सुन मेरे हमसफर 261

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      कुणाल ने अभी भी शिवि को थाम रखा था और शिवि तो जैसे वही जड़ होकर रह गई थी। यह सब क्या था और क्यों था, ना तो उसकी समझ में कुछ आ रहा था और ना ही उसका दिमाग काम कर रहा था। ना वह कुणाल को खुद से दूर कर पा रही थी और ना ही खुद कुणाल से दूर होने की कोशिश।


      कुणाल आंखें बंद किए खड़ा था इस एहसास को, जो पहली बार उसे मिला था, जी भर कर जी लेना चाहता था। लेकिन उसके कानों में किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ी। शायद घर का कोई नौकर था। कुणाल ने धीरे से अपनी आंखें खोली और शिवि से अलग हुआ। शिवि तो अभी भी हैरानी से आंखें फाड़े कुणाल को ही देखे जा रही थी। उसके कुछ भी पूछने से पहले कुणाल ने शर्मिंदा होकर कहा "सॉरी! मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। लेकिन न जाने क्यों ऐसा लगा जैसे मेरे लिए एक आखरी मौका है। मुझे नहीं पता था कि तुम यहां आने वाली हो। जो भी हुआ अनजाने में हुआ। देखो शिविका! इस बात को लेकर किसी तरह का रिएक्शन मत देना। मैं जानता हूं तुम मुझे कुछ खास पसंद नहीं करती हो लेकिन तुम नहीं जानते तुम मेरे लिए क्या हो। आई थिंक तुम्हारा काम हो गया, तुम्हें जाना चाहिए।"


    शिवि इस बार सही में कुछ कहना चाहती थी लेकिन वह खुद भी कुछ बोलने की हालत भी नहीं थी। जब कुणाल अपनी बात खत्म कर गया तब शिवि वापस पलटी और बाहर निकलने को हुई तो इस बार फिर से कुणाल ने उसे पीछे से आवाज लगाई "तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था। तुम्हें वापस नहीं आना चाहिए था। मैं अपनी जिंदगी से समझौता कर चुका हूं। तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था।"


   कुणाल की आवाज में दर्द था लेकिन शिवि का दिमाग पूरी तरह ब्लैक था। कुणाल ने क्या कहा उसने क्या सुना कुछ नहीं पता, इसलिए वह तुरंत बाहर की तरफ निकल गई।


     उसे इतनी तेजी में जाते देख ऋषभ ने अपने भाई से पूछा "यह इसको क्या हुआ है? यह ऐसे क्यों जा रही है?"


      कार्तिक इस बात को छुपाना चाहता था। उसने कहा "कहां क्या हुआ? घर पर कोई काम होगा इसलिए तेजी में निकल गई। वैसे भी दुल्हन की बहन है उसे तो हर थोड़ी-थोड़ी देर में लोग ढूंढते ही होंगे।"


     ऋषभ ने नाराजगी से कार्तिक सिंघानिया की तरफ देखा और कहा "तुझे मैं पागल लगता हूं? मेरी आंखें हैं और दिमाग भी। जितनी तेजी से वह भागकर गई है ऐसा लगा जैसे कोई भूत देखा हो। उसके चेहरे का एक्सप्रेशन देखा तूने? हवाईयां उड़ी हुई थी।"


     कार्तिक को लग नहीं था कि उसका भाई शिवि के इतने एक्सप्रेशन नोटिस करेगा और इतनी ध्यान से उसे देखेगा। यह तो उसके लिए नॉर्मल सी बात थी और यह बात कार्तिक भूल गया था। उसने अपने सर पर हाथ मारा और कहा "लड़कियों की शक्ल देखने की आदत छोड़, वो तेरी होने वाली बीवी की बड़ी बहन है।"


     इस बात पर ऋषभ ने कार्तिक को आड़े हाथो लिया और कहा "कुछ तो चल रहा है। कोई बड़ा वाला झोल है। सच-सच बता, यह शिवि और कुणाल का क्या चक्कर है?" कार्तिक ने इधर-उधर नजर दौड़ाई। उसे कुछ सोचना था लेकिन ऋषभ उसकी आंखों के सामने आकर खड़ा हो गया और आंखों से ही धमकी दी। इस बार कार्तिक को यह सच ऋषभ को बताना ही था। क्या ऋषभ कुणाल के लव स्टोरी में कुछ कर सकता है? पता नहीं! जो अब तक कोई नहीं कर पाया तो ऋषभ क्या ही कर लेगा। छोड़ो उसे आगे बढ़ते हैं।




     चित्रा मिट्टी की छोटी-छोटी मटकियों में चांदी के सिक्के डलवा रही थी, जो सारे मेहमानों को वापसी में गिफ्ट के रूप में देना था। ठीक कुछ वैसा ही जैसा कार्तिक और काव्या की शादी में हुआ था। एक तरह से यह रस्म ही बन गई थी। काम पूरा होने के बाद चित्रा ने दो मटकी उठाई और कहा "इन सारी मटकियों को ले जाकर दुल्हन के कमरे के बगल वाले कमरे में रखना है। और ध्यान रहे, एक भी मटकी फूटने नहीं चाहिए।"


     चित्रा बोलते हुए आगे बढ़ती जा रही थी। लड़कियों ने हां में सर हिलाया और एक दो मटकिया लेकर वह भी चित्रा के पीछे-पीछे चलने लगी। चलते हुए ही चित्रा उन लड़कियों को अच्छे से समझाती जा रही थी कि कहां कैसे रखना है और कौन सा किधर रखना है। चलते हुए वह एकदम से सामने से आई नेत्रा से टकराई जिससे एक मटका फूट गया और सिक्के जमीन पर बिखर गए।


      चित्रा ने झुंझला कर कहा "क्या कर रही है तू? देखकर चल नहीं सकती? आंखें क्या कर के ऊपर लगा रखा है?"


    नेत्रा अपनी मां का यह रूप देखकर थोड़ा सा घबराई क्योंकि मटकी टूटने की आवाज से थोड़ा वह भी डर गई थी। उसने अपने पीछे देखते हुए कहा "सॉरी मॉम! मेरा ध्यान नहीं था। मैं इन्हें समेत देती हूं। नहीं, एक्चुअली मैं किसी को कह देती हूं वह समेट देगा।"


    नेत्रा वहां से जाने को हुई लेकिन चित्रा ने एकदम से नेत्रा का हाथ पकड़ा और पूछा "एक बात बता, तू कर क्या रही है?"


    एकदम से चित्रा को याद आया कि उसके पीछे कुछ लड़कियां थी और उनके सामने वो नेत्रा से ऐसे बात नही करना चाहती थी। उसने उन लड़कियों को वहां से निकालकर अपना काम करने को इशारा किया तो वह लड़कियां वहां से चली गई। साथ में चित्रा ने अपने हाथ की एक मटकी उनमें से एक लड़की को पकड़ा दिया और किसी को आवाज लगाकर वहां पर बिखरे टुकड़े समेटने को कह दिया। फिर नेत्रा का हाथ पकड़ कर उसे एक तरफ लेकर गई और पूछा "क्या मैं जान सकती हूं कि तुम और तुम्हारा भाई पिछले दो दिनों से कहां गायब हो?"


    नेत्रा मुस्कुराई। उसके मुस्कान में ही अपनी मां के लिए ताना छुआ था। उसने कहा "चलो! फाइनली आपको याद तो आया कि आपके दो बच्चे और हैं! आई मीन आपके खुद के दो बच्चे हैं। वरना तो दूसरों के बच्चे के पीछे आप अपनी सगी औलाद को भी भूल गई।"


     नेत्रा का यह रूखापन और ताना सुनकर चित्रा को अपनी गलती का एहसास हुआ। वाकई इन दो दिनों में जब नेत्रा और निर्वाण दोनों कहीं भी नजर नहीं आए तो एक बार भी उसने दोनों में से किसी को कॉल करने की कोशिश नहीं की। कुहू के उलझन में वह खुद इतनी उलझ गई थी कि वाकई वह अपने दोनों बच्चों को भूल गई थी। चित्रा ने कुछ कहना चाहा लेकिन नेत्रा ने अपना हाथ छुड़ाकर वहां से जाना बेहतर समझा।


      चित्रा ने खुद को तसल्ली दी और कहा "कोई बात नहीं। इस वक्त इतनी ज्यादा परेशानी है कि अभी एक और परेशानी नहीं ले सकती। बस एक बार यह शादी निपट जाए उसके बाद अपने बच्चों की नाराजगी भी दूर कर दूंगी। वाकई इस बार गलती मेरी ही थी, तो मुझे ही देखना होगा।"


      नेत्रा वहां से दूसरी ओर गई लेकिन एकदम से उसे ध्यान आया तो उसने भी दो-तीन मटकिया उठा ली और चित्रा से कहा "मॉम सॉरी! मैं आपसे बदतमीजी नहीं करना चाहती थी लेकिन हो गई। गलती आपकी भी है। आपने एक बार भी नहीं पूछा, एक कॉल तक नहीं किया आपने। खैर कोई बात नहीं, अभी शादी है पहले एक बार यह शादी हो जाए उसके बाद मुझे आपसे बहुत सारी शिकायत करनी है। फिलहाल यह बताइए इन मटकियों को कहां रखना है?"


     अपनी बेटी की समझदारी देखकर चित्रा मुस्कुरा उठी और कहा "कुहू के कमरे के बगल वाले कमरे में। सारे मेहमानों का गिफ्ट वही रखा हुआ है।"


     नेत्रा मुस्कुरा कर अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ी और मन में कहा 'शादी के बाद मिलते है मॉम। इस शादी में ही मैं अपना सारा बदला निकाल लूंगी आपकी प्यारी बेटी से।'





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