सुन मेरे हमसफर 266

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      नेत्रा ने अपना काम तो कर दिया था लेकिन आगे वह क्या करेगी और कुहू को कहां छुपएगी, यह सब उसके सर पर डालकर निर्वाण गायब हो गया था। लेकिन निर्वाण ने फोन किसको किया? क्या निर्वाण किसी को डबल क्रॉस कर रहा है? या वह किसी को बुलाकर नेत्रा की करतूत सबको दिखाना चाहता है, यह तो हमें आगे पता चलेगा। फिलहाल हमारे अव्यांश और निशी के पास चलते हैं।


      अव्यांश और निशि चुपचाप गाड़ी से में थे। रेनू जी ही बीच-बीच में कुछ-कुछ बात करते रहती और अव्यांश बदले में शरारत से उन्हें जवाब देता। निशि तो वैसे ही अव्यांश से नाराज थी। अपनी मां के साथ उसकी यह वाली बॉन्डिंग देखकर उसे और भी ज्यादा गुस्सा आ रहा था। 'मुझसे बात करने के लिए इसके पास टाइम नहीं है और मेरी मां से बात करने के लिए इसको फुर्सत ही फुर्सत है। मेरे टाइम नहीं निकालेगा तो फिर किसके लिए निकालेगा? पहले तो तुम ऐसे नहीं थे।' निशि को पुराने दिन याद आ गए, साथ में अपनी गलती भी। वह भी एक वक्त था जब अव्यांश निशी के करीब, और करीब आने की कोशिश करता था। लेकिन अब तो अव्यांश ने खुद ही इतनी दूरी बना रखी है कि निशी उसकी आवाज सुनना तो दूर उसके एक नजर को भी तरस गई है।


     हंसते हुए अव्यांश की नजर जब रियर व्यू मिरर पर गई तो उसने पाया, निशि की आंखें उसी पर जमी हुई है। दो पल को तो उसकी नजर निशी की नजरों से टकराई फिर एकदम से ही अनजान बनकर उसने आंखें दूसरी तरफ घुमा लिया।


     वेन्यू पहुंच कर अव्यांश ने अपना फोन निकाला तो रेनू जी गाड़ी से उतरने लगी। अव्यांश ने उन्हें रोका और कहा "हमारी बात अधूरी रह जाएगी मम्मी! अभी पापा को आने तो दीजिए।"


     रेनू जी ने शर्म से हल्की नाराजगी दिखा कर अव्यांश को डांटने की कोशिश की लेकिन अव्यांश ने मुस्कुराते हुए फोन कान से लगा लिया और कहा "हम लोग आ गए हैं।" दूसरी तरफ से मिश्रा जी ने कुछ जवाब दिया तो अव्यांश फोन रखा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।


     भागते हुए वह दूसरी तरफ आया और बड़े ही प्यार से रेनू जी के साइड का दरवाज़ा खोल दिया। रेनू जी को यह सब बहुत अजीब लग रहा था और शर्म भी आ रही थी। ऐसा कुछ उन्होंने पहले कभी एक्सपीरियंस नहीं किया था और अब तो अक्सर ही ऐसा होने लगा था। वह बाहर उतरने को हुई तभी एक हाथ उनकी तरफ बढ़ा। रेनू जी तो शर्म से नजरे ही नहीं उठा पा रही थी। उन्होंने बिना देखे अपना हाथ उस हाथ में दे दिया और गाड़ी से बाहर निकली। एकदम से उन्हें एहसास हुआ कि जिस हाथ को उन्होंने थाम रखा है वह अव्यांश का नहीं है बल्कि मिश्रा जी का है।


    रेनू जी ने नजरे उठाकर देखा तब मिश्रा जी ने बड़े ही रोमांटिक अंदाज में कहा "श्रीमती जी! आज बहुत प्यारी लग रही है आप।"


     अव्यांश ने मिश्रा जी के कंधे पर हाथ रखा और बड़े शरारत से कहा "मैंने तो पहले ही कहा था, पापा आपको देखकर पूरा फ्लैट हो जाने वाले हैं।"


     खुश होने की बजाए मिश्रा जी ने अव्यांश की तरफ थोड़ी नाराजगी से देखा और कहा "हां तो तुम हमारी वाली लाइन काहे मार रहे हो? अपनी वाली को लेकर आओ, हम तो चले।" मिश्रा जी के यह बदले अंदाज देखकर अव्यांश तोड़ा हैरान रह गया। लेकिन मिश्रा जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा था। वह तो अपनी श्रीमती जी को लेकर वहां से चले गए। रह गए अव्यांश और निशि।


     निशि तो वैसे ही अव्यांश से नाराज थी। वह नही चाहती कि अव्यांश उसके लिए दरवाजा खोलें। वैसे, वह चाहती तो थी लेकिन उसे पता था अव्यांश उसके लिए कभी दरवाजा नहीं खोलेगा इसलिए वह उतरने के लिए अपना लहंगा समेटने लगी जिसे देख अव्यांश जल्दी से आगे बढ़ा और निशी की तरफ का दरवाजा खोल दिया लेकिन अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया। बल्कि इसके बदले उसने पूछा "अगर तुम्हें उतारने में दिक्कत हो रही है तो मैं किसी को बुला दूं?"


      "किसी को बुला दूं? कौन आएगा यहां मुझे उतारने के लिए? मैं कहीं की महारानी नहीं हूं। और अगर किसी को बुलाओगे तो उसे जवाब क्या दोगे?" निशि ने अपनी पूरी नाराज की अव्यांश पर उड़ेल दिया। अभी-अभी जो कुछ उसने देखा था, उससे तो साफ यही लग रहा था कि अव्यांश उसके मम्मी पापा का अपना है और निशी कोई बाहर की।


    निशी जैसे तैसे अपने लहंगे को संभालती निकली लेकिन बाहर आते ही वह खुद को संभाल न पाई और सीधे अव्यांश की बाहों में जा गिरी। उफ्फ! ये रोमांटिक मोमेंट! काश कोई और टाइम होता तो शायद बात कुछ और ही होती। वह दोनों ही संभल पाते, तभी किसी की सीटी बजी और एक आवाज आई "यहीं पर शुरू हो गए दोनों?"


     अव्यांश और निशी ने उसे आवाज की दिशा में देखा तो सामने निर्वाण को खड़ा पाया। इससे पहले की निर्वाण उन दोनों से कोई और अजीब सा सवाल करता या कुछ और कहता, अव्यांश ने पूछा "तू यहां क्या कर रहा है? मैंने तुझे जो काम दिया था वह किया तूने?"


      निर्वाण के चेहरे पर थोड़ी घबराहट नजर आई लेकिन फिर जल्दी ही उसने अपनी घबराहट को अपने अंदर छुपाया और कहा "हां बस वही खत्म करके आ रहा हूं। आई मीन थोड़ा सा काम बाकी है लेकिन मैं वह कर लूंगा, डोंट वरी!"


     अव्यांश ने नाराजगी से कहा "तुझे एक कोई काम दो ना, वह भी तो ढंग से नहीं करता। एक तो वैसे ही तू दो दिनों से गायब था। पूछो तो कोई जवाब मिलता नहीं है कि कहां है, क्या कर रहा है। कुछ खबर ही नहीं है तेरी।" अव्यांश की शिकायतों की पूरी लिस्ट सुनकर निर्वाण थोड़ा तो घबराया। उसने बचने के लिए निशी की तरफ देखा।


     निशी तब तक सीधी खड़ी हो गई थी। उसने कहा "मैं कुहू दी से मिलकर आती हूं। कौन सा कमरा है उनका?"


     'निशि भाभी कुहू दी से मिलने जाएगी? हे भगवान! वह तो वहां पर बेहोश पड़ी है। अगर उनको किसी ने देख लिया तो क्या होगा?' निर्वाण आगे आया और निशी का हाथ पकड़ कर बोला "अरे भाभी जी! आप चलिए मैं लेकर चलता हूं आपको कुहू दी के पास।" निर्वाण के साथ निशि चल पड़ी और पीछे खड़ा अव्यांश उन दोनों को देखते रह गया फिर निराशा में अपना सर हिला कर वह भी उन दोनों के पीछे चल पड़ा।


     अंदर आते ही निर्वाण के दिमाग में बहाने घूमने लगे। 'भाभी को कैसे रोकूं?' तभी उसकी नजर एक कमरे पर गई जहां दरवाजा अभी अभी खुला था और काया वहां से बाहर निकली थी। उसकी जो स्टाइलिश थी उसने आवाज लगाई "अरे मैम! क्या कर रही हैं आप, अभी पूरा नहीं हुआ है।"


       काया ने गुस्से में कहा "इससे ज्यादा मुझे नहीं चाहिए। और इतना कौन तैयार होता है! ऑलरेडी में तैयार होकर आई थी, इतना काफी है।"


     निर्वाण को थोड़ा सा मौका मिल गया। वह निशी को लेकर काया के पास पहुंचा और पूछा "क्या हो गया, क्यों गुस्सा हो रही हो?"


   काया ने चिढ़कर कहा, "देखो ना भाई! मैं तैयार हूं, पूरी तरह से तैयार हूं फिर भी न जाने मेरे बालों के साथ क्या किए जा रही है। नेत्रा दी ने मुझे अच्छे से फसाया उनके साथ। मुझे उठने नहीं दे रही है।"


    निर्वाण को समझते देर ना लगी कि नेत्रा ने काया को कुहू से दूर रखने के लिए ऐसा किया था। उसने उस स्टाइलिश को समझाया "आप रहने दीजिए। इसके लिए इतना काफी है। कितना भी रंगाई पुताई करो, ये चुड़ैल ही दिखेंगी।"


     काया ने गुस्से में खा जाने वाली आंखों से निर्वाण को देखा तो निर्वाण ने एक हाथ से अपना एक कान पकड़ लिया और कहा, "ये थोड़ी पागल है। एक बार जो उसके दिमाग में आ गया ना तो वह करके रहती है। अगर इसको आपकी नहीं सुननी तो फिर यह नहीं सुनेगी।" काया ने निर्वाण के पेट में एक पंच मारा।


     वह स्टाइलिश वापस कमरे में चली गई तो जाकर काया की नजर निशि पर गई। उसने निशि के दोनों हाथ पकड़ कर कहा "वाह भाभी! आज बहुत खूबसूरत लग रही हो। भाई तो पूरे फ्लैट हो गया होगा।"


     निशि का मुंह बन गया। 'फ्लैट और वह! उसने तो एक बार देखा तक नहीं मुझे।' लेकिन बेचारी अपने मुंह से क्या ही रहती। वो बस मुस्कुरा कर रह गई। काया ने कहा "कुहू दी भी तैयार होकर आ चुकी है। आप मिले उनसे?"


     निशि ने कहा "नहीं मैं बस उधर ही जा रही थी लेकिन कमरा नही पता।"


     काया ने निशि का हाथ पकड़ कर कहा, "चलिए मैं ले चलती हूं।" निर्वाण के माथे पर बल पड़ गए।





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टिप्पणियाँ

  1. चल क्या रहा है।कुछ समझ nhi aa रहा की निर्वाण को अव्यांश ने क्या काम दिया।देखते है आगे क्या होगा बहुत ही रोचक और मजेदार पार्ट।

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