सुन मेरे हमसफर 263

 263




      निशि जब तक बाहर आई तो उसने देखा, अव्यांश उस तान्या के साथ खड़ा बहुत हंस हंस कर बातें कर रहा था। शायद तान्या ने निशि को देखा या नहीं, लेकिन उसके आते ही उसने अव्यांश के गाल पर किस किया और वहां से चली गई। निशी का खून खौल गया। उसे अब अव्यांश के साथ जाना ही नहीं था। वह अपनी मां को लेकर किसी दूसरी गाड़ी में जाने के लिए कहने को आई तो देखा उसकी मां पहले ही गाड़ी में बैठी हुई थी। यह और बात थी कि अव्यांश ने उन्हें आगे वाली सीट पर बैठाया था जहां निशी को बैठना था।


     निशि को आया देख अव्यांश ने पीछे वाली गाड़ी का दरवाजा खोल दिया और आवाज लगाई "जल्दी करो देर हो जाएगी।"


     ना चाहते हुए भी निशी चुपचाप अपने कपड़ों को संभालते हुए आगे बड़ी और गाड़ी के अंदर जाकर बैठ गई। रेनू जी ने फिर से कहा "निशी को ही आगे बैठने देते ना! मुझे यहां पर थोड़ा अनकंफरटेबल हो रहा है।"


     अव्यांश ने एकदम सख़्त लहजे में कहा "बिल्कुल नहीं! आप मेरे साथ बैठेंगी। अगर आपको अनकंफरटेबल हो रहा है तो मैं सीट एडजस्ट कर दे रहा हूं। निशि को पीछे बैठने में कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। है ना निशी?" निशि बेचारी क्या ही कहती। 




      दूसरी तरफ नेत्रा बेचैनी से इधर-उधर टहल रही थी। कुहू के कमरे में उसे एक अजीब सी घुटन महसूस हो रही थी और वक्त काटे नही कट रहा था। लेकिन यहां रहकर कुहू का इंतजार करने के अलावा उसके पास और कोई रास्ता नहीं था। 


    कुछ देर के बाद ही कुहू अपना लहंगा संभालते हुए सुहानी और काया के साथ कमरे में दाखिल हुई तो नेत्रा उस पर बरस पड़ी "पार्लर जाने की क्या जरूरत थी जब यहां पर सारा अरेंजमेंट था तो?"


    सुहानी काया के साथ कुहू भी चौंक गई। नेत्रा के इस बिहेवियर का क्या मतलब था यह तो नेत्रा ही बता सकती थी। तीनों बहनों ने उसे घूर कर देखा तब जाकर नेत्रा को एहसास हुआ कि अपनी बेचैनी में वह कुछ ज्यादा ही बोल गई है। उसने अपनी बात संभालते हुए कहा "मेरे कहने का मतलब वह घर वाले सब पूछ रहे थे तुम्हारे बारे में।"


     कुहू ने सीधे से उस पर सवाल किया "वह सब तो ठीक है। घर वालों को पता था कि मैं कहां हूं और क्यों हूं लेकिन यह बताओ कि तुम यहां क्यों हो? कुछ काम था तुम्हें?"


     नेत्रा थोड़ा सा हड़बड़ाई और फिर मुस्कुरा कर कहा "नहीं! मैं तो बस तुम्हें ही ढूंढ रही थी।"


      कुहू ने अपने दोनों हाथ आपस में बांधे और कहा "हां कहो, क्या काम था? मैं सुन रही हूं।"


    दोनों के बीच सजते हुए युद्ध मैदान को देखकर सुहानी और काया ने नेत्रा को दोनों तरफ से पकड़ा और कहा "नेत्रा को हमसे काम था, है ना नेत्रा?"


    नेत्रा ने भी जल्दी से अपना सर हिला दिया और कहा "हां मैं तुम दोनों को ही ढूंढ रही थी। वह तुम दोनों तैयार नहीं हुई हो। आई मीन मुझे लगा था तुम दोनों वहीं पर से तैयार होकर आओगी।"


     काया और सुहानी तो तैयार थी। काया ने हैरानी से पूछा, "आपको ऐसा क्यों लगता है कि हम तैयार नहीं है? हम तो कुहू दी के साथ ही तैयार होकर आए है।"


    नेत्रा ने अपनी बात समझाते हुए कहा, "मेरी बात मानो, वाकई में तुम दोनो अभी तक ठीक से तैयार नहीं हुई हो। आज पार्लर में इतना ज्यादा भीड़ थी। तुम दोनों को ठीक से टाइम ही नहीं मिला होगा। जैसे तैसे तैयार कर दिया। मेक अप देख लो! कितना पैची लग रहा है! बाल भी थोड़े उखड़ गए है। गाड़ी का विंडो खुला था क्या? चलो मेरे साथ।" नेत्रा ने उन दोनों का हाथ पकड़ा और कहा "जल्दी चलो वरना पार्लर वाली चली जाएगी फिर तुम दोनों ऐसे ही भूतनी बनाकर शादी अटेंड करना।"


     नेत्रा दोनों बहनों को खींचकर अपने साथ ले गई। जिस काम के लिए नेत्रा आई थी वह काम उसे अकेले करना था और इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी था इन दो मधुमक्खियो को कहीं व्यस्त करना सो उसने किया। दोनों को ले जाकर एक कमरे में बंद किया ताकि दोनों अच्छे से तैयार हो सके। इन फैक्ट उसने ब्यूटीशियन को काफी अच्छे से समझा दिया था कि उन्हें तैयार करने में कितना टाइम लेना है और कैसे तैयार करना है। 


    नेत्रा वहां से वापस जाने को मुड़ी तो उसे एकदम से ख्याल आया कि उसका बैग कुहू के कमरे में ही रह गया है। इस टाइम उसे उस बैग की बहुत ज्यादा जरूरत थी। वह भागते हुए कुहू के कमरे में गई तो एक बार फिर उसके माथे पर बल पड़ गए। इस वक्त कुहू के साथ कमरे में काव्या और अवनी मौजूद थे। दोनों कुहू की नजर उतारने में लगे हुए थे। काव्या ने कुछ मिर्ची राई और अजवाइन लेकर कुहू की नजर उतारी और वही नीचे रख कर एक मिट्टी के दिए से ढक दिया। अवनी ने कहा "अब चलो इसको अपने पैर से तोड़ दो।"


    कुहू ने अपना दाहिना पैर आगे किया और पूरे जोर से दबाकर उसे मिट्टी के दिए को तोड़ दिया तो अवनी ने कहा "मैं किसी को बोलकर इसे साफ करवा देती हूं।"


    नेत्रा को कुहू से अकेले में काम था और यह मौका उसे मिल नहीं रहा था। अब कोई और इसे साफ करने के लिए आ जाएगा उससे बेहतर है था, कि नेत्रा ही ये काम करे। नेत्रा ने कहा "अरे आंटी आप परेशान मत होइए मैं यह साफ करवा देती हूं आप लोग जाइए।"


    अवनी ने नेत्रा को अजीब नजरों से देखा। कुहू तो खैर नेत्रा पर ध्यान ही नहीं दे रही थी। काव्या ने पूछा "क्या हुआ, तुम हमें यहां से बाहर क्यों भेजना चाह रही हो? सब ठीक तो है?"


     नेत्रा ने जल्दी से मुस्कुरा कर कहा "हां आंटी, वह दादी आप लोगों को ढूंढ रही थी। वह शायद कुछ रसम करना बाकी रह गया है इसलिए। वह कर नहीं सकती, तो आपको ही करना होगा शायद।"


     काव्या ने सामने रखा मांग टीका उठाया और अवनी से कहा "अवनी तू जाकर देख ले कौन सी रसम के बारे में कह रहे हैं। मैं तब तक कुहू को यह मांग टीका पहना देती हूं, इसके ससुराल से आई है।"


     अवनी ने काव्या के हाथ से वह मांग टीका लिया और कहा, "बहुत खूबसूरत है। ससुराल से मांग टीका आना कितना अच्छा लगता है ना?"


     काव्या ने भी खुश होकर कहा "नथ मायके का और टीका ससुराल का। लेकिन तू नहीं समझेगी।" काव्या ने अपनी बहन को ताना मारा लेकिन नाराज होने की बजाय अवनी मुस्कुरा उठी। सारांश ने उसे ऐसा कोई मौका ही नहीं दिया था। अपनी शादी में वह बिल्कुल उसी तरह तैयार हुई थी जैसा सारांश चाहते थे। 


    उन दोनों बहनों को वहां पर टिके देख नेत्रा ने फिर से कहा "ठीक है आप लोगों को अगर फुर्सत नहीं है तो फिर मैं दादी से कह देती हूं कि यह रसम वो बाद में कर लेंगे या फिर किसी और से करवा लेंगे।"


     इस बार काव्या और अवनी दोनों ने उसे रोकते हुए कहा "रहने दो हम जा रहे हैं।"


   "लेकिन कुहू को अकेले कैसे छोड़ेंगे? ऐसे तो अकेले छोड़ना सही नही होता।" अवनी ने पूछा तो नेत्रा ने कहा "कोई बात नहीं आंटी, मैं हूं यहीं पर। मैं देख लूंगी। और सुहानी है ही, और काया भी तो है! अभी दोनों आती ही होगी। वह दोनों आ जाएंगे तो फिर मैं यहां से चली जाऊंगी, मुझे भी दूसरा काम था।"


      काव्य ने जाने से पहले नेत्रा को खास तौर पर हिदायत दी "ठीक है ध्यान रखना! और इस बात का खास ध्यान रखना कि दुल्हन को अकेले नहीं छोड़ना है। न जाने कितनी ही बुरी बलाएं दुल्हन के आसपास घूमते रहती है।"


     नेत्रा ने मुस्कुराकर कहा "डॉन'ट वरी आंटी! कुहू को किसी की बुरी नजर नहीं लगेगी, मेरा मतलब कुहू दी को। मैं हूं ना यहां पर! आप लोग बेफिक्र होकर जाइए।"


     काव्या और अवनी को क्या ही चाहिए था। अगर इस बहाने नेत्रा और कुहू के बीच की नाराजगी खत्म हो जाए तो! दोनों वहां से चली गई। उन दोनों के जाने के बाद कुहू एकदम से अपनी जगह से उठी और नेत्रा से पूछा "काम क्या है तुम्हें मुझसे?"


    नेत्रा मुस्कुराने लगी और कहा, "काम? मुझे कौन सा काम हो सकता है तुम से कुहू?"


     कुहू ने सख्त लहजे में कहा "कम टू द पॉइंट नेत्रा! बहुत अच्छे से जानती हूं मैं तुम्हें। तुम्हें मेरे साथ अकेले में मौका चाहिए था।" कुहू ने आगे बढ़कर दरवाजा बंद कर दिया लेकिन लॉक नहीं किया क्योंकि उसे नेत्रा पर पूरी तरह से भरोसा नहीं था।

    


Click below



सुन मेरे हमसफर 262



सुन मेरे हमसफर 264

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274