सुन मेरे हमसफर 154

154



     कुछ देर बाद ही अव्यांश तेज कदमों से सारांश के केबिन में दाखिल हुआ। उसके आते ही सारांश ने उसे बैठने का इशारा किया और बोले "कुछ पता चला?"


      अव्यांश आराम से बैठ गया और बोला "कुछ नहीं। उसने किसी भी बात के लिए ना इंकार किया है और ना ही एक्सेप्ट किया है। बस आज जो कुछ भी हुआ उसे लेकर उसने इतना एक्सेप्ट किया है कि वह हम दोनों को ही मारना चाहता था। इसके अलावा किसी और का नाम लेने को तैयार नहीं है। ये जो भी इस सबके पीछे है, बहुत शातिर है जो हमारी रडार में नही आ रहा। रही बात देवेश की तो, मेरी समझ में नहीं आ रहा, इंसान का दिमाग कहां से कहां तक सोच सकता है! कोई भी इंसान अपनी गलती की बजाय दूसरे की गलती ना होते हुए भी उसे ही दोषी ठहरा देता है।"


      सारांश उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले "यह इंसान की फितरत है बेटा। हर किसी में इतनी हिम्मत नहीं होती कि अपनी गलती की तरफ देख सके, उसे एक्सेप्ट कर सके। उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।"


   अव्यांश परेशान होकर बोला "उम्मीद करता हूं डैड कि सब कुछ ठीक हो जाए। पता नहीं निशि कैसे रिएक्ट करेगी? मैं नहीं चाहता कि उस तक यह बात पहुंचे।"


     सारांश उसे समझाते हुए बोले "निशी को इस बारे में जरूर बता देना वरना कहीं ना कहीं से उसे तक यह बात पहुंच ही जाएगी। किसी भी रिश्ते में ऐसी छोटी-छोटी बातों से ही गलतफहमी पैदा होती है। निशी का पूरा हक है इस बारे में जानने का। हां मैं जानता हूं उसे तकलीफ होगी, लेकिन इस सबसे उसे आगे बढ़ाने में और ज्यादा हेल्प मिलेगी और एक भरोसा उसे तुझ पर भी होगा कि तू उससे कभी कुछ नहीं छुपाएगा, समझ गया?"


     अव्यांश ने धीरे से अपना सर हिला दिया। सारांश ने आगे कहा "वह सब छोड़ और यह बता, बेंगलुरु से आया है तब से हमारी बात नहीं हो पाई है। वहां का काम ठीक से निपट गया?"


     अव्यांश बोल "हां डैड, वहां सब कुछ ठीक है, लेकिन.........."


     सारांश ने पूछा "लेकिन क्या? कोई प्रॉब्लम है जिसे तू हैंडल नहीं कर पा रहा? बता मुझे।"


     अव्यांश हंस कर बोला "ऐसा कुछ नहीं है डैड। वह बस मैं थोड़ा मिश्रा जी को लेकर, आई मीन पापा को लेकर मैं..........! मुझे लगा था मैं जो भी कर रहा हूं इसके बारे में सिर्फ मुझे पता है लेकिन पापा को पता नहीं कैसे लेकिन उन्हें सारी सच्चाई पता चल गई। मैं नहीं चाहता था कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता चले, वरना यह सब जो मैंने अपनी जिम्मेदारी समझकर किया, उन्हें अपना समझकर किया, उन्हें एहसान लगेगा। यहां आने से पहले उन्होंने प्रॉपर्टी के पेपर मेरे हाथ में पकड़ा दिया, यह कहकर कि सब कुछ उनका निशि के नाम है।"


      सारांश बोले "एक बेटी का बाप क्या महसूस करता है, यह मैं अच्छे से समझ सकता हूं। किस मजबूरी में उन्होंने यह सब किया होगा यह सोचकर ही बुरा लगता है। उन्होंने एक बार भी मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहा। एक बार तो कहते। आखिर वो हमारी कंपनी के इतने पुराने एम्पलाई हैं। उनका ध्यान रखना हमारा काम है।"


     अव्यांश मुस्कुरा कर बोला "इसमें उनकी भी कोई गलती नहीं है। इंसान अपनी प्रॉब्लम खुद से ही सॉल्व करना चाहता है। पूरी कोशिश करता है कि वह किसी और को इसमें इंवॉल्व ना करें, फिर चाहे वो उसके परिवार का सदस्य ही क्यों न हो। खैर जो हुआ सो हुआ लेकिन अगर मैं आपकी बात मानू तो क्या मुझे इस सब के बारे में भी निशी को बता देना चाहिए?"


     सारांश ने जवाब देने की बजाए सवाल किया "क्या मिश्रा जी ने इस बारे में निशि से कुछ कहा है?"


    अव्यांश इनकार करते हुए बोला "नहीं। पापा ने निशी से इस बारे में कुछ नहीं कहा है। घर के गिरवी रखने की बात तो बिल्कुल भी नहीं।"


      सारांश ने गहरी सांस ली और आंख बंद कर कुछ देर सोचने के बाद बोले "जब निशी को घर के गिरवी रखने की बात नहीं पता तो फिर यह सारा मैटर सॉर्ट आउट होने के बारे में भी उसे कुछ पता नहीं ही चलना चाहिए। मां-बाप और बच्चों के बीच में एक विश्वास की डोर होती है। लेकिन मां-बाप अगर कुछ छुपाते हैं तो इसके पीछे भी कोई वजह होती है। जब मिश्रा जी ने उसे इस बारे में कुछ नहीं बताया तो मुझे नहीं लगता कि तुम्हें भी इस बारे में उसे कुछ कहना चाहिए। बस इतना ध्यान में रखना कि वह पेपर्स निशी के हाथ ना लगने पाए। उसे ले जाकर लॉकर में रख देना।"


    अव्यांश ने नजर उठा कर सारांश की तरफ देखा और बोला "लेकिन डैड! मैं ऐसा नहीं कर सकता।"


    सारांश हैरान होकर बोले "नहीं कर सकता, मतलब? बैंक के लॉकर में रखने को बोल रहा हूं मैं, इसमें क्या प्रॉब्लम है?"


      अव्यांश बहुत गंभीर होकर बोला "प्रॉब्लम है डैड, बहुत बड़ी प्रॉब्लम है। अगर मैंने ऐसा किया तो फिर मैं पापा को क्या जवाब दूंगा? उन्होंने इतने प्यार से और इतनी उम्मीद से अपनी बेटी को विदा किया है, और आप कह रहे हैं कि मैं निशि को लॉकर में डलवा दूं? यह मेरे से नहीं होगा। वैसे भी, बैंक वाले कभी परमिशन नहीं देंगे कि मैं एक जिंदा इंसान को ले जाकर लॉकर में डाल दूं। वो तो समान या पेपर्स रखने की जगह है। बैंक वाले तो सीधे मुझे पुलिस में दे देंगे। आप कहो तो मैं पेपर्स को लॉकर डाल दूं?"


    सारांश ने अपना सर पकड़ लिया। वह कुछ देर अव्यांश को देखते रहे तो अव्यांश खिलखिला कर हंस पड़ा और बोला "डैड! आप बहुत फनी हो।"


       सारांश को अपने बेटे की इस बेवकूफी भरी बातों पर गुस्सा भी आया और प्यार भी। आखिर अपने बेटे पर गुस्सा कैसे जाहिर कर सकते थे, फिर भी वो उसपर नाराज होते हुए बोले "तुझे मैं फनी लग रहा हूं? रुक, अभी मैं तुझे अपना फन दिखाता हूं।"


    सारांश एकदम से अव्यांश की तरफ लपके लेकिन अव्यांश भी उनसे ज्यादा तेज था। वह फुर्ती से वहां से उठकर भागा। केबिन में कुछ देर अपने डैड को अपने पीछे दौड़ाने के बाद वो केबिन से बाहर निकल गया। सारांश भी उसके पीछे पीछे निकले और बोले "अबे रुक जा, साथ में घर चलना है।"


      अव्यांश बोला "जी नहीं, मैं अकेले घर जा रहा हूं, वरना आपके साथ में घर नहीं पहुंच पाउंगा। आप अपने फन के साथ निकलो।"

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुन मेरे हमसफर 272

सुन मेरे हमसफर 309

सुन मेरे हमसफर 274