सुन मेरे हमसफर 69

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    कुणाल बस अव्यांश के चेहरे को देखे जा रहा था लेकिन उसके चेहरे पर ऐसी कोई बात नहीं थी जिससे उसको शक होता। अव्यांश भी आराम से अपनी ड्यूटी करने में लगा हुआ था। कुहू टहलते हुए आई और किचन के दरवाजे पर खड़े होकर बोली "आप लोगों को मेरी किसी हेल्प की जरूरत है क्या?"


     सभी एक साथ कुहू की तरफ पलट गए और हाथ बांधकर खड़े हो गए। समर्थ कुहू का मजाक बनाते हुए बोला "हां! हमें जरूरत है ना तेरी! तुझे आता है यह सब बनाना तो एक काम कर, कल का सारा ब्रेकफास्ट तेरे जिम्मे। एक काम कर, कल का सारा नाश्ता तू अकेले अपने हाथों से बनाएगी, वह भी हम सबके लिए, ठीक है?"


      समर्थ अच्छे से जानता था कि खाना बनाने मे कुहू का हाथ कितना तंग है और यह जानते हुए भी कुहू का इस तरह किचन में हेल्प के लिए आना सबको समझ में आ गया कि वह सिर्फ कुणाल की हेल्प करना चाहती थी। कुहू समर्थ का जवाब सुनकर इंबैरेस हो गई और चुपचाप वहां से निकल गई।


      बाहर सभी गार्डन में बैठे बातें करने में बिजी थे। सारांश ने इस बार कुणाल के हाथों सबके लिए जूस भिजवाया था। ऐसा सबको सर्व करते हुए कुणाल को बहुत अजीब लग रहा था। लेकिन अपने नही होने वाले ससुर जी के सामने इनकार करने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। सबको सर्व करने के बाद कुणाल जल्दी से वहां से वापस घर के अंदर भाग गया। उसकी यह हरकत देख वहां मौजूद सभी हंस पड़े। इतने भी अवनी को सारांश की गाड़ी मेन गेट से अंदर आती हुई नजर आई।


      एक पल को तो अवनी चौक गई कि सारांश की गाड़ी बाहर क्यों गई थी, और कौन लेकर गया था, जब सारे घर वाले अंदर मौजूद थे? उसके सवाल का भी जल्दी ही जवाब मिल गया, जब उस गाड़ी से अखिल जी उतरे। उन्हें देख अवनी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह उठी और लगभग दौड़ते हुए उनके पास आकर चिल्लाई, "पापा......!!" और ऐसे गले लगी जैसे बहुत टाइम के बाद दिखे हो।"


     काव्या अपनी बहन की यह हरकत देख मुस्कुराई और बोली "बेटे की शादी हो गई है, बहू घर आ गई है लेकिन इसका बचपना नहीं गया।"


     सिया की नजर भी अवनी पर ही थी। उन्होंने कहा "ये तो अच्छी बात है। हमारा बचपना हमेशा हमारे अंदर जिंदा रहना चाहिए।"


    काव्या भी उनकी बातों से सहमत होकर बोली, "ये बात तो है। वैसे भी, सीरियस होकर हमे मिल क्या जाएगा! जहां सीरियस होना होता है वहां अवनी बहुत ज्यादा सीरियस हो जाती है और ऐसे मौके पर तो बच्चों से भी छोटी बच्ची बन जाती है। वाकई अवनी की ये खूबी मुझे बहुत अच्छी लगती है।"


    गाड़ी से कंचन जी उतरी और उनके पीछे पीछे मिश्रा जी और रेनू जी भी उतर कर बाहर आए। अवनी ने अपनी समधन का स्वागत किया और उनका हाथ पकड़कर पूछा "आप लोगों को कोई तकलीफ तो नहीं हुई?"


     रेनू जी भी थोड़ा भावुक हो उठी और उन्होंने अवनी का हाथ पकड़कर कहा "कैसी बातें कर रही हैं आप! भला एक मां के घर में बच्चों को कोई तकलीफ हो सकती है भला! मेरा तो वहां से आने का मन ही नहीं कर रहा था। लेकिन अब हमें निकलना होगा। काफी देर हो चुकी है।"


     "अरे! ऐसे कैसे? बिना नाश्ता किए तो हम में से कोई भी आपको यहां से जाने नहीं देगा।" इतना कहकर अवनी ने रेनू जी का हाथ पकड़ा और सब को लेकर गार्डन में पहुंची जहां सभी बैठे हुए थे।


   नरम मुलायम घास पर सभी आराम कर रहे थे। सुहानी कुहू और काया तो वही बिस्तर समझकर लेटी हुई थी। इतने में अव्यांश बाहर निकल कर आया और बोला "चलिए सब लोग, नाश्ता तैयार हैं।"


     यह सुनते ही तीनो बहने जो अभी तक लेटी हुई थी उनमें ना जाने कहां से फुर्ती आई और तीनों किसी तूफान की तरह पलक झपकते ही उठकर अंदर की तरफ भागी। अव्यांश ने मुंह बनाकर कहा "भुक्कड़ कहीं की! खाने का नाम लिया नहीं कि इनसे सब्र नहीं होता।" वह भी उन तीनों के पीछे पीछे घर के अंदर चला आया। बाकी सब भी एक साथ घर के अंदर दाखिल हुए तो देखा सभी मिलकर डाइनिंग टेबल सेट कर रहे थे। 


     कुहू आगे आई और बोली "चाचू! अब रहने दो, आगे का हम लोग कर लेंगे।"


     अव्यांश उसे ताना देते हुए बोला "हां डैड! करने दो ना। शादी के बाद तो इससे भी ज्यादा करना पड़ेगा। थोड़ी बहुत सीख लेंगी तो कम से कम हमें थोड़ा कम ताना सुनने को मिलेगा।"


     कुहू ने टेबल पर से चम्मच उठाकर अव्यांश को मारा अव्यांश ने भी जल्दी से चम्मच को कैच कर लिया और वापस टेबल पर रख दिया। "इस नकचढी ने इतनी बार मुझे अपने जूते मारे हैं कि अब तो मैं ऐसे कैच कैच खेलने में एक्सपर्ट हो चुका हूं। इसलिए यह सब ट्रिक मुझ पर नहीं चलेगा।" उसकी बात सुनकर सभी खिलखिला कर हंस पड़े लेकिन निर्वाण गुस्से में कुणाल को देख रहा था। वह दोनों एक दूसरे को टशन देने में कोई कभी नहीं छोड़ रहे थे।


     अव्यांश को थोड़ा तो डाउट हो गया था कि उन दोनों के बीच कुछ तो गड़बड़ है। निर्वाण कुणाल से मिलने के लिए इतना एक्साइटेड था, उससे मिलने के बाद उस के चेहरे पर एक्सप्रेशन थे वो कहीं से भी मैच नहीं हो रहे थे। 


   निशी के मां पापा घर के जेंट्स को इस तरह एप्रॉन पहने देख थोड़ा अजीब महसूस कर रहे थे। उससे भी ज्यादा उन्हें अजीब तब लगा जब सारे मिलकर उन लोगों को शर्व करना स्टार्ट किया। अखिल जी उन्हें देख हंसते हुए बोले "इसमें इतना सोचने वाली कोई बात नहीं है। यह इस घर का पुराना नियम है। हम तो बरसों से देखते आ रहे हैं। आज के दिन सुबह किचन की सारी जिम्मेदारी यह लोग उठा लेते हैं और पूरा परिवार एक साथ बैठकर नाश्ता करता है। अगले दिन जिसको जो मर्जी करना हो करें। सब की संडे छुट्टी, ऑफिस की भी और घर से भी।"


     कार्तिक भी उनकी हां में हां मिला दिया और बोला "बिल्कुल! मिश्रा जी, अब तो आप इस सब की आदत डाल लीजिए। अब आप भी हमारे परिवार का हिस्सा है। हमारे अंशु जितना प्यारा डैड को ढूंढने से भी नहीं मिलता। उसके हाथ के पराठे तो ट्राई कीजिए।"


     अपनी तारीफ सुनकर अव्यांश थोड़ा सा गुब्बारे की तरह फूल गया और गला खरास कर निशी की तरफ देखा। निशी ने भी नजर उठाकर अंशु की तरफ देखा तो अव्यांश ने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और एक बार फिर जता दिया कि वह नाराज है। निशी इतनी ही देर में परेशान हो चुकी थी।


     सिद्धार्थ सारांश कार्तिक और बाकी सब भी अपना अपना एप्रिन उतार कर वही डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। शिवि की खाली कुर्सी देखकर सिद्धार्थ ने पूछा "शिवि कहां है? वो नहीं करेगी क्या नाश्ता? सुबह के 9:00 बज चुके हैं, अब और कितना सोएगी? हॉस्पिटल नही जाना क्या आज उसे?"


     श्यामा ने अपनी कुर्सी पर से उठते हुए कहा "मैं जाकर देखती हूं उसे। कल की थकान के कारण नींद नहीं खुली होगी उसकी। आज हॉस्पिटल नही जायेगी तो कोई तूफान नही आ जायेगा।"


    निर्वाण ने उन्हें रोकते हुए कहा "मामी! आप बैठो मैं उन्हें देख कर आता हूं।" निर्वाण तुरंत शिवि के कमरे की तरफ बढ़ गया।


      कुणाल जो कुहू के बगल में ही बैठा हुआ था, उसने धीरे से पूछा "ये शिवि कौन है?"


     कुहू को थोड़ा अजीब लगा। उसने पूछा "कल तुम शिवि से नहीं मिले क्या?"


     कुणाल ने इनकार में सर हिला दिया तो कुहू बोली "क्या तुम भी! तुम और वो लफंगा, दोनो पार्टी से ऐसे गायब हो गए कि ढूंढने से भी नहीं मिले। अगली बार मिलेगा तो बताऊंगी उसे। हमारी शिवि कल ही सेमिनार से लौट कर आई है। मैंने बताया था ना तुम्हें, बड़े पापा की बेटी है। अरे, समर्थ भाई की छोटी बहन। डॉक्टर है वो।"


    कुणाल को अब याद आया। जब वो सुहानी के बर्थडे पर आया था तब कुहू ने सबके बारे में उसे बताया था। बताया तो उसने निर्वाण और नेत्रा के बारे में भी था लेकिन उसे दोनों भाई बहन का नाम नहीं पता था। अगर पता होता तो कभी इस रिश्ते के लिए हां नहीं करता।


    अव्यांश और शिवि उस टाइम वहां नहीं थे इसीलिए उनसे भी मिलना नही हो पाया था। कुणाल को सारी बातें समझ में आई लेकिन एक बार फिर उसकी नजर सिद्धार्थ के चेहरे पर जाकर अटक गई। पता नहीं क्यों लेकिन उसे सिद्धार्थ का चेहरा काफी जाना पहचाना लगता था, उसके नैन नक्श........ लेकिन चाह कर भी वह कभी कुछ पूछ नहीं पाया।


  सिद्धार्थ ने उसके इस हाव भाव को नोटिस किया और पूछा "तुम कुछ कहना चाहते हो क्या?"


     कुणाल ने नज़रे नीचे की और सर हिलाते हुए बोला "नहीं। वह एक्चुअली आपका चेहरा मुझे किसी की याद दिलाता है। बहुत अपना सा लगता है। अब यह मत पूछना कि कौन।" सिद्धार्थ मुस्कुराकर रह गया और कुछ नहीं पूछा।


     निर्वाण थोड़ी ही देर में शिवि के कमरे से भागता हुआ आया। उसे देख सिद्धार्थ ने सवाल किया "क्या हुआ? शिवि कहां है? उठी नहीं क्या?"


    निर्वाण परेशान होकर बोला "उठेगी तब, जब वो सोएंगी। उनका बेड देख कर लग रहा है कि वह सोई ही नहीं है।"


     श्यामा ने परेशान होकर पूछा "सोई नहीं, मतलब? कर क्या रही है वो?"


    निर्वाण बोला "पता नहीं मामी, लेकिन अपने कमरे में नहीं है।"


   श्यामा घबरा गई "ऐसे कैसे अपने कमरे में नहीं है। हमारे साथ ही वापस आई थी। सोनू! शिवि तेरे साथ थी ना बेटा?"


    श्यामा को ऐसे घबराते हुए देख सिया ने उसे समझाते हुए कहा "परेशान होने की जरूरत नहीं है। हो सकता है हॉस्पिटल से कोई कॉल आया हो और चली गई हो। तुम शांत रहो, मैं हॉस्पिटल कॉल करके देखती हूं।"


    सारांश ने जल्दी से अपना फोन निकाला और कहा "मैं कॉल करता हूं।"


    सारांश ने जैसे ही हॉस्पिटल का नंबर डायल किया और फोन कान से लगाया, उसी वक्त एक मीठी सी आवाज आई "किसको ढूंढा जा रहा है? वह भी सुबह-सुबह!"





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