सुन मेरे हमसफर 15

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   सारांश और अवनी अव्यांश के हां करने के बाद उसे वही अकेला छोड़ मिश्रा जी से मिलने चले गए। अव्यांश उन दोनों को पीछे से जाता हुआ देख रहा था और उम्मीद कर रहा था कि निशि इस रिश्ते से मना ना करें। अपने एहसास को वह खुद नहीं समझ पा रहा था। अचानक वह किसी लड़की से मिला और अचानक से उसने खुद इस रिश्ते के लिए हां कह दिया, यह बात उसके लिए भी अजीब थी। लेकिन फिलहाल उसने खुद को वक्त के हवाले कर दिया था। उसकी दादी भी तो यही कहती थी। जो होता है अच्छे के लिए होता है इसीलिए खुद को वक्त के दरिया में बह जाने दो। ज्यादा हाथ पैर मारने की जरूरत नहीं है वरना दरिया में भवर बन जाएगा और वह भवर हमें डुबो देगा।


    अव्यांश वहां खड़ा अभी सोच रहा था कि उसे अपने पीछे किसी के होने का एहसास हुआ। उसने पलट कर देखा तो उसके सामने उसकी टीम लीडर शिल्पी खड़ी थी जो कुछ कहने की कोशिश तो कर रही थी लेकिन हिचकिचा रही थी।


     अव्यांश उसके पास गया और पूछा "क्या हुआ? परेशान लग रही हो। कुछ कहना तुम्हें?"


     शिल्पी अपनी घबराहट छुपाने की कोशिश करती हुई बोली "तुम......... मेरा मतलब आपने बताया नहीं था कि आप कौन हो। इस तरह अचानक आपकी पहचान.........! आप तो हमारे बॉस निकले, और काफी छुपे रुस्तम भी।"


     अव्यांश हंस पड़ा। "इसीलिए नही बताया। तुम से आप पर आ गई। ऐसा कुछ नहीं है। और मेरा ऐसा कोई इरादा भी नहीं था। यह सब मैंने अपनी मां के कहने पर किया। हां कुछ आदतें बिगड़ गई थी मेरी इसलिए मुझे सुधारने के लिए मेरी मां ने यह सब किया। मुझे यहां खुद को साबित करना था और इसके लिए मैं अपनी सच्चाई किसी को बता नहीं सकता था। वरना मेरी मां मुझे डबल पनिशमेंट देती।"


     शिल्पी की भी हंसी छूट गई। लेकिन वो कुछ सोचते हुए बोली "लेकिन आप तो अव्यांश गुप्ता हो ना, तो फिर सारांश मित्तल के बेटे कैसे? आई मीन आपको तो अव्यांश मित्तल होना चाहिए ना?"


    अव्यांश उसकी बात से एग्री करता हुआ बोला "तुम सही कह रही हो। मैं एक्चुअल में अव्यांश मित्तल ही हूं लेकिन अगर मैं अपना यह नाम किसी को बताता तो थोड़ा प्रॉब्लम हो सकता था। इसलिए मां चाहती थी कि मैं उनका सरनेम यूज करूं। बस इतनी सी बात है।"


     शिल्पी के चेहरे पर भी ऐसे भाव थे जैसे उसे उसके सारे सवालों के जवाब मिल गए। लेकिन वहां खड़े होकर उसने सारांश अवनी और अव्यांश की सारी बातें सुन ली थी और उसे यह भी पता चल गया था कि अव्यांश निशी से शादी करना चाहता है। यह बात शिल्पी के दिल में चुभ गई। इन 6 महीनों में शिल्पी मन ही मन अव्यांश को पसंद करने लगी थी और कई बार उसे अपने प्यार का एहसास भी दिलाया था। भले ही उसने खुलकर कुछ ना कहा हो लेकिन अपनी हरकतों से उसने अव्यांश को हमेशा स्पेशल फील करवाया था।


     लेकिन अव्यांश, जो सिर्फ अपने मकसद के लिए वहां आया था, उसे इस सब से कोई मतलब नहीं था। उसकी खुद की लाइफ में लड़कियों की कभी कोई कमी नहीं थी। बहुत सी लड़कियां जो उसकी आज भी दोस्त थी, यह सब उसके लिए कॉमन सी बात थी। इसलिए उसने कभी शिल्पी के जेस्टर को सीरियसली नहीं लिया। और रही बात निशी की तो पहली नजर में ही उसे निशि कुछ खास लगी थी।


    शिल्पी के पास अब कहने को यह सुनने को कुछ नहीं था। इसलिए वह वहां से वापस चली गई। लेकिन जाने से पहले उसने एक बार पलट कर अव्यांश से पूछा "तुम कल ऑफिस आओगे क्या?"


     अव्यांश खुद नहीं जानता था कि कल क्या होने वाला है। वो कन्फर्म नहीं बता पाया। एक झूठी उम्मीद लिए शिल्पी वहां से चली गई।



  सारांश और अवनी ने मिश्रा जी के सामने अव्यांश और निशि की शादी का प्रस्ताव रखा। मिश्रा जी दोनों परिवार की हैसियत के बारे में अच्छे से जानते थे। उस घर में कोई भी अपनी बेटी देना चाहेगा लेकिन मिश्रा जी थोड़ा हिचकिचाते हुए बोले "आप बड़े लोग हैं। और हमारी इतनी हैसियत नहीं कि हम अपनी बेटी आपके घर भेजें। मैं जानता हूं आप लोगों के लिए सब कोई मायने नहीं रखता लेकिन पता नहीं मेरी बच्ची आपके घर में एडजस्ट हो पाएगी या नहीं! आप लोगों के भरोसे पर खरे उतर पाएगी या नहीं! कोई भी फैसला ऐसे जल्दबाजी में मत लीजिए। मैं नहीं चाहता कि कल को हम लोगों को पछताना पड़े।"


 अवनी मिश्रा जी के इस हिचक को अच्छे से समझ रही थी। वह भी ऐसे हालात से गुजरी थी। मायके और ससुराल के बीच इतना ज्यादा फर्क होना कैसा लगता है वह भी अच्छे से जानती थी लेकिन उसे यह भी बहुत अच्छे से पता था कि उसके ससुराल में सिर्फ संस्कार की अहमियत थी। उसने कहा "मिश्रा जी! मैं समझ सकती हूं आप क्या कहना चाह रहे हैं। लेकिन क्या आप नहीं जानते कि मैं भी एक मिडिल क्लास परिवार से ही हूं। और मेरी शादी भी कुछ इसी तरह से अचानक हुई थी। मेरे घरवाले भी वही सोचते थे जो इस वक्त आप सोच रहे हैं। मेरे और सारांश के रिश्ते के बारे में तो वह कभी सपने में भी नहीं सोचना चाहते थे क्योंकि सपने जब टूटते हैं तो दर्द होता है। लेकिन जब हमारी शादी हुई और उस घर में मुझे जितना अपनापन और प्यार मिला उतना मैंने और ना ही मेरे परिवार ने कभी उम्मीद की थी। मिश्रा जी! उस घर में मैं अकेली नहीं हूं, मेरी जेठानी, वह भी कोई अमीर फैमिली से नहीं आती। लोगों ने सास के नाम पर लोग बहुत सारे भ्रम पाले बैठे हैं। बाकी सास के बारे में मुझे नहीं पता लेकिन मुझे मेरी मां के बारे में बहुत अच्छे से पता है। उन्होंने अपनी दोनों बहू को बेटी बना कर रखा है। जितना खुश हम दोनों उस घर में हैं, इतनी खुशियां हमें कहीं नहीं मिलती। और यही गारंटी मैं आपको भी देखना चाहती हूं, जिस तरह मेरी सास ने मुझे बेटी बनाकर रखा वैसे ही आपकी बेटी मेरी बेटी होगी। उस घर में कभी उसे कोई तकलीफ नहीं होगी। आप बेझिझक होकर अपनी बेटी का रिश्ता हमारे घर में जोड़ सकते हैं, अगर आपको मेरा बेटा अपनी बेटी के लायक लगे तो।" अवनी ने मिश्रा जी के सामने हाथ जोड़ लिए।


     मिश्रा जी तो जैसे भगवान मिल गए हो। अपनी बेटी के लिए इतना बढ़िया परिवार उन्हें कभी नहीं मिलता, जो रिश्ता सामने से चल कर आया है। ऐसे में वह इस रिश्ते से कैसे इंकार कर सकते थे। मिश्रा जी ने भी अवनी और सारांश के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए फिर अपनी पत्नी से बोले, "मिश्राइन! आप जाकर निशि को तैयार कीजिए। उसकी शादी आज इसी मंडप में होगी।" 


    मिश्राइन जी को भी इस बात की खुशी तो थी लेकिन अपनी बेटी के लिए वह और क्या फैसला लेती! इसलिए वह निशी के कमरे में चली गई। मिश्रा जी ने सारांश और अवनी को ले जाकर एक कमरे में बिठाया। अव्यांश भी कुछ देर में वहां आ पहुंचा। आधे घंटे के अंदर सिया ने दिल्ली में बैठे बैठे अव्यांश की शादी के कुछ इंतजाम करवा दिए थे जिनमें अव्यांश की शेरवानी मोजड़ी से लेकर निशि के लिए सारे गहने भी थे। 



 जो लोग तमाशा देखने आए थे वह सब वहां से जा चुके थे। लेकिन जो लोग वाकई मिश्रा जी की इज्जत करते थे और निशि के लिए दुखी थे वो लोग अभी भी वहां मौजूद थे। निशि की मां ने मीनू को बुलाया और उसे तैयार करने को बोला। मीनू निशी के कमरे में आई और उसके सामने घुटने के बल बैठ कर बोली "मुझे माफ कर देना। मैं तेरे लिए स्टैंड नहीं ले पाई। मैं उस वक्त इतना ज्यादा डर गई थी ना, कि मैं समझ नहीं पाई कि मुझे क्या करना है। वह तो भला हो उस लड़के का जो इस सब के बीच में आकर तेरे लिए साइड लिया, तुझे सपोर्ट किया। जो काम मुझे करना चाहिए था, वह उसने किया। उस सब से भी बढ़कर, इतना कुछ होने के बावजूद वो तेरा हाथ थामने को तैयार है। वह पूरा परिवार तुझे अपनाने को तैयार है। उन लोगों ने खुद आगे बढ़कर तेरे पापा से तेरा हाथ मांगा है। बस तुम मुझे माफ कर दे। देख, जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। उस देवेश की सच्चाई तेरे सामने आ गई। अगर वाकई वो तुझसे प्यार करता तो सब से लड़कर वो तुझे शादी करके लेकर जाता। लेकिन वह चुपचाप यहां से चला गया। और देख, तू मित्तल परिवार की बहू बनने जा रही है। इतना बड़ा परिवार! इतने अमीर लोग! तू उनके घर पर बनकर जाएगी!!!"


    निशिका देवेश के धोखे से ऐसे ही सदमे में थी। उसने मीनू की कोई बात नहीं सुनी। अगर सुनी भी तो कुछ रिएक्ट नहीं किया। निशी के बाल बिखर गए थे और रोने के कारण आंखों का काजल फैल चुका था। मीनू ने उसके बाल ठीक किए और उसके के कपड़े मेकअप को सही कर बोली "जो कुछ भी हुआ उसे यहीं पर छोड़ देना। इस सब को लेकर तुझे अपने ससुराल जाने की कोई जरूरत नहीं है। यहां से सब कुछ भूल कर एक नई जिंदगी शुरू करना।"


     मिश्रा जी कमरे में आए और मीनू को बाहर जाने का इशारा किया। मीनू बाहर निकल गई और मिश्रा जी ने दरवाजा बंद कर दिया। फिर निशी के सामने बैठकर समझाना शुरू किया "देख बेटा! जो कुछ हुआ उसमें ना तेरी गलती थी ना हमारी। जो होना था वह चुका लेकिन अब जो होने जा रहा है उसे तू अपने दिल से अपनाना। सारांश सर मेरे बॉस है लेकिन उससे भी पहले वह बहुत अच्छे इंसान हैं। जिस तरह उन्हें यकीन है कि तुझ में मेरे संस्कार है, वैसे ही मुझे यकीन है उनके संस्कार पर। उस घर में सब तुझे बहुत प्यार से रखेंगे। तुझे किसी बात की कोई कमी नहीं होगी। कोई भी बात हो, तू खुलकर कहेगी। तुझे वहां पर हर रिश्ते मिलेंगे। तुझे उन्हें संभाल कर रखना होगा। और कुछ नहीं तो मेरे संस्कारों की लाज रख लेना, बस।"


     मिश्रा जी ने अपनी बेटी के सामने बेबसी से हाथ जोड़ लिए। निशी ने उनके हाथ पकड़ लिया और उन्हें अपने सर से लगा कर रो पड़ी। उसकी इतनी भी हिम्मत नहीं हुई कि वह जिस से शादी करने जा रही है, उसका नाम भी पूछ सके। लेकिन क्या निशी सब कुछ भूलकर अव्यांश को अपना पाएगी?


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