सुन मेरे हमसफर 18

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गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनकर सिया जल्दी से बाहर दरवाजे की तरफ भागी जिसके कारण उनका पैर फिसला और वह लड़खड़ा गई। कुहू, सोनू, काया, सब की चीख निकल गई। "दादी.......!" समर्थ ने फूर्ति दिखाई और अपनी दादी को जल्दी से संभाल लिया।


      सिद्धार्थ भागता हुआ आया और सिया पर नाराज होता हुआ बोला "यह सब क्या है मां? आप इतने एक्साइटेड क्यों हो रही है? मैं समझ रहा हूं, लेकिन हम सब भी तो इंतजार कर ही रहे हैं। आपको थोड़ा तो अपनी उम्र का ख्याल करना चाहिए। अभी आप गिर जाती, आपको चोट लग जाती तो क्या होता?"


     सिद्धार्थ का इस तरह डांटना सिया को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने बच्चों की तरह मुंह बना लिया। समर्थ अपनी दादी को डिफेंड करता हुआ बोला "पापा! दादी बस इसीलिए एक्साइटेड है कि उन्हें अपनि पोता बहू को देखने का मौका मिल रहा है। इसलिए वह अपनी उम्र भूल गई है।"


     उम्र की बात आते ही सिया तुनक गई और समर्थ को ताना देते हुए बोली "हां! मैं अपनी उम्र भूल गई हूं, लेकिन तुझे तो अपनी उम्र याद है ना? जो अंशु ने किया है, वह खुशी मुझे बरसो पहले मिल गई होती, अगर तूने शादी कर ली होती तो। अभी तक तेरे बच्चे मेरी गोद में होते। लेकिन नहीं! अपने बाप पर जो गया है। कोई बात नहीं, जिस तरह तेरे चाचू ने शादी की उसके बाद तेरे बाप की बैंड बजी, मुझे पूरी उम्मीद है तेरे छोटे भाई की शादी हुई है तो तेरी बारात भी जरूर निकलेगी। अब तो मैं तेरे लिए लड़की ढूंढ के रहूंगी, चाहे तू कुछ भी कर।"


     बाजी अपने पर ही उल्टी पड़ते देख समर्थ का चेहरा उतर गया और सिद्धार्थ की हंसी छूट गई।


    गाड़ी कंपाउंड के अंदर दाखिल हुई तो अवनी के मन में वो सारे लम्हे एक बार फिर ताजा हो गए जब वह सारांश की दुल्हन बनकर पहली बार इस घर में आई थी। क्या निशी भी उसी की तरह सोच रही होगी? अवनी के दिमाग में यही सारी बातें चल रही थी। जब सारांश ने उसे कंधे से पकड़ा तब जाकर अवनी होश में आई।


      गाड़ी आकर दरवाजे पर लगी। सब से पहले सारांश निकला और दूसरी तरफ से अवनी। अंशु भी गाड़ी से उतरने को हुआ तो सिया ने एकदम से उसे रोक दिया और अवनी के हाथ में आरती की पकड़ा दी। "अब करो अपनी बहू का स्वागत। सास बन गई हो तुम।"


     लेकिन अवनी ने थाली श्यामा को पकड़ा दी और बोली, "नही मां! ये काम घर की बड़ी बहू का है। इसे भाभी ही करेंगी। हां! समर्थ की दुल्हन का स्वागत मैं करने को तैयार हूं।"


     एक बार फिर समर्थ ने अपना सिर पकड़ लिया। और सबकी नजर समर्थ की तरफ घूम गई। श्यामा ने अंशु और निशी का तिलक किया तो अंशु निशी को श्यामा का परिचय करवाता हुआ बोला "यह मेरी बड़ी मां है।"


    श्यामा भी अकड़ दिखाकर बोली, "यानी तुम्हारी बड़ी सास। अब बड़ी हूं तो नखरे भी बड़े ही होंगे।"


    अंशु के होंठो पर बड़ी सी मुस्कान आ गई लेकिन निशी खामोशी से सबको देखती रही। सिया आगे आई और श्यामा के कान खींचते हुए निशी से बोली, "और मैं तुम्हारी सास की सास। अगर किसी ने तुम्हे परेशान किया या अपनी एक्स दिखाई तो मेरे पास आना। मेरे पास सबकी अक्ल ठिकाने लगाने की दवाई है।" इस बार निशी के होंठ हल्के से ऊपर की ओर उठे।


    सिया की नजर जब अव्यांश पर गईं तो वो भावुक हो गई। "मेरा बच्चा......!" कहते हुए उन्होंने अपनी बाहें फैला दी। अव्यांश भी गाड़ी से उतरा और जाकर जल्दी से अपनी दादी के गले लग गया।


    समर्थ ने ताना मारा, "ओ दादी के लाडले! आंखों के नूर, दिल का सुकून! हम भी है यहां इस दुनिया में।"


     अव्यांश दादी से अलग हुआ और जाकर समर्थ के गले लगने की बजाए उसे गोद में उठा लिया। समर्थ चिल्लाया, "अबे ये क्या कर रहा है? उतार मुझे।"


    अव्यांश चिढ़ाता हुआ बोला, "अभी से प्रैक्टिस कर रहा हूं भाई। आपकी शादी में जब भाभी आपको वरमाला पहनाने आएंगी तो ऐसे ही उठाऊंगा आपको।"


    "अब तो कर ले शादी! देख तेरे छोटे भाई की हो गई।" सिद्धार्थ ने ताना मारा। तो समर्थ बोला, "पहले हम जिसके लिए खड़े है वो काम तो निपट जाए। और आज कुहू की सगाई भी तो है। सबको सिर्फ मेरी ही चिंता है।" समर्थ अब परेशान हो चुका था। अव्यांश ने उसे गोद से उतारा तो वो घर के अंदर चला गया।


     तिलक और आरती करने के बाद श्यामा ने आरती की थाल अवनी को पकड़ाई और निशि को गाड़ी से बाहर निकालने के लिए अव्यांश को इशारा किया। अव्यांश की हेल्प से निशी ने पैर बाहर निकाले और खड़ी हुई ,तब जाकर उसे एहसास हुआ कि उसके पैर जमीन पर नहीं बल्कि एक बड़े से थाल में रखी थी। 


     श्यामा ने अंशु को कुछ इशारा किया लेकिन अंशु ने एकदम से ना में गर्दन हिलाई। सिया बोली "बेटा करना पड़ेगा। रस्म है ये।"


     सारांश चुटकी लेकर बोला "बेटा, कर ले। अभी वजन कम है वरना बाद में उठा नहीं पाएगा।" सारांश का सीधा-सीधा ताना अवनी के बढ़े हुए वजन से था। अवनी ने आरती की थाल से अक्षत मुट्ठी में भरकर उठाया और सारांश पर जोर से मारा।

  

     श्यामा अवनी की साइड लेकर बोली "गलत बात देवर जी। हमारी अवनी अभी भी काफी फिट है। किडनैप करने की किसी की हिम्मत नहीं होगी।"


     अवनी बेचारी रुआंसी होकर बोली, "भाभी! आप भी अपने देवर का ही साइड लोगी?" फिर वह अंशु से बोली "अंशु! उठा उसे और ले चल मंदिर।"


     अव्यांश बेचारा क्या नहीं करता। निशी उनकी बातों का कोई मतलब समझ पाती उससे पहले ही अव्यांश ने उसे गोद में उठा लिया और घर के अंदर चला आया। एकदम से सोनू सामने आई और बोली "ऐसे ही रहना, रुक जा।" और अपने फोन से उन दोनों की इसी पोज में कई तस्वीरें खींच ली।


    "मैने तो बस मजाक में कहा था मेरे लिए भाभी लेते आना। मुझे नहीं पता था तू सच में ले आयेगा।" सुहानी ने अव्यांश के मजे लिए तो अव्यांश बोला, "हां! अब तूने कहा था तो मना कैसे कर सकता था। तू हाय भी काली जुबान। कभी भाई की शादी के लिए तो नही कहा!"


    सिया ने दोनो के बीच आकर दोनों की कहा सुनी को झगड़े में बदलने से रोका और अव्यांश को निशी के साथ मंदिर में चलने को कहा। अव्यांश निशी को ऐसे ही गोद में उठाए मंदिर की तरफ चल पड़ा।


     श्यामा ने उस वक्त की जो भी रस्मे थी वो सारी पूरी करवाई। अंगूठी ढूंढने की रसम में अवनी श्यामा सिया कुहू काया और सोनू निशी की तरफ हो गए तो बाकी सारे यानी सिद्धार्थ, सारांश, कार्तिक काव्या और समर्थ अव्यांश की तरफ हो गए। उसमें भी सबसे आगे समर्थ खड़ा था और अव्यांश को जोर-जोर से चीयर कर रहा था।


     सुहानी भी उससे तेज आवाज में निशी को शेयर करने में लगी थी, लेकिन अचानक से उसे ध्यान आया कि अब तक तो उसने अपनी भाभी का नाम ही नहीं पूछा। उसने तेज आवाज कहा, "एक मिनट! एक मिनट! रुक जाओ सब।"


     अवनी उसे डांट लगाती हुई बोली, "सोनू! ऐसे रस्मों के बीच विघ्न नहीं डालते। अपशगुन होता है।"


     श्यामा अवनी को समझाती हुई बोली, "अवनी! सोनू को पता है। जरूर कोई बात है इसीलिए उसने टोका है। बताओ बच्चे, क्या बात हो गई?"


     सुहानी ने अवनी और सारांश की तरफ देखा और पूछा, "शादी हो गई। गृहप्रवेश भी हो गया लेकिन सबसे जरूरी बात, हमें अभी तक पता ही नहीं कि भाभी का नाम क्या है? हम कैसे चीयर करें?"


     सब के मन में यही सवाल था। सारांश ने उन्हें बस मिश्रा जी की बेटी के बारे में बताया था और निशी का नाम शायद वो लेना भूल गया था। सिया ने भी सवालिया नजरों से सारांश को देखा तो सारांश गेंद को अव्यांश के पाले डालता हुआ बोला, "इस सवाल का जवाब मैं नहीं देने वाला। जिसकी बीवी है, वो दे जवाब।"


     अब सब की नजर अव्यांश की तरफ घूम गई। अव्यांश ने नाराजगी से सारांश की तरफ देखा फिर प्यार से निशी की देखकर बोला, "निशिका! निशिका नाम है इनका।"


    निशी का नाम सुनकर काया की भृटिया आपस में जुड़ गई। सोनू एकदम से बोल पड़ी, "निशी.......?" अव्यांश चौंक पड़ा। सोनू कुहू और काया, तीनों ने एक दूसरे की तरफ सवालिया नजरों से देखा और फिर कुछ समझ आने पर उन तीनों ने अव्यांश की तरफ देखकर अजीब तरह से मुस्कुरा उठी। 


    अव्यांश समझ गया कि काया के पेट में यह बात भी नहीं पची होगी और उसके इतना कन्वेंस करने के बाद भी सबके बीच ढोल बजा दिया होगा। अव्यांश ने इशारे से उन तीनों शैतानों को चुप रहने को कहा। लेकिन ये तीनों वाकई में शैतान थी। चुप रहने के बदले क्या करवाती ये अव्यांश भी नही जानता था।




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