सुन मेरे हमसफर 38

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    सुबह जब निशी की आंख खुली तो उसने कुछ देर एकटक अपने छत से लटके पंखे को देखा फिर उठकर अपने दोनों बाजू फैलाकर अंगड़ाई ली जिससे उसका हाथ अव्यांश के चेहरे से टकराया और वो चौक गई। उसे लगा कहीं अव्यांश की नींद ना खुल गई हो लेकिन अव्यांश अभी भी वैसे ही सो रहा था। कल रात काफी देर तक काम करने की वजह से कुछ घंटे पहले ही अव्यांश की आंख लगी थी और उन दोनों के बीच जो तकियों की दीवार थी, वो ना जाने कहां बिखर गई थी। पिछली बार भी ऐसे ही हुआ था।


    'तो क्या वाकई मैंने ही नींद में इन तकियों को हटाया था?' निशी सोच में पड़ गई, क्योंकि दो बार वह और अव्यांश एक बिस्तर पर सोए और हर बार उठने पर उसने खुद को अंशु के बेहद करीब पाया। इतना करीब कि जिसके बारे में सोचकर ही निशी के रोंगटे खड़े हो जाते थे। हालांकि अव्यांश निशी से पहले उठ जाता था, फिर भी वो खुद को अव्यांश के साइड ही पाती थी।


     निशी ने कन्फ्यूजन में अव्यांश की तरफ देखा। उसके चेहरे पर बिखरे बाल उसे और भी ज्यादा खूबसूरत लग रहे थे। ना चाहते हुए भी उसके हाथ अव्यांश के बालों को समेटने के लिए आगे बढ़े लेकिन अव्यांश ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा "मैं क्या इतना हैंडसम लगता हूं?"


   निशी घबरा गई और अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करती हुई बोली "तुम! और हैंडसम! कुछ भी हां! तुम कैसे भी दिखो, मुझे उससे क्या? मेरा हाथ छोड़ो, मुझे जाना है।"


     लेकिन अव्यांश ने उसका हाथ छोड़ने की बजाए और कस कर पकड़ा और अपनी तरफ खींचा, जिससे निशी सीधे जाकर अव्यांश के ऊपर गिरी और उसके बाल अव्यांश के कंधे पर बिखर गए। अव्यांश ने बड़े प्यार से निशी के बालों को कान के पीछे किया और कहा "तुम्हारा पति हूं। तो मैं कैसा दिखता हूं इससे तुम्हें फर्क पड़ना चाहिए और पड़ेगा भी। किसी और के लिए ना सही, कम से कम अपने मोहल्ले वालों को जलाने के लिए तो काम आएगा ही। वैसे तो मुझे मेरा लुक बहुत प्यारा है। लेकिन अगर तुम चाहो तो मुझे अपने तरीके से तैयार कर सकती हो, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।"


     निशी ने अपने दूसरे हाथ से उसके सीने पर मारते हुए कहा, "छोड़ो मुझे, बदतमीज इंसान!"


    अव्यांश ने उसका हाथ एकदम उसे छोड़ दिया। निशी मौका मिलते ही उठकर जाने को हुई लेकिन अव्यांश ने इस बार उसके कमर में हाथ डाला और उसे वापस अपने ऊपर खींच लिया। "बीवी हो तुम मेरी, और जिसे तुम मेरी बदतमीजी कह रही हो, वह बदतमीजी नहीं हक है मेरा। रात को तुम मेरे करीब आती हो तब तो मैं कुछ नहीं कहता!"


    कुछ शर्म से तो कुछ डर से, निशी का चेहरा सफेद पड़ गया। उसके इस हालत को देख अव्यांश हंसते हुए बोला "अभी छोड़ रहा हूं, लेकिन अगर इसी तरह तुम रात को मेरे करीब आती रही तो मैं भी बदला लेने में पीछे नहीं हटूंगा। जो काम तुम रात को करोगी, वो काम मैं दिन में करूंगा। इसलिए खुद को कंट्रोल में रखना वरना आगे से ऐसा कोई मौका नहीं दूंगा तुम्हें।"


     निशी ने खुद को अव्यांश की पकड़ से आजाद किया और गिरते पड़ते बाथरूम में भागी। अव्यांश उसे देखकर मुस्कुराता रह गया। ये पहली बार था जब उसने निशी को अपने इतने करीब महसूस किया था। गलती निशी की नहीं थी। रात में अव्यांश ने ही जानबूझकर उन दोनों के बीच की दूरियों को दूर कर दिया था और निशी को शक ना हो इसलिए उसने सारे तकिए उठाकर निशी की साइड फेंक दिया था। निशी अगर उसके करीब नहीं आ सकती थी तो यह पहल उसे ही करनी थी। अव्यांश अपने इस जीत पर मुस्कुरा दिया और वापस से सो गया। कम से कम एक घंटा और उसे नींद की जरूरत थी ताकि वह पूरी तरह फ्रेश होकर निशी के साथ घूमने जा सके।



*****




    रात में देर से सोने के बावजूद समर्थ जल्दी उठा और सारे पेपर्स को एक बार फिर से चेक करके ऑफिस के लिए तैयार हो गया। जब सारे घर वाले नाश्ता करने के लिए इकट्ठा हुए तब तक समर्थ ऑफिस जा चुका था, वह भी बिना नाश्ता किए।


      श्यामा समर्थ के लिए परेशान थी और उसका नाश्ता पैक कर अपने साथ लेकर जा रही थी। सिद्धार्थ ने चिढ़कर कहा "उस लड़के को अपने खुद के खाने-पीने की चिंता नहीं है तो आप क्यों इतना परेशान हो रही हो? कितना बड़ा हो गया है, अब उसे खुद अपनी चिंता करनी चाहिए। अगर नहीं कर सकता तो शादी कर ले, हमने कौन सा मना कर रखा है। लेकिन नहीं! उसने तो जैसे कसम खा रखी है।" 


    श्यामा ने अपने बेटे के तरफदारी करते हुए कहा "आप भी ना, बेवजह उसके पीछे पड़े रहते हैं। मैं समझ रही हूं, आप क्या कहना चाह रहे हैं। लेकिन इस तरह बात बात पर दोनों बाप बेटे से लड़ते हैं, कौन कहेगा कि आप दोनों के बीच उम्र इतना फासला है। जैसे दो भाई लड़ते हैं, एक दूसरे को चिढ़ाते है, आप दोनों की हरकतें वैसी ही है।"


     सिद्धार्थ ने श्यामा के हाथ से लंच बॉक्स लिया और डाइनिंग टेबल पर रखते हुए कहा "बात चाहे जो भी हो, तुम उसका नाश्ता लेकर नहीं जाओगी। उसे अगर खाना होगा तो वह खुद खा लेगा। अगर घर का ही नाश्ता चाहिए था तो फिर घर पर नाश्ता करके जाता।"


    सिद्धार्थ ने श्यामा का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ ऑफिस ले गया। जाते जाते श्यामा ने सारांश की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखा तो सारांश ने उसे इशारे से शांत रहने को कहा और समर्थ का लंच बॉक्स को लेकर ऑफिस के लिए निकल गया।


  ऑफिस पहुंचते ही सारांश जब अपनी गाड़ी से बाहर निकला तो दरवाजे पर ही वो तन्वी से टकरा गया। तन्वी घबराकर बोली, "गुड मॉर्निंग सर! सॉरी सर! वो मैंने आपको देखा नही। सॉरी!" 


   सारांश तन्वी की इस घबराहट को देख हंस पड़ा और बोला, "कोई बात नही। आगे से ध्यान से चला करो वरना चोट लग जायेगी। लेकिन तुम्हारा चश्मा कहां गया?"


   तन्वी ने अपने चेहरे को छुआ और कहा, "वो सर! शायद कल ऑफिस में ही छूट गया था। मैं अभी जाकर ले लेती हूं। सॉरी वंस अगेन!"


   सारांश ने उसे समझाते हुए कहा "बिना चश्मे के तो तुम खुद भी गिरोगी और दुसरो को भी गिराओगी। ध्यान रखना।" तन्वी उसे फिर से सॉरी बोलते हुए अंदर की तरफ भागी। सारांश उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा दिया लेकिन तन्वी के हाथ में जो कोट था, उसे देख वो चौंक गया।


     समर्थ इस वक्त ऑफिस में बैठा उसी फाइल के पन्ने को पलट रहा था। जहां जहां तन्वी ने अपनी पेन चलाई थी, समर्थ बस उन्हें छूकर तन्वी के हाथ को महसूस करने की कोशिश कर रहा था। सारांश का ड्राइवर अपने हाथ में लंचबॉक्स लिए समर्थ के केबिन में आया और रखकर चला गया। इतने में तन्वी ने दरवाजे पर नॉक किया। समर्थ ने उसे देखा और अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया, फिर कहा" तुम्हें नॉक करने की जरूरत नहीं है। कितनी बार कहा है तुमसे!"


     तन्वी अपने हाथ में समर्थ का कोट थामे अंदर आई और उसे देते हुए बोली "मैं यहां आप की एंप्लॉयी ही हूं और आप मेरे बॉस है। ऐसे में अगर मैं बिना नॉक किए अंदर आ गई तो लोग न जाने हमारे बारे में क्या कुछ कहेंगे। यह एक प्रोटोकॉल है और मैं इसे तोड़ नहीं सकती, और ना ही तोड़ना चाहती हूं। क्योंकि ये प्रोटोकॉल ही है जो मुझे एहसास दिलाते हैं कि हमारे बीच का फासला कितना ज्यादा है। आपका कोट मैंने प्रेस कर दिया है, रख लीजिए।"


     तन्वी समर्थ का कोट उसे वापस कर वहां से जाने लगी तो समर्थ ने उसकी कलाई पकड़ ली और कहा "ये मेरे लिए जरूरी नहीं था। लेकिन मेरे पास भी तुम्हारा कुछ है जो तुम्हारे लिए जरूरी है वरना मैं उसे कभी लौटाता नही।"


     समर्थ ने अपने पॉकेट से तन्वी का चश्मा निकाला और अपने रुमाल से उन्हें साफ कर खुद से तन्वी को पहना दिया। तन्वी ने थोड़ा सा हिचकते हुए दो कदम पीछे हटने की कोशिश की लेकिन समर्थ ने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे ऐसा करने से रोक दिया। ये नजदीकियां बड़ी किस्मत से मिलती है, इन्हे ऐसे कैसे जाने दे?


     समर्थ उन लम्हों को जी पाता, उससे पहले ही उसका फोन बजा। तन्वी ने जल्दी से खुदको समर्थ की पकड़ से छुड़ाया और बाहर निकल गई। समर्थ झुंझला गया और अपना फोन देखने लगा। कॉल शिवि का था। उसकी वो बहन जिसपर वो कभी गुस्सा नही कर पाता था और जो उसकी आवाज से ही उसके दिल की सारी बातें जान लेती थी। समर्थ परेशान हो गया कि वो शिवि का कॉल उठाए या नहीं?

    





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