सुन मेरे हमसफर 29

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 निशी घबराई हुई धीमी कदमों से चली आ रही थी। वह बस मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि यहां कोई तमाशा ना हो। लेकिन इतना तो उसे पता था कि देर से उठने पर उसे अच्छी खासी डांट लगेगी और वह इस सब के लिए खुद को तैयार भी कर रही थी। उसने देखा सभी डाइनिंग टेबल पर इकट्ठा थे और खाना कोई नहीं खा रहा था। सभी आपस में बात करने में लगे हुए थे।


     सुहानी की नजर जब निशी पर पड़ी तो वह खुश होकर बोली "लो! निशी भी आ गई।" निशी के दिल की धड़कन और ज्यादा बढ़ गई। पता नहीं सबसे पहले कौन रिएक्ट करेगा!


   सबकी नजर निशी पर ही थी। पीली साड़ी, मांग में सिंदूर, हाथों में चूड़ियां, आंखों में काजल, माथे पर छोटी सी बिंदी, कान में झुमके, सर पर पल्लू। अव्यांश तो बस उसे देखता ही रह गया। सिया कुर्सी पर ही टेढ़ी होकर बोली "आ गई महारानी? नींद हो गई पूरी? थोड़ा और सो लेती!" निशी और ज्यादा घबरा गई और वहीं ठिठक कर खड़ी हो गई। 


     सबकी नजर सिया की तरफ घूम गई। सिया इतने पर नहीं रखी उन्होंने कहा "मां बाप ने कुछ संस्कार दिए हैं या नहीं? शादी से पहले जो करती थी, वह सब भूल जाओ। यहां के नियम कानून कुछ अलग है, तुम्हें मानना ही होगा।"


      सिया के चेहरे पर जो भाव थे उसे देख लगा, निशी अब रो पड़ेगी। श्यामा ने खामोशी तोड़ी "क्या मां आप भी! बच्ची को डरा रहे हो आप।" श्यामा गई और निशी को कंधे से पकड़कर सिया के पास ले आई।


  निशी अभी भी बहुत ज्यादा डरी हुई थी। सिया अपना सर पकड़ कर बिल्कुल बच्चों की तरह बोली "अपनी बहू को डांटने का मौका नहीं मिला तो सोचा, थोड़ा सास बनने का एक्सपीरियंस लेती हूं। लेकिन तुम लोगों ने मुझे वह भी करने नहीं दिया। ये गलत बात है।"


     सुहानी जल्दी से उठी और निशी के सर से पल्लू उतार कर बोली "यहां घर में कोई पल्लू नहीं करता। अगर तुम्हें कंफर्टेबल ना लगे तो कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम करना चाहो तो कर सकती हो। तुम्हें यहां किसी भी बात के लिए नहीं रोका जाएगा।"


    सिया ने अव्यांश को कहा "तू अगली कुर्सी पर जाकर बैठ!"


     अव्यांश कभी अपनी जगह छोड़ने वालों में से नहीं था। लेकिन निशी सामने थी तो दादी की बात मानकर वह बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया। सिया उस खाली पड़ी कुर्सी पर निशी को बैठा कर बोली "यह घर अब आपका भी है। इस घर पर आपका उतना ही हक है जितना हम सबका है इसलिए कभी भी किसी से डरने की या घबराने की जरूरत नहीं है। तुम थकी हुई थी, ऐसे में एक अच्छी नींद तुम्हारे लिए जरूरी थी। तुम्हारी सास भी पहले दिन देर से उठी थी। इसीलिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?"


     निशी ने बस हां में गर्दन हिला दिया तो सिया ने निशी के सर पर हाथ फेरा। "आज पहली रसोई की रसम है। तुम्हें कुछ करने की जरूरत नहीं है। बस किचन में जाओ, वहां पर तुम्हारी सास तुम्हें बता देगी, क्या करना है।"


     सिया ने अवनी को इशारा किया तो अवनी बोली "यह काम तो भाभी को ही करने दीजिए।"


     श्यामा निशी को अपने साथ लेकर गई तो सिया ने अव्यांश से कहा "तेरी ही बीवी है। जिंदगी भर देखता रहना, अभी तो घूरना बंद कर!" अंशु झेंप गया और उसने अपनी नजरे नीची कर ली।


      अवनी भी पीछे-पीछे किचन में चली आई। निशी ने देखा, खीर पहले से ही चूल्हे पर जमी हुई थी। श्यामा ने बस उसे चम्मच दिया और चलाने को कहा। अवनी ने गैस बंद कर दी और ड्राई फ्रूट की प्लेट उसके आगे रख कर कहा "इससे गार्निश कर दो और एक कटोरी में निकाल लो। पहले भगवान को भोग लगेगा, उसके बाद सबको सर्व करना है।" निशी ने वैसे ही किया जैसा अवनी ने कहा था।


    भगवान को भोग लगाने के बाद श्यामा निशी को लेकर आई और वापस उसे कुर्सी पर बैठा दिया जहां वो पहले बैठी हुई थी, यानी अव्यांश के बगल में। सिया ने खुद से आगे बढ़कर सबसे पहले निशी के लिए प्लेट लगाया। निशी को ये बात थोड़ी अजीब लगी। उसने नजर उठाकर देखा तो उसकी दोनों सास, उसके सामने उसे नाश्ता सर्व करने के लिए खड़ी थी। अवनी और श्यामा ने सबके प्लेट में नाश्ता लगाया और खुद भी बैठ गई। अवनी को ध्यान आया कि खीर की कटोरी किचन में ही रह गई है तो वह उठ कर किचन में चली गई।


      समर्थ अपने पराठे तोड़ता हुआ बोला, "और अंशु महाराज! फरवरी का महीना चल रहा है। लव इज इन द एयर। निशी को लेकर डेट पर कब जा रहा है तू? कहे तो मैं सारी सेटिंग करवा दूं?


सिद्धार्थ ने ताना मारा "देखो तो कौन बोल रहा है! पहले अपनी सेटिंग तो कर ले। इतना ही हवाओं में लव का गुब्बारा फूटा है तो तेरी लव लाइफ खाली क्यों है? अंशु की तो शादी हो गई, लेकिन तेरा क्या? कभी गया है डेट पर?"


     सिया ने सिद्धार्थ को ताना मारा "बोल तो ऐसे रहा है जैसे अपनी बीवी को डेट पर लेकर गया था। सारांश को देख ले।"


     सिद्धार्थ को अपनी मां से इस ताने की उम्मीद नहीं थी। "मां! डेट, वो भी इस उम्र में, लोग क्या कहेंगे? श्यामा मेरी पत्नी, मेरी गर्लफ्रेंड नहीं जो मैं उसे डेट पर लेकर जाऊं।"


     अव्यांश को मौका मिल गया। उसने होठों को गोल घुमा कर सीटी बजाई और बोला "बड़ी मां! सुना आपने? आप कहो तो आपके लिए मैं तलाक के पेपर्स तैयार करवाऊं?"


      सिद्धार्थ बुरी तरह चौक गया। कहां तो वो समर्थ को टारगेट करने की कोशिश कर रहा था और यहां सब उसे ही.......….। सिद्धार्थ घबराकर बोला, "मतलब? तलाक के पेपर? तू तलाक हमारा करवाना चाहता है?"


     श्यामा सिद्धार्थ सामने चाय का कप पटकते हुए बोली "क्या गलत कहा मेरे बच्चे ने? बिल्कुल ठीक कह रहा है। मैं बीवी हूं तो मुझे डेट पर नहीं लगा सकते। जब बीवी नहीं रहूंगी तब तो ले जा सकोगे ना?"


      सिद्धार्थ बुरी तरह फंस गया और बोला "यहां बात समर्थ की हो रही थी। आप सब लोग मुझ पर ही चढ़ गए।"


     सिया ने फिर ताना दिया "बेटे से तो निपट ही लेंगे, पहले बाप को तो निपटा दे। क्योंकि बेटा पूरे बाप पर ही गया है।"


    सिद्धार्थ ने बारी-बारी से सब की तरफ देखा, कोई उसकी साइड खड़ा होने का तैयार नहीं था। तो उसने हार मानते हुए कहा "मां! मैंने तो बस समर्थ के लिए कहा था। मैं खुद चाहता था कि अव्यांश और निशी डिनर पर जाएं और मैं यह प्लान कर भी रहा था। आप लोग तो मेरे और श्यामा के पीछे पड़ गए।"


     श्यामा गुस्से में बोली "अंशु! अब तो तू तलाक के पेपर्स तैयार करवाएंगे ही ले।"


      सिद्धार्थ चौंक कर बोला, "ये तुम बोल रही हो जान?


    श्यामा भी उसी अंदाज में बोली, "जान वान कुछ नही। मुझे तलाक चाहिए मतलब चाहिए!"


     समर्थ ने भी मौके पर चौका मारा और अपना फोन निकाल कर बोला "मैं अभी लॉयर को फोन करता हूं।"


    सिद्धार्थ उसका फोन छीनने के लिए लपका लेकिन सारांश ने उसे पीछे से पकड़ लिया और बोला "समर्थ! तू जल्दी फोन लगा।"


      श्यामा ने भी सारांश की साइड ली और कहा "हां सोमू! जल्दी फोन लगाओ।"


      निशी सब कुछ बड़ी हैरानी से देख रही थी। 'यह सारे लोग इतनी आसानी से तलाक को लेकर डिस्कस कर रहे है! और क्या तलाक लेना इतना आसान होता है?' फिर मन ही मन अपने सर पर हाथ मार कर बोली 'बड़े लोग हैं, इनके लिए रिश्तो की अहमियत क्या ही होगी। पैसे वाले लोग।'


    सिद्धार्थ नहीं जानता था कि समर्थ क्या करने वाला है। क्योंकि उसका अपना बेटा उसके खिलाफ प्लान करने में और खुद को सुपीरियर दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। ऐसे में उसे रोकना था। उसने अवनी को आवाज लगाई, "अवनी............!"


      अवनी जो की किचन में थी, ट्रे में सबके लिए खीर का कटोरा लेकर आती हुई बोली "क्या हो गया भैया? कौन सी आफत आन पड़ी? अब क्या किया इन सब ने?" 


     सिद्धार्थ रोआसा होकर बोला "अवनी! पहले तुम यह बताओ, क्या खाकर पैदा किया था इसको?"


    अवनी भी कहां कम थी। उसने कुछ सोचने का नाटक किया और बोली, "उस रात शायद शाही पनीर बनी थी और आपने ही बनाई थी। लेकिन हुआ क्या?"


     अव्यांश ने पराठे का टुकड़ा मुंह में डाला और बोला "हम लोग यहां बड़े पापा और बड़ी मां का तलाक करवा रहे है और भाई लॉयर को फोन लगा रहे हैं, है ना भैया? वैसे बड़ी मां! आप तलाक कितनी जल्दी लेना चाहेंगे?"


     श्यामा ने कातिल नज़रों से सिद्धार्थ को देखा और बोली "आज और अभी मिल जाए तो मैं तैयार हूं, बाकी इनकी मर्जी।"


     सिया ने भी अपनी प्यारी बहू को सपोर्ट किया। "यह हुई ना बात! श्यामा तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं।" सबने एक साथ चीयर करके श्यामा को सपोर्ट किया। सिद्धार्थ जैसे अपने ही जाल में फस गया था और समर्थ अपने सर पर आई मुसीबत को अपने पापा के सर डालकर बड़ा खुश था।


    समर्थ जल्दी से एक नंबर डायल किया और बोला "हेलो वकील साहब! मुझे मेरे मम्मी पापा के लिए एक टेबल बुक करनी है, उनके लिए डेट अरेंज करना है आज।" समर्थ ने फोन को साइड में किया और श्यामा से पूछा "मॉम! आज रात को, या लंच पर?"


     श्यामा कुछ सोच कर बोली "लंच ठीक रहेगा। रात को मेरा फेवरेट सीरियल आता है, मैं मिस नहीं करना चाहती।"


     समर्थ ने फोन कान से लगाया और बोला "हां आज दोपहर का लंच..............! नही नही!! डिनर नहीं, लंच का ही अरेंजमेंट करना है।" इतना बोल कर उसने फोन रख दिया और एक बार फिर अव्यांश से कहा "तूने बताया नहीं, तेरा क्या प्लान है? मैंने सिर्फ मॉम डैड की डेट अरेंज की है।"


     अव्यांश कुछ कहता उससे पहले सिया बोली "आज तो पॉसिबल नहीं हो पाएगा।"


      समर्थ ने पूछा "क्यों दादी?" तो श्यामा बोली एक्सनिशी को पग फेरे के लिए उसके मायके जाना है। अंशु उसे अपने साथ ले जाएगा। अब तो यह दोनों कल ही वापस आ पाएंगे।"


    मायका......! ये नाम निशी के दिल को सुकून दे गया।




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