सुन मेरे हमसफर 17

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       सिया रात से ही बेचैनी में इधर-उधर भाग रही थी। कभी कोई लिस्ट बनाती तो कभी घर के नौकरों को कुछ हिदायतें देती। कभी श्यामा को बुलाती तो कभी समर्थ को परेशान करती। पूरी रात ना वह सोई ना ही किसी को सोने दिया। इसका नतीजा यह निकला कि सिद्धार्थ समर्थ श्यामा सुहानी कार्तिक काव्या धानी, यह सभी वही हॉल में बैठे-बैठे कोई सोफे पर तो कोई कुर्सी पर ही सो गए।


      सिया परेशान होकर बोली "यह लो जी! अपनी नींद से ही फुर्सत नहीं है इन्हें। घर की बहू पहली बार आ रही है, उसके गृह प्रवेश की तैयारियां करने के बजाय सभी सो रहे हैं। इनसे कुछ नहीं हो सकता। मुझे ही करना पड़ेगा सब कुछ।"


     सिया नाराज होकर अपने कमरे में चली आई और अपने पुराने अलमारी से गहनों के डब्बे निकालने लगी। इसमें से कुछ गाने उसने समर्थ की दुल्हन के लिए रखे थे तो कुछ अव्यांश की दुल्हन के लिए। सुहानी काव्या कुहू इन सबने अपनी अपनी पसंद का उठा लिया था और सबके लिए तो सिया ने अलग से भी गहने बनवाए थे, उनकी खुद की पसंद के। 

     "यह नए जमाने की लड़कियां, कहां पुराने गहनो का शौक रखती है! लेकिन क्या अव्यांश की पत्नी को यह सब अच्छा लगेगा?"


     सुहानी कुर्सी पर बैठे-बैठे सो गई थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि वह धड़ाम से नीचे गिरी और उसकी नींद खुल गई। वो कराते हुए उठी और अपने कमरे में जाकर सोने को हुई लेकिन उसका ध्यान सिया के कमरे की तरफ गया। सिया हाथ में गहने लिए किसी ख्याल में खोई थी। उनके चेहरे पर परेशानी के भाव साफ नजर आ रहे थे।


     सुहानी समझ गई कि सिया के दिमाग में क्या चल रहा है।वो गई और अपनी दादी के गले में बांहे डाल कर बोली "दादी! आप क्यों परेशान हो रही हो! यह सारे गहने, खास कर ये वाला इतने खूबसूरत है कि हम भी इसे छोड़ना नहीं चाहते।"


     सिया नाराज होकर बोली "अगर ऐसा है तो तुम लोगों ने इन्हें लेने से इंकार क्यों किया?"


    सुहानी ने बहुत सोच समझ कर जवाब दिया "दादी! वह क्या है ना, यह सिर्फ गहने नहीं है, इस घर का मान है, जैसे कि हम। यह सारे आपके हैं और हमें नहीं पता इस में से कितने दादू ने दिए और कौन आप की सासू मां ने आपको दिए थे। हम तीनों ही इसे रखना चाहते थे लेकिन हम तीनों ने डिसाइड किया था कि इस घर के जो गहने हैं इन पर सबसे पहला हक इस घर की दोनों बहू का है। अगर उन्हें पसंद नहीं आएंगे तो हो सकता है मेरी शादी में वह मुझे गिफ्ट कर दे! फिर तो मुझे लेने में कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। और आपने इतने सारे गहने बनवा रखे हैं हमारे लिए कि किसी और चीज की जरूरत ही नहीं। और फिर मैंने कहा, यह गहने इस घर का मान है और हम भी तो! फिर गहने को गहने की क्या जरूरत?"


      अपनी बातूनी पोती की बात सुनकर सिया ने उसके सर पर हल्की सी चपत लगाई और उसका माथा चूम लिया। अचानक से ध्यान आया सारांश अवनी वापस आ रहे हैं, तो वह सुहानी से बोली "तू उठ गई है तो चल मेरे साथ, बाकी के काम निपटाने है। वो लोग कभी भी पहुंचते होंगे।


    सुहानी ने गहनों के सारे डब्बे को एक तरफ किया और सिया को जबरदस्ती सुलाती हुए बोली "अभी बिल्कुल भी नहीं। सारे लोग सो रहे हैं, उन्हें सोने दीजिए और आप भी सो जाइए।"


    सिया ने कुछ कहना चाहा लेकिन सुहानी उनके मुंह पर हाथ रख कर बोली "कुछ नहीं कहेंगे आप। आराम से सो जाइए। इस उम्र में भले ही आप खुद को काफी यंग समझती हो लेकिन उम्र का असर नजर आता है। डैड और मॉम को आते आते लगभग दोपहर हो जाएगा। पूरी रात सब ने अंशु की शादी देखी है। अभी तो कम से कम सब को सोने दीजिए और खुद भी सो जाइए।


      सिया अभी भी सोना के लिए तैयार नहीं थी और कहीं दादी उसके जाने के बाद उठकर बाहर ना निकल जाए, सुहानी कंबल सिया के ऊपर डाला और खुद भी उसी में घुसकर सो गई।


     सारांश और अवनी को दिल्ली पहुंचते पहुंचते दोपहर हो चुकी था। सिया ने पहले ही उन दोनों के लिए गाड़ी भेज रखी थी जो सुबह से उनके फ्लाइट के लैंड होने का इंतजार कर रही थी। सारांश ने एयरपोर्ट पर उतरते ही सिया को फोन करके अपने आने की खबर बताई और वीआईपी गेट से चारों बाहर निकल आए।


     बाहर आते ही सारांश ने अवनी का हाथ पकड़ा और जल्दी से उसे लेकर पीछे वाली गाड़ी में बैठ गया। अव्यांश उन दोनों को देखता ही रह गया। उसके पास और कोई रास्ता नहीं था सिवाए आगे वाली गाड़ी में बैठने के। उसने निशी को धीरे से कहा "वह सामने वाली गाड़ी..........!" निशी चुपचाप उसके पीछे चल दी। अव्यांश ने सामान डिक्की में रखवाई और निशी को अंदर बैठने में हेल्प किया। सफर के लिए अवनी ने निशी को हल्की साड़ी पहनाई थी लेकिन फिर भी, आदत ना होने के कारण निशी को साड़ी में प्रॉब्लम हो रही थी। 


     इधर गाड़ी में बैठे सारांश और अवनी हंसी छूट गई। अवनी फिर भी थोड़ी नाराजगी दिखाती हुई बोली, "आपने ऐसा नहीं करना चाहिए था। दोनों अभी एक दूसरे के साथ थोड़े अनकंफर्टेबल है। अचानक से शादी हुई है तो थोड़ा टाइम लगेगा उन्हें। जैसे हमारी हुई थी। मैं भी तो आपके सामने आने से थोड़ा घबराती थी। इतनी जल्दी दोनों नार्मल कैसे हो सकते हैं?"


     सारांश हंसते हुए बोला "पत्नी जी! अब तो उन दोनों को एक साथ पूरी जिंदगी रहना है। यह सफर उन दोनों को ही तय करना है, हम कुछ नहीं कर सकते। यह जो झिझक है उन दोनों के बीच, ये जितनी जल्दी दूर हो जाए उतना अच्छा होगा। इन दोनों को ऐसे ही रहने दीजिए। आपस में सारे मैटर सुलझा लेंगे। अच्छा किया मां ने, जो दो गाड़ियां भिजवा दी।"


     इधर सिया जल्दी से किचन में आई और पूछा "मीठा तैयार है?"


     श्यामा हंसते हुए बोली "हां मां, तैयार है। आप परेशान मत होइए।"


     श्यामा ने सिया को कंधे से पकड़ा और हॉल में बिठा दिया। "अभी आप कुछ देर यहीं पर बैठिए। आपको आराम की बेहद जरूरत है।"


     सिया परेशान होकर बोली "ऐसे कैसे मैं आराम कर लूं? सारांश का फोन आया था, वो लोग बस पहुंचने ही वाले हैं। और फिर कुहू की सगाई भी तो है आज। सारी तैयारियां कैसे होगी? सब कुछ देखना है बेटा!"


    कार्तिक बाहर से अंदर आता हुआ बोला "सब हो जाएगा बड़ी मां, आप परेशान मत होइए। मैंने मिस्टर रायचंद से बात की है। उन्होंने साफ साफ कहा है कि सगाई की सारी तैयारियां वो लोग कर रहे हैं, हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है। इसीलिए बिना किसी चिंता के आप आराम कीजिए और शाम को सगाई में चलने को तैयार रहिए। बाकी की तैयारी काव्या कर चुकी है।"


    यह सब सुनकर सिया ने चैन की सांस ली। आधी टेंशन तो उनकी वैसे ही दूर हो गई, आधी टेंशन बस अब पहुंचने ही वाली थी। श्यामा ने सिया के सामने उनकी दवाई और पानी का ग्लास रखा। सिया ने दवाई ली और सोफे पर ही आरामदायक पोजिशन में बैठ गई। 


    श्यामा के दिमाग में कुछ चल रहा था। उसने पानी का ग्लास उठाया और किचन में चली आई। सिद्धार्थ ने ये बात नोटिस की और श्यामा के पीछे पीछे किचन में चला आया। श्यामा पानी का ग्लास सिंक में रखने की बजाय स्लैब पर रखने जा रही थी। सिद्धार्थ ने एकदम से उसका हाथ पकड़ा और ग्लास सिंक में डालकर पूछा "क्या हुआ है? क्या सोच रही हो?"


     श्यामा अपनी ही सोच को झटकने की कोशिश कर रही थी। वह बोली "कुछ नहीं। शायद मैं ही कुछ ज्यादा सोच रही हूं।"


    सिद्धार्थ ने उसके कमर में हाथ डाला और अपने करीब खींचकर प्यार से पूछा "ऐसा क्या सोच रही है आप जो मेरी बीवी के माथे पर परेशानी की लकीरे नजर आ रही है? इस तरह अगर आप सोचती रही तो मेरी प्यारी सी बीवी के चेहरे पर झुर्रियां आ जाएंगे। यू नो, फाइन लाइंस!"


     श्यामा हंस पड़ी। उसने खुद को सिद्धार्थ की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश की और बोली "छोड़िए मुझे, कोई आ जायेगा।"


     सिद्धार्थ बोला "एक शर्त पर। पहले मुझे यह बताओ तुम क्या सोच रही थी?"


     श्यामा शांत पड़ी और उन सारी बातों को मन में दोहराते हुए बोली "मिस्टर रायचंद! यह किस तरह के लोग हैं?"


     सिद्धार्थ को श्यामा की बातें कुछ खास समझ में नहीं आई। उसने कहा "पिछले कुछ टाइम से हम लोग जानते हैं उन्हें। सोसाइटी में उनकी अपनी एक रेपुटेशन है। काफी भले लोग हैं। लेकिन तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो? कुछ हुआ है क्या?"


     श्यामा ने अपनी सोच सिद्धार्थ के सामने रखी और बोली "यह लोग जिस तरह कुहू और कुणाल की शादी के लिए बेचैन है, क्या आपको थोड़ा अजीब नहीं लगता?"


     सिद्धार्थ अभी भी उसकी बात नहीं समझा था। उसने आंखें गोल घुमाई और बोला "नहीं, मुझे तो सब कुछ ठीक लग रहा है।"


     श्यामा यही तो समझाना चाह रही थी। उसने कहा "आप नहीं समझ रहे हो। मेरे कहने का मतलब यह है कि जिस तरह वह लोग इन दोनों की शादी के लिए जल्दबाजी कर रहे है, आई मीन कुहू के बारे में हमें पता था इसलिए हमने रिश्ते की पहल की। लेकिन वह लोग बिना कुणाल की मर्जी जाने सीधे रिश्ते के लिए हां कर गए! सगाई हम इतनी जल्दी नहीं करना चाहते थे फिर भी यह उन लोगों की जिद्द थी। आज जो कुछ हुआ, इस वक्त जो घर का माहौल है, ऐसे में ये सगाई आगे टल जानी चाहिए थी लेकिन सारी अरेंजमेंट की जिम्मेदारी उन लोगो ने अपने पर ले ली। कुछ तो है जो खटक रहा है।"


     सिद्धार्थ श्यामा के सर पर चपत लगाकर बोला "कुछ नहीं खटक रहा है, बस तुम्हारा दिमाग भटक रहा है। पिछले 2 दिनों से ऑफिस नहीं गई हो ,इसलिए इन फालतू बातों में तुम्हारा दिमाग लग रहा है। ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सोच रही हो। अपने मन को शांत रखो। कुणाल एक अच्छा लड़का है। अच्छे रिश्ते जितनी जल्दी जुड़ जाए उतना अच्छा होता है। जो सकता है, कुणाल ने पहले ही उन्हें अपनी पसंद बता दी हो, इसीलिए वो लोग सिर्फ अपने बेटे की खुशी के लिए यह सब कर रहे हो! तुम ज्यादा मत सोचो। सब लोग बस पहुंचने ही वाले होंगे। चलो जल्दी।"


     सिद्धार्थ बाहर निकलने को हुआ। दो कदम आगे चलकर वो वापस आया और श्यामा के चेहरे को अपनी हथेली में भरकर बोला "अपने माथे पर यह परेशानी के भाव मत आने दो। नई बहू घर आ रही है तो उसके सामने तुम्हारा खिला हुआ चेहरा नजर आना चाहिए। मैं चाहता हु, तुम नई दुल्हन से भी ज्यादा खूबसूरत लगो।"


     श्याम शरमा गई और सिद्धार्थ कंधे पर धीरे से मारा। सिद्धार्थ श्यामा के माथे को चूम कर बोला "तुम भी जाकर फ्रेश हो लो और खुद को तैयार कर लो। जल्दी जाओ।"


     श्यामा कमरे में चली गई लेकिन उसके जाने के बाद पिछे खड़ा सिद्धार्थ, श्यामा के कहे बातों को सोचने पर मजबूर हो गया। गाड़ी के हॉर्न की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी और किचन से बाहर निकला।





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