सुन मेरे हमसफर 40

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   दोपहर के 3:00 बज रहे थे और दिन धीरे धीरे ढलने लगा था। अव्यांश ने पूछा तो नहीं कि उसके पापा को समर्थ के बारे में क्या बात करनी थी, लेकिन अगर यह बात सिर्फ उन्होंने अव्यांश के साथ शेयर की है इसका मतलब बात कुछ अलग ही है। अगर ये बिजनेस से रिलेटेड नहीं है तो क्या पर्सनल हो सकता है?


   अव्यांश अभी यह सब सोच ही रहा था कि उसका फोन एक बार फिर बजा। इस बार कॉल उसी ब्यूटीशियन का था, जिसको उसने अप्वॉइंट किया था। नंबर देखकर अव्यांश ने कॉल उठाया और कहा "हेलो मिस ली! आप तैयार है तो मैं भेज दूं उन्हें?"


     दूसरी तरफ से लीना ने कहा "लेकिन सर! आपने तो मुझे आने को कहा था। फिर एकदम से प्लान चेंज कर रहे हैं, क्यो?"


     अव्यांश ने कहा "अब प्लान थोड़ा सा चेंज है। जो भी चेंज है मैं आपको मैसेज करके भेज दूंगा। यहां मैं ज्यादा बात नहीं कर सकता, आप बस तैयार रहना।" थोड़ा बहुत समझा कर अव्यांश ने फोन रख दिया और कमरे में गया जहां निशी बिस्तर पर लेटी हुई थी।


     अव्यांश एकदम से जाकर उसके बगल में लेट गया तो निशि हड़बड़ाकर उठी और कहां "तुम्हें कोई और जगह नहीं मिली सोने को? तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम्हें आज ऑफिस नही जाना क्या?"


     अव्यांश ने अपने चारों तरफ देखा और आराम से पूछा "तुम मुझसे बात कर रही हो?"


     निशी चिढ़ कर बोली "तुम्हें यहां हम दोनों के अलावा कोई और नजर आ रहा है क्या?"


     अव्यांश बड़े बेफिक्र अंदाज में बोला "नहीं! मुझे लगा तुम्हें थोड़ा........... मतलब समझ लो ना तुम। मैंने तो हमेशा से सुना है तुम्हारे बारे में कि तुम बेवजह बोलती रहती हो, चुप होने का नाम नहीं लेती हो, तो मुझे लगा शायद तुम्हें फिर से दौरे पड़े होंगे।"


      निशी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने एक तकिया उठाया और अव्यांश को मारते हुए कहा "तुम्हारे कहने का मतलब मैं पागल हूं?"


     अव्यांश ने अपने दोनों हाथ आगे कर दिए ताकि चोट ना लगे लेकिन अभी भी उसे निशी को परेशान करना था। उसने कहा "मैंने तो ऐसा कोई नाम नहीं लिया। तुम खुद को पागल कह रही हो तो इसमें मेरी क्या गलती? मैंने तो बस यही कहा कि तुम्हें बेवजह बोलने की आदत है। अब तुम्हें अपनी आदत पागलपन लगती है तो ये तुम्हारी गलती।"


     निशी गुस्से में उसके बाल नोचने पर उतारू थी। उसने बड़ी मुश्किल से खुद पर कंट्रोल किया और उठकर वहां से जाते हुए बोली "रहो तुम घर में, मैं जा रही हूं बाहर! ना तुम्हारे सामने रहूंगी और ना मेरा दिमाग खराब होगा।"


     अव्यांश खुश था कि निशी उसके साथ इतनी जल्दी फ्रेंडली हो गई थी। इसको फ्रेंडली नहीं कहा जा सकता लेकिन जो कुछ हुआ और जिस तरह उनकी शादी हुई उससे लगा नहीं था कि निशी इतनी जल्दी नार्मल हो पाएगी। अव्यांश को और क्या चाहिए था, उसकी बीवी नॉर्मल बिहेव करें, उससे लड़े, झगड़े।


    निशी वहां से जा पाती, उससे पहले अव्यांश ने एक बार फिर उसका हाथ पकड़ कर अपने करीब खींचा और उसके चेहरे पर झूलते बालों को कान के पीछे कर बोला "लेकिन तुमने तो कहा था कि तुम कहीं नहीं जाओगी? आज पूरा दिन इसी घर में रहोगी, मेरे सामने, मेरे साथ! तुम्हें याद है ना, मैं डेट प्लान कर रहा हूं?"


     निशी को याद आया, उसने तो धमकाकर कहा था और अव्यांश ने उसे इस बात के लिए सपोर्ट भी किया था। निशी कंफ्यूज थी कि आखिर वह करे तो क्या? 'आखिर अव्यांश करना क्या चाहता है? एक तो घर से इतनी दूर उसने डेट प्लान करी और ऊपर से वह चाहता है कि मैं यहां घर में रहूं! कहीं यह मुझे चैलेंज तो नहीं कर रहा? या फिर अपनी किसी गर्लफ्रेंड के साथ.........? नही नही! हो सकता है, सिर्फ अपना चैलेंज पूरा करने के लिए ये सब इसका नाटक हो!'


      "मेरे बारे में सोच रही हो?" अव्यांश की आवाज से निशी की तंद्रा टूटी। उसने खुद को अव्यांश की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश की तो अव्यांश उसे अपने और करीब खींचा और कहा, "अगर बाहर जा रही हो तो तुम एक काम करो, मैं चलता हूं तुम्हारे साथ। तुम्हारे लिए मैंने ब्यूटीशियन से अपॉइंटमेंट ली थी। आज रात के लिए तुम्हें तैयार तो होना पड़ेगा ना! आखिरी डेट पर जो जाना है।"


    अव्यांश निशी को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा था। निशी ने कुछ कहा नहीं लेकिन पैर पटकते हुए बाहर निकल गई और अपनी मां के सामने जाकर कहा "मां! मेरा पुराना फोन कहां है? जब से आई हूं पूरा घर ढूंढ लिया लेकिन मुझे मेरा पुराना फोन कहीं नजर नहीं आया।"


     रेनू जी शायद किसी से बात कर रही थी। उन्होंने फोन साइड में रखा और कहा "भूल जा उस फोन को।"


     निशी अपनी अपनी मां की बात सुनकर हैरान रह गई। वह परेशान होकर बोली "मां! कैसी बात कर रहे हो आप? वो मेरा फोन है। पता है उसमें, कितने सारे डिटेल्स थे, कितने लोगों का कांटेक्ट है उसमें, मेरी कितनी सारी फोटोस हैं कितने जरूरी डाक्यूमेंट्स है, आपको पता भी है? आजकल फोन फोन नहीं होता बल्कि पूरी लाइफ होती है। कितनी यादें है मेरी उसमें।"


    रेनू जी सख्ती से बोली "इसलिए कह रही हूं, भूल जाओ उस फोन को। अपनी पुरानी जिंदगी छोड़ कर एक नई जिंदगी में कदम रखा है तूने। अब पुरानी बातों को पुरानी यादों को, उसी फोन के साथ दफन हो जाने दे। मत कुरेद उन यादों को जो तुझे दर्द दे और तेरी आने वाली जिंदगी तकलीफ से भर दे।"


     निशी ने फिर से अपनी मां को समझाना चाहा। उसने कहा "मां! आप समझ नहीं रही हो। मेरा फोन........."


      रेनू जी ने एकदम से अपना एक हाथ उठाकर उसे चुप रहने का इशारा किया और थोड़ी और सख्त लहजे में बोली "मैंने कहा ना! भूल जा उस फोन को, मतलब भूल जा।"


    रेनू जी के कहे हर एक शब्द में उनका आदेश छुपा हुआ था। वो नहीं चाहती थी कि पिछली यादें और उसकी पिछली जिंदगी से जुड़े लोग उसके आज और आने वाले कल में किसी भी तरह दाखिल हो, खासकर एक इंसान। एक मां होने के नाते अपनी बेटी की खुशियों का ख्याल रखना उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी था।


   जब उन दोनों मां बेटी के बीच गरमागरम बहस चल रही थी तब अव्यांश ने उनकी सारी बातें सुनी लेकिन उसे अनसुना कर दिया। उसे अच्छा लगा कि उसकी प्यारी सासू मां भी वही चाहती थी, जो वो चाहता था। अव्यांश ने ऐसे दिखाया जैसे अभी अभी आया हो और एकदम से रेनू जी को पीछे से पकड़ कर कहा, "आप दोनों किस बारे में बात कर रहे हो? खैर छोड़ो ये सब। मिश्रा जी तो....... आई मीन पापा तो रात को देर से आएंगे। उनका फोन आया था, ऑफिस में कुछ काम था तो उन्हें ओवरटाइम करना होगा। अब उनको तो आने में देर होगी तो हम लोग क्या करें?"


     रेनू जी अव्यांश के इस तरह आने से थोड़ी घबरा तो गई थी कि कहीं उसने सारी बातें सुन ली हो, लेकिन जिस तरह अव्यांश ने अपनी बात कही, उससे उन्होंने चैन की सांस ली और कहा "इस वक्त कहां जा सकते हैं? दोपहर का टाइम है और सारी दुकानें बंद हो जाती है। मंदिर भी शाम को ही खुलती है। हम शाम में मंदिर चलेंगे और वहां से शॉपिंग करने।"


     अव्यांश नाराज होकर बोला "क्या मां, आप भी! शॉपिंग तो हम रोज करते हैं। वैसे यह आईडिया कुछ बुरा नहीं है लेकिन आज कुछ और करते हैं। एक काम कीजिए, आप जल्दी से तैयार हो जाइए, हम लोग कहीं बाहर चलते हैं।"


     निशी बीच में बोल पड़ी "कहां जाना है? मैं कहीं नहीं जाने वाली, आप लोगों को जाना है तो चले जाओ।"


     रेनू जी उसे डांट लगाती या कुछ कहती, उससे पहले ही निशी कमरे से बाहर निकल गई। अव्यांश ने अपनी सासू मां को देखा और कहा "यह तो चली गई। इसका कुछ नहीं हो सकता। आप चलो मेरे साथ।"


    रेनू जी अव्यांश को समझाते हुए बोली "बेटा मेरी छोड़ो, तुम और निशी कहीं बाहर घूम आओ। इतनी सारी जगह है घूमने के लिए, तुम्हें तो पता ही है।"


     अव्यांश भी कहां सुनने वाला था! उसका तो अपना ही प्लान था। सो उसने कहा "अभी आपने कहा ना कि मुझे पता है यहां घूमने वाली कौन-कौन सी जगह है! और निशी भी तो यही की है। उसे भी तो पता ही है फिर ऐसे में हमारा यहां घूमना मुझे बड़ा अजीब लगेगा। अगर उसे लेकर मुझे कहीं जाना ही है तो दिल्ली बेंगलुरु से बाहर जाऊंगा ना! लाइक ऊंटी, कुन्नूर, कोडाईकनाल, मनाली, शिमला, सिंगापुर मलेशिया। बंगलुरू तो जानी पहचानी जगह है। यहां घूम कर क्या फायदा? आप चलो मेरे साथ। निशि को नहीं आना तो ना आए, हमें उसे फोर्स नहीं करना चाहिए। मैने ब्यूटीशियन को कॉल कर रखा था, लेकिन वो काफी बिजी है तो उन्होंने आने से मना कर दिया और आपको वहां जाना होगा।"


     इस उम्र में पार्लर जाना रेनू जी को अजीब सा लग रहा था। ऐसे में रेनू जी चाहे कितने भी नखरे दिखा ले लेकिन अपने दामाद के सामने कुछ कह नहीं पा रही थी। वह जैसे थी वैसे ही अव्यांश उन्हें खींच कर अपने साथ बाहर ले गया। जाते जाते अव्यांश ने एक नजर निशी की तरफ देखा जो हॉल में सोफे पर बैठी कोई मैगजीन पढ़ने की कोशिश कर रही थी। लेकिन उसका पूरा ध्यान तो अव्यांश पर ही था।




    दूसरी तरफ दिल्ली में,

 सारांश शाम के वक्त घर लौटा और आते ही उसने सबसे पहला धमाका किया। "समर्थ के लिए मैंने एक लड़की पसंद की है। वो लोग अगले हफ्ते यहां आने वाले हैं। अगर उन्हें सब ठीक लगा तो रिश्ता पक्का कर लेंगे और सगाई भी।"


     समर्थ यह बात सुनकर बुरी तरह चौक गया और कहा, "चाचू! रिश्ता? सगाई? किसकी?"


   सारांश ने बिना उसकी तरफ देखे कहा, "शायद यहां एक ही ऐसा सदस्य है जिसके लिए लड़की वाले आयेंगे। अंशु की शादी हो गई है। किसी को प्रॉब्लम है तो बता सकता है और शादी न करने की वजह भी।"


     समर्थ का दिल धक से रह गया। इस तरह उसकी शादी की बात चलने की बजाए सीधे उसके रिश्ते की बात अनाउंस कर दिया गया। समर्थ ने कुछ कहना चाहा लेकिन सारांश बिना किसी को कुछ कहने का मौका दिए वहां से अपने कमरे में चला गया। सारे घरवाले उसके इस बरताव को समझने की कोशिश करने लगे और समर्थ इससे बचने के उपाय ढूंढने लगा।




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