सुन मेरे हमसफर 27

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   कुणाल और कुहू की सगाई बड़े आराम से हो गई। सारांश ने निशी के मां पापा को भी इनवाइट किया था लेकिन वो लोग आ नही पाए। चित्रा और अवनी के मन में जो सवाल थे वह तो शांत हो गए लेकिन कोई तो था जिसने कुणाल की बातें सुनी थी, लेकिन कौन?


    एक तरफ कुहू अपनी सगाई से बेहद खुश थी तो वही कुणाल अपने कमरे में खिड़की पर खड़ा खामोश आंखों से सितारों को देखे जा रहा था। बाहर से आती ठंडी हवाएं उसके मन को ठंडक पहुंचाने के लिए काफी नहीं थी। मिसेज रायचंद कमरे में आई और दरवाजा बंद कर बोली "क्या तूने वाकई हार मान ली?" कुणाल ने कुछ नहीं कहा।


     मिसेज रायचंद कुणाल के करीब आई तो उनका ध्यान टेबल पर रखे उस अंगूठी पर गया, जिसे अभी कुछ देर पहले कुहू ने उसे पहनाया था। उन्होंने उस अंगूठी को उठाया और बोली "तू इस अंगूठी को बर्दास्त नही कर पा रहा तो कुहू को कैसे करेगा? जिस रिश्ते को तू मानना नही चाहता तो फिर क्यों इसे जबरदस्ती ढोना चाहता है? रिश्ते जबरदस्ती नहीं बनते। रिश्ते प्यार से बनते हैं, विश्वास से बनते हैं, सम्मान से बनते हैं।"


     कुणाल बिना उनकी तरफ देखे बोला "किसी भी रिश्ते के लिए प्यार सम्मान और विश्वास तीनों जरूरी है। मेरे और कुहू के रिश्ते में विश्वास और सम्मान दोनों हैं, बस प्यार नहीं है। और हमारे यहां तो आधी से ज्यादा शादियां अरेंज ही होती है। कितनों को उनका प्यार मिलता है? जब मैं नहीं था तब कुहू के चेहरे पर एक अलग ही उदासी थी। मुझे देख कर वो सब परेशानी भूल गई। कुहू सिर्फ मेरी दोस्त नहीं है बल्कि हम हर काम में पाटनर रही हैं। सच कहूं तो मुझे उसके साथ टाइम स्पेंड करना अच्छा लगता है। उसकी बातें अच्छी लगती है लेकिन कभी मुझे उससे प्यार नहीं हुआ। पता नहीं क्यों, मैं हमेशा कहता था कि मुझे मॉर्डन लड़कियां पसंद है। लेकिन कुहू, जो एक ट्रेडिशनल लड़की है और जिसे प्यार हुआ वो तो और भी ज्यादा सिंपल है।

     हम जो सोचते हैं वह कभी नहीं होता और जो नहीं सोचते वही होता है। मान लो, अगर वो लड़की मेरी जिंदगी में आ गई और मैंने उसका हाथ थाम लिया, तो कोई यकीन नहीं करेगा कि वह लड़की मेरी पसंद है, कोई नहीं। मुझे नहीं पता मैंने हार मानी है या नहीं, लेकिन मैं थक गया हूं। अपने सफ़र में मैं कुहू को शामिल नहीं कर सकता। या तो मुझे कुहू को छोड़ना होगा या फिर इस सफर को। मैंने कुहू का हाथ तो पकड़ लिया है लेकिन इस सफर का क्या करना है, अभी तय नहीं कर पाया हूं। बस जिंदगी मुझे जहां ले जाए। इस दरिया में मैं बहते जा रहा हूं। इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं पता और इससे ज्यादा आप मुझसे पूछना भी मत, क्योंकि मैं आपको जवाब नहीं दे पाऊंगा। मैं खुद भी अपने आप से लड़ रहा हूं। अपने जवाब ढूंढ रहा हूं।"


      मिसेज रायचंद ने अपने बेटे के कंधे पर हाथ रख उसे धीरज बंधना चाहा लेकिन कुणाल इस वक्त ऐसी हालत में नहीं था। वह बस अकेला रहना चाहता था सो वह जाकर सीधे बिस्तर में घुस गया और बोला "मॉम! प्लीज लाइट ऑफ कर देना।"


     कुणाल के चेहरे पर जो परेशानी थी, वह साफ बता रही थी कि कुणाल को नींद नहीं आएगी। लेकिन फिर भी मिसेज रायचंद ने अपने बेटे को के कहे अनुसार लाइट ऑफ किया और बाहर चली गई।




      मित्तल परिवार भी जैसे ही अपने घर पहुंचा, सुहानी को ना जाने क्या हुआ, उसने अपनी सैंडल उतारी और रैक में लगाने की बजाए उसने अव्यांश के सर पर मारा, जो वाकई उसके सर के बीचों बीच लगा। अव्यांश चिल्लाकर बोला "ओए! झांसी की रानी!! अब कौन सा भूत चढ़ गया है तुझे जो तू मुझे मार रही है? क्या कर दिया मैंने?"


     सुहानी ने अपना दूसरा सेंडल लिया और फिर उस को निशाना बनाया लेकिन अव्यांश थोड़ा सा झुका और सैंडल सोफे के नीचे घुस गई। अव्यांश हंसते हुए बोला "मिस्ड इट!"


     अवनी सुहानी को डांटते हुए बोली "यह क्या कर रही है तू? अपने भाई को कोई ऐसे मारता है क्या? और क्या हो गया जो तू उसे इस तरह मार कर रही है?"


     सुहानी ने रैक में से अपना एक जूता निकाला और अव्यांश की तरफ प्वाइंट आउट करके बोली "हमने इससे नेग मांगा था लेकिन इसने ने हमें क्या दिया? पार्लर के पासेज! जो हमारे पास ऑलरेडी थे। एक पैसा खर्च करना नहीं हुआ इससे। पहले अपनी गर्लफ्रेंड पर तो लाखों रुपए उड़ा देता था। अब जब हमारा मौका आया तो हमें क्या मिला? बस कुछ फ्री पास वो भी डिस्काउंट वाले। मैं तो इसका मर्डर करके रहूंगी।"


     अव्यांश जल्दी से जाकर श्यामा के पीछे छुप गया और बोला "देखा बड़ी मां! इस मासूम पर कितना अत्याचार करती है यह लड़की। कोई इसके लिए लूला लंगड़ा ढूंढकर लाओ और भेजो इसको इस घर से। अच्छा हुआ जो इतने टाइम तक मैं यहां नहीं था।"


      सुहानी दो कदम आगे आकर बोली, "ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। ये जो तू इतने टाइम यहां से गायब था ना! इस सबका हिसाब तुझसे एक ही बार में वसूल करूंगी।"


    अव्यांश ने अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई और बोला "हमारे घर में सारे कॉरपोरेट वाले ही है क्या?"


     समर्थ बोला, "अबे ध्यान से देख! इस घर में 2 डॉक्टर भी रहते हैं।"


    अव्यांश सुहानी से बचने की कोशिश करता हुआ बोला "डॉक्टर का मैंने अचार डालना है क्या? घर में कोई लॉयर होता तो अभी मैं इसे कम से कम 50 धाराओं में नहला चुका होता।"


     समर्थ ने उसके सर पर मारा और बोला "अबे! धारा में नहलाना नहीं होता है, दर्ज करना होता है।"


     सुहानी ने टेबल पर से फूलों का बुके उठाया और अव्यांश की तरफ फेंका। अव्यांश साइड हो गया और बचते हुए बोला "भैया! 50 धाराओं में इंसान को नहलाया जा सकता है। मुझे लगता है थोड़ी लॉ की बुक्स मुझे पढ़ लेनी चाहिए।"


    इन दोनों भाई-बहन के झगड़े के बीच कोई नहीं पड़ना चाहता था, इसलिए सभी अपने अपने कमरे में चले गए। अव्यांश वहां से चुपचाप खिसकने की सोच रहा था लेकिन सुहानी जाकर किचन से बेलन ले आई और बोली "चाहे कोई भी किताब पढ़ ले, तुझे मुझसे कोई नहीं बचा सकता।" और उसे मारने की कोशिश करने लगी।


     अव्यांश से खुद को बचाने के लिए निशी के पीछे जाकर छुप गया और बोला "देख अगर निशी को चोट लग गई ना तो फिर मैं तुझे बताऊंगा।"


      सुहानी अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर बोली "अपनी बीवी के लिए बहुत तकलीफ हो रही है तुझे, तो तू क्यों नहीं मार खा लेता, वह भी सीधी तरीके से। किसी को कोई चोट नहीं लगेगी।"


     निशी अव्यांश के इस तरह पकड़ने से थोड़ी अनकंफरटेबल हो रही थी। लेकिन दोनों भाई बहन की लड़ाई देख कर निशी के होठों पर मुस्कुराहट आ गई। पूरे हाल में भागते हुए दोनों भाई बहन जब थक कर चूर हो गए तो जाकर एक ही सोफे पर बैठ गए। सुहानी हांफते हुए बोली "मैंने तुझसे डायमंड ब्रेसलेट की डिमांड की थी। लेकिन तू मेरे लिए वह भी नहीं ला पाया।"


     अव्यांश ने सुहानी के सर पर हाथ रखा और उसे अपने कंधे पर रखकर बोला "सॉरी! तुझे तो सारी कहानी पता ही है। और तू अकेली नहीं नहीं है, मेरी चार बहने और है। सिर्फ तेरे लिए कैसे लेता? मेरे पास इतने पैसे तो थे नहीं जो मैं ले पाता लेकिन प्रॉमिस! अपनी सैलरी मैं सबसे पहले तेरे हाथ में लाकर रख दूंगा, उसके बाद तू जो लेना चाहे, ले सकती है। फिलहाल तो सारे पैसे मुझे मां के अकाउंट में ट्रांसफर करने हैं। वह तो इस सब के चक्कर में मैं घर चला आया वरना अभी वही बेंगलुरु में ही होता।"


     सुहानी उसके कंधे पर थपथपा कर बोली "रात बहुत हो गई है, तू जाकर सो जा। जानती हूं, तू ने ठीक से आराम नहीं किया होगा। जा, निशी भी तेरा इंतजार कर रही होगी।"


     अव्यांश को एकदम से ध्यान आया कि निशी तो वही हॉल में ही खड़ी थी। वह जल्दी से उठा और निशी के पास जाकर बोला "रात बहुत हो गई है, तुम्हे सो जाना चाहिए। वैसे, इतने भारी भरकम आउटफिट तुम लोग कैरी कैसे कर लेते हो यार?"


     पीछे से सुहानी आई और उसके कंधे पर कोहनी टिकाकर बोली "यह सब तेरे समझ से परे है। तू बस भाभी को लेकर जा।"


    निशी चुपचाप खड़ी थी। अव्यांश को भी समझ नहीं आया कि वह सुहानी के सामने किस तरह निशी के साथ बरताव करें। दोनों को हिचकिचाते देख सुहानी ने अव्यांश के हाथ में निशि का हाथ पकड़ता और बोली "तुम दोनों मियां बीवी हो और अपनी बीवी का हाथ पकड़ने में इतनी कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए। प्रॉब्लम तो तब होगी जब तू किसी और की बीवी का हाथ पकड़ेगा। फिर तो निशी ने तेरा हाथ काट देना है।" अपनी बात पर वह खुद ही हंस पड़ी। फिर बोली "तुम लोग एक साथ बहुत अच्छे लगते हो। अब जाओ सोने, रात बहुत हो गई है। मैं तो चली अपने लिए कॉफी बनाने। तुम लोगों को दूध का ग्लास चाहिए तो बोल दो, मैं कमरे में ले आती हूं।"


     निशी सुहानी का मतलब समझ गई और घबराकर दूसरी तरफ देखने लगी। अव्यांश भी सुहानी के इस हरकत पर निशी से नजरें चुराने लगा और सुहानी को डांट कर बोला "कुछ ज्यादा ही बकवास नहीं करने लगी है तू आजकल? मैं नहीं था तो कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है। कोई बात नहीं, मैं आ गया हूं ना, अच्छे से सुधार दूंगा तुझे।"


     सुहानी ने हंसते हुए दोनों को सीढ़ियों की तरफ धक्का दिया और बोली "बाद में देख लेना। आज की रात तुम दोनों की है।"


     अव्यांश निशी का हाथ पकड़े कमरे की तरफ जाने लगा। सुहानी किचन में जाने को हुई लेकिन उसे कुछ याद आया और उसने पूछा "अंशु.......! कल शाम को जो तुमने निशी के लिए गिफ्ट खरीदा था, तुमने उसे दिया या नहीं?"


      अव्यांश ने घबराकर निशी की तरफ देखा और सुहानी को इग्नोर कर अपने रूम में चला गया। निशी को उसकी शादी में देने के लिए जो उसने गिफ्ट खरीदा था, वो अभी तक उसके पास ही था और वो बस एक मौके की तलाश में था जब वो अपने हाथो से वो गिफ्ट निशी को दे सके। 


    निशी भी अव्यांश के पीछे पीछे कमरे में पहुंची लेकिन कमरे का नजारा देख अव्यांश के होश उड़ गए।



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