सुन मेरे हमसफर 268

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       अवनी अपने हाथ में आरती की थाल लिए दूसरे कमरे की तरफ जाने के लिए निकली लेकिन रास्ते में सारांश ने सामने आकर उनका रास्ता रोक लिया। अवनी ने पहले तो रास्ता बदलने की कोशिश की लेकिन सारांश तो न जाने किस मूड में थे, उन्होंने अवनी को जाने ही नहीं दिया। जहां वह दोनों खड़े थे, ना तो वह कोई एकांत जगह थी और ना ही ज्यादा चहल-पहल वाली फिर भी लोग तो उनके बगल से होकर आ जा ही रहे थे और उन्हें एक नजर देख मुस्कुरा देते थे। 


   सारांश थोड़ा सा अवनी के करीब आए तो अवनी ने कदम पीछे हटते हुए कहा "क्या कर रहे हैं आप? हटिए मेरे सामने से, काम है बहुत और बारात भी अभी आती ही होगी।"


     सारांश में एकदम से अवनी के कमर में हाथ डाला और उसे अपने करीब खींचकर कहा "हमारी शादी की रात याद है तुम्हें? तुम क्या उस टाइम भी ऐसे ही मेरा इंतजार कर रही थी?"


    अवनी ने भौंहे टेढ़ी की और सारांश से कहा "मैं आपका इंतजार क्यों करती भला? हमारी शादी नहीं हो रही थी! शादी मेरी बहन की हो रही थी आपके दोस्त के साथ, तो मैं आपके दोस्त का इंतजार कर रही थी, आपका नहीं।"


     सारांश ने थोड़ी सी नाराजगी दिखाई और अपनी इंपॉर्टेंस समझने की कोशिश करते हुए कहा "ओ प्लीज! अब ऐसा नहीं है कि तुम्हें मेरा इंतजार नहीं था। शादी से पहले तुम मुझ पर फ्लैट थी। यह बात और है कि तुम कभी एक्सेप्ट नहीं करना चाहती थी लेकिन कसम खाकर कहो, बारात में तुम मुझे ढूंढ रही थी या नहीं?"


      इस बार अवनी ने थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए सख्त लहजे में रहा "इस वक्त आपको रोमांस सूझ रहा है? बरात आने वाली है और आरती की थाली अभी तक पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है। मैं कब अपना काम निपटाऊंगी? हटिए यहां से!"


     लेकिन सारांश भी कहां मानने वाले थे! अवनी ने भी इस बार पैर पटकते हुए किसी बच्चे की तरह कहा "क्या चाहिए आपको? देखिए, सब आते जाते हम लोग को ही देख रहे हैं।"


     लेकिन सारांश को इस सबसे क्या ही फर्क पड़ने वाला था! उन्होंने कहा "मेरी समझ में नहीं आ रही एक बात, जब वेडिंग प्लानर है ही तो फिर उससे ये काम क्यों नहीं करवा रहे आप लोग? खुद से करना जरूरी है क्या?"


   अवनी को सारांश का यह तर्क बहुत बेकार सा लगा। "सारांश! क्योंकि पहली बेटी की शादी है और हमारे घर की पहली शादी। एक मां चाहती है कि अपने हाथों से अपनी बेटी को सजाए। उसके लिए एक-एक चीज चुनती है। सारे काम वेडिंग प्लानर नहीं करते, कुछ काम कर वालों के लिए भी फिक्स होते हैं। सब आपकी तरह खाली नहीं होते। अपने बेटे को देखिए, लगा हुआ है वो बेचारा। ना खाने की फुर्सत है ना पीने की।"


     सारांश ने होठों पर उंगली रखकर सोचते हुए कहा "खाने का ध्यान तो सब रख ही रहे हैं। जिसको जो मिल रहा है वह एक दूसरे को खिलाए जा रहा है। हां! पीने पिलाने की बात हो तो वह हम..........."


      अवनी ने धमकाते हुए कहा "मॉम को बताऊं?"


   "मॉम!" सारांश ने घबरा कर इधर-उधर नजर दौड़ाई और सिया को वहां न पाकर चैन की सांस ली फिर कहा "क्या यार तुम भी! डरा देती हो।"


     दूसरी तरफ से अंशु की आवाज आई "कोई आपको नहीं डरा रहा।" अंशु तेज कदमों से चलते हुए सारांश और अवनी के सामने आकर खड़ा हो गया। सारांश अभी भी अवजी की कमर में हाथ डालें वहां खड़े थे। उन्होंने कहा "बेशर्म बदतमीज! नजरे उधर कर। तुझे शर्म नहीं आती ऐसे बेशर्मों की तरह खड़े होकर हमें देखते हुए?"


      इस बार जवाब अवनी ने दिया "आपको शर्म आ रही है? आते जाते लोग हमें देखकर जा रहे हैं। सब मुंह दबाए हंस रहे हैं।"


     अव्यांश ने भी आंखें चमका कर अपनी मां की साइड ली और आंखों ही आंखों में अपने पापा को ताना मारा। "आपको पता है डैड, बारात आने में बस 5 मिनट बाकी है? यहां शायद आपको बैंड बाजे की आवाज सुनाई दे रही है या फिर रोमांस के चक्कर में सब भूल कर बैठे हो? यार यहां आरती की थाली तैयार नहीं हुई है। आपके पास अगर टाइम है तो यहां बर्बाद करने की बजाय मॉम को छोड़ कर आप मेरा वाला काम ही कर दो।"


    सारांश ने अपने बेटे से नाराज होकर कहा लगता है "मैं तेरे मम्मी के साथ टाइम बर्बाद कर रहा हूं? ओए! तो तू कैसे आया इस दुनिया में?"


     अव्यांश जोर से हंस दिया और बोला "डैड! उस टाइम शादी हो चुकी थी आप दोनों की और यह सब कुछ आप फ्री टाइम में करना।"


    अव्यांश की यह बदतमीजी देख अवनी ने उसे मारने के लिए हाथ उठाया तो अव्यांश तुरंत झटक कर दो हाथ दूर चला गया और वहां से भागते हुए बोला "मॉम! जल्दी करो आप।" अवनी ने भी सारांश की तरफ देखा और सारांश के पेट में कोहनी मार कर वहां से चली गई।


   भागते हुए अव्यांश को रोका चित्रा ने "अंशु.....! अंशु रुक जा यार!! ओ तूफान एक्सप्रेस!!!"


     अव्यांश ने एकदम से अपने तूफान एक्सप्रेस को ब्रेक लगाया और बोला "क्या हुआ बुआ? अपने बुढ़ापे को ढूंढ रहे हो क्या? आपको भी डैड मॉम की तरह रोमांस करना है?"


    चित्रा को न जाने क्यों घबराहट हो रही थी। ऐसे में अंशु का ये मजाक! उसने अव्यांश को पास ही पड़े एक डंडे से मारा। अव्यांश ने बचने की कोशिश की लेकिन चित्रा ने छड़ी फेंक दी। अव्यांश ने महसूस किया, चित्र के माथे पर पसीने की बूंदे थी। 


    अव्यांश चित्रा के माथे पर आए पसीने को अपने रुमाल से पोछा और कहा, "क्या हुआ? आप चिंता क्यों कर रहे हो? सब कुछ सही जा रहा है। अभी जब बारात आएगी तो........"


      चित्रा ने अव्यांश को बीच में रोका "यह तो मैं कह रही हूं, बारात आएगी तो फिर थोड़ा सा टाइम चाहिए होगा, तब तक बारातियों के स्वागत के लिए......."


     अव्यांश ने चित्रा को समझाते हुए कहा "लॉन में सारा इंतजाम है। कोई भी बाराती बोर नहीं होगा और कोई भी इधर-उधर नहीं जाएगा। सबके स्वागत की तैयारी हमने वहीं पर कर रखी है और सबके एंटरटेनमेंट की भी। कुछ देर के लिए सब बिजी रहेंगे। इस बीच जो भी काम बचा है वह सब निपट जाएगा।"


     "क्या हो गया चित्रा?" श्यामा की आवाज आई जो काव्या के साथ उधर ही चली आ रही थी।


     अव्यांश ने श्यामा से चित्रा की शिकायत की "देखो ना बड़ी मां ! बुआ बेवजह परेशान हो रही है। इस तरह कौन परेशान होता है? सब कुछ ठीक है। आप ही समझो इनको।"


    काव्या ने चित्रा का हाथ पकड़ा और कहा "जानती हूं वह तुम्हारी बेटी है लेकिन तुम इस तरह से परेशान क्यों हो रही हो? बच्चों ने बहुत अच्छे से सारा इंतजाम किया है। कुछ गड़बड़ नहीं होगा।"


     अव्यांश ने अपनी मौसी पर नाराज होकर कहा "बच्चों ने? मासी सारा काम मैं कर रहा हूं और इस समय निर्वाण मेरी हेल्प कर रहा है, वह भी पिछले 1 घंटे से। समर्थ भाई कहां है पता नहीं है। सोनू और काया! वह तो अपने ही मेकअप में लगी हुई है, उन्हें अपने से फुर्सत हो तब तो।"


     एकदम से चित्रा ने पूछा "और शिवि? वो कहां है?"


   शिवि के बारे में किसी को ध्यान ही नहीं था। काव्या ने बताया "शिवि तो कुणाल के घर गई थी। वैसे भेज तो मैं सोनू को रही थी लेकिन उसने शिवि को भेज दिया था, पता नहीं क्यों! लेकिन क्या हुआ शिवि अब तक वापस नहीं आई है क्या?"


     अब अव्यांश थोड़ा परेशान हो गया। उसने कहा "कोई बात नहीं, मैं देखता हूं उनकी। या तो रास्ते में होगी या फिर रास्ते में नहीं हुई तो यही कहीं होना चाहिए। वह अपने टाइम बर्बाद करने वालों में नहीं है।"


     श्यामा ने अपने सर पर हाथ मारा और कहा "हे भगवान! कहीं यह लड़की फिर से हॉस्पिटल के लिए तो नहीं निकल गई? इसका कुछ समझ में ही नहीं आता है। आज शादी है, कम से कम आज के दिन तो हॉस्पिटल ना जाती।"


     अव्यांश ने अपनी बड़ी मां को समझाया "बड़ी मां! शिवि दी लापरवाह नहीं है और हॉस्पिटल तो पहले प्रायोरिटी होनी भी चाहिए। मुझे नहीं लगता कि वह हॉस्पिटल गई होगी और अगर गई भी होगी तो जरूर वहां से कोई इमरजेंसी के लिए फोन आया होगा वरना उन लोगों को क्या आपसे डांट खानी है जो वह आज के दिन शिवि दी को फोन करेंगे!"


     श्यामा जो अब तक परेशान थी, अव्यांश की बात सुनकर उन्होंने एक मुक्का अव्यांश के कंधे पर मारा तो अव्यांश हंस दिया और माहौल भी थोड़ा टेंशन फ्री हो गया। अव्यांश को एकदम से ध्यान आया और उसने कहा "बड़ी मां! सब ठीक है। लेकिन आप लोग इधर कहां जा रहे थे? मेहमानों को गिफ्ट देने का जो काम है वह तो सारा तैयार है ना? उस कमरे की चाबी मेरे पास है।"


     काव्या ने सामने की तरफ देखकर कहा "अरे कुछ नहीं। बस एक बार कुहू को देखने जा रही थी। बरात आने वाली है ना तो सोचा एक बार........." कहते हुए काव्या थोड़ी इमोशनल हो गई।


     अव्यांश ने काव्या को साइड से पकड़ा और कहा "मासी! इतना इमोशनल मत जो। कुहू दी कहीं भागी नहीं जा रही, इसी शहर में रहेंगी। अरे इस शहर में नहीं तो दूसरे शहर में रहेंगी। हमारा जब भी मन होगा, हम अपना बोरिया बिस्तर समेटकर चले जाएंगे उनके पास, कुछ सालों के लिए।"


     इस बार काव्या ने अव्यांश के कंधे पर मारा तो अव्यांश ने कहा, "कुहू दी को डिस्टर्ब मत करिए।"


    श्यामा ने पूछा, "क्यों क्या हुआ?"


     अव्यांश ने अपने बालों में उंगलीया फिराई और कहा "नेत्रा मिली थी, उनके कमरे के बाहर। उसने कहा कि बारात आने में थोड़ा सा टाइम है और रात भर जागना है तो इसलिए उसने कुहू दी को कुछ देर आराम करने के लिए कह दिया होगा। थोड़ी देर नैप ले लेंगी तो रात भर जाग भी पाएंगी और फ्रेश भी रहेंगी।"


    अव्यांश की बातें सही थी। कुहू को थोड़ी नींद की भी जरूरत थी। एक झपकी लेने में कोई हर्ज नहीं था। उन्होंने अपने हाथ में पकड़ा डब्बा अव्यांश की तरफ बढ़ा दिया और कहा "ठीक है लेकिन जा कर इसको कुहू के कमरे में रख देना। जब भी वह उठे तो थोड़ा सा खा ले। वह क्या है ना, सुबह से भूखी है। नमक नहीं खाना, अनाज नहीं खाना लेकिन फल और मिठाई तो खाई सकती है।"


     निर्वाण उछलते कूदते पीछे से आया और काव्या को पीछे से गले लगा कर बोला "प्लीज आंटी! आप ऐसा क्यों कहते हो कि हम लोग कुहू दि का ध्यान नहीं रख सकते? अरे मैंने पहले ही एक थरमस में काफी और एक मिठाई का डब्बा एक फ्रूट का डब्बा रखवा दिया था। आपसे ज्यादा मुझे उनकी फिक्र है। आप टेंशन मत लो।"


    अव्यांश ने उसे घूर कर देख। "आई मीन, हम लोगों को उनकी ज्यादा फिक्र है। आप चिंता मत करिए। कुहू दी अभी सो रही है। वैसे आप लोगों को खुश होना चाहिए ना कि अब नेत्रा कुहू दी के साथ अपने रिलेशन को सही करने की कोशिश कर रही है।"


    ये बात सोचकर ही चित्रा के होठों पर मुस्कान आ गई। उसने कहा "यह बात तो बिल्कुल सही है। मैंने सोचा नहीं था की नेत्रा के दिमाग में यह बात ऐसे मौके पर घुसेगी। चलो देर आए दुरुस्त आए। लेकिन अवनी कहां है? तेरी मां कहां है? उसे तो आरती की थाली तैयारी करनी थी ना? लिया कि नही?"


   अव्यांश पीछे की तरफ देखा और कहा "डैड और मॉम को रोमांस का भूत चढ़ा है। अगर उन्होंने मॉम को करने दिया तो 2 मिनट में हो जाएगा वरना तो रहने ही दो।" चित्रा श्याम और काव्या ने अपने सर पर हाथ मारा।


    अवनी पीछे से चिल्लाई, "गधे की दुम! यहां खड़े होकर अपने मॉम डैड की बुराइयां कर रहा है? रुक जा, अभी बताती हूं।" अवनी के अंदाज देख कर अव्यांश ने वहां से भागने में अपनी भलाई समझी और वहां से रफूचक्कर हो गया। अवनी ने अपने हाथ में पकड़ी आरती की थाली काव्या के हाथ में दी और कहा, "ये दोनों बाप बेटे एक ही ढर्रे के है। पता नही कब अक्ल आएगी!"


   इन दोनों मां बेटे को देखकर सब की हंसी छूट गई लेकिन निर्वाण थोड़ा सा साइड हुआ और राहत की सांस ली। "चलो! इस बारे में कोई बात नहीं करेगा। एटलीस्ट कुछ देर तो नहीं। सॉरी कुहू दी!"




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