गुस्से में अव्यांश को उंगली दिखा कर कहा "मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाने वाली। मैं यहीं इसी घर में रहूंगी, कहीं नहीं जाऊंगी। डेट तो दूर की बात है, तुम्हारे साथ एक छत के नीचे रह रही हूं वही काफी है मेरे लिए काफी है। इससे ज्यादा कुछ भी उम्मीद मत करना।"


    अव्यांश आराम से सोफे पर पसर गया और कहा, "कोई हसीना जब रूठ जाती है तो...............! अपनी बात से मुकर ना मत। जो कहा है, उसे करके दिखाना। मेरा तुम्हें फुल सपोर्ट होगा। ऑल द बेस्ट।" निशी गुस्से में वहां से अपने कमरे में चली गई और जोर से दरवाजा बंद कर लिया। अव्यांश की हंसी छूट गई। हो भी क्यों ना! उसका प्लान जो काम कर रहा था।


     अव्यांश अभी अपने कॉफी के साथ बिजी थाजब उसको उसके डैड का कॉल आया। अव्यांश ने कॉल रिसीव किया तो उसकी आवाज सुनकर सारांश ने पूछा, "क्या बात है! इतना खुश!! ससुराल में कुछ ज्यादा मन लग गया है साहबजादे का। घर वापस आने का इरादा है भी या वहीं रहना है?


    अव्यांश ने हंसते हुए कहा "क्या पापा आप भी! आप कैसे मेरे मन की बात जान लेते हो? मैं कब से यही सोच रहा था कि मैं यही रुक जाऊं। अच्छा लग रहा है यहां पर। वैसे भी पिछले 6 महीने से तो यहीं पर हूं। अब तो यह शहर ही मेरा घर बन गया हुआ है। इसके बिना मन नहीं लगता।"


     सारांश हंसते हुए एकदम से सीरियस होकर कहा "अंशु! घर जल्दी आना। तुझसे कुछ बात करनी है।"


    अव्यांश भी मौके की नजाकत को समझ कर शांत हुआ और पूछा "डैड! सब ठीक तो है? कोई प्रॉब्लम है क्या?"


     सारांश ने गहरी सांस ली और कहा "ऐसी कोई सीरियस बात नहीं है। बस समर्थ को लेकर तुझसे कुछ बात करनी थी। भाई को कहा तो फिर, उसके और समर्थ के बीच जो होता है उस चक्कर में सब बर्बाद हो जाएगा। इसलिए मुझे लगता है तुमसे बात करना ज्यादा सही होगा।"


     अव्यांश को यह सारी बातें फोन पर पूछना सही नहीं लगा। उसने कहा "ठीक है डैड! मैं कल सुबह ही निकल जाऊंगा।"


    सारांश ने एक बार फिर मूड में आकर पूछा, "वैसे आज रात का क्या प्लान है?"


   अव्यांश ने बाहर की तरफ देखते हुए बड़े आराम से कहा "रोमांटिक डेट प्लान कर रहा हूं। कोई आईडिया हो तो बताइए।"


    सारांश खुशी से उछल पड़ा और पूछा "तू निशी को लेकर डेट पर जा रहा है?"


     अव्यांश अफसोस भरे लहजे में बोला "नहीं डैड! इतनी जल्दी नहीं। अभी थोड़ा वक्त और। फिलहाल तो मैं मिश्रा जी, आई मीन मां बाबा का डेट प्लान कर रहा था। उनको कभी टाइम नही मिला एक दूसरे के साथ। तो सोचा कुछ तो करू ऐसा जो हमेशा उन्हे याद रहे।"


   सारांश ने ताना मारा "वाह बेटा! कभी अपने मां-बाप के लिए तो ऐसा कुछ प्लान नहीं किया।"


    अव्यांश उन्हें धमकाते हुए बोला "ये गलत इल्जाम है मुझ पर। आप जो हर महीने मॉम को लेकर डेट पर जाते हो, कौन प्लान करता है?"


    सारांश ने हंसते हुए कहा, "ठीक है, मान गए तुझे। अब बस जल्दी आना।" और फोन रख दिया। अव्यांश से उसने 39





   निशी फ्रेश होकर किचन में कई तो देखा, रेनू जी नाश्ता तैयार करने में लगी हुई थी। अपनी मां को एक बार फिर इतना परेशान होते देख निशी ने उनका हाथ पकड़ा और एक तरफ बैठाते हुए बोली "यह क्या कर रहे हो आप? इतना काम करोगे तो जाओगे और तबीयत खराब हो जाएगी। फिर कौन देखेगा आपको? मैं तो चली जाऊंगी यहां से, फिर सारी रिस्पांसिबिलिटी पापा घर आ जाएगी। अब पापा इस उम्र में ऑफिस देखेंगे या आपको? थोड़ा तो अपना ध्यान रखा करो आप!"


     रेनू जी ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा "अरे कौन सा ज्यादा काम कर लिया मैंने! वैसे भी, दामाद जी पहली बार घर आए है तो उनके लिए थोड़ा तो यह सब बनता ही है! और कहां कुछ खास बना रही हूं मैं? हल्का फुल्का नाश्ता ही तो है।"


     निशी ने अपने दोनों हाथ आपस में फोल्ड किए और सख्त लहजे में बोली "दामाद है, कोई भगवान नहीं जिसके लिए छप्पन भोग चौरासी व्यंजन परोसने होंगे। इंसान है वह, उसका भी पेट है कोई कुआं नहीं। कल भी आपने थोड़ा-थोड़ा करके बहुत कुछ बना दिया था और उसने कितना खाया? थोड़ा सा। अभी कल का खाना इतना सारा फ्रिज में बचा हुआ है, और आप अभी फिर नाश्ता बनाने में लग गई! कुछ एक्स्ट्रा बनाने की जरूरत नहीं है। बस पोहा बना दीजिए। और कल रात का खाना भी चल जाएगा साथ में।"


    रेनू जी ने निशी को डांट लगाई "यह तू क्या कह रही है? दामाद जी को बासी खाना खिलाएगी तू? और पोहा भी कोई खाने की चीज है क्या? वह भी सुबह सुबह!"


    निशि को और कुछ नहीं सूझा तो उसने कहा "मां! आपके प्यारे दामाद को पोहा बहुत अच्छा लगता है। वैसे भी, जिसके लिए आपने इतनी सारी मेहनत की है वो अभी तक घोड़े बेच कर सो रहा है।"


    रेनू जी ने एक बार फिर अपनी बेटी को डांट लगाई "निशी! कितनी बार समझाऊं, इस तरह नहीं बात करते हैं।"


    निशा झुंझला कर मुस्कुराते हुए बोली "आपके प्यारे दामाद जी अभी हाथी घोड़े सब बेच कर सो रहे हैं। जब वो उठ जाएंगे तो महाराज जी सुबह सुबह पहले कॉफी लेंगे उसके बाद आपके हाथों से बने गरमा गरम पोहे। और जो कुछ भी आपने अभी बनाया है, आपके दामाद जी दोपहर के खाने में खा लेंगे। ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है। वो लोग भी हमारी तरह नॉर्मल खाना खाते हैं। ऐसे पचास तरह के पकवान नही। इतनी इज्जत काफी है या और दूं?" रेनू जी ने हार मान कर अपनी बेटी के सामने हाथ जोड़ दिए।



 अव्यांश कमरे के दरवाजे पर खड़ा दोनो मां बेटी की सारी बातें सुन रहा था। निशी की बातों से उसे हंसी तो आ रही थी लेकिन फिलहाल उसे अपनी हंसी को कंट्रोल कर के रखा था। रेनू जी ने कॉफी बनाने के लिए बर्तन चूल्हे पर रखा तो अव्यांश एकदम से किचन में आ धमका और कहा "यह सब मैं कर लूंगा, आप चलकर आराम कीजिए।"


    रेनू जी परेशान हो गई और बोली "क्या कर रहे हो बेटा? आप इस तरह किचन में? आप बैठो, मैं बनाती हूं।"


    लेकिन अव्यांश ने उनकी एक न सुनी और किचन से बाहर ले जाकर बैठा दिया। फिर वापस किचन में आकर उसने दो कप कॉफी बनाई और एक कप ले जाकर उसने अपनी प्यारी सासू मां के हाथ में पकड़ा दिया, फिर कहा "कितना काम करते हो आप! थक नहीं जाते? कोई तो हो जो आपका ख्याल रखें। बाकी लोगों को तो बातें बनाने और दूसरो की चुगली करने से ही फुर्सत नहीं मिलती।"


     अव्यांश ने यह ताना सीधे-सीधे निशी को मारा था जो कि बिल्कुल निशाने पर बैठा था। अव्यांश के सुबह वाली हरकत से वो वैसे ही चिढ़ी हुई थी और उसके इस सो कॉल्ड फ्रेंडली बिहेवियर से और ज्यादा चिढ़ गई और पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई।


   अव्यांश अपनी हंसी छुपाते हुए बोला "मां! आपको मेरे लिए ज्यादा कुछ मेहनत करने की जरूरत नहीं है। मैंने 6 महीने पापा के काम किया है। वो अच्छे से जानते हैं मैं कौन हूं कैसा हूं। इसलिए यह घर मेरे लिए नया नहीं है। तो आप भी मुझे पराया मत कीजिए। अभी जो आपने इतना कुछ बनाया है, वो सब रहने दीजिए। इसके बाद आपको कुछ भी बनाने की जरूरत नहीं है क्योंकि आज आपको किचन से छुट्टी।*


      रेनू जी घबरा कर बोली, "ऐसे कैसे किचन से छुट्टी हो जाएगी? हम हाउस वाइफ की लाइफ में कभी संडे नहीं आता। छुट्टी तो दूर की बात है, कभी हाफ डे भी नहीं मिलता। आप आराम से बैठो, मैं आपके लिए नाश्ता ले आती हूं।"


    अव्यांश ने उनका हाथ पकड़ लिया और घुटने के बल बैठकर कहा "मां! मैंने कहा ना, आज आप की छुट्टी। आज आप आराम कीजिए। मैंने आपके लिए एक बढ़िया सी ब्यूटीशियन को बुलाया है। आज का दिन खुद को दीजिए। अपनी खूबसूरती को और निखारिए, बिल्कुल किसी महारानी की तरह। आज के किचन की सारी जिम्मेदारी मेरी। आप अपने कमरे में जाइए, इधर का मैं देख लूंगा।


     अव्यांश के सामने रेनू जी की एक न चली और अव्यांश ने उन्हें जबरदस्ती उनके कमरे में भेज दिया। निशि को ये बात नागवार गुजरी। इससे पहले उसने कभी इस तरह से जिद्द नहीं की थी और ना ही उसकी मां ने कभी उसकी जिद्द मानी थी। हमेशा ही उसने अपनी मां के जिद्द के आगे सरेंडर किया था। लेकिन आज, इस तरह अपने दिखावे के दामाद के सामने वो चुप हो गई थी, उनकी इसी बात से निशी को बहुत बुरा लगा।


     अव्यांश रेनू जी को कमरे में छोड़कर वापस हॉल में आया तो निशी उसके सामने आकर धमकाने वाले अंदाज में पूछा, "तुम क्या करने का सोच रहे हो? देखो! मुझे नहीं पता तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है लेकिन मेरे मां पापा को फसाने की कोशिश भी की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!"


    अव्यांश अपने हाथ में कॉफी का मग पकड़े मुस्कुरा दिया और बड़ी बेफिक्री से चलते हुए बोला "कोई बात नहीं! मैं तुम्हारे मां पापा को अपने प्यार के जाल में फंसा रहा हूं तो तुम भी मेरे मां पापा को फंसा लो। तुम्हारी फैमिली में सिर्फ तुम्हारे मम्मी पापा है लेकिन मेरी फैमिली में तो इतने सारे लोग हैं। उनमें से तुम जिसको अपने प्यार के जाल में फंसाना चाहो, फंसा सकती हो, मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा।"


    निशी उसके पीछे पीछे पैर पटकते हुए चल कर आई और धमकाने वाले अंदाज में पूछा "तुम करना क्या चाहते हो, साफ-साफ बताओ।"


     अव्यांश ने काफी का एक घूंट लिया और कुछ सोचते हुए कहा "वाकई मेरे दिमाग में एक प्लान तो है।" उसने अपना फोन निकाला और किसी का नंबर डायल किया। दूसरी तरफ से कॉल रिसीव होते ही उसने कहा "तुमकुर रोड पर जो हमारा फार्महाउस है, वहां पर एक रोमांटिक डेट सेटअप करना है, आज रात के लिए, हो जाएगा?"


    दूसरी तरफ से कन्फर्मेशन आ गया तो अव्यांश ने थैंक्यू कह कर रख दिया। निशी उसकी ढिठाई पर अवाक रह गई। उसने गुस्से में अव्यांश को उंगली दिखा कर कहा "मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाने वाली। मैं यहीं इसी घर में रहूंगी, कहीं नहीं जाऊंगी। डेट तो दूर की बात है, तुम्हारे साथ एक छत के नीचे रह रही हूं वही काफी है मेरे लिए काफी है। इससे ज्यादा कुछ भी उम्मीद मत करना।"


    अव्यांश आराम से सोफे पर पसर गया और कहा, "कोई हसीना जब रूठ जाती है तो...............! अपनी बात से मुकर ना मत। जो कहा है, उसे करके दिखाना। मेरा तुम्हें फुल सपोर्ट होगा। ऑल द बेस्ट।" निशी गुस्से में वहां से अपने कमरे में चली गई और जोर से दरवाजा बंद कर लिया। अव्यांश की हंसी छूट गई। हो भी क्यों ना! उसका प्लान जो काम कर रहा था।


     अव्यांश अभी अपने कॉफी के साथ बिजी थाजब उसको उसके डैड का कॉल आया। अव्यांश ने कॉल रिसीव किया तो उसकी आवाज सुनकर सारांश ने पूछा, "क्या बात है! इतना खुश!! ससुराल में कुछ ज्यादा मन लग गया है साहबजादे का। घर वापस आने का इरादा है भी या वहीं रहना है?


    अव्यांश ने हंसते हुए कहा "क्या पापा आप भी! आप कैसे मेरे मन की बात जान लेते हो? मैं कब से यही सोच रहा था कि मैं यही रुक जाऊं। अच्छा लग रहा है यहां पर। वैसे भी पिछले 6 महीने से तो यहीं पर हूं। अब तो यह शहर ही मेरा घर बन गया हुआ है। इसके बिना मन नहीं लगता।"


     सारांश हंसते हुए एकदम से सीरियस होकर कहा "अंशु! घर जल्दी आना। तुझसे कुछ बात करनी है।"


    अव्यांश भी मौके की नजाकत को समझ कर शांत हुआ और पूछा "डैड! सब ठीक तो है? कोई प्रॉब्लम है क्या?"


     सारांश ने गहरी सांस ली और कहा "ऐसी कोई सीरियस बात नहीं है। बस समर्थ को लेकर तुझसे कुछ बात करनी थी। भाई को कहा तो फिर, उसके और समर्थ के बीच जो होता है उस चक्कर में सब बर्बाद हो जाएगा। इसलिए मुझे लगता है तुमसे बात करना ज्यादा सही होगा।"


     अव्यांश को यह सारी बातें फोन पर पूछना सही नहीं लगा। उसने कहा "ठीक है डैड! मैं कल सुबह ही निकल जाऊंगा।"


    सारांश ने एक बार फिर मूड में आकर पूछा, "वैसे आज रात का क्या प्लान है?"


   अव्यांश ने बाहर की तरफ देखते हुए बड़े आराम से कहा "एक रोमांटिक डेट प्लान कर रहा हूं। कोई आईडिया हो तो बताइए।"


    सारांश खुशी से उछल पड़ा और पूछा "तू निशी को लेकर डेट पर जा रहा है? कब, कहां? वो मान गई? कैसे प्रपोज किया उसे? कहीं तू उसे सरप्राइज़ देने की तो नही सोच रहा? लेकिन इतनी जल्दी!"


     अव्यांश अफसोस भरे लहजे में बोला "काश ऐसा हो पता! लेकिन फिलहाल तो नहीं डैड! इतनी जल्दी नहीं। अभी थोड़ा वक्त और। मैं कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता। आपने ही समझाया था ना!फिलहाल तो मैं मिश्रा जी, आई मीन मां पापा का डेट प्लान कर रहा था। उनको कभी टाइम नही मिला एक दूसरे के साथ। तो सोचा कुछ तो करू ऐसा जो हमेशा उन्हे याद रहे।"


   सारांश ने ताना मारा "वाह बेटा! कभी अपने मां बाप के लिए तो ऐसा कुछ प्लान नहीं किया। नए मां बाप मिल गए तो पार्टी बदल लिया, गधे की दुम!"


    अव्यांश उन्हें धमकाते हुए बोला "ये गलत इल्जाम है मुझ पर। आप जो हर महीने मॉम को लेकर डेट पर जाते हो, वो कौन प्लान करता है? बताऊं आपको! याद दिलाऊं? वैसे मॉम कहती है कि मैं आपकी दुम हूं।"


    सारांश ने डांटते हुए कहा, "ओए! तेरे कहने का मतलब मैं गधा हूं?""


   अव्यांश बेफिक्र अंदाज में बोला, "मैने तो ऐसा कुछ नहीं कहा।"


    सारांश ने हंसते हुए कहा, "ठीक है, मान गए तुझे। अब बस जल्दी आना।" और फोन रख दिया।


      अव्यांश से उसने हल्के तौर पर कह तो दिया था लेकिन फोन रखते ही उसके चेहरे पर के भाव गंभीर हो गए। उसे बार बार तन्वी और समर्थ के बीच कुछ तो कनेक्शन नजर आ रहा था। कल समर्थ के पास तन्वी का चश्मा और आज तन्वी के पास समर्थ का कोट। सारांश ने मन ही मन कुछ सख्त फैसला किया और बाहर निकल गया।


    



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