सुन मेरे हमसफर 28

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    अव्यांश एकदम से घबरा कर अपने चारों तरफ देखता हुआ बोला "ये कहां गया?"


    निशी को कुछ समझ नहीं आया। उसने अजीब नजरों से अव्यांश की तरफ देखा जो पूरे घर में इधर-उधर नजरे दौड़ा रहा था। निशी उससे कुछ पूछना चाहती थी लेकिन अव्यांश का बर्ताव वाकई बड़ा अजीब था। अव्यांश ने अपना सर पकड़ लिया और बेड पर बैठ कर बोला "घरवाले तो सारे सोने गए। अब मैं किससे पूछूं?"


    निशी ने अभी भी कुछ नहीं कहा, बस उसे देखती रही तो अव्यांश ने निशी से ही पूछा "यहां पर जो सोफा था, तुम्हें पता है वह कहां गया?"


     निशी को और जाकर ध्यान आया, वाकई वहां से सोफा गायब था जहां अव्यांश सोया था। अव्यांश अपने सर खुजाता हुआ बोला "हो ना हो, यह जरूर बड़ी मां का काम है। उन्होंने मुझे शायद यहां सोते देख लिया होगा।" फिर एक गहरी सांस लेकर बोला "मेरे घरवाले थोड़ी अजीब किस्म के है। कब क्या कर जाए, कोई कह नहीं सकता। तुम जाकर फ्रेश हो जाओ और चेंज कर लो। मैं दूसरे रूम से फ्रेश होकर आता हूं।"


    अव्यांश ने अलमारी से अपने लिए नाइट सूट निकाला और दूसरे कमरे में चला गया। निशी के पास और कोई रास्ता नहीं था, उसने भी अलमारी खोली और वहां से अपने लिए रात को पहनने वाले कुछ कपड़े ढूंढने लगी। उसे एक नाइट ड्रेस मिल गई जो उसके हिसाब से थोड़ी एक्सपोजिंग तो थी लेकिन बाकी सब से तो बेटर ही थी। उसने कपड़े लिए और बाथरूम में चली गई।


     अव्यांश गेस्ट रूम में फ्रेश होने गया लेकिन कमरे का दरवाजा बाहर से लॉक किया हुआ था। उसे यह बात थोड़ी अजीब लगी। वो जाकर दूसरे गेस्ट रूम में का दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगा, लेकिन यह कमरा भी बंद था। ऐसे कभी किसी कमरे का दरवाजा बंद नहीं होता था तो आज क्यों? अव्यांश को समझते देर न लगी कि यह सब कुछ पहले से प्लान किया हुआ था। उसने नाराजगी से श्यामा के कमरे की तरफ देखा और वापस अपने कमरे में चला गया।


     निशी को ज्यादा वक्त नहीं लगा और वो बाथरूम से निकली। अव्यांश ने उसे देखा तो थोड़ी देर देखता ही रह गया। फिर नजरे फेरकर दूसरी तरफ पलट गया। निशी ने ऊपर से श्रग नहीं डाल रखा था। उसने जल्दी से अपना श्रग उठाया और पहन लिया। अव्यांश अभी भी वैसे ही खड़ा था। निशी आगे बढ़ी और बालकनी तरफ का दरवाजा खोल दिया। ठंडी हवाएं अंदर आने लगी। अव्यांश उसके पीछे से बाथरूम में चला गया। जब वापस आया तो देखा निशी तकिया और एक चादर लेकर जमीन पर बिछाने रही थी।


      अव्यांश ने देखा तो उसके हाथ से चादर छीन कर सख्त लहजे में बोला "यह तुम क्या कर रही हो? नीचे सोने का इरादा है? ठंड लग जाएगी, बीमार पड़ जाओगी। कोई जरूरत नहीं है तुम्हें नीचे सोने की! तुम जाकर बेड पर सो जाओ, मैं नीचे सो जाऊंगा।"


     निशी चुपचाप जाकर बिस्तर पर बैठ गई। अव्यांश ने चादर बिछाई और तकिया डालकर जैसे ही उस पर लेटने को हुआ, निशी बोली "क्या तुम बीमार नहीं पड़ते?"


     अव्यांश ने सवालिया नजरों से निशि को देखा तो निशी बोली "हम दोनों इस पर एडजस्ट हो सकते हैं। ये तुम्हारा घर है और तुम्हारा कमरा है। यह बेड भी तुम्हारा है। ऐसे में मैं यहां ऊपर सोऊं और तुम्हें जमीन पर सोना पड़े, यह सही नहीं होगा। तुम्हें आदत नहीं होगी इस तरह सोने की। मैं नहीं चाहती मेरी वजह से तुम्हें कोई तकलीफ हो। हम दोनों इस बिस्तर के दो हिस्से कर सकते है।"


    अव्यांश चुपचाप निशी के सामने खड़ा रहा। उसका दिल तो खुशी से उछलने का कर रहा था। आखिरकार निशी ने अपनी तरफ से कोई पहला कदम उठाया था। भले ही वह दो हिस्से करने की बात कर रही हो, लेकिन कम से कम दोनों एक साथ तो होंगे। इतना काफी था उसके लिए। वो मन में होले होले हो जाएगा प्यार गाना गा रहा था।


     निशी ने उसे चुपचाप खड़े देखा तो जाकर उसका तकिया उठा लाए और उसके साइड रख कर चुपचाप अपने तरफ लेट गई। अव्यांश अपने मन की खुशी छुपाए जाकर बिस्तर पर लेट गया और लाइट ऑफ कर दी। थकान तो उसे भी थी। जल्दी ही दोनों गहरी नींद में सो गए।


     अव्यांश के कमरे की लाइट जैसे ही ऑफ हुई, सभी लोग अपने अपने कमरे से निकलकर अव्यांश के कमरे की तरफ देखा और श्यामा को थम्सअप का इशारा कर दिया। यह सारा प्लान अवनी का था। अवनी जैसे ही अपने कमरे में वापस आई, सारांश ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और बोला "तुम्हें याद है, हमारी शादी के बाद ऐसा ही कुछ......."


     अवनी ने जल्दी से सारांश के मुंह पर हाथ रखा और बोली "याद है, बहुत अच्छे से याद है। आप सोफे पर नहीं सोए थे और जो कुछ आपने किया था, जो कुछ हमारे साथ हुआ था, मैं चाहती हूं वैसा ही उन दोनों के साथ हो। साथ रहते हुए वह दोनों करीब आएंगे। लेकिन अगर इस तरह अलग-अलग सोए तो ये दूरियां कभी नहीं मिट पाएगी।"


    सारांश ने अवनी का माथा चूमा और कहा "मेरी बीवी बहुत ज्यादा समझदार हो गई है। संगत का असर है।" अवनी खुद भी इसका क्रेडिट नहीं लेना चाहती थी इसलिए उसने कोई विरोध नहीं किया।



   सुबह आंखों पर धूप पड़ने से निशी की आंख खुली और वो कंबल से अपना चेहरा ढक कर वापस सो गई। सुबह उठने की उसकी आदत नहीं थी और उसे अपना बिस्तर कुछ ज्यादा ही नर्म लग रहा था, इसलिए उसे और ज्यादा नींद आ रही थी।


     अव्यांश कमरे में आया और देखा, निशी जगी हुई तो थी लेकिन उठने का उसका कोई इरादा नहीं था। उसने धीरे से आवाज लगाई "निशी.......!"


     निशी के कान खड़े हो गए और वह इस आवाज को पहचानने की कोशिश करने लगी। अव्यांश ने फिर उसे पुकारा "निशी......!!"


     निशी को होश आया और उसे एहसास हुआ कि इस वक्त वह अव्यांश के कमरे में है। ये उसका ससुराल है। निशी एकदम से बिस्तर पर उठ कर बैठी और सबसे पहले घड़ी की तरफ देखा। सुबह के 9: 00 बज रहे थे। ससुराल में पहला दिन और वो इस वक्त तक सो रही थी। निशी घबरा गई और बाथरूम की तरफ भागने को हुई लेकिन अव्यांश ने एकदम से आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया।


     निशी कुछ गलत समझे उससे पहले ही अव्यांश अपना फोन निकाल कर उसके हाथ में देते हुए बोला "पापा का फोन आया था, मां तुमसे बात करना चाहती है। कल उनकी तुमसे बात नहीं हो पाई थी, इसलिए थोड़ा परेशान थी। पहले बात कर लो, फिर फ्रेश होकर नीचे आ जाना। सब डाइनिंग टेबल पर तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। निशी फोन को देखती रही और अव्यांश कमरे से बाहर निकल गया।


    निशी ने अपने पापा का नंबर डायल किया और फोन उसकी मां ने उठाया। निशी की उनिंदी आवाज से उन्हें समझते देर न लगी और उन्होंने निशी की क्लास लगानी शुरू कर दी। इस सबसे घबराकर निशी बोली "मां! आप मुझे डरा रहे हो। मैं आपसे बाद में बात करती हूं। पहले मुझे फ्रेश होकर नीचे जाना है।"


      निशी की मां बोली "जल्दी जा पागल लड़की! आज तेरी पहली रसोई की रस्म होगी।" निशी ने फोन बेड पर रखा और बाथरूम में भागी। सुहानी के हाथों सिया ने निशी के लिए साड़ी भिजवाई थी। सुहानी कमरे में आई तो पाया, निशी बाथरूम में थी। उसने निशि को आवाज लगाई और साड़ी को बिस्तर पर रख कर वापस चली गई।



     इधर डाइनिंग टेबल पर सभी ऑफिस के लिए तैयार बैठे हुए थे। सिया और बाकी घर वाले सभी निशी के आने का इंतजार कर रहे थे। सिया को अचानक से कुछ याद आया और उन्होंने अव्यांश से पूछा "अंशु बेटा! तुमने बताया नहीं, कैसा रहा तुम्हारा प्रोजेक्ट?"


    अव्यांश कुछ कह पाता उससे पहले ही अवनी चहकते हुए बोली "मां! हमारा अंशु सौ में से सौ नंबर लाया है। या कह लो, उससे ज्यादा।"


     अव्यांश मुस्कुरा कर बोला "मॉम! आप कुछ ज्यादा ही तारीफ कर रही है मेरी। हां दादी! मेरा प्रोजेक्ट बहुत अच्छा रहा लेकिन इस सब में मेरी हेल्प करने वाला एक इंसान था, मिश्रा जी।"


    सारांश अव्यांश पर नाराज होकर बोला "अंशु! बेटा तुम्हारे ससुर जी हैं वह।"


    अव्यांश धीरे से बोला "सॉरी पापा! वो क्या है ना, इतने टाइम से मैं उन्हें इसी नाम से बुलाता रहा हूं। एकदम से........ थोड़ा टाइम लगेगा।"


      समर्थ खाली पेट में चम्मच चलाते हुए बोला "वह सब छोड़। निशी इस वक्त यहां नहीं है, तो जल्दी से बता, वहां पर तेरी कोई गर्लफ्रेंड बनी या नहीं?"


     सब के कान खड़े हो गए। सुहानी अव्यांश की बात सुनने के लिए उसकी तरफ धीरे से झुकी। सबको ही अव्यांश के जवाब का इंतजार था। अव्यांश ने पहले तो सबके चेहरे देखे फिर नजर झुका कर बोला "यह दुनिया पैसों पर मरती है भाई। एक मिडिल क्लास लड़के की गर्लफ्रेंड बनना कोई पसंद नहीं करती, और वह भी तब जब उनके सामने अंश मित्तल नाम का एक फेक इंसान खड़ा हो।"


     सिया ने अव्यांश के सर पर हाथ फेरा और बोली "यह दुनिया ऐसी ही है बेटा। बस मुझे खुशी है कि तुमने अपना सबक सिखा। वैसे अवनी! अंशु की जो सैलरी तुम्हें मिली है, उनका तुम क्या करने वाली हो?"


     अवनी के होठों पर बड़ी सी स्माइल आ गई। सुहानी बोली "मॉम अपने लिए एक बड़ा सा हार बनाएंगी, है ना मॉम?"


     सबकी नजर अवनी पर थी लेकिन श्यामा बोली "अपने बच्चे की मेहनत की कमाई से बड़ा हार और कुछ हो ही नहीं सकता। अवनी कभी उन पैसों को खर्च नहीं करेगी।"


     अवनी को सबसे ज्यादा श्यामा समझती थी। अवनी ने जाकर श्यामा के कंधे पर सर रख दिया। सुहानी एकदम से एक्साइटेड होकर बोली "लो! भाभी भी आ गई। अब तो हमें मिलेगा ना नाश्ता?"


    सबकी नजर सीढ़ियों की तरफ चली गई। अव्यांश तो बस निशी को ही देखता रह गया।






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