सुन मेरे हमसफर 16

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    अव्यांश और निशी की शादी उसी मंडप में कुछ चुनिंदा मेहमानों के बीच लेकिन बड़ी सादगी से हुई। अपने बेटे की शादी देख सारांश की आंखें नम हो गई। अवनी भी काफी इमोशनल फील कर रही थी। उसने सारांश की बांह पकड़ ली और बोली "अपने बच्चों की शादी को लेकर हमने कितने सपने देखे थे। सोचा नहीं था यह सब ऐसे होगा।"


      सारांश उसका मूड ठीक करने की कोशिश करता हुआ बोला "हमारी शादी भी तो कुछ ऐसे ही हुई थी ना? उस वक्त हमें भी किसी तैयारी का वक्त ही नहीं मिला। उस वक्त सिर्फ मां थी जिन्हें इस रिश्ते को मंजूरी देना था, लेकिन इस बार हमारा पूरा परिवार है। काश वो लोग यहां होते!"


      अवनी भी खोए हुए अंदाज में बोली "मां का सपना था, अपने पोते पोतियो की शादी देखने का। कम से कम उन्हें यहां होना चाहिए था।"


     सारांश ने कुछ सोचा और अवनी की कमर पर हाथ रख उसे गुदगुदी करता हुआ बोला "कोई बात नहीं। जब हमने दोबारा शादी की थी, वैसे ही इनकी भी फिर से शादी करवा देंगे।"


    अवनी उसकी इस हरकत से उछल पड़ी। उसने धक्का देकर सारांश को खुद से अलग करना चाहा लेकिन सारांश ने उसे और मजबूती से पकड़ लिया और गंभीर होकर बोला "लेकिन अवनी! तुम्हें लगता है, निशी सब कुछ भूल कर हमारे बेटे को अपना पाएगी? जो कुछ हुआ उसके बाद किसी भी लड़की के लिए ये सब आसान नहीं होता।"


     अवनी सारांश के कंधे पर सर रखकर बोली "सब ठीक हो जाएगा। वक्त हर जख्म भर देता है। और यह जो सात फेरों के रिश्ते होते हैं, वह हर दूरियों को मिटा देता है। मैं मानती हूं निशी इतनी जल्दी अव्यांश को नहीं अपना पाएगी, लेकिन ज्यादा वक्त नहीं लगेगा जब वह ना सिर्फ हमारे घर की बहू होगी बल्कि अव्यांश की पत्नी भी बनेगी। हमारा बेटा समझदार है। वो निशी के इस हालत को समझेगा और उसे पूरा वक्त देगा। लेकिन आपको भी थोड़ा उसे समझाना होगा। आपका बेटा है, आप उसे बेहतर तरीके से समझा सकते हैं।"


     मिश्रा जी ने भारी मन से कन्यादान किया और निशी हाथ अव्यांश के हाथ में दे दिए। इतनी सारी रस्मों के बीच अव्यांश की नजर निशी पर से हट ही नहीं रही थी लेकिन निशी ने एक बार भी अव्यांश की तरफ नजर उठाकर नहीं देखा, जैसे उसे किसी चीज से मतलब ही नहीं हो। वाकई उसने खुद को वक्त और हालात के हवाले कर दिया था।


     अव्यांश को इस बात से थोड़ी तकलीफ हुई लेकिन फिर उसने खुद को समझाया 'कोई बात नहीं। इस वक्त वो जिस हालात से गुजर रही है और जो कुछ भी हुआ है उसके बाद किसी का भी ऐसे रिएक्ट करना नॉर्मल सी बात है। लेकिन कोई नहीं, मुझे खुद पर भरोसा है। एक दिन तुम्हारी आंखों में मुझे अपनापन जरूर नजर आएगा। जब तक जीत नहीं जाता तब तक मैं हार नहीं मानने वाला।'


     अवनी और सारांश को निशी की विदाई करवा कर आज ही दिल्ली वापस लौटना था। लेकिन उससे पहले उन्हें थोड़ा फ्रेश होना भी जरूरी था। निशी की विदाई करवा कर सभी जीएम पाल्या के उस फ्लैट में पहुंचे जहां अव्यांश रहता था। 2 कमरों का फ्लैट जिसके एक कमरे में अवनी ने सारांश और अव्यांश को बंद किया और खुद निशि को लेकर दूसरे कमरे में चली आई।


    सारांश अवनी के इस हरकत पर बहुत नाराज हुआ और अपना गुस्सा अपने बेटे पर उतारता हुआ बोला, "यह क्या बात हुई? शादी तुम दोनों की हुई और यहां हमें अलग कर दिया गया। तुम्हारी मां को लगता है, मुझसे ज्यादा और तुमसे भी ज्यादा अपनी बहू प्यारी हो गई है। हमारे घर के नियम है क्या यह, बेटों से ज्यादा बहुओं को प्यार मिलता है!"


    अव्यांश अपने पापा के इस झुंझलाहट पर मुस्कुरा उठा। भले ही उन्हें अपनी बीवी के साथ चला टाइम स्पेंड करना था लेकिन इस बहाने वह अव्यांश को निशी के साथ थोड़ा अकेले टाइम देना चाहते थे।


     निशी बुत बनी कमरे में खड़ी थी। अवनी ने प्यार से उसे बिस्तर पर बैठाया और अपने गोद में उसका सर रखकर उसके बाल सहलाने लगी। जो कुछ हुआ और जो कुछ आगे होने वाला था उस सब के बारे में अवनी उसे धीरे-धीरे समझाने लगी। शायद निशी को भी इस की बेहद जरूरत थी। अवनी के समझाने का असर उस पर यह हुआ की जो निशी अब तक खामोश बैठी थी, अपनी आंखों के सैलाब को बह जाने दिया। अवनी ने भी उसे नहीं रोका। ये आंसू जब तक उसके अंदर दबे रहते, उसके दिल का दर्द उसके दिल में ही रह जाता। अपने मन का सारा गुब्बार निकालकर वह अपने नए जीवन में प्रवेश करने को तैयार थी।


    अव्यांश भी निशी से कम बेचैन नहीं था। किस तरह वो निशी का सामना करेगा और उसे क्या कहकर समझाएगा, बस यही बात उसे परेशान कर रही थी। सारांश ने उसे अपने पास बिठाया और अपने और अवनी की शादी के वक्त के हालातों के बारे में उसे समझाने लगा। कई सारी बातें उसने ऐसी भी बताएं जो किसी को नहीं पता थी। अव्यांश जानता था, इस वक्त उसे अगर कोई संभाल सकता है तो वह सिर्फ उसके पापा थे।


     अवनी ने निशी के लिए कुछ कपड़ों का इंतजाम करवा रखा था। उसे तैयार करवा कर बाहर आई तो देखा, दोनों बाप बेटे अभी भी अपने कमरे में बंद थे। उसने दोनों को डांट लगाई और जल्दी से तैयार होकर आने को कहा। अवनी की डांट सुनकर सारांश ने मौके का फायदा उठाते हुए जल्दी से बाथरूम में घुस गया। अव्यांश चिल्लाया "डैड! मुझे भी बाथरूम जाना था।"


     सारांश अंदर से चिल्लाया "दूसरा भी तो कमरा है, उसमें चला जा।" 


    अव्यांश चला जाता लेकिन उस दूसरे कमरे में निशी मौजूद थी जिसके कारण वहां जाने में वो थोड़ा हिचकिचा रहा था। अवनी ने उसे सपोर्ट किया और बोली "दूसरे कमरे में निशी तैयार हो चुकी है। बाथरूम खाली है, जल्दी से तुम भी फ्रेश हो जाओ। हमें आज ही दिल्ली के लिए निकलना है। दादी इंतजार कर रही होंगी। आज हमें कैसे भी करके जल्द से जल्द घर पहुंचना है।"


     अव्यांश दूसरे कमरे की तरफ चला लेकिन अचानक से उसे याद आया और उसने पूछा "मां! आज कुछ है क्या जो हमारे घर पहुंचना बहुत जरूरी है? मेरा मतलब, सोनू भी कह रही थी कुछ सरप्राइज है।"


    अवनी हैरानी से उसे देखते हुए बोली "तेरे पापा ने तुझे कुछ नहीं बताया?"


     अव्यांश कन्फ्यूजन में बोला "नहीं! कुछ भी तो नहीं बताया।"


     अवनी अपने सर पर हाथ मारती हुई बोली "इनका कुछ नहीं हो सकता। आज हमें कैसे भी करके घर पहुंचना है क्योंकि आज कुहू की सगाई है।"


    अव्यांश हैरान रह गया क्योंकि कल तक तो ऐसा कुछ नहीं था फिर एकदम से कैसे! उसने पूछा तो अवनी ने उसे कुहू कुणाल के रिश्ते के बारे में सब कुछ बता दिया। अव्यांश नाराजगी से बोला "मतलब कुहू दी ने इतनी बड़ी बात छुपाई, वह भी हम सबसे, अब वह भी इस तरह इतने वक्त तक! मैं तो घर जाकर खबर लूंगा उनकी।"


     अव्यांश एक झटके से कमरे से निकला और कुहू के बारे में सोचता हुआ दूसरे कमरे में पहुंचा जहां निशी मौजूद थी। उसके दिमाग से सिर्फ कुहू थी। उसने अपना अलमारी खोला और टॉवेल निकालकर जैसे ही अलमारी का दरवाजा बंद किया, आईने में उसे निशी नजर आई जिसे देखकर वह एकदम फ्रिज हो गया। सुर्ख लाल रंग की साड़ी, हल्का मेकअप और शादी के गहनों में निशी बेहद खूबसूरत लग रही थी। जब उसने बारात के समय निशी को देखा था उससे भी ज्यादा खूबसूरत। शायद ये उसकी मांग के सिंदूर का नूर था।


     अव्यांश होश में आया। जिस कॉन्फिडेंस में वह अंदर आया था, निशी को देख उसकी कॉन्फिडेंस की सारी हवा निकल गई। वह हकलाता हुआ बोला "मैं...... मैं...... मैं.... मैं वो फ......फ....... फ्रेश होने आया था। सॉरी मैं तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था।" और जल्दी से बाथरूम में घुस गया।


     निशी, जिसने उसे देखा तक नहीं था और जो बिस्तर पर बैठी अपने आंसुओं को पोंछ रही थी, अव्यांश की इस हरकत पर उसकी हंसी छूट गई लेकिन एकदम से शांत भी हो गई। उसके कुछ देर बाद अवनी कमरे में आई और अव्यांश को आवाज लगाते हुए बोली "अंशु! हो गया तुम्हारा बेटा? फ्लाइट का टाइम हो रहा है।"


     अंदर से ही अव्यांश ने आवाज दी "हो गया मां, बस 2 मिनट!"


    अवनी ने निशी के सर पर हाथ फेरा और उसे अपने साथ बाहर लेकर गई। अव्यांश बाथरूम में खड़ा बाहर निकलने के लिए अपनी हिम्मत जुटा रहा था। उसका दिल बहुत अजीब तरह से धड़क रहा था। उसने अपने दिल पर हाथ रखा और कहा "क्या हो गया है तुझे? तू कब से लड़कियों के सामने आने से डरने लगा? तेरे आगे पीछे कितनी लड़कियां होती थी! तू लड़कियों का क्रश है, उस सब के सामने कभी तुझे घबराहट भी हुई। और जिस लड़की से तू घबरा रहा है वो और कोई नहीं, तेरी बीवी है। उसके साथ तुझे अपनी पूरी लाइफ गुजारनी है। अगर अभी ये हाल है तो आगे क्या होगा? हिम्मत रख और बाहर जा। अब तो पूरी जिंदगी तुझे उसका सामना करना है। तू ऐसे घबराएगा उसके सामने जाएगा तो पूरी लाइफ तुझे डोमिनेंट करेगी और इस बात को लेकर तुझे जिंदगी भर ताने देगी। तू खुद सोच ले तू क्या चाहता है।" 


    अव्यांश बाथरूम से निकला, वो भी फुल कॉन्फिडेंस में, अपनी नाक ऊंची किए। लेकिन जैसे ही वह बाहर निकला उसने देखा कमरे में कोई नहीं था। एक बार फिर उसके पूरे कॉन्फिडेंस की हवा निकल गई। वह ढीला ढाला था जाकर बिस्तर पर बैठ गया जहां अभी कुछ देर पहले निशी बैठी थी। इस बार सारांश ने उसे आवाज लगाई तो अव्यांश हड़बड़ा कर उठा और बाहर की तरफ भागा। घर की चाबी उसने गार्ड को सौंपी और गाड़ी में बैठ गया। तब जाकर उसे महसूस हुआ कि वहां उसके बगल में निशी बैठी थी। उसके मां पापा पीछे वाली गाड़ी में बैठे थे।


     अव्यांश को फिर से घबराहट होनी शुरू हो गई। सारांश ने ड्राइवर को इशारा किया तो ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और एयरपोर्ट की तरफ चल पड़ा।


     अव्यांश बस इसी बात से परेशान था कि यह पूरे रास्ते निशी के साथ कैसे कटेंगे। दिल में उमंग और घबराहट दोनों लिए अव्यांश भी निकल पड़ा। एयरपोर्ट जल्दी पहुंचने के चक्कर में गाड़ी तेज रफ्तार में थी। ड्राइवर ने स्पीड नहीं की और स्पीड ब्रेकर के ऊपर से उछाल दिया। निशी एकदम से उछल पड़ी और उसने अव्यांश का हाथ कसकर पकड़ लिया। अव्यांश ड्राइवर पर नाराज होकर बोला, "ठीक से चलाओ यार! यहां क्या पहली बार ड्राइव कर रहे हो?"


    ड्राइवर बिना पीछे देखे धीरे से बोला, "सॉरी सर! सॉरी मैडम!" फिर मुस्कुरा दिया। आखिर सारांश ने ही उसे ऐसा करने को कहा था।





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