सुन मेरे हमसफर 99

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     निशी को सब का इस तरह खुद को देखना थोड़ा अजीब लगा क्योंकि सबके चेहरे पर जो कुछ देर पहले मुस्कुराहट थी, वो अब एकदम से गायब हो चुकी थी। उसने सवालिया नजरों से अव्यांश को देखा तो उसके चेहरे पर भी कोई खुशी नजर नहीं आ रही थी। वह कुछ पूछ पाती उससे पहले ही समर्थ ने कहा "अंशु! समझा अपनी बीवी को।" इतना कहकर वह वहां से चला गया। सुहानी और शिवि भी उसके पीछे-पीछे चले गए।


     निशि से रहा नहीं गया तो आखिर उसने पूछ लिया "ये सब को अचानक क्या हुआ? सब ऐसे क्यों चले गए? मैंने कुछ गलत कहा क्या?"


    अव्यांश को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस बात को कैसे एक्सप्लेन करें। वो जाकर छत की रेलिंग पर बैठ गया। निशी यह देखकर घबरा गई और उसने अव्यांश का हाथ पकड़ लिया। "अव्यांश! क्या कर रहे हो तुम गिर जाओगे। इतनी पतली सी रेलिंग है। तुम्हे डर नहीं लगता क्या?"


     अव्यांश मुस्कुरा दिया और बोला "बचपन की आदत है। पहले डर लगता था लेकिन अब नहीं लगता।"


     लेकिन निशी को यकीन नहीं हुआ। वो अभी भी अव्यांश का हाथ पकड़े हुए थी। उसने कहा "चाहे जो भी हो, तुम नीचे उतरो वरना मैं सबको आवाज लगाऊंगी।"


     अव्यांश ने नीचे उतरने की बजाए अपने दोनों पैरों को रेलिंग के दोनों तरफ किया और बैलेंस करते हुए बोला "अब ठीक है?"


     निशी को थोड़ी राहत मिली और उसने कहा "हां अब ठीक है।" लेकिन अभी भी उसने अव्यांश का हाथ नही छोड़ा था। उसने अपना सवाल फिर से दोहराया "सब लोग नाराज हो कर चले गए मुझसे। लेकिन मैंने ऐसा क्या कह दिया? मैंने तो बस वही सजेशन दिया जो मुझे सही लगा। या फिर मेरा समर्थ भैया और तन्वी के रिलेशन के बारे में बात करना अच्छा नहीं लगा?"


    अव्यांश ने उसे समझाते हुए कहा, "तुम गलत समझ रही हो। तुम्हारी किसी बात से कोई प्रॉब्लम नहीं हुई, ना कभी होगी। तुम जिसके बारे में चाहो, बात कर सकती हो। किसी के भी लाइफ में इंटरफेयर कर सकती हो। इससे सब को यही लगेगा कि तुम खुद को इस घर का सदस्य मानने लगी हो। लेकिन जो आखिर में तुमने कहा, वो थोड़ी सी लग गई दिल को।"


   निशी अपनी कही बातों को याद करने लगी लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया। उसने पूछा "मैंने ऐसा क्या कह दिया? मुझे कुछ याद नहीं आ रहा।"


    अव्यांश ने उसके सिर पर मारा और याद दिलाते हुए कहा "सारा सजेशन देने के बाद तुमने भाई से उनके और तन्वी के रिश्ते के बारे में पूछा और फिर आखिर में तुमने क्या कहा?"


    निशि को याद आया और उसने कहा "यही कि एवरीथिंग इस फेयर इन लव एंड वॉर। लेकिन इसमें क्या गलत है?"


      अंशु ने कहा "यही तो गलत है! बस इसी बात से सब तुमसे नाराज हो गए। मतलब मुझे समझ नहीं आता, इस एक लाइन का मतलब क्या है? यह लाइन हम हर जगह सुनते हैं, हर कोई इसको यूज़ करता है लेकिन क्यों? ये हमारा कल्चर नहीं है।"


     निशी को अभी भी अव्यांश की कोई बात पल्ले नहीं पड़ रही थी। उसने कहा "एक्जेक्टली! ये बात हर कोई कहता है, और सच भी तो है। प्यार किया तो डरना क्या? प्यार में सब जायज है। क्योंकि प्यार कभी सही या गलत नहीं होता।"


     अव्यांश मुस्कुराया और बोला "यहीं पर तो हम गलती कर जाते हैं। कौन कहता है प्यार गलत नहीं होता? मेरी शादी तुमसे हुई है, अगर मैं किसी और से प्यार करूं तो क्या ये गलत नहीं होगा? मेरी शादी अगर नहीं भी हुई है और फिर भी अगर मैं किसी शादीशुदा लड़की से प्यार करूं तो क्या यह सही होगा? और क्या मतलब है इसका, इश्क और जंग में सब जायज है? इस हिसाब से मुझे तुम्हारे रहते हुए उस दूसरी लड़की को भी ले आना चाहिए जिससे मैं प्यार करता हूं या फिर मुझे अपना बोरिया बिस्तर बांध कर उस शादीशुदा औरत के घर में जाकर बैठ जाना चाहिए क्योंकि मैं उससे प्यार करता हूं। क्या ये सही होगा? प्यार बस तब तक सही है जब तक वह किसी और को तकलीफ ना दे। अगर तुम्हारे दिल में किसी और के लिए प्यार है तो तुम्हें भूलना होगा या फिर इस रिश्ते को तोड़ना होगा। दो चीजें एक साथ नहीं चल सकती। और इस बात का क्या भरोसा है कि तुम्हारा प्यार प्यार है, कोई अट्रैक्शन नहीं? शादी तो हमारी सच्ची है ना? प्यार का क्या भरोसा!"


    निशी को अभी भी सारी बातें क्लियर नहीं हुई थी। उसके मन में कई सारे सवाल थे जो उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहे थे। अंशु ने आगे बढ़ाते हुए कहा, "जो भी तुमने कहा, उसको हिंदी में ट्रांसलेट करो।"


     निशी बोली "अभी तो किया ना!"


    अंशु ना में सिर हिलाते हुए बोला "नही! वो हिंदी नही उर्दू था। जो लव और वॉर करते हैं, उनमें डाइवोर्स का कल्चर होता है। जो इश्क और जंग करते हैं, उनमें भी तलाक का कल्चर है। लेकिन जो प्रेम और युद्ध करते हैं, उन्हें ना तलाक, ना हीं डाइवोर्स पता होता है।क्योंकि यह हमारी संस्कृति ही नहीं है, हमारा कल्चर नहीं है। जिन लोगों को कोई फर्क नजर नहीं आता, वो जीतने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन हमारा कल्चर हमें यह कहता है कि प्रेम में समर्पण होता है और युद्ध का नियम होता है। बिना नियम के कोई युद्ध नहीं लड़ा जाता। अगर कोई योद्धा, लड़ाई के मैदान में सामने वाली सेना की प्रजा को उठा कर ले आए और उन पर तलवार रख दे तो ऐसे में वो बिना लड़े ही जीत जाएगा, लेकिन क्या यह सही होगा? क्या जीतने के लिए कुछ भी करना उचित है? क्या वो एक योद्धा कहलाएगा? बिल्कुल नहीं। जब तक तुम इंग्लिश और दूसरे भाषाओं की प्रभाव में रहोगी तो कभी अपने कल्चर को नहीं समझ पाओगे। यह भाषा हमारे दिमाग पर बहुत ज्यादा असर करता है। क्योंकि ना इश्क हिंदी है, ना जंग और ना ही जायज। करना है तो प्रेम करो। इसे सुनकर ही समर्पण का भाव आता है। यहां सभी तुमसे बस इसी बात से थोड़ा सा नाराज थे। इसीलिए भाई ने कहा कि मैं तुम्हें समझाऊं। हमारे यहां आज तक रिकॉर्ड नहीं रहा कि किसी का तलाक हुआ हो। बड़े पापा के केस में बात अलग थी। उनकी शादी नहीं हुई थी इसीलिए वो लेडी इतनी आसानी से आजाद हो गई। लेकिन कमिटमेंट तो था, इसीलिए बड़े पापा इस रिश्ते का टूटना सह नहीं पाए और भाई को लेकर बाहर चले गए। और सच कहूं तो उस रिश्ते का सही भी था। अगर यह सब शादी के बाद होता तो बड़े पापा बहुत ज्यादा टूट जाते। उनकी लाइफ में बड़ी मां को होना था, इसलिए सारे रास्ते अपने आप बनते चले गए। यह संजोग भी बड़ा कमाल का होता है ना? कब कैसे हमें अपनी उंगलियों पर नचा दे, पता ही नहीं चलता।"


     निशा खोए हुए अंदाज में बोली "ये बात तो है। अब देखो ना, तुम्हारे बारे में भी पापा से मैंने हमेशा कुछ ना कुछ सुना है। मुझे हमेशा से ही एक क्यूरोसिटी होती थी कि मैं तुमसे मिलूं और जानू कि तुम किस टाइप के इंसान हो। क्योंकि तुम्हारी इतनी तारीफ सुनने को मिली थी, कि तुमसे मिलने के लिए कोई भी बेचैन हो जाए। और देखो, तुम अभी यहां मेरे सामने बंदरो वाली हरकत करते हुए बैठे हो।"


      अंशु थोड़ी सी नाराजगी जाहिर करते हुए बोला "तो मुझे बंदर कह रही हो? नॉट फेयर। तुम्हारी शादी का गिफ्ट लेकर आया था मैं, लेकिन बिना दिए ही वहां से चला गया था। बाद में मुझे याद आया और मैं वह तुम्हें देने के लिए वापस तुम्हारी शादी में आया था। तब जाकर मुझे पता चला कि वहां पर क्या हो रहा है। मुझे बहुत गुस्सा आया था। वो तो मॉम डैड के कारण शांत रहा था वरना............! मैं कितना भी फ्लर्ट किस्म का इंसान रहा हूं लेकिन मेरे सामने कोई किसी लड़की से बदतमीजी करें, मुझे अच्छा नहीं लगता क्योंकि मेरी अपनी कई सारी बहने हैं। और वहां तो मेरी मॉम के साथ..........! जब मैं उन्हें लेकर प्रोटेक्टिव हो सकता हूं तो फिर बाकी सब के लिए भी तो हो सकता हूं। लड़की की हां का मतलब हां और ना का मतलब ना ही होता है।"


    अपनी शादी की रात को याद करके निशी एक पल को तो सहम गई। लेकिन एक बात उसे खटकी, और उसने पूछा "तुम शादी से चले गए थे, वह भी बिना गिफ्ट दिए? ऐसा क्या हो गया था? अरे हां! सुहानी भी तो ऐसी ही गिफ्ट की बात कर रही थी। कहां है वह? मुझे तो मिली नहीं!"


     अंशु ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप नीचे की तरफ देखने लगा जहां होलिका दहन की तैयारी हो रही थी। उसने अपना सवाल फिर से दोहराया "बताओ ना! ऐसा क्या हुआ था जो तुम मुझे बिना मिले ही चले गए थे?"


    अब अंशु क्या ही कहता कि निशी को किसी और की दुल्हन बने देख उसे अच्छा नहीं लगा था।

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