सुन मेरे हमसफर 37

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बंगलुरू


    अव्यांश सब कुछ भूल कर घर के लिए निकल पड़ा। रास्ते में उसका फोन बजा देखा तो सुहानी उसे कॉल कर रही थी। अव्यांश ने कॉल रिसीव किया और कहा "बोलिए महारानी जी! क्या सेवा कर सकता हूं मैं आपकी?"


    सुहानी का दिल तो किया उसे सबसे पहले गालियों से स्वागत करें। लेकिन इस वक्त कुछ काम था इसलिए वह बड़े प्यार से बोली "अंशु! सुन ना। क्या कर रहा है अभी?"


     अव्यांश की एक भौंह टेढ़ी हो गई। उसने अपना निचला होंठ दांत से काटा और बोला "मैं कहां हूं, क्या कर रहा हूं, क्या करने जा रहा हूं, पहले तो ये सब कभी कोई मतलब नहीं रखा तो आज क्यों पूछ रही है?"


     सुहानी उसे मक्खन लगाने के अंदाज में बोली "तू भी ना! बहन हूं मैं तेरी, कभी तो मुझ पर भरोसा कर लिया कर। तू इतने टाइम तक हमारे साथ नहीं था। आया भी तो 1 दिन के लिए और फिर वापस चला गया। तेरी याद आ रही थी इसलिए तुझे फोन किया।"


     अव्यांश अपनी प्यारी बहन को ना जाने, ऐसा तो हो ही नहीं सकता था। सुहानी की बात पूरी होती उससे पहले ही अव्यांश ने कहा "बस बस! ज्यादा फुटेज खाने की जरूरत नहीं है। सीधे सीधे बता काम क्या है, वरना मैं फोन रख रहा हूं।"


      सुहानी जल्दी से बोली "नहीं नहीं! फोन मत रखना। तुझसे थोड़ा काम था, प्लीज फोन मत रखना।"


      अव्यांश मुस्कुरा कर बोला "अब आई ना लाइन पर! जल्दी बोल, वरना घर जा रहा हूं मैं। वहां जाकर मैं तेरी कोई बकवास नहीं सुनने वाला।"


    सुहानी हैरान होकर बोली, "तू इस वक्त घर जा रहा है? कहां था इतनी देर से? और निशी ने तुझे इतनी देर तक घर से बाहर कैसे रहने दिया?"


     अव्यांश निशी को याद करता हुआ मुस्कुरा दिया और कहा "वह मैं, ऑफिस में काम था तो उसी को करते हुए वक्त का पता नहीं चला। निशी ने फोन किया था मुझे आने के लिए, तब जाकर मुझे पता चला और मैं निकल पड़ा। अब जल्दी बता काम क्या है!"


     सुहानी जल्दी से बोली "हां! वो तुझे कुणाल का नंबर पता है क्या? मुझे जल्दी से भेज दे। कुछ जरूरी काम है।"


    अव्यांश की भौंहे सिकुड़ गई। उसने पूछा "क्या काम है? और अगर कोई काम है भी तो कुहू दी से उसका नंबर ले सकती है, मुझसे क्यों मांग रही है?"


      सुहानी परेशान होकर बोली "तुझसे जितना कहा जाए उतना तू कभी नहीं करता। एक काम के बदले सौ सवाल करेगा फिर भी वो काम नहीं करेगा।"


    अव्यांश उसे शांत कराते हुए बोला "ठीक है! लेकिन यह तो बता हुआ क्या है? कुणाल का नंबर चाहिए तो कुहू दी के फोन से मिल जाएगा, तू उनसे मांग ले।"


     सुहानी समझ गई कि अव्यांश बिना पूरी बात जाने काम करेगा नहीं। इसलिए उसने कुहू और कुणाल के बीच जो कम्युनिकेशन गैप था, उसके बारे में बता दिया और कल के शॉपिंग प्लान के बारे में भी। सुहानी को कुणाल का नंबर इसलिए चाहिए था ताकि वह बहाने से कल कुणाल को शॉपिंग पर बुला सके और कुहू को कुणाल के साथ अकेले टाइम स्पेंड करने का मौका मिल जाए।


     अव्यांश ने कहा "मेरे पास तो कुणाल का नंबर नहीं है, क्योंकि मैं उससे सिर्फ सगाई पर ही मिला हूं। हमारे बीच कुछ खास बातचीत नहीं हो पाई। तू एक काम कर, भाई से मांग ले। वह तो एक प्रोजेक्ट पर कुणाल के साथ ही काम कर रहे हैं। उनके पास तो होगा ही।"


     सुहानी ने अपने सर पर हाथ मारा और कहा "यह बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई? मैं एक काम करती हूं, भाई से ही मांग लेती हूं। एक बात बता, ये आईडिया तू पहले नहीं दे सकता था? सौ सवाल पूछकर बेवजह मेरा टाइम बर्बाद किया तूने। एक बात और! ससुराल जा रहा है! अपनी बीवी के पास!! तो कम से कम उसकी पसंद की आइसक्रीम या पेस्ट्री, कुछ भी ले लेना, खाली हाथ मत जाना फाइल लेकर। वरना तेरे फाइल से कूट कूट कर तेरा अचार बना देगी वो। लाइफ टाइम तुझे ताना मारेगी।" सुहानी ने बिना कुछ सुने फोन काट दिया।


    अव्यांश ने अपना फोन जेब में रखा और अपनी बहन के हरकतों से परेशान होकर सर पकड़ लिया। एम जी रोड से निकलते हुए उसे एक बेकरी शॉप नजर आई तो सुहानी की गई बातें दिमाग में घूम गई उसे जल्दी से ड्राइवर को रुकने का इशारा किया और उतरने लगा तो ड्राइवर ने कहा "सर! आप कहिए तो मैं ले आ आता हूं।"


    अव्यांश उसे मना करते हुए कहा "नहीं! मैं खुद जाकर ले लूंगा।" इतना कह कर आगे बढ़ा। दो तीन कदम चला फिर रुक उसने पलटते हुए ड्राइवर से पूछा "तुम्हें कौन से फ्लेवर का केक पसंद है?"


   ड्राइवर पहले तो चौक गया फिर थोड़ा झीझकते हुए बोला "मुझे क्या सर! अब फैमिली को पाइनएप्पल पसंद है तो मैं भी......!" अव्यांश मुस्कुरा दिया और वहां से सीधे बेकरी शॉप में घुस गया।


     बेकरी शॉप पहुंचकर अव्यांश का परेशान होना लाजमी था। उसे तो पता ही नहीं था कि निशी को कौन सा फ्लेवर पसंद है और उसके सामने हर फ्लेवर के अलग अलग पेस्ट्रीज सजा कर रखे हुए थे। एक फीमेल अटेंडेंट अव्यांश के साथ उसके प्रॉब्लम सॉल्व करने की कोशिश करने में लगी थी, लेकिन जब खुद अंशु को ही पता नहीं था तब वो लड़की भी क्या करती! उसके लिए भी यह नया एक्सपीरियंस था।


     कुछ सोचकर अव्यांश ने कहा "एक काम कीजिए। जितने भी तरह के फ्लेवर हैं, उन सब में से एक एक पीस इस तरह सेट करके दीजिए जिससे कि वह एक प्रॉपर केक की तरह नजर आए।"


    उस फीमेल अटेंडेंस को अव्यांश का यह आइडिया पसंद आया। उसने सारे प्लेट से एक एक पेस्ट्री निकाला और क्रीम के जरिए उसने हर पेस्ट्री को एक दूसरे से जोड़ा जिसके कारण वाकई वह एक राउंड शेप का केक बन गया था। वो लड़की अव्यांश के इस आईडिया से काफी इंप्रेस्ड हो गई थी। उसने बॉक्स को अच्छे से पैक किया और अव्यांश के हाथ में पकड़ा दिया।


     चलने से पहले अव्यांश ने पाइनएप्पल पेस्ट्री के 4 पीस अलग से पैक करने कहा और कुछ देर बाद ही वह दोनों बॉक्स लेकर बाहर निकल आया। बाहर ड्राइवर उसी का इंतजार कर रहा था। उसने आगे बढ़ कर जल्दी से अव्यांश के हाथ से बड़ा वाला थैले लिया और गाड़ी में संभाल कर रख दिया तो अव्यांश ने छोटा वाला पाउच ड्राइवर की तरफ बढ़ाकर कहा, "ये तुम्हारे परिवार के लिए।" अव्यांश का इतना अपनापन देख ड्राइवर इमोशनल हो गया और पेस्ट्री का पाउच हाथ में लेकर जल्दी से उसके बैठने के लिए पीछे का दरवाजा खोल दिया।


    अंशु गाड़ी में बैठने को हुआ लेकिन अचानक उसकी नजर कहीं पर जा कर गई। उसकी आंखों के सामने सड़क के उस पर कुणाल खड़ा था जो बेचैनी में इधर से उधर टहल रहा था और बार-बार अपनी घड़ी की तरफ देख रहा था। शायद वो किसी का इंतजार कर रहा था।


     अव्यांश सोच में पड़ गया। 'उधर कुहू दी, कुणाल से बात करने के लिए बेचैन हो रही है और उन्हें पता भी नहीं कि कुणाल दिल्ली में नहीं बल्कि यहां बेंगलुरु में है। लेकिन ये इतना ज्यादा डेस्परेट क्यों लग रहा है? और ये किसका इंतजार कर रहा है?'


    अव्यांश रोड क्रॉस कर कुणाल के पास जाना चाहता था लेकिन एक तो गाड़ियों की आवाजाही बहुत ज्यादा हो रही थी, ऊपर से निशी ने एक बार फिर उसे कॉल कर दिया था। जिसके कारण उसे वापस गाड़ी में बैठ कर वहां से जाना पड़ा। पता नहीं क्यों लेकिन अव्यांश को कुछ ठीक नहीं लग रहा था।



*****


दिल्ली,


     इधर सारांश एक फाइल लिए समर्थ कमरे में दाखिल हुआ। जिस तरह यह बच्चे बिना नॉक किए उसके कमरे में घुस जाते थे, सारांश ने भी इन्हीं सबसे थोड़ी सबक ली थी और दनदनाता हुआ अंदर कमरे में घुस आया था।


     समर्थ उस वक्त किसी ख्यालों में गुम था। उसके हाथ में तन्वी का चश्मा था जिन्हें वह बड़े प्यार से देख रहा था और उन्हें छू कर तन्वी को महसूस करने की कोशिश कर रहा था। सारांश के इस तरह आ जाने से समर्थ हड़बड़ा गया और उसके हाथ से चश्मा छूटते छूटते बचा।


    समर्थ को ऐसे हड़बड़ाते देख सारांश ने पूछा "तुझे क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है तेरी?"


     समर्थ ने जल्दी से वो चश्मा अपने पीछे छुपाया और कहा "हां चाचू, सब ठीक है। आप बताइए, आप अभी तक सोए नहीं?"


    सारांश ने अपने हाथ में पकड़ा फाइल समर्थ की तरफ बढ़ाते हुए कहा "यह फाइल तू ऑफिस में भूल आया था। भैया इसे अपने साथ ले आए थे। उन्होंने मुझे कहा तुझे देने के लिए। अगर वो आते तो फिर तुम दोनो के बीच उम्र को लेकर टशनबाजी शुरू हो जाती। वो सब छोड़, अगर तू देर रात तक जागने वाला है तो इस फाइल को देख लेना, वरना कल सुबह जल्दी उठकर इस पर जो भी काम बाकी है उसे खत्म कर देना। कल इस पर तुझे प्रेजेंटेशन देना है, तुझे याद है ना?"


    समर्थ ने जल्दी से फाइल लेकर कहा "हां चाचू, मुझे याद है। आप चिंता मत कीजिए। मैं इसे आज रात को ही देख लूंगा।"


     सारांश ने मुस्कुराकर समर्थ के कंधे पर हाथ रखा और थपकी देकर वहां से जाने को हुआ। लेकिन दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखते हुए उसे कुछ याद आया और उसने पूछा "वैसे तू तो चश्मा नहीं लगाता, फिर ये चश्मा किसका है?"


     समर्थ एकदम से हड़बड़ा गया और घबराकर बोला "चश्मा? कौन सा चश्मा? चाचू मैं कोई चश्मा नहीं लगाता तो होगा कहां से?"


   सारांश ने कहा "अरे वही चश्मा, जो तेरे हाथ में था अभी।"


     समर्थ ने खुद को नार्मल किया और घबराहट को छुपाकर कहा "छोटी मां का चश्मा देखकर आपको हर जगह बस वही नजर आता है। रात बहुत हो गई है। जल्दी जाइए वरना छोटी मां नाराज हो जाएंगी और आपको मेरे साथ सोना पड़ जाएगा।"


     समर्थ की बातों में पॉइंट था। इसीलिए सारांश सब कुछ छोड़ कर जल्दी से अपने कमरे की तरफ भागा। समर्थ ने राहत की सांस ली और उस चश्मे को छुपाकर रख दिया।




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