सुन मेरे हमसफर 19

 19





    चित्रा तूफान की तरह घर के अंदर दाखिल हुई और चिल्लाती हुई बोली "कर लो! सारे लोग मिलकर सारी रसम कर लो!! मैं कौन होती हूं इस घर में, इस घर के मामलों में दखल देने वाली!"


      सबकी नजर चित्रा की तरफ घूम गई और सब ने अपना सर पकड़ लिया। इतनी बड़ी बात हो गई घर में और चित्रा को इस बारे में किसी ने खबर तक नहीं की। सब ने उम्मीद से सिया की तरफ देखा और सिया ने उम्मीद से निक्षय की तरफ। चित्रा गुस्से में फूफकारती हुई बोली "ऐसे एक दूसरे का मुंह क्यों देख रहे हो सब? कहने को कुछ बाकी नहीं रहा क्या? दिल तो कर रहा है एक बंदूक लेकर सब को गोली से उड़ा दूं।"


     चित्रा को इतने गुस्से में देख कार्तिक उसकी नज़रों से बचने की कोशिश करने लगा। लेकिन इतने गुस्से में चित्रा कार्तिक को टारगेट ना करें ऐसा हो ही नहीं सकता था। वो कार्तिक से बोली "तू कम्मो! तुझे तो पता था लेकिन एक बार भी तूने मुझे कॉल करना जरूरी नहीं समझा? तुझ से तो यही उम्मीद थी। काव्या तुम! तुमसे मुझे ये उम्मीद नहीं थी। सारांश! तुझसे तो मुझे कोई उम्मीद नहीं थी। वो तो अच्छा हुआ जो काया ने ग्रुप में ये खबर डाल दी और नेत्रा ने मुझे कॉल कर बताया। वरना तो यहां बच्चे की खुशखबरी मिल जाती और मुझे पता ही नही चलता।


     सबके चेहरे पर घबराहट देखकर निक्षय ने चित्रा को संभाला और उसे करीब खींचकर उसका सर सहलाता हुआ बोला "शांत हो जाओ। देखो सब कितने डरे हुए हैं। और यह सब इतने डरे हुए हैं तो सोचो, बेचारी नई दुल्हन कितनी डर गई होगी!"


     चित्रा ने निशी की तरफ देखा। वाकई निशी थोड़ी घबराई हुई सी थी। चित्रा निशी के पास गई और उसे कुछ कहने की बजाए अव्यांश का कान पकड़ कर बोली "मुझसे बिना परमिशन लिए, तेरी शादी करने की हिम्मत कैसे हुई?"


    अव्यांश खुद को डिफेंड करता हुआ बोला "बुआ! मेरे कान तो छोड़ो! आपको जो कुछ पूछना है आप.......! आप.....! आप पापा से पूछो, वही बताएंगे आपको।"


    सारांश का गला सूख गया। चित्रा को छेड़ने का वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था। चित्रा सारांश से कुछ कहती उससे पहले सिया ने अपनी बाहें फैलाई और चित्रा को अपने पास आने का इशारा किया। चित्रा जाकर उनके गले लग गई और सिया के पैरों के पास बैठ गई।


      सिया प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर कहा "इसमें इनकी कोई गलती नहीं है। कल देर रात जिन हालात में सारांश ने मुझे फोन किया था, हम में से किसी का ध्यान नहीं गया। तू तो मेरी लाडली बच्ची है, हम तुझे कैसे भूल सकते हैं! उस वक्त हालात ही ऐसे थे कि हम कुछ नहीं कर पाए। बच्चों की शादी बिना किसी विघ्न के निपट गई, बस यही हमारे लिए सबसे बड़ी राहत की बात थी।"


     श्यामा ने खीर की कटोरी चित्रा के हाथ में पकड़ाई और बोली "अब तुम आ गई हो तो आगे की रस्म तुम अपने हाथों से करो।"


      चित्रा ने खीर की कटोरी ली और खुशबू लेती हुई बोली "भाभी! आपके हाथ में जादू है। मेरे लिए एक्स्ट्रा रखा हुआ है ना?"


     श्यामा हंसते हुए बोली "हां! तुम्हारे लिए पूरा का पूरा रखा है।"


     चित्रा ने राहत की सांस ली और बोली "फिर तो ठीक है। लेकिन पहले बहू के हाथ से भगवान को भोग तो लगा दिया था ना?"


    अवनी बोली "तुम चिंता मत करो, सब हो गया है। तुम बस आगे की रस्म निभाओ।"


     चित्रा नाराज होकर बोली "मैं तुमसे बात नहीं कर रही।" अवनी मुस्कुरा उठी।


     चित्रा अव्यांश निशी के सामने बैठी और बोली "मेरे बारे में तुम्हें किसी ने नहीं बताया होगा। एक्चुअली मेरी तारीफ के लिए किसी के पास कोई शब्द नहीं होते।"


     कार्तिक धीरे से काव्या के कान में बोला "हां! क्योंकि ये इस दुनिया की है ही नहीं।" काव्या ने अपनी हंसी कंट्रोल की।


     चित्रा ने कुछ सुना तो नहीं लेकिन तिरछी नजरों से कार्तिक की तरफ देख कर बोली "सब पता है मुझे, मेरे बारे में क्या सोचती है तू कम्मो।" कार्तिक बेचारा सीधा खड़ा हो गया।


    चित्रा ने खीर की कटोरी अव्यांश की तरफ बढ़ाई और बोली, "अब इसे अपने हाथ से खिला।"


    अव्यांश ने जब चम्मच पकड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो चित्रा ने उसके उस हाथ पर जोर से मारा।


     "आउच!" अव्यांश धीरे से चिल्लाया "क्या कर रही हो बुआ?"


     चित्रा बोली "मैंने हाथ से खिलाने को कहा, चम्मच से नहीं। अपने हाथों से खिला, इससे प्यार बढ़ता है।" फिर उसने सोनू को कुछ इशारा किया तो सोनू किचन में गई और एक बोल में पानी लेकर आई।


     अव्यांश ने अपने हाथ अच्छे से साफ किया और थोड़ी सी खीर लेकर निशी की तरफ बढ़ा दिया। निशी काफी झिझक महसूस कर रही थी लेकिन चित्रा के कहने पर उसने धीरे से सर झुका कर अव्यांश के हाथ से खा लिया। चित्रा ने इस बार कटोरी निशी की तरह बढ़ा दिया। निशी को भी वही सब करना पड़ा।


    सारी रस्में पूरी हो चुकी थी तो अवनी बोली "सब हो गया है, तो अब बच्चों को आराम करने देना चाहिए। कल से अब तक बहुत कुछ हो गया है। और खासकर निशी, अब बहुत ज्यादा थक गई होगी। मां! मैं निशी को लेकर जाती हूं।"


      चित्रा उसे रोकते हुए बोली "रुको भाई! यह तो बताओ अंगूठी ढूंढने की रसम में कौन जीता?"


     अवनी मुस्कुरा कर बोली "दोनों ही जीत गए।"


   चित्रा हैरान होकर बोली "ऐसा कैसे हो सकता है? कोई एक तो जीता होगा!"


      श्यामा ने जवाब दिया "हमारी निशी जीत गई और इस जीत में हमारे अव्यांश बाबू ने उनकी हेल्प की। इसलिए ये तो दोनों ही जीत है ना!"


    चित्रा ने प्राउड फीलिंग के साथ अव्यांश की तरफ देखा और ताना मारती हुई बोली "वाह बेटा! अभी से जोरू के गुलाम बन गया!"


     अव्यांश उसे साइड हग करता हुआ बोला "कहां बुआ! मैं तो अभी थोड़ा थोड़ा निक्षय अंकल से सीख रहा हूं।" चित्रा ने उसके गाल पर हल्की सी चपत लगा दी। 


    अवनी निशी को लेकर वहां से जाने को हुई तो सिया ने उसे रोका और बोली अवनी बेटा! जरा मेरे साथ आना, कुछ जरूरी काम है।"


     अवनी कुछ कहती, उससे पहले कुहू काया और सुहानी तीनों भागती हुई आई और बोली "आप जाओ, हम ले जायेंगे।"


     उन तीनों के चेहरे पर जो मुस्कुराहट थी, वह नॉर्मल नहीं थी। अवनी ने उन तीनों को ध्यान से देखा और हिदायत देती हुई बोली, "निशी को आराम की जरूरत है। इसीलिए कोई बदमाशी नहीं मत करना। कुहू को भी पार्लर जाना होगा और उसे लेकर तुम दोनों को भी निकलना है। इसलिए चुपचाप शांति से बिना किसी शरारत के निशी को कमरे में छोड़ कर आओ।" अवनी जानती थी इन तीनों के दिमाग में कुछ तो खुराफात चल रही है, लेकिन इतनी जल्दी निशी को कोई परेशान ना करें, बस इसलिए अवनी ने तीनों को हिदायत दी और सिया के पीछे चल पड़ी। 


     तीनों शैतानों ने शैतानी मुस्कुराहट के साथ अव्यांश को देखा और उसे चिढ़ाती हुई निशी को लेकर वहां से चली गई। अव्यांश ने भी आंखों ही आंखों में उन तीनों को देख लेने की धमकी दे डाली। लेकिन उन्हें कहा इससे कोई फर्क पड़ने वाला था। अपनी भाभी को लेकर तीनों अव्यांश के कमरे में पहुंची।


     कमरा पहले ही श्यामा ने फूलों से डेकोरेट करवा रखा था। कुहू ने निशी को आराम से बिस्तर पर बैठाया और बोली "तुम पहले चेंज कर लो, फिर थोड़ा आराम कर लेना।" कुहू गई और अव्यांश की अलमारी से निशी के लिए एक बढ़िया सा सूट निकाला।


     निशी की नजर अलमारी की तरफ गई जहां कई सारी साड़ियां और सूट करीने से लगाई गई थी। उसे लगा, शायद यह उन तीनों में से ही किसी एक का कमरा है। तो फिर कितना डेकोरेशन क्यों किया गया? निशी सोच में पड़ गई।


     कुहू ने कपड़े निशि को दिए और बोली "ये कपड़े तुम एक बार पहन कर देख लो। अगर फिटिंग की कोई प्रॉब्लम हुई तो हम करवा देंगे। वैसे मुझे नहीं लगता कोई प्रॉब्लम होगी।"


      निशी सवालिया नज़रों से कुहू को देख रही थी। कुहू को पहले तो कुछ समझ नहीं आया, फिर एकदम से बोली "तुम यही सोच रही हो ना कि यह सारे कपड़े किसके हैं? ये सारे कपड़े तुम्हारे ही है। मम्मा ने जब तुम्हें शादी के मंडप पर देखा था, तभी उन्होंने तुम्हारे लिए कुछ कपड़े सेलेक्ट किए थे और यहां अलमारी में रखवा दिया था ताकि तुम्हें कोई प्रॉब्लम ना हो। वैसे मम्मा ने सेलेक्ट किए है तो फिटिंग में कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए लेकिन फिर भी एक बार पहन कर देख लो।"


     सोनू निशी के बगल में बैठी और बोली "हां निशी! एक बार ट्राई करके देख लो, उसके बाद आराम कर लो। फिर शाम को कुहू दी की सगाई भी है। उसके लिए तुम्हें फ्रेश फ्रेश लगना होगा।"


      काया सोनू को टोकते हुए बोली "यह क्या सोनू! तू भाभी को नाम से क्यों पुकार रही है?"


   सुहानी भी चिढ़ कर बोली "तो अंशु कौन सा बड़ा है मुझसे जो मैं निशी को भाभी कह कर पुकारू? निशी! मैं पहले ही बता दे रही हूं, अंशु मेरा जुड़वा भाई है। सिर्फ कुछ मिनट बड़ा है मुझसे इसीलिए मैं भाभी नही कहूंगी जबतक मेरा मन नहीं होगा।"


      फिर वो कुहू और काया से बोली "वह सब छोड़ो। मा ने कहा था, निशी को आराम करने देना है। हम लोग बाहर चलते हैं।" कुहू भी इस बात से सहमत थी। उसने निशी को कमरे में मौजूद चीजों के बारे में समझा दिया। बाथरूम, अलमारी से लेकर चेंजिंग रूम और छोटी-छोटी चीजें जिसकी उसे जरूरत पड़ सकती थी, जिन्हें निशी के आने से पहले ही अरेंज करवा दिए गए थे। सब के बारे में बताकर कुहू सोनू और गाया बाहर निकली।


     बाहर निकलते ही उन तीनों ने देखा, अव्यांश अपने फोन में कुछ देखता हुआ कमरे की तरफ बढ़ा चला आ रहा था। कुहू ने एकदम से हाथ बढ़ाकर अव्यांश का रास्ता रोका और बोली "खबरदार जो आगे एक भी कदम बढ़ाया तो!"



Link:-

सुन मेरे हमसफर 20



सुन मेरे हमसफर 18






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274